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खामोश प्यार- भाग 5

कॉलेज में हुई इन प्रतियोगिताओं में गर्ल्स इंवेट में जहां कायरा नंबर वन बनी हुई थी, वहीं बॉयज इवेंट में मानव बाजी मार रहा था। मैदानी खेलों के अलावा, इनडोर इवेंट में भी मानव और कायरा सभी को पटखनी दे रहे थे। मतलब साफ था कि पढ़ाई के साथ स्पोर्टस और कल्चरल एक्टिविटी में भी ये दोनों स्टूडेंट बराबर ध्यान देते थे और हमेशा सबसे आगे रहने की कोशिश करते थे। अब एक आखिरी प्रतियोगिता बची थी, जिसके लिए पूरे कॉलेज से सिर्फ दो ही नाम सामने आए थे। यह प्रतियोगिता थी वाद-विवाद प्रतियोगिता। इस प्रतियोगिता में मानव और कायरा के अलावा किसी का नाम नहीं था।

वो दिन भी आ गया सभी निर्णायकों के सामने वाद-विवाद प्रतियोगिता होने वाली थी। इस प्रतियोगिता के बाद ही बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड भी दिया जाने वाला था। अभी तक हुई प्रतियोगिताओं में मानव और कायरा लगभग बराबरी खड़े हुए थे। इस प्रतियोगिता का निर्णय यह भी बताने वाला था कि मानव और कायरा में से कौन बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड जीतेगा। वाद-विवाद प्रतियोगिता को जीतने वाला ही बेस्ट स्टूडेंट के अवार्ड का हकदार भी बनने वाला था। प्रतियोगिता शुरू हुई और वाद-विवाद का विषय था प्रेम। कायरा और मानव में से किसी को प्रेम के पक्ष में और किसी एक को प्रेम के विपक्ष में बोलना था। निर्णायकों ने सबसे पहले कायरा से प्रश्न किया कि वह प्रेम विषय पर पक्ष में बोलेगी या विपक्ष में।

सर मैं प्रेम के विपक्ष में बोलना चाहूंगी। कायरा ने निर्णायकों के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा।

इसके बाद निर्णायकों ने मानव को प्रेम के पक्ष में बोलने के लिए कहा जिस पर मानव ने अपनी स्वीकृति दे दी। प्रतियोगिता के नियम के अनुसार यह तय था कि एक बार कायरा विपक्ष में बोलेगी और कायरा की बात के विरोध में मानव को अपना पक्ष रखना होगा। कायरा और मानव ने इस नियम पर अपनी स्वीकृति दी और प्रतियोगिता शुरू हो गई। सबसे पहले कायरा ने अपना पक्ष रखा।
मैं प्रेम पर बहुत अधिक विश्वास नहीं करती हूं। जन्म से बने रिश्तों में जो प्रेम होता है वहीं सबसे अधिक मूल्यवान होता है और जिंदगी में उसी की अहमियत होती है। कायरा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा।

कायरा ने आगे कहा- दरअसल प्रेम बेहद सुंदर सा अहसास है. इस अहसास में दो का तो सवाल ही नहीं उठता. प्रेम में सब एक हो जाता है। जैसे बच्चे का पेट भरने से मां का पेट भर जाता है, जैसे पिता, जो अपनी खून पसीने की कमाई को बच्चों के लिए इकट्ठा करता है, जैसे बहन, जो भाई को पिटने से बचाने के लिए उसकी गलतियों को अपने सिर ले लेती है। वो होता है सच्चा प्रेम, वो होता है अहसास, जो हम दूसरों से उम्मीद करते हैं. आप बताइए क्या कोई दूसरा समझ सकता है इन अहसासों को...कर सकता है इतना त्याग आपके लिए...।

इसके उलट जब आप बाहरी व्यक्ति में प्रेम ढूंढते हैं, तो आपको सिवाय धोखे के कुछ नहीं मिलता...खासकर शहरों में तो प्रेम का अर्थ ही अलग है, वहां लोग रातें गुलजार करते हैं पब और क्लब जाकर..खुशियां मनाते हैं किसी और के साथ रात गुजारकर, वजह ढूंढते हैं कि चेहरे पर बनावटी मुस्कान बनी रहे!

जबकि अपनों को अपने होने का अहसास दिलाना, हंसना और हंसाना, साथ बैठ के खाना, एक की परेशानी पर सबका परेशान हो जाना, रूठना-मनाना प्रेम यही है, सत्य यही है। अपनों के ही मध्य रहकर मुझे निश्छल प्रेम मिलता हो तो फिर मुझे प्रेम को बाहर की दुनिया में, या किसी अंजान शख्स में खोजने की आवश्यकता क्यों है। पिता से ज्यादा केयर, मां से ज्यादा प्यार और भाई या बहन से ज्यादा लगाव, विपरीत परिस्थितियों में खड़े होने का विश्वास मुझे और कहां मिल सकता है। इससे ज्यादा प्रेम की खूबसूरती मुझे कहीं और नजर नहीं आती है। मेरे लिए यही प्रेम हैं।

मानव ने कायरा की बातों को बहुत ध्यान से सुना था। अब उसकी बारी थी कि वो अपने तर्कों से कायरा की बातों का जवाब दे। सभी नजरें अब मानव पर टिकी हुई थी। करीब दो मिनट तक मानव चुप रहा और बार-बार वो कायरा को देख रहा था। कायरा के चेहरे पर एक हल्की सी विजयी मुस्कान नजर आ रही थी। मानव ने बोलना शुरू किया-

आपने जो प्रेम की परिभाषा दी है उससे मैं बिल्कुल इत्तेफाक रखता हूं। मैं यह नहीं कहता कि जिस तरह से आपने प्रेम का वर्णन किया है वो गलत है। बिल्कुल सच है कि मां से ज्यादा प्यार कोई नहीं कर सकता। पिता से ज्यादा केयर कोई नहीं कर सकता। भाई या बहन जिस मजबूती के साथ विपरीत परिस्थितियों में आपके साथ खड़े हो सकते हैं, उनकी जगह कोई और नहीं ले सकता। परंतु मां के बाद, पिता के बाद और भाई-बहन के बाद कौन?

मुझे लगता है कि इन सभी के बाद जिस व्यक्ति का स्थान आता है वो होता है आपका जीवन साथी, जो इन सभी रिश्तों के बाद आपके हर रिश्ते के किरदार में आपके साथ होता है। बस जरूरत होती है उस पर उतना विश्वास करने की। माता-पिता की रजामंदी से यदि जीवन साथी चुना जाता है तो भी अपेक्षा वहीं रहती है और यदि आप अपनी पसंद से अपना जीवन साथी चुनते हैं तो अपेक्षाएं बदल नहीं जाती है। वो मां की तरह प्यार नहीं करेगा परंतु मां के बाद प्यार करेगा। वो पिता की तरह सब कुछ न्यौछावर भले ही ना कर दें, परंतु पिता के बाद वहीं होगा जो आपके लिए कुछ भी करेगा। वो आपके भाई या बहन की तरह हमेशा आपके साथ ना खड़ा हो सके, परंतु इतना जरूर है कि जब आपको किसी के साथ की जरूरत होगी तो वो आपके साथ जरूर खड़ा रहेगा।

प्रेम से ऐसे प्यार, ऐसी केयरिग और ऐसे के हाथ को पाया जा सकता है, जिसे आप चुनकर उस पर विश्वास कर सकते हैं। हो सकता है कि वो पिता की तरह भूखे रहकर आपका पेट ना भरे, पर इतना हो सकता है कि अपने हिस्से में से आपको हिस्सा दे दें। छोटी सी बात पर भी वो आपको केयर करता दिखे, आप दुखी हो तो आपके साथ खड़ा रह सकें। आपके दुख का कुछ भागीदार बन सके। आपको रोने ना दे, आपको हिम्मत ना हारने दे, आपको खुश रख सके। वो आपके लिए कुछ भी कर सके। उस इंसान से प्रेम कर उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लेना क्यों गलत होगा। प्रेम से इंसान बदलते देखे हैं तो प्रेम एक ऐसा नया रिश्ता क्यों नहीं दे सकता, जिस पर आप अपने जन्म के रिश्तों की तरह ही यकीन कर सकें।

इसी के साथ मानव ने भी अपनी बात को विराम दिया। मानव के तर्कों को सुनने के बाद कायरा एकटक उसे देख रही थी। निर्णायकों विजेता घोषित करने के लिए एक-दूसरे से चर्चा कर रहे थे। इसी दौरान कुछ पल के लिए कायरा और मानव की नजरें मिली थी। दोनों की नजर में एक-दूसरे के लिए प्यार नजर आ रहा था। हालांकि वे दोनों ही अपने इस प्यार को एक-दूसरे पर जाहिर नहीं करना चाह रहे थे। इसलिए दोनों ने अपनी नजरें भी चुना ली थी। अब निर्णायकों ने अपना फैसला देने के लिए कदम बढ़ा दिया था।

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