सौतन बनी सहेली... Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सौतन बनी सहेली...

जनार्दन प्रसाद गुप्ता सौरीगृह के बाहर बड़ी बैचेनी के साथ चक्कर काट रहे थे,तभी उनकी विधवा माँ अनुसुइया आकर बोली....
अरे इस बार क्यों घबराता है,हरिद्वार से आए़ ज्योतिषी ने गारण्टी लेकर कहा था कि इस बार लड़का ही होगा,सब कहते हैं उनका वचन कभी खाली नहीं जाता.....
अब क्या बोलूँ अम्मा?लेकिन कोई कितनी भी तसल्ली दे ले ,जी तो घबराएं ही है ना!चार बार ये दर्द झेला है मैनें,लोंग कैसें खिल्ली उड़ाते हैं बेटी के पैदा होने पर,ये तेरे से ज्यादा बेहतर और कौन समझ सकता है?जनार्दन गुप्ता बोलें....
सही कहता है बेटा!बस,इस बार भगवान लाज रख लें,फिर आइन्दा कभी कुछ ना माँगूगी उनसे,अनुसुइया बोली....
हाँ!बस एक बार लड़के का मुँह देख लूँ तो मेरा जन्म सफल हो जाएं,जनार्दन गुप्ता बोलें....
वही तो मैं भी चाहती हूँ कि एक बार पोते का मुँह देख लूँ फिर तीर्थयात्रा पर चली जाऊँगी,अनुसुइया बोली.....
अम्मा आज तो बहुत दुविधा में हूँ,अगर सोचा हुआ पूरा ना हुआ तो फिर क्या होगा?अब पाँचवीं बेटी नहीं चाहिए मुझे...जनार्दन गुप्ता बोलें....
दोनों माँ बेटे के बीच बातें चल रही थी कि तभी सौरीगृह से शिशु के रोने की आवाज आई,दोनों माँ बैटे ने एक दूसरे का हाथ ऐसे थाम लिया कि जैसे जुएँ की बाजी चल रही हो और दोनों ने कोई दाँव लगया हो कि ना जाने अब क्या होगा हार या जीत......
तभी सौरीगृह के दरवाजे खुले और दाईमाँ बाहर निकलकर आई,दोनों माँ बेटे ने हसरत भरी निगाहों से दाईमाँ को देखा और दाईमाँ ने अपनी पलकें झुका दी,दाई माँ की प्रतिक्रिया पर जनार्दन प्रसाद अपने करम पर हाथ धर कर वहीं बैठ गए जहाँ खड़े थें और अनुसुइया भगवान के सामने जाकर रोते गिड़गिड़ाते हुए बोली....
हे!प्रभु!मुझे क्या ये दिन देखने के लिए अब तक जिन्दा रखा है,जब पोते का मुँह नहीं दिखा सकता तो मुझे उठा ले भगवान...मुझे उठा ले...
दोनों माँ बेटे का इधर ये हाल था और उधर राजाबेटी जिसने अभी अभी कन्या को जन्म दिया था,वो उस कन्या का मुँह भी नहीं देखना चाहती थी,अब दाईमाँ भी बच्ची को छोड़कर जा चुकी थी और बच्ची रो...रही थी.....बिलख रही थी लेकिन फिर भी राजाबेटी को उस पर दया नही आई,जब बच्ची बहुत देर तक चुप ना हुई तो उसे फिर राजाबेटी ने उठाकर सीने से लगा लिया और उसे दूध पिलाने लगी ,बच्ची चुकर....चुकर.....की आवाज़ के साथ दूध पीने लगी,उसे दूध पीता देख राजाबेटी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा....
मुझे माँफ कर दे मेरी गुड़िया!क्या करूँ मैं भी मजबूर थी,तेरे पैदा होने के बाद मुझे जो जो सुनना पड़ेगा वो तू नहीं समझ सकती....
ये थीं जनार्दन प्रसाद गुप्ता की पत्नी राजाबेटी ,जो बहुत सुन्दर और सर्वगुण सम्पन्न थी इसलिए माँ बाप ने बड़े प्यार से नाम रखा राजाबेटी,जब इस घर में ब्याहकर आई थी तो सबकी बहुत चहेती थी,पति पलको पर बैठाकर रखते थे,हर ख्वाहिश पूरी करते थे क्योकिं जनार्दन जी के पास रूपयों की कोई कमी नहीं थीं,बाप दादा बहुत जमीन जायदाद छोड़कर गए थे,साथ में हवेलीनुमा पुरखों का मकान और एक कपड़ें की दुकान थी जो वें उसे अपनी खुशी के लिए चलाते थे,क्योंकि उन्हें खाली बैठना पसंद नहीं था इसलिए.....
तभी राजाबेटी ने सौरीगृह से अपनी सास अनुसुइया को अपने पति से कहते सुना...
"इसीलिए तो कहती हूँ, दूसरा ब्‍याह कर ले,अब इसके बस का नहीं है बेटा पैदा करना,
जैसे ही राजा बेटी ने ये सुना तो वह पहले ही मर रही थी, यह बात सुन कर और भी मर गई,उसे विश्‍वास हो गया कि अब यह ब्‍याह होकर रहेगा,वो सोचने लगी कि मेरा अब क्‍या होगा? अभी यह हाल है तो पति के दूजे ब्‍याह के बाद क्‍या होगा? सभी उसे दुतकारेगे, सब नई बहू को पूछेंगे,मुझे कोई भी ना पूछेगा, यह अनादर, यह अपमान, यह तिरस्‍कार कैसे सहूँगी?राजाबेटी ने जोर जोर से रो रो कर कहा -...
"हे भगवान! अब उठा लो सहा नहीं जाता।"
लेकिन उसकी सास ने जब ये बाहर से सुना तो वो और भी लाल-पीली हो गईं और राजाबेटी को सुनाते हुए बोलीं ....
"तेरे भाग में मौत नहीं, मौत तो हमारे भाग में है,पाँचवीं बेटी पैदा करके क्या जताना चाहती है?
सास के बोल सुनकर राजाबेटी फिर कुछ ना बोली और चुपचाप सुबकने लगी.....
और कुछ दिनों बाद जनार्दन ने आखिरकार दूसरा ब्‍याह कर ही लिया, राजाबेटी पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा, अब उससे कोई सीधे मुँह बात भी न करता था, सब नई बहू की सेवा में लगे रहते थे,अब नई बहू घर की सब कुछ थी, लेकिन राजाबेटी कुछ भी नहीं, उसका मान नौकरानियों से भी गया बीता था,अब वह किसी काम में दखल न देती, चुपचाप अपनी कोठरी में अपनी बच्चियों के साथ पड़ी रहती,जो मिलता सो खा लेती, जो हाथ आता तो पहन लेती, अब उसे किसी की कड़वी बात पर क्रोध न आता था, ना जली-कटी बातें सुन कर आँखें नम होती , अब उसके पति ने उसे अपने मन-मंदिर से निकाल दिया था,अब नयी बहू का शासन सारे घर पर था, वह हँसती थी, तो घर के सारे लोग हँसते थे,वह उदास होती, तो घर के लोग भी उदास हो जाते,जरा तेज चलती तो सास कहती, बेटी! सँभल कर चलो, नहीं पाँव दुखने लगेंगे, ऊपर से नीचे उतरती तो कहती, कमर दर्द करने लगेगी,ननदें नयी बहू पर प्राण देती थीं,क्‍या मजाल जो उसकी इच्‍छा के विरुद्ध एक शब्‍द भी किसी के मुँह से निकल जाए, परंतु इतना कुछ होने के पर भी नयी बहु सतवन्ती खुश ना थी, उसके दिल में हर समय बुरी-बुरी भावनाएँ उठा करतीं, एकांत में बैठती तो फूट-फूट कर रोया करती थी, उसे हँसते-मुस्‍कराते देख कर किसी को संदेह भी ना होता था कि उसके दिल में कोई प्राणघातक जलन, कोई दुखदायक पीड़ा होगी,उसकी दशा ऐसी थी जैसे ऊपर ठंडा पानी लहरें मारता हो और नीचे आग सुलगती हो,सतवन्ती को भीतर ही भीतर कोई दुःख खाए जा रहा था,उसे और कुछ नहीं अपनी सौत राजाबेटी का दुख खाए जा रहा था क्योकिं उसे लगता था कि उसने राजाबेटी की जगह छीन ली है,जो उसे मिला है उस पर तो राजाबेटी का ही हक़ है और सतवन्ती इसी बात से चिन्ताग्रस्त रहती थी...
एक रोज राजाबेटी अपनी कोठरी से ना निकली,बेटियाँ भूख भूख चिल्लाती रहीं,अब राजाबेटी ने सोचा था कि वो अब इस घर का अन्न-जल गृहण नहीं करेगी,बस यूँ ही मर जाएगी,राजाबेटी तो भूख सह गई लेकिन बच्चियाँ भूख कैसें सहतीं,इसलिए पेट दाबे कोठरी के कोने में पड़ी रहीं,जब दिन भर बच्चियाँ खाने को ना आई तो सतवन्ती को कुछ शंका सी हुई और उसने सोचा मैं ही बच्चियों को बुलाकर खिला देती हूँ,वो भीतर गई तो देखा कि उसकी सौत राजाबेटी और उसकी बच्चियाँ अचेत सी पड़ीं हैं,उसे उन सबको देखकर दया आ गई और वो जाकर राजाबेटी के पैरों पर गिर पड़ी फिर उससे बोली....
माँफ करना बहन!मैनें तुम्हारे अधिकार छीन लिए,लेकिन आज से ऐसा ना होगा,मैं तुम्हारे साथ कोई अन्याय ना होने दूँगी,
उसकी बातें सुनकर राजाबेटी की आँखों से आँसुओं की धारा बह चली और उसने उसे अपने सीने से लगा लिया,उस दिन के बाद सतवन्ती राजाबेटी और उसकी बच्चियों की रक्षक बन गई,अब दोनों सौतें खुश रहती और अपना दुख सुख बाँटतीं,तीज त्यौहार संग मनाती,ऐसे ही राजी खुशी सबके दिन बीतने लगे ,दोनों सौते अब सहेलियाँ बन गईं थीं और फिर सतवन्ती उम्मीद से हुई,सतवन्ती के गर्भवती होने की ख़बर से सारा घर खुश हो गया,एक बार फिर जनार्दन और उनकी माँ अनुसुइया को उम्मीद बँध गई,सतवन्ती का खूब ख्याल रखा जाने लगा और ऐसे ही छः महीने बीत गए और जैसे जैसे सतवन्ती के प्रसव के दिन नजदीक आने लगे तो वो उदास रहने लगी,उसके शरीर की रंगत फीकी पड़ने लगी,उसकी उदासी का कारण राजाबेटी ने पूछा तो सतवन्ती बोली.....
जीजी!मुझे लगता है ना कि मेरी किस्मत में भी बेटी है और अगर मेरे भी बेटी हुई तो तुम्हारी तरह मुझे छोड़कर वें किसी और से ब्याह रचा लेगें....
तब राजाबेटी ने सतवन्ती को समझाते हुए कहा...
तू नाहक ही परेशान होती है,सबकी किस्मत मेरी जैसी नहीं होती,भगवान तुझे चाँद सा बेटा देगें.....
लेकिन राजाबेटी के इन तसल्ली भरे बोलो से सतवन्ती को कोई फरक नहीं पड़ा और फिर वो दिन भी आ गया जिसका सबको इन्तज़ार था,सतवन्ती को प्रसवपीड़ा हुई ,इस बार डाक्टरनी को बुलाया गया,डाक्टरनी ने सतवन्ती को सम्भाला और कुछ समय बाद सतवन्ती ने एक बेटी को जन्म दिया,जब सतवन्ती को पता चला कि उसने बेटी को जन्म दिया है तो वो जीते जी मर गई,जब सबको पता चला तो ना कोई सतवन्ती को सौरीगृह में देखने गया और ना ही बच्ची को ,केवल राजाबेटी ने ही सतवन्ती को सान्त्वना दी और उसकी बेटी को सम्भाला,रात हुई,आज सौरीगृह में ही राजाबेटी सोई थी दोनों जच्चा और बच्चा का ख्याल रखने के लिए ,राजाबेटी की थोड़ी देर को आँख लग गई,तो सतवन्ती ने एक ब्लेड छुपाकर रखी थी जो शायद डाक्टरनी की छूट गई थी,उसने उसी ब्लेट से अपनी कलाई की नस काट ली और बच्ची के मुँह में कपड़ा ठूस दिया,ताकि बच्ची रात भर रोए ना और राजाबेटी सोई रहें...
सुबह जब राजाबेटी जागी तो दोनों माँ बेटी को देखकर उसके होश उड़ गए,उसने सबको जगाया,लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था,माँ बेटी अब दुनिया छोड़कर जा चुकी थीं,इस बात से राजाबेटी को गहरा आघात पहुँचा,दोनों माँ बेटी का अन्तिम संस्कार किया गया और फिर उस रात राजाबेटी रात भर रोती रही उसे लगा कि सब उसकी गलती थी वो सोती ना तो सतवन्ती इतना बड़ा कदम ना उठा पाती और फिर सुबह जब राजाबेटी को उसकी बच्चियों ने जगाया तो वो ना उठी,क्योकिं अब वो भी सतवन्ती के पास जा चुकी थी,ना जाने ये कैसा प्रेमत्रिकोण था ,ऐसा किसी ने आज तक नहीं देखा था कि किसी सौत ने अपनी सौत के लिए जान दे दी हो....

समाप्त....
सरोज वर्मा.....