अवतार दी वे ऑफ वॉटर Jitin Tyagi द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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अवतार दी वे ऑफ वॉटर

भव्यता कितनी सुंदर, दर्शयसुखनम्, सुकूनदायक, आत्मतृप्तिकतक हो सकती हैं। इस फ़िल्म को देखते हुए ये एहसास हमेशा रहता हैं। जेम्स कैमरून ने इस फ़िल्म में फ़िल्म मेकिंग का जो स्तर छू दिया हैं। उस स्तर को छूना फिलहाल तो किसी और निर्देशक के बसकि लगता नहीं हैं। ये तय हैं। कि जेम्स कैमरून ही इस फ़िल्म का जो स्तर हैं। खुद ही अपनी अगली फिल्म में तोड़ेंगे।

फ़िल्म की कहानी एक लंबे वाईसओवर से शुरू होती हैं। ये जरूरी भी था। क्योंकि इसका पिछला पार्ट तेरह साल पहले आया था। और तब से फ़िल्म देखने वालों की एक पूरी नई जनरेशन का जन्म हो चुका हैं। इसके बाद भव्य रूप से फ़िल्म आगे बढ़ती हैं। जिसमें दिखाया जाता हैं। कि जैक सली( सैम वर्थिंगटन) जो अवतार प्रोग्राम का हिस्सा था अब पूरी तरह से पेंडोरा का हिस्सा बन चुका हैं। और उसने नेतिरि(जो सलदाना) से शादी कर ली हैं। जिससे उसे दो लड़की और दो लड़के हुए हैं। और उसके पास एक इंसानी बच्चा स्पाइडर भी हैं। और वह अपने लोगों के साथ गुफाओं में रह रहा हैं। और गुरीला छाप युद्ध स्काई लोगों के साथ कर रहा हैं। क्योंकि कर्नल माइल्स के हमले के बाद और भी हमले पेंडोरा पर हुए थे। और उन्होंने पेंडोरा को जीत लिया था।

इधर धरती के कुछ लोग हैं। जो जैक सली से बदला लेना चाहते हैं। और उन्होंने कर्नल माइल्स के DNA और यादों से एक नया कर्नल कवारिच बनाया हैं। जो आधुनिक हथियारों से लैस टुकड़ी, जिसमें इंसानी सैनिक भी शामिल हैं। जैक पर हमला करता हैं। उस हमले में जैक अपनी नस्ल के बचे हुए आखिरी लोगों को लेकर टोनोवारी के पास शरण लेता हैं। जिनका जीवन समुंद्र के इर्द-गिर्द घूमता हैं। लेकिन उसका बच्चा स्पाइडर कर्नल कवारिच के हाथ लग जाता हैं। अब जैक इस नए जीवन के तहत अपने आप को ढालता हैं। और कवारिच से अपने परिवार की रक्षा भी करता हैं।

कुछ लोगों का आरोप हैं। कि कहानी में कुछ नया नहीं हैं। दरअसल कहानी तीन लोगों ने मिलकर लिखी हैं। और ये कहानी इन्होंने 2012 में ही लिख ली थी। लेकिन उस वक़्त उस तरह की तकनीकी नहीं थी। जिससे ये फ़िल्म बनाई जा सकें। इसलिए इतना वक़्त लग गया। और कहानी थोड़ी ओल्ड लगती हैं। पर जो आजकल कहानी के नाम पर वॉक कल्चर परोसा जा रहा हैं। उससे तो ये तब भी हज़ार गुणा अच्छी कहानी हैं। और दूसरा आरोप यह हैं। कि कई सीन भी ऐसे हैं। जिन्हें देखकर पुरानी 80 के दशक की हिंदी फिल्मों की याद आती हैं। जैसे फ़िल्म के अंत में कवारिच का स्पाइडर के गले पर चाकू रखकर, जैक से अपनी मांगे मनवाना। पर दरअसल ये हिंदी फिल्मों के लिए भले ही नया ना हो पर हॉलीवुड में ये नया ही हैं। क्योंकि वहाँ इस तरह के दृश्य कम ही देखने को मिलते हैं।

वैसे इस फ़िल्म का मकसद असल में पहली फ़िल्म को विस्तार देना था ना कि एक नई कहानी कहना, क्योंकि पहली फ़िल्म में बहुत कुछ दिखाने के चक्कर में पेंडोरा को सही से नहीं दिखाया गया था। लेकिन इस फ़िल्म में पेंडोरा का जीवन, वहाँ के जानवर, पेड़-पौधे, घने जंगल, अजीब तरह के कीड़े-मकोड़े बड़े अच्छे ढंग से दिखाया गया हैं। फ़िल्म शुरुआती एक घण्टे में थोड़ी धीमी रफ्तार से चलती हैं। लेकिन उसका एहसास नहीं होता। क्योंकि जो स्क्रीन पर चल रहा होता हैं। असल में तो टिकट उसी के लिए खरीदा होता हैं। क्योंकि वो हद से ज्यादा सुंदर होता हैं। VFX को बिल्कुल ही रिअलिटी बनाकर पेश किया गया हैं। ऐसा लगता ही नहीं हैं। कि ये सब कुछ कंप्यूटर द्वारा निर्मित हैं। पानी के अंदर ले दृश्य बिल्कुल ही रियल लगते हैं। फ़िल्म में हीरो भले ही सैम वॉर्निंगटन हो लेकिन जेम्स कैमरुन ही असल हीरो लगते हैं। फ़िल्म की हर चीज़ पर उनकी पकड़ दिखाई देती हैं। स्क्रीनपले, सिनेमेटोग्राफी, बैकग्राउण्ड म्यूजिक, स्पेशल इफ़ेक्ट, मेकअप, कॉस्ट्यूम सब कुछ अपनी जगह परफेक्ट दिखाई देता हैं। वैसे भी जेम्स हर चीज़ को परफेक्ट तरीक़े से करने में ही विश्वास रखते हैं।

इस फ़िल्म के माध्यम से जेम्स ने आज के मानव की जीवन शैली पर भी प्रहार किया हैं। जिस तरह से हम लोग अपने ग्रह को बर्बाद करते जा रहे हैं। और दूसरे ग्रह पर बसने की सोच रहे हैं। उसकी झलक इस फ़िल्म में देखने को मिलती हैं। जेम्स संदेश देना चाहते हैं। कि अगर इंसान चाहे तो जंगल काटने की बजाय जानवरों के साथ मिलकर भी रह सकता हैं। और दूसरे ग्रह पर भी अगर बसना चाहे तो वहाँ के लोगों के साथ प्रेम के साथ रहना चाहिए।

फ़िल्म के अंदर सब कलाकारों ने एक्टिंग अच्छी की हैं। उन्होंने एक दूसरे ग्रह के लोगों के व्यवहार, वेशभूषा, चाल ढाल, भाषा, बोलने का तरीका सब कुछ बड़े अच्छे ढंग से किया हैं।


तो अंतिम बात यह हैं। कि इस फ़िल्म को थिएटर में ही जाकर देखना चाहिए। क्योंकि इस तरह की फिल्में रोज-रोज नहीं बनती हैं। और वैसे भी एक नार्मल इंसान द्वारा अपने परिवार, अपने समुदाय के लड़ना इतनी भव्यता के साथ दिखाना, ये अपने आप में इस फ़िल्म को खास बना देता हैं। तो इस फ़िल्म को थिएटर में देखने अवश्य जाए।