फ्रेडी - फ़िल्म समीक्षा Jitin Tyagi द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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फ्रेडी - फ़िल्म समीक्षा

प्यार में धोखा, आशिक़ का बदला इस तरह की फिल्में हॉलीवुड ने 2000 से पहले बड़ी बनाई हैं। पर उनकी ढंग से एक भी नहीं चली थी। इसलिए उन्होंने फिर फ़िल्म के अंदर जबरदस्ती सेक्स दिखाना शुरू कर दिया। इस चीज़ से एक समय तक दर्शक तो खींचे, लेकिन उसके बाद किसी को भी इस तरह की फिल्में पसंद आनी बंद हो गयी। लेकिन इस कारण से फिल्में बनानी तो छोड़ नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने हीरो या हीरोइन में से किसी एक को साईको दिखाना शुरू कर दिया। फ्रेडी इसी तीसरी वाले तरीके से बनाई गई फ़िल्म हैं। पर ये अच्छी बात हैं। कि फ़िल्म अच्छी बनाई गई हैं। फ़िल्म देखते वक़्त दर्शक केवल फ़िल्म ही देखते हैं। अपना मोबाइल नहीं चलाते हैं। ये इस फ़िल्म की खासियत हैं।

कहानी; कार्तिक आर्यन जो एक दांतों का प्रतिष्टित डॉक्टर हैं। उसके जीवन में बचपन में एक घटना घटी थी। जिसके चलते वह नार्मल होकर भी नार्मल नहीं हैं। इसे कोई भी लड़की पसन्द नहीं करती हैं। इसने पिछले पांच साल से मेरिशादी.कॉम वेबसाइट पर आईडी बना रखी हैं। पर फिर भी किसी ने लड़की ने इसे घास नहीं डाली हैं। एक दिन ये एक शादी में अपनी आंटी के साथ जाता हैं। और वहाँ अपनी आंटी के कहने पर एक शादीशुदा लड़की से बात करता हैं। इसके बाद वो शादी शुदा लड़की इसकी ज़िंदगी मे आती हैं। पर दरअसल ये फ़िल्म का पहला पार्ट हैं। और फिर पूरे दूसरे पार्ट में दोनों के बीच एक अजीब तरह का साइको खेल होता हैं। फ़िल्म का अंत उम्मीदों से बेहतर होता हैं। और दो घण्टे का समय बर्बाद हुआ नहीं लगता हैं।

एक्टिंग; कार्तिक आर्यन ने एक दम लाजवाब एक्टिंग की हैं। इस तरह के किरदार इंग्लिश एक्टर्स को करते बहुत बार देखा हैं। पर पहली बार इंडियन एक्टर को देखना ये अच्छा लगता हैं। भूल भुलैया 2 को कार्तिक आर्यन ने अपने कंधों पर संभाली था। और ये फ़िल्म तो देखकर लगेगा जैसे डायरेक्टर ने कार्तिक के लिए ही लिखी हो, एक भी सीन में कार्तिक ने फालतू कुछ भी नहीं किया हैं। जैसी दरकार थी वैसा एक्ट किया हैं। और देखकर कोई भी कह सकता हैं। कि अब ये एक्टर किसी भी तरह का रोल निभा सकता हैं।

डायरेक्शन; शशांक ने अपना काम बढ़िया तरीके से किया हैं। हर फ्रेम को बड़ी बखूबी से शूट किया हैं। कई बार लगेगा कि ये वाले सीन की क्या जरूरत थी। पर जैसे-जैसे फ़िल्म बढ़ती हैं। वो सीन समझ में आने लगता हैं। कार्तिक के चरित्र को दिखाने में शुरू में अच्छा-खासा वक़्त लिया हैं। पर वो पार्ट भी बोर नहीं करता। और वैसे भी उसकी जरूरत थी। वरना दर्शक चरित्र से जुड़ नही पाता।

हां कई लोगों को इस बात से परेशानी हो सकती हैं। कि फ़िल्म के अंदर औरतों के साथ हिंसा को जस्टिफाई किया गया हैं। पर दरअसल इस फ़िल्म की थीम ही जब साइको हैं। तो कोई इस बार पर दिमाग खराब ना करें तो अच्छा हैं।

संवाद; संवाद ठीक हैं। जहाँ जैसी जरूरत हैं। वहाँ वैसे ही हैं। ना ज्यादा अच्छे, ना ज्यादा बुरे


तो अंतिम बात ये हैं। कि ये फ़िल्म हॉटस्टार पर रिलीज हुई हैं। इसे देखने के पैसे तो लग नहीं रहें। और ना ही काया कष्ट करकर थिएटर तक जाना हैं। तो मेरी सलाह यही हैं। कि एक बार इस फ़िल्म को देखना चाहिए। और जब लोगों ने कार्तिक आर्यन को भूल भुलैया 2 में जाकर थिएटर में देखा था। तो यहाँ तो उन्हें जरूर देखना चाहिए। क्योंकि ये फ़िल्म वाकई अच्छी हैं।