जीवन सूत्र 9 आत्मा में है जादुई शक्ति
वास्तव में वह एक परम सत्ता ही अविनाशी तत्व है,जिसे लोग अपनी-अपनी
उपासना पद्धति के अनुसार अलग-अलग नामों से जानते हैं।मनुष्य को प्राप्त जीवन, उसके
प्राण का अस्तित्व,मृत्यु के समय प्राणशक्ति का क्षीण होना,पुनर्जन्म की अवधारणा ये
सब ऐसे सिद्धांत हैं,जिनसे ईश्वर के सर्वोपरि होने का पता लगता है। यह संसार भी और
इसके दृश्यमान रूप भी ईश्वर की ही अभिव्यक्ति हैं।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है,
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित् कर्तुमर्हति।।2/17।।
इसका अर्थ है,हे अर्जुन! तुम उसे अविनाशी जानो,जिससे यह सम्पूर्ण
जगत् व्याप्त है।इस अविनाशी का नाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है।
मनुष्य
के निज स्तर पर उस परमात्मा के एक अंश के रूप में आत्मा की भी वही भूमिका है।इस आत्मशक्ति
का कभी नाश नहीं हो सकता है। मन और बुद्धि द्वारा विचारपूर्वक लिए गए निर्णय को आत्मा
की सम्मति परिपूर्ण बनाती है।किसी गलत होते हुए काम को रोकने में आत्मा पथ प्रदर्शक
का कार्य करती है। इस चेतन तत्व की शरीर में उपस्थिति हमारे लिए एक बड़ा वरदान है।
यह अविनाशी तत्व न सिर्फ हमें जीवंत और चैतन्य रखता है, बल्कि हमें सचेत भी करता है।
जब हममें इस महत्वपूर्ण
कारक की उपस्थिति है तो हमें इसका उचित भान होना चाहिए। इसकी शक्तियों को स्वयं में
महसूस करना चाहिए,जाग्रत करना चाहिए। परमात्मा के एक अंश के रूप में शरीर में आत्मा
तत्व की उपस्थिति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हम इसके माध्यम से उस परमात्मा से
जुड़ सकते हैं और उसकी शक्तियों को स्वयं में अनुभूत कर मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते
हैं। यही आत्म तत्व है जो मन को नियंत्रित रख,विवेक जाग्रत कर शरीर को असीमित शक्ति
प्रदान कर सकता है। मनुष्य इसका उपयोग सदकार्यों में कर सकता है।
दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। मनुष्य जन्म लेता है और अपने
जीवन काल की अवस्था पूरी कर लेने के बाद उसका इस दुनिया से संपर्क टूट जाता है। जीवन
में बचपन,किशोरावस्था,यौवन और वृद्धावस्था की तरह ही यह दुनिया भी परिवर्तनशील है।
जो आज महानगर हैं,वे हजारों साल पहले गौतम बुद्ध के समय के महाजनपद काल में एक गांव
या छोटे कस्बाई शहर ही थे। उस समय की विरल जनसंख्या आज 135 करोड़ की आबादी को पार कर
चुकी है। देश दुनिया ही क्यों, हम अपने घर के भीतर के सामानों से लेकर, उसकी डिजाइन
और रंग रोगन आदि में समय-समय पर परिवर्तन करते रहते हैं।सार्वजनिक जीवन में अर्थात
राजनीति, फिल्म, व्यापार,खेल, कला, साहित्य, पत्रकारिता, अनुसंधान आदि क्षेत्रों में
हम एक दौर में कुछ लोगों को शीर्ष पर देखते हैं और कुछ वर्षों के या दशकों बाद दूसरे
लोग शीर्ष की उनकी जगह ले लेते हैं।
कुल मिलाकर सभी चीजों
में परिवर्तन,अनित्यता और क्षणभंगुरता दिखाई देती है। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन
के सापेक्षिता के सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान तथा ऊर्जा एक दूसरे से सम्बंधित हैं
तथा प्रत्येक पदार्थ में उसके द्रव्यमान के कारण भी ऊर्जा होती है। अगर किसी पदार्थ
का द्रव्यमान घटता है तो ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसी सिद्धांत के आधार पर यह कहा जाता
है कि सूर्य के द्रव्यमान में भी कमी आ रही है लेकिन उसकी ऊर्जा हमें करोड़ों अरबों
वर्षों तक मिलती रहेगी। ऐसे में स्थायी और नित्य कौन है? केवल परमात्मा ,उनका स्मरण
और हर जगह उनकी सकारात्मक उपस्थिति,चाहे साकार रूप में या निर्विकार रूप में।
जब सूर्य में में परिवर्तन
है तो पृथ्वी में भी है। इस धरती में भी कुछ भी स्थाई नहीं है।वास्तव में ट्रस्टीशिप,वसुधैव
कुटुंबकम, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व जैसी भारतीय परंपराओं और सिद्धांतों के बल पर ही
इस दुनिया में नफरत और हिंसा के बदले प्रेम और शांति का साम्राज्य स्थापित हो सकता
है। गीता के उक्त श्लोक का स्मरण करते हुए,कि दुनिया में ईश्वर ही एकमात्र अविनाशी
हैं।
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय