पिनोकियो - फ़िल्म समीक्षा Jitin Tyagi द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

पिनोकियो - फ़िल्म समीक्षा

एक अच्छा डायरेक्टर कौन होता हैं। वो जो एक अच्छी फिल्म बनाएं।, वो जो फ़िल्म मेकिंग की गुणवत्ता भले कैसी हो लेकिन कहानी अच्छी चुनी हो उसने, फ़िल्म के VFX का ख्याल रखे। फ़िल्म के अंदर कुछ नया दिखाए। पर दरअसल ये सब गुण अगर मैं कहूँ कि गुलीरेमो डेल टेरो की फ़िल्म मेकिंग में हैं। तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बल्कि दो-चार गुण और भी जोड़ दे तो भी कोई बड़ी बात नहीं हैं। इनकी The shape of water सबको याद ही होगी। लेकिन इस बार इन्होंने डिज्नी की तर्ज़ पर स्टॉप मोशन एनिमेटेड(फोटोग्राफ के अंदर चीज़ें जोड़ना) तरीके से 1883 के नावेल को आधार बनाकर अर्ली ट्वेंटी सेंचुरी की फ़िल्म बनाई हैं। फ़िल्म की सबसे खास बात इसमें खामख्वाह का वॉक कल्चर नहीं हैं। और ना ही जबरदस्ती के आदर्शवादी मूल्य, एक जगह फ़िल्म मोर्डन थ्योरी के हिसाब से एक घटना को जस्टिफाई करती हुई दिखाई देगी। पर उस सीन का आधार काफी भावपूर्ण बनाया गया है। जिस कारण दर्शकों का ध्यान उधर नहीं जाता। और वो ख़ुशी-ख़ुशी उस चीज़ को एक्सेप्ट कर लेते हैं।

कहानी; फ़िल्म की शुरूआत में एक पिता और उसका बेटा दिखाया जाता हैं। पिता लकड़ी का काम करता हैं। और उसे चर्च में यीशु की मूर्ति बनाने का काम मिला होता हैं। एक दिन जब वह यीशु की मूर्ति बना रहा होता हैं। तो फर्स्ट वर्ल्ड वॉर खत्म होने पर इटली के प्लेन अपना वजन हल्का करने के लिए कुछ बम नीचे गिरा देते हैं। जिनमे एक बम उस चर्च पर गिर जाता हैं। जहाँ यीशु की मूर्ति बनाई जा रही थी। उस धमाके में पिता बच जाता हैं। और पुत्र मारा जाता हैं। अब पिता एक इस बात से काफी परेशान हो जाता हैं। दिन-रात शराब पीने लगता हैं। फिर एक रात पिता गुस्से में आकर अपने पुत्र की आखिरी निशानी एक पेड़ को काटकर लकड़ी का एक पुतला बनाता हैं। उस पुतले में रात को एक परी आकर जान फूंक देती हैं। और एक कॉकरोच जो अपने जीवन के अनुभव रिपोतार्ज शैली में लिखने के लिए इधर-उधर घूम रहा था उसे उस पुतले को अच्छाई सिखाने का काम मिलता हैं। और परी उससे कहती हैं। अगर उसने ऐसा किया तो उसे एक वरदान मिलेगा।

इसके बाद कहानी आगे बढ़ती हैं। और वो पुतला एल नाटक कंपनी के साथ गलती से एक कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लेता हैं। और इटली में जगह-जगह राष्ट्रवादी शो करने लगता हैं। और दूसरी तरफ पिता और वो कॉकरोच उसे ढूंढते हुए समुंद्र में फंस जाते हैं। एक दिन जब मुसोलिनी उसका शो देखने आता हैं। और वो जनभुझकर उस शो को बिगाड़ देता हैं। तब उसे दूसरी बार मार दिया जाता हैं। लेकिन वो अमर हैं। और वापस आकर अपने पिता और कॉकरोच को बचाता हैं। इसके बाद उसकी अमरता छिन जाती हैं। लेकिन कॉकरोच अपनी आखिरी ख्वाहिश में उसकी अमरता वापस मांग लेता हैं। और अंत मे सब मर जाते है। कॉकरोच अपनी और वो ज़िंदा वह जाता हैं।

एनीमेशन; एनीमेशन कमाल का हैं। पूरी फिल्म में कहीं कोई कमी नहीं हैं। वैसे भी 35 मिलियन डॉलर के बजट के हिसाब से ज्यादा ही अच्छा लगेगा।


अंतिम बात यही हैं। कि पूरी फिल्म डायरेक्टर की हैं। कहीं भी फ़िल्म बोर नहीं करती। हर सीन में कॉमेडी और इमोशन का अच्छा मेल दिखाया गया हैं। दर्शक पहले सीन से जुड़ाव महसूस करते हुए अपनी साइड चुन लेता हैं। स्क्रीन पर चल रहे दृश्य सुकून देते हैं। एनिमेटेड होते हुए भी कहानी में बचकानापन नहीं हैं। 24 नवंबर को ये फ़िल्म आयी थी। और नेटफ्लिक्स की खास बात ये हैं। कि वो इस तरह की फिल्मों का प्रचार नहीं करता। और फिर कहता हैं। मैं तो डूब रहा हूँ।

तो इस फ़िल्म को एक बार देखने में कोई बुराई नहीं हैं।