Mamta Ki Chhanv - Part 6 books and stories free download online pdf in Hindi

ममता की छाँव - भाग 6  

अंशिता बहुत खूबसूरत थी पढ़ी लिखी थी और बैंक में कार्यरत भी थी। उसके लिए तो रिश्तों की कोई कमी नहीं थी। इसी बीच उसके लिए कई अच्छे रिश्ते आने लगे लेकिन जब भी कोई रिश्ता आता वह मना कर देती। 

एक दिन अंजलि और सौरभ ने अंशिता को पास बुलाया और फिर सौरभ ने पूछा, “अंशिता बेटा तुम हर रिश्ते के लिए बार-बार मना क्यों कर देती हो? इतने अच्छे-अच्छे रिश्ते आ रहे हैं। मना करने की कोई वज़ह मुझे तो नज़र नहीं आती।”

अंजलि ने कहा, “अंशिता बेटा यदि तुम्हारे जीवन में कोई हो तो निःसंकोच बता दो। हमारे लिए तुम्हारी ख़ुशी से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। तुम जिससे कहोगी, जहाँ कहोगी हम उसी से तुम्हारा विवाह कर देंगे।”

अंशिता ने कहा, “नहीं मम्मा मेरे जीवन में अब तक ऐसा कोई नहीं आया, जिससे मैं विवाह करना चाहती हूँ।” 

सौरभ ने कहा, “बेटा फिर क्यों तुम हर रिश्ते के लिए मना कर देती हो?”

“पापा मैं हिमांशु की दोनों बेटियों राधा और मीरा को माँ का प्यार देना चाहती हूँ। उनके सूने वीरान जीवन में ख़ुशी भरना चाहती हूँ। पापा मैं हिमांशु के साथ विवाह करना चाहती हूँ, जिसे आप की तरह अपनी बच्चियों के लिए एक माँ की ज़रूरत है, जैसे मेरे लिए आपको थी और मम्मा ने आकर मुझे संभाल लिया। मुझे भरपूर प्यार दिया सब कुछ सिखाया। मेरे जीवन को ख़ुशियों से भर दिया वरना मैं क्या करती पापा? मैं जानती हूँ कि माँ के प्यार बिना जीवन कितना सूना होता है।”

अंजलि ने कहा, “यह क्या कह रही हो बेटा? यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।”

 “जानती हूँ मम्मा लेकिन यदि आप मेरी जिम्मेदारी नहीं उठातीं तो मेरा क्या होता?”

अंशिता की बातें सुनकर अंजलि की आँखों से आँसू झरने लगे उसके आश्चर्य का ठिकाना न था। सौरभ और अंजलि अद्भुत रस से भरी आँखों से आँसुओं की धारा के साथ अंशिता की ओर निहार रहे थे। 

अंशिता ने अंजलि का हाथ पकड़ते हुए कहा, “पापा जब माँ मेरे लिए इतना त्याग कर सकती हैं, अपनी ख़ुद की गोद सूनी रख सकती हैं तो मैं भी उन्हीं की तो बेटी हूँ ना पापा। यह संस्कार मुझे मेरी मम्मा से मिले हैं। मुझे भी ऐसा ही जीवन चाहिए पापा कि मैं मम्मा की तरह किसी के जीवन को रौशन कर सकूँ।”

अंजलि ने अंशिता को अपने सीने से लगाते हुए कहा, “बेटा यह राह इतनी आसान नहीं है।”

“मैं जानती हूँ मम्मा फिर भी आपने उस कठिन रास्ते को पूरा तय किया है ना।”

सौरभ ने कहा, “अंशिता तुम्हारे लिए एक से बढ़कर एक घरों के रिश्ते आ रहे हैं। तुम्हारी मम्मा ठीक कह रही हैं। यह इतना आसान नहीं है, छोड़ दो यह ज़िद।” 

“यह ज़िद नहीं है पापा, यह तो एक बहुत ही नेक काम है और मेरी सच्चे मन से यही अभिलाषा है कि मैं अपनी इस इच्छा को पूरा कर सकूँ।” 

“ठीक है बेटा यदि यही तुम्हारा अंतिम फ़ैसला है तो यही सही। मुझे अपनी बेटी पर गर्व है,” कहते हुए सौरभ ने अंशिता को अपने सीने से लगा लिया।

अंजलि ने भी अपनी आँखों से आँसू पोंछते हुए कहा, “अंशिता बेटा आई लव यू।”

“आई लव यू मम्मा।”

तभी सौरभ ने भी अंशिता के माथे का चुंबन लेते हुए कहा, “आई लव यू बेटा।”

“आई लव यू पापा।”

इस समय अंशिता की बात को उसके पापा मम्मी दोनों मान चुके थे। ऐसे समय में अंशिता अपने पापा और मम्मा के मुँह से यह तीन शब्द सुन कर फूली नहीं समा रही थी। उसे घर में ही स्वर्ग की अनुभूति हो रही थी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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