Mahila Purusho me takraav kyo ? - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 2 - वैचारिक भिन्नता

भारतीय महिलाएं पश्चिमी देशों के तौर तरीके इस लिए अपनाने लगी क्योंकि उसे अपने रहन सहन से श्रेष्ठ मानने लगी इसी तरह पुरूष भी पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ठ मानकर उसका अनुसरण करने लगा ।

मानसिकता का विभाजन --

पहली श्रेणी-
पहले भाग में वे लोग आते हैं जो कुछ हटकर नया करना चाहते हैं,अलग दिखाई देना चाहते हैं । वे अपने रहन सहन को जहां रहते है उससे अलग ही प्रस्तुत करना चाहते हैं ।

दूसरी श्रेणी -
दूसरी श्रेणी उनकी है जो पहल तो नहीं करते किन्तु अनुसरण करने लग जाते हैं उसे आधुनिक दौर मानकर अपनाते चले जाते हैं । टकराव की स्थिति पहली श्रेणी और दूसरी श्रेणी में कम होती है
तीसरी श्रेणी-
तीसरी श्रेणी के वे लोग होते हैं जो अपने आप में बदलाव नही करते वे अपने से पूर्व के रहन सहन को एवं मान्यताओं को सही मानकर उसे अपनाते रहते हैं और पहली और दूसरी श्रेणी की निंदा करते हैं इनमे आपस में टकराव होता है । महिलाएं महिलाओं की पुरूष पुरूषों की निंदा करने लगते हैं । ऐसे ही आचारों विचारों का टकराव मान्यताओं को लेकर शुरू हो जाता है ।

भगवद्गीता कहती है कि श्रेष्ठ पुरूषों के आचरण का लोग अनुसरण करने लग जाते हैं । जयपुर की महारानी गायत्री देवी विदेश गयी थी तो उससे मिलने कुछ लोग आये थे उस वक्त सुविधा की दृष्टि से जो पहन रखा था वही पहने हुए उनसे मिलने आ गयी उनकी तस्वीर वायरल हो गयी उनका वह पहनावा एक फेशन बन गया महिलाएं उसे पहनने लगी ।

आजकल हम देखते है पुरूषों मे दाढी रखने का दौर चल पड़ा है शादी मे दुल्हा दाढी रखे रहता है क्लीन शेव नही होता । यहां विचार करके देखेंगे तो यह सब तीसरी श्रेणी के लोगों को पसंद नही आयेगा वे विरोध करेंगे या फिर निन्दा तो करेंगे ही । हम ऐसा कह सकते हैं दो फेशन मे टकराव या दो विचारधाराओं मे टकराव इस तरह बनता चला जाता है । जो मान्यता पसंद नही उसमे कोई अच्छाई भी नजर नही आयेगी ।

ओल्ड फेशन ग्रामीण परिवेश -
ग्रामीण लोगों का जीवन सादगीपूर्ण होता है उनका रहन सहन सादगी भरा होता है जो लोग शहरों के है वे नये संसाधनों की जानकारी रखते हैं वे उनकी तरह कपड़े नही पहनेंगे न अपने बच्चों के नाम रखेंगे तात्पर्य यह है कि वे उनका अनुसरण नहीं करेंगे ।

महिला जगत व पुरूष जगत -
एक ही माता पिता की संतानों की विचारधाराएं अलग अलग होती है एक ही परिवार मे रहने वालों की जीवन शैली मे कुछ अंतर देखा जा सकता है । सबके मस्तिष्क मे विचारों का समूह होता है उनमे कुछ विचारधाराएं मेल खाती है उनका एक समूह बनता जाता है जैसे - नगर के प्रति राज्य के प्रति देश के प्रति जो विचारो से भाव बनते है जैसे राजनैतिक पार्टियों के प्रति भाव बनते है । व्यवसायी का व्यवसायियों के प्रति कामगारों का कामगार के प्रति कृषकों का कृषकों के प्रति लगाव हो जाता है । ऐसे ही हमारा परिवार जिसमे स्त्री पुरूष होते है उनका परिवार के प्रति भाव जुड़े होते है । किन्तु जब बात समुदाय विशेष की बात होगी तो ये अपनी भूमिका उसी अनुरूप बना लेंगे । जब महिला वर्ग की बात आयेगी तो सभी महिलाएं महिलाओं के पक्ष मे पुरूष पुरूषों के पक्ष मे हो जाते है ।
आरक्षण -
छुआछूत खत्म करने के लिए कमजोर वर्ग को सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित करने के लिए 10 साल के लिए आरक्षण शुरू हुआ था किन्तु अब वह उनका अधिकार बन गया है । स्वर्ण पहले मौन था उसे लगता था एक दिन यह खत्म हो जायेगा किन्तु नही हुआ । फिर जिस वर्ग ने आवाज उठाई की हमे भी दो आरक्षण तो उन्हे भी मिलता गया । जिनको आरक्षण मिल गया वे संगठित हो गये वोट की राजनीति शुरू हो गयी । राजनेता भयभीत है वे बचते है इस पर बात करने से कतराते है ।

समाज का विघटन -
समाज की बुराई दूर होने की बजाय एक दूसरी बुराई ने जन्म ले लिया । ठीक ऐसे ही पुरूष वर्ग को उपेक्षित करते रहे महिलाओं को अधिकार देते रहे तो एक दिन पुरूष वर्ग वंचित शोषित होकर सड़को पर उतर सकता है ।

क्रमश--

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