महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 54 - केतकी की हकीकत Captain Dharnidhar द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 54 - केतकी की हकीकत

मुंबई में बद्री काका केतकी के घर केतकी की हकीकत जानने के लिए केतकी की मा संतोष से बात कर रहा है .. संतोष चाय बनाकर ले आई ..एक प्लेट में नमकीन व बिस्कुट रख दिये । बद्री काका चाय पी रहा है ..साथ ही केतकी के घर के अंदर की साज सज्जा भी देख रहा है । बैठक में दीवार पर टंगी फोटोओं को बड़े ध्यान से देख रहा है । दीवार मे एक लकड़ी का फ्रेम बना है , उसमें कुछ स्कूल के स्मृति चिह्न रखे हैं । उनको देखकर बद्री काका पूछता है ..
बहिन जी ये इनाम केतकी को मिले होंगे । दीवार पर एक तरफ केतकी के दादा दादी की फोटो लगी थी उनके साथ ही केतकी की फोटो लगी थी ..इन फोटोओं को रेडीमेड माला पहनाई हुई थी । केतकी की फोटो को देखकर बद्री काका बोला ..बहिन जी यह फोटो किसकी है ..? संतोष ने कहा यह फोटो मेरी बेटी केतकी की है । बद्री काका चाय लिए हुए खड़ा हो गया ..उस फोटो के पास जाकर बोला ..बहिन जी इसे तो मैने देखा है .. कुछ दिन पहले ही .. संतोष बोली ..यह आप क्या कह रहे हो ? मरे हुए भी वापस आते हैं क्या ? ..नही नही बहिन जी, मै सच कह रहा हूँ । इसे मैने ट्रेन मे देखा था , इसके साथ एक महिला भी थी । भाई जी आपको कोई धोखा हुआ है ।
बद्री काका .. संतोष के चेहरे के भाव पढने की कोशिश कर रहा है । लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नही थे ..चेहरा सामान्य ही बना था .. उसी समय केतकी के पापा की आवाज आती है ..संतोष ! कुण आया है ..? केतकी का पापा विजय ऐसा बोलते हुए अंदर आजाता है .. बद्री काका मुस्कुराकर राम राम भाई जी ..मै गौरियां को हूँ , अठे किराया को मकान ढूंढण आयो हो ..बहिन जी मिलग्या..तो गप्पे करण लाग्या केतकी का पापा बीच मे ही.. आप बैठो बैठो..थे अठे कोई काम धंधो करो हो के ..कि वास्ते मकान चाहि जे ? देखो जी आयो तो काम धंधा करण न ही हूँ ..खुद को या खठे नौकरी करस्यो ? थारली भौजाई भी लारे आई है ..अभी बा गणेश जी का दर्शन करबा गई है .. थे के नाम बतायो.. बद्री नाम है जी । बद्री जी मुंबई में काम की तो कोई कमी कोनि , लेकिन रहणे वास्ते घर कोनि मिले .. कोई बात कोनि ..मिल जासी तो ठीक है नही तो अभी होटल मे रूक्या हां मुंबई घूम के वापस चल्या जास्यां ..
बद्री काका ने बात को बदलते हुए कहा ..बहिन जी ने बिटिया के बारे मे बताया सुणके बड़ो दुख हुयो.. पर एक बात है विजय जी ! जो रह रहकर मेरा दिमाग न परेशान कर री है । केतकी के पापा ने पूछा ..के बात है ? थे रूको एक मिनट ! बद्री काका ने दामिनी को ऑफिस मे फोन किया .. फोन पर बोला ..बेटा मनोज ! ..खुश रह खुश रह । अरि आपां दिल्ली गिया हा जद तू मोबाईल सूं फोटो खींच रियो हो वामि वे ट्रेन की फोटो भेज तो एकबार .. दामिनी समझ गयी थी ,तो उसने कुछ नही बोला । सिर्फ सुनती रही । दामिनी ने फोटो भेज दी , वाटसप से लोडकर बद्री काका ने वाटसप बंद कर दिया । क्योंकि उसमे दामिनी का नाम था ।
थोड़ी देर बाद बद्री काका ने गैलरी खोलकर उसमे से एक फोटो को दिखाया ..और बोला ..भाई जी यह फोटो देखो तो जरा .. केतकी के पापा व मा दोनो फोटो देखने लगे ... बद्री काका से फोटो देख केतकी के मम्मी पापा आपस मे एक दूसरे को देखने लगे । बद्री काका इंतजार कर रहा है उनके रिएक्शन का ..