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विश्वास - कहानी दो दोस्तों की - 20

विश्वास (भाग--20)

भुवन को टीना के परिवार में सब बहुत सरल स्वभाव के लगे। बच्चे वही करते हैं जो घर के बड़ो को करते हुए देखते हैं, इसलिए टीना के भाई और कंजस सब उसको समझदार लगे पर साथ ही शरारती भी।
यही सब सोचता हुआ भुवन घर पहुँच गया।

भुवन के अपने ही दोस्त बस नाम मात्र के थे। अब टीना उसकी पक्की और अच्छी वाली दोस्त बन गयी है तो वो भी दोस्ती को अच्छे से निभाएगा सोच कर सो गया।
आज उसको पता चला कि जिस टीना से वो हॉस्पिटल में मिला था वो तो उससे बिल्कुल ही अलग है। उसकी दादी और मम्मी ने न जाने कितने ही किस्से सुनाए उसकी शरारतों के। यही नही वो पढ़ाई में भी अच्छी रही है। स्कूल में उसके दोस्त लड़के ज्यादा थे। कॉलेज लड़कियों का था तो वहाँ उसकी 2-3 ही दोस्त बनी।

अब जब टीना बोलने लगी थी तो भुवन और उसकी फैमिली के बारे में पूछती रहती। भुवन उसको सब बताता। टीना के मम्मी पापा से पूछ कर वो एक दो संडे अपने साथ टीना को भी N.G.O ले गया। टीना को अच्छा लगा था वहाँ जा कर। वो अपने पापा के करीब थी, तो आकर सब बताती।

टीना के पापा और पूरा परिवार खुश था, उसे खुश देख कर। डॉ ने टीना की ज्यादातर सब दवाई बंद कर दी थी। कुछ सप्लीमेंटस को खाते रहना है। भुवन ने टीना को B.ed का एंट्रेस एग्जाम देने के लिए कहा। टीना को पढाने में रूचि नही है, उसने कहा तो भुवन ने बोला कि," एक बार पेपर तो दे कर देखो"। मम्मी और दादी ने भी "भुवन ठीक ही तो कह रहा है", बोला तो उसने फॉर्म भर दिया।

टीना को यकीन था कि बिना पढे तो पास होगी नहीं और पढती वो थी नहीं। भुवन ने बार बार कहता कि "थोड़ा पढ लिया कर नहीॆ तो जीरो आएगा"। माँ और दादी भी कहते पर टीना का मन पढने में न लगता। आखिर एक दिन भुवन ने टीचर वाला अपना रूप दिखाया और खूब गुस्सा हुआ। टीना अपने दोस्त के नए अवतार से डर गयी।

"टीना तुम ने नही पढना मत पढो, मैं अब कभी नहीं कहूँगा, पर मैं जान गया हूँ कि तुम सच्ची दोस्त नहीं हो"। यह सुन कर टीना को बहुत बुरा लगा। "ऐसा तो नही कहना चाहिए, दोस्ती पढने से सच्ची होती है तो ठीक है मैं पढूँगी।

टीना ने अच्छे से पढाई की और भुवन भी फोन पर पढाता रहता। सवाल लिख कर छोड़ देता और टीना जब देखती तो जवाब लिख कर भेज देती। भुवन की दोस्ती के लिए टीना ने पेपर पास कर B.ED में एडमिशन ले लिया।

भुवन उसको व्यस्त करना चाहता था , वो काम भी हो गया, अब टीना की जिंदगी फिर से पटरी पर आ रही थी। परिवार में सब खुश और संतुष्ट थे उसके रूटीन से। टीना भी समझ गयी कि सब उससे कितना प्यार करते हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा टाइम वो सब के साथ बिताने लगी। बच्चो को खाली टाइम में पढाती और खेलती। कितना भी काम क्यों ना हो पर भुवन से रात को सोने से पहले बातें जरूर करती।

दोनो अपने दिन भर का रूटीन बता, अगले दिन को फिर से बिजी बनाने को सो जाते। टीना को भुवन से अपनी दोस्ती पर नाज ़होता। भुवन ने उसको जीने का तरीका सीखा दिया। भुवन उसके लिए एक सच्चा दोस्त साबित हुआ है। एक भुवन और उसके कितने रूपों को देखा है। वो जैसी बात करती वो वैसे बन जवाब देता।

भुवन को भी तो टीना ने काफी कुछ सिखाया। वो हैरान हो गया जब टीना ने एक दिन बताया कि आज उसने खाना बनाया है। "तुम झूठ बोल रही हो, तुम्हें नहीं आता होगा खाना बनाना"!! "अच्छा ये बात है तो दादी से पूछ लो" कह उसने स्पीकर ऑन कर दिया। "दादी जी टीना झूठ बोल रही है न कि आज उसने खाना बनाया है"?

"नहीं बेटा, आज टीना ने ही बनाया है। बस हमने चपाती सेंकने मे इसकी हेल्प की है, खाना तो ये 12 वी के बाद से हफ्ते में एक बार बनाती आ रही है"। दादी से बात करा कर टीना बोली," सुन लिया आपकी दोस्त इतनी भी नालायक नही है"।"हाँ सुन लिया और खुशी भी हुई कि हमारी शेरनी तो परफेक्ट है"।

"टीना कितनी बार कहा है कि हम दोस्त हैं तो मुझे तुम कहा करो, आप क्यों कहती हो?मुझे लगता है कि मैं बूढा हो गया हूँ या हम दोस्त नहीं हैं"। "नहीं ऐसा नही है, एक तो आप थोड़ा बडे़ हो और दूसरा आप टीचर हो, तो मुझसे बोला नही जाता। कोशिश करूँगी बोलने की और शब्दो नही भावनाओं पर ध्यान दो दोस्त", कह टीना हँस दी।
क्रमश:

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