गोविंदा मेरा नाम Jitin Tyagi द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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गोविंदा मेरा नाम

इस तरह की फिल्में तब बनती हैं। जब तुम्हें कोई अचानक से बाथरूम में सिगरेट पीता हुआ पकड़ले। और तुम अपनी गलती छुपाने के लिए जल्दी से सिगरेट भुझाकर कुछ भी अनाप-सनाप बोलने लगे जाओ। और सामने वाला कहें ठीक हैं। जो बोला हैं। उसे करके दिखाओ। और फिर इस तरह का कारनामा तैयार किया जाता हैं। और डालने के लिए आजकल OTT चल ही रहा हैं। क्योंकि थिएटर तो इन्हें चलायगा नहीं।

कहानी; विकी कौशल एक तमिल के प्रोड्यूसर की नाजायज औलाद हैं। जो फ़िलहाल अपने नाज़ायज़ बाप के, जो मर चुका हैं।' घर में अपनी बीवी भूमि पांडेकर, जिससे उसे तलाक चाहिए रह रहा हैं। इस घर पर प्रोड्यूसर के पहली बीवी के बेटे ने केस डाल रखा हैं। कि घर मुझे चाहिए, दूसरी तरफ विकी कियारा से जो डांसर हैं। उससे प्यार करता हैं। और शादी करना चाहता हैं। ये सब फ़िल्म के पहले हाफ में दिखाया गया हैं।

दूसरे हाफ में भूमि का मर्डर होता हैं। जिसके इल्ज़ाम में सबकी जेल में डाला जाता हैं। और फिर सबका पास्ट खुलता हैं। कि सब एक-दूसरे से किस तरह जुड़े हुए हैं। और अजीब बात ये हैं। कि फ़िल्म का सस्पेन्स दर्शक बीच मे ही पकड़ लेता हैं। लेकिन फ़िल्म इसलिए पूरी देखता हैं। कि कुछ अलग दिख जाए। लेकिन मजाल हैं। कुछ भी अलग नहीं दिखाई देता हैं। और इस ड्रामे की जो वजह बताई गई हैं। वो तो चू#$&पनती की हद हैं। की ये वजह थी। और फिर दर्शक सोचता हैं। कि विकी नाज़ायज़ था या पूरा क्रू जिसने इस फ़िल्म को बनाया हैं।

एक्टिंग; भूमि पांडेकर का जितना रोल हैं। उसे कोई भी नई एक्ट्रेस ज्यादा अच्छे ढंग से निभा सकती थी। कियारा और विकी ने तो ओवरएक्टिंग की दुकान खोल रखी थी। ऊप्पर से एक-दो सीन में डायरेक्टर खुद फ़िल्म में एक्टिंग कर रहा हैं। तो अंदाज़ा लगा लो जो एक्टर्स से एक्टिंग नहीं करा पा रहा। वो खुद कैसे करलेगा। पर क्या करें जब किसी ने 50 करोड़ रुपए दे दिए हैं। तो वो तो महंगी शराब माँगयेगा ही, चाहे पीनी आती हो या नहीं

संवाद बिल्कुल बेकार, औसत से भी नीचे, कोई सेंस नहीं, बिना वजह चीखना-चिलाना चल रहा हैं। गाने बिल्कुल बेकार, क्यों थे ये भी सोचना सिर दर्द हैं।


अंतिम बात ये हैं। कि फ्री में भी ये फ़िल्म ना देखी जाए तो अच्छा हैं। क्योंकि इस तरह की चीज़ें बर्दास्त नहीं की जा सकती हैं। और ये लोग लड़कियों को क्या समझते हैं। कोई पूछें इनसे, पूरी फिल्म में हर लड़की एक वस्तु की तरह हैं। भूमि जिसे कुछ और कपड़े भी दे सकते थे। लेकिन उसने जो पहना हैं। और जो कहानी हैं। कोई सम्बन्ध नहीं, कियारा को नचाने के लिए, बाकी औरतें ये बताने के लिए की प्रोड्यूसर ने किसके साथ सेक्स अच्छा किया। और ये जो हीरोइन हैं। ये इस तरह की फिल्में करती क्यों हैं। जब नारीवाद का झंडा इन्होंने हाथ में पकड़ा हुआ हैं। या जबरदस्ती अपनी देह को दिखाना ही आज़दी हैं। पर जो भी हैं। एक दम बकवास, बेहूदी फ़िल्म हैं। तो ना देखों तो ही अच्छा हैं।