अंजलि के मुँह से बार-बार बड़ी हो रही हो, शब्द सुनकर अंशिता सच में अपने आप को बड़ी समझने लगी। उसकी ज़रूरतों ने छोटी सी अंशिता को अपने ख़ुद के काम करने के लिए मजबूर कर दिया और वह धीरे-धीरे सीखने भी लगी।
वह जामफल धोकर उसे जैसे तैसे काटती और खा लेती। अंशिता अपना स्कूल का होम वर्क, अपनी पढ़ाई, सब कुछ ख़ुद से कर लेती थी। उसे उसकी मम्मा पर बहुत विश्वास था। उसे लगता उसकी मम्मा उसे यह सब कुछ सिखाने के लिए ही तो कहती हैं।
एक दिन अंशिता ने सेब को धोकर काटा और आड़ी टेढ़ी फांकें एक प्लेट में लेकर अंजलि के पास गई और प्लेट देते हुए कहा, “मम्मा देखो मैंने आपके लिए भी सेब काटा है,” कहते हुए अपने हाथों से एक फांक उठाकर वह अंजलि के मुँह में खिलाने लगी।
यह देखकर अंजलि हैरान थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे प्रतिक्रिया करे। अंजलि ने उसके हाथों से एक कौर खाते हुए कहा, “थैंक यू बेटा बस अब तुम खा लो।”
अंशिता का यह रूप अंजलि के मन में प्यार का ऐसा एहसास जगा गया, जिसने उसके मन को बदलना शुरू कर दिया। इसीलिए अंशिता का छोटा-सा कोमल मन कभी भी यह समझ ही नहीं पाया कि अंजलि उसकी सौतेली माँ है।
धीरे-धीरे अंशिता ने अब हर रोज़ ही ऐसा करना शुरू कर दिया। वह रोज़ अपने छोटे-छोटे हाथों से फल काट कर ख़ुद भी खाती और अंजलि के लिए भी लेकर जाती।
अंजलि के मना करने पर ज़िद भी करती। वह कहती, “प्लीज़ मम्मा खाओ ना।”
“मम्मा यदि फल नहीं खाओगी तो फिर से बीमार हो जाओगी। बस अब दूसरी बार मुझे छोड़ कर भगवान के घर मत जाना वरना मैं क्या करुँगी। मैं आपके बिना बहुत दुःखी हो जाती हूँ मम्मा।”
कभी वह अंजलि का माथा चूम लेती। कभी गाल पर पप्पी ले कर कहती, “आई लव यू मम्मा।”
अंजलि यूँ तो स्वभाव से बहुत अच्छी थी। उसने ऐसी किसी भी बात के लिए कभी अंशिता का अपमान नहीं किया। उसे कभी भी झिड़क कर अपने से दूर नहीं भगाया। लेकिन आज तो अंशिता की यह बातें सुनकर अंजलि ने उसे अपने सीने से लगा लिया और ऐसा करके उसे एक बहुत ही मीठे एहसास की अनुभूति हो रही थी। इन पलों को वह जी भर कर जीना चाह रही थी।
सौरभ बहुत ख़ुश था क्योंकि उसे जो दिखता था, वही सही और सच लगता था। अंजलि के मन के अंदर जो भी था, सौरभ को कभी भी उसकी आहट तक ना हो पाई थी।
अंजलि की हर बात को अंशिता ने हमेशा सकारात्मक रूप से लिया। उसकी यही सकारात्मकता अंशिता की ख़ुशी बन गई और अंजलि भी उसे उतना ही चाहने लगी जितना अंशिता उसे चाहती थी। लेकिन इसमें लगभग एक वर्ष बीत गया। अब तो अंजलि को यदि वह गुजरा वक़्त याद भी आ जाता तो उसका तन मन तड़प कर सिहर उठता और वह सोचती वह कितनी बड़ी ग़लती कर रही थी। अंशिता के प्यार ने उसे सौतेली माँ बनने से बचा लिया। दोनों एक दूसरे के साथ बहुत ख़ुश थे।
समय तो गतिमान है उसके पहिये घूम रहे थे। धीरे-धीरे समय के आगे बढ़ने के साथ ही अंशिता ने जवानी की दहलीज़ पर क़दम रख दिया। स्कूल की पढ़ाई पूरी करके अब वह कॉलेज पहुँच गई। अब भी वह स्कूल की ही तरह कॉलेज से घर आते ही अंजलि से चिपक जाती। उसे गालों पर प्यार भरी एक पप्पी देती। उसे अपने कॉलेज की सारी बातें बताती। अंजलि भी उसकी प्यार भरी बातों को सुनकर बहुत ख़ुश होती। उसकी मीठी-मीठी बातें उसे बहुत अच्छी लगतीं। यदि किसी दिन उसे कॉलेज से आने में देर हो जाती तब अंजलि बेचैन हो जाती।
बचपन में भले ही अंशिता को यह लगता था कि भगवान ने उसकी मम्मा को वापस भेज दिया है; लेकिन बड़ी होते-होते वह समझ गई थी कि उसकी माँ जिसने उसे जन्म दिया था वह मर चुकी है। वह देवकी थीं और यह उसकी यशोदा मैया हैं, जिसने उसे जीना सिखाया। वह यह भी समझ चुकी थी कि उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ही पापा ने यह दूसरा विवाह किया था।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः