ममता की छाँव - भाग 8 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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ममता की छाँव - भाग 8

अंशिता का हिमांशु के सामने विवाह का प्रस्ताव रखने वाली पूरी बातचीत की भनक हिमांशु के पिता के कानों में पड़ गई। उन्होंने एक गहरी शांति से भरी साँस ली। उन्होंने बिल्कुल भी देर नहीं लगाई और ड्राइंग रूम में आ गए।

उन्हें देखते ही अंशिता उठकर खड़ी हो गई। तब उन्होंने बैठी रहो बेटा, कहते हुए अंशिता के सर पर हाथ फिराया और फिर कहा, “यक़ीन नहीं होता बेटा भगवान दुनिया में ऐसे फरिश्ते भी भेजता है। तुम्हारी बातों को सुनकर तो यही एहसास हो रहा है। इस वक़्त हिमांशु यह निर्णय लेने में असमर्थ लग रहा है। मैं उसका पिता हूँ इसलिए मैं निर्णय ले सकता हूँ। यदि तुम्हारे माता-पिता भी इस रिश्ते के लिए तैयार हों तो यह हमारा सौभाग्य होगा बेटा। हम पर यह तुम्हारे परिवार का बहुत बड़ा उपकार होगा। हमारी बिटिया तो चली गई दो-दो बेटियाँ देकर। अब उन्हें लाड़ प्यार से बड़ा करना, उनका सुंदर भविष्य बनाना मेरे और हिमांशु की जिम्मेदारी है। मैं तो बूढ़ा हो रहा हूँ, इस बढ़ती उम्र में अकेले इन दोनों बच्चियों को संभाल नहीं पाऊँगा,” इतना कहते हुए हिमांशु के पिता रो पड़े।

अंशिता ने कहा, “अंकल आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। अंकल एहसान या उपकार वाली तो कोई बात ही नहीं है। मैंने यह निर्णय बहुत पहले से लिया हुआ है कि मैं किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करूंगी जिसके बच्चे को माँ की ज़रूरत होगी लेकिन भगवान ने मेरे ही दोस्त के …,” इतना कहते हुए अंशिता भी रोने लगी।

अगले दिन अंशिता के माता-पिता हिमांशु के घर उसके पिता से बात करने आए। कुछ देर बैठने के बाद सौरभ ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “हम अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आपके घर आए हैं। यदि आप इस रिश्ते को स्वीकार कर लें।” 

हिमांशु के पापा ने उठकर उनके दोनों हाथों को नीचे करते हुए कहा, “सौरभ जी यह एहसान है आपके परिवार का।”

“नहीं-नहीं, आप ऐसी बात मत करिए। शायद यह सब भगवान की मर्जी से ही हो रहा है।”

इस रिश्ते पर सब की ख़ुशी और सहमति की मुहर लग गई। भले ही इस समय सभी की आँखों में आँसू थे। भावनाएँ दर्द और ख़ुशी के संगम के साथ बह रही थीं। परंतु इस रिश्ते से उन दोनों बच्चियों का भविष्य सुंदर होना निश्चित हो रहा था। हिमांशु और उसके पापा इस समय अंशिता को और उसके परिवार को भगवान की तरह मान रहे थे।

बात पक्की हो जाने के बाद वे अपने घर लौट रहे थे, तब सौरभ ने अंजलि से कहा, “हमारी बेटी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी उठाने जा रही है। इतनी ख़ुशी से कोई ऐसा निर्णय नहीं लेता, है ना अंजलि?”

“हाँ सौरभ तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। यदि अंशिता चाहती तो उसे सब कुछ मिल सकता था। परंतु उसने सबसे अलग चाहा और मैं जानती हूँ जो जवाबदारी वह उठाने जा रही है, उसे वह बहुत अच्छे से पूरा भी करेगी।”

“हाँ मुझे मेरी अंशिता पर गर्व है। वह जो करने जा रही है, आसान नहीं है।”

अगले एक सप्ताह के भीतर शुभ मुहूर्त देखकर हिमांशु और अंशिता भगवान के समक्ष मंदिर में एक हो गए। उनका विवाह साधारण ढंग से लेकिन रीति रिवाजों के साथ संपन्न हो गया।

अंशिता अब हिमांशु के घर जाने के लिए तैयार थी। विदाई की बेला थी वह सौरभ के पास गई और उनके गले लग कर कहा, “पापा मेरी मम्मा का ख़्याल रखना। वह कभी अपने हाथ से फल काट कर नहीं खाती, मैं ही ज़िद करके रोज़ खिलाती हूँ लेकिन अब तो मैं जा रही हूँ। आप यह मेरा एक काम करोगे ना?”

सौरभ आँखों में आँसू लिए कुछ भी कहने की हालत में नहीं थे। पास खड़ी अंजलि यह सुनते ही फूट-फूट कर रोने लगी और अंशिता को अपने सीने से लगा लिया। 

“मेरी बेटी, तुम तो मेरी जान हो तुम्हारे बिना, मैं कैसे रह पाऊँगी, सोचकर ही डर लग रहा है।” 

“मम्मा आप रोओ नहीं, आप के लाड़ प्यार, आपके दुलार ने मुझे संभाला है। मैं भी आपकी ही बेटी हूँ ना, मैं भी वही तो करने जा रही हूँ जो मैंने आपसे सीखा है। मम्मा आप तो मेरी ताकत हैं; यदि आप ऐसा कहेंगी तो मैं कमज़ोर पड़ जाऊँगी।” 

अंजलि ने अपनी साड़ी के पल्लू से ख़ुद के आँसू पोछे फिर अंशिता के आँसू पोंछते हुए कहा, “अंशिता तुम तो मुझसे भी बहुत ज़्यादा अच्छी माँ बन कर दिखा रही हो बेटा।”

वह आगे कुछ कहे, उससे पहले ही अंशिता ने अंजलि के होंठों पर अपनी उंगली रख दी। इस तरह भीगी पलकों के साथ अंशिता विदा हो गई।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः