हां भगवान, मैं डरता हूं। Tarkeshwer Kumar द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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हां भगवान, मैं डरता हूं।

डर क्या हैं?
सही मायने में कहूं तो हर बार, डर का दायरा इंसान खुद पैदा नहीं करता हैं। हालात, किस्मत, कुछ अपने, कुछ पराए और ये दुनियां वाले डर का माहौल पैदा कर देते हैं। पर इंसान सबसे ज्यादा डरता हैं अपने अतीत से, अपने आने वाले भविष्य से और चल रहें अपने वर्तमान से।
इंसान कितना ही वीर क्यों ना हो पर एक ना एक डर उसके जीवन में भी होता हैं।कुछ पंक्तियां डर के लिए। इन पंक्तियों में "मै" शब्द का उपयोग हर उस इंसान के लिए हैं जो डरता हैं।

हां भगवान मैं डरता हूं।

वो सोचते हैं मैं बलवान हूं
किस्मत का धनवान हूं
सोच से क्या फर्क होगा
मैं सिर्फ एक इंसान हूं

कुछ लोगों की अपनी शान हैं
महंगे चीजों में बस्ती जान हैं
एक कफ़न ही मिलेगा अंत में
और मौत ही असली पहचान हैं

क्यों इतना घमंड करता हैं
जबकि ख़ुद से ही लड़ता हैं
बाहर झूठी ताकत दिखाता हैं
अंदर रोज़ मौत से डरता हैं

जिसे जो करना हैं वो करें
बेशक भगवान बनते फिरे
झूठी शान पे नहीं मरता हूं
हां मैं डरता हूं।

हां भगवान मैं डरता हूं
झूठी पहचान से
दिखावटी शान से
गलत ईमान से
नकली मुस्कान से

हां भगवान मैं डरता हूं
अपनों के दिखावे से
झूठ के पहनावे से
गैरों के बहकावे से
किस्मत के लिखावे से

हां भगवान मैं डरता हूं
असमय मरने से
किसीको दुखी करने से
झूठे मांग के धरने से
मेरा दुःख ना हरने से

हां भगवान मैं डरता हूं
किसी के चले जाने से
फिर वापस ना आने से
किसी का घर जलाने से
जीवन में आग लगाने से

हां साहब मैं बहुत डरता हूं।
अपनों के झूठे वादों से
किसी भी गलत इरादों से
अमीरों के साहबजादो से
जो पहचाने हमें औकादों से

हां भगवान मैं डरता हूं
किसी का दिल दुखाने से
निवाला छीन के खाने से
बिगुल युद्ध का बजाने से
इस मतलबी जमाने से

हां भगवान मैं डरता हूं
अपनों के खो जाने से
गहरी नींद सो जाने से
सच का चेहरा धो जाने से
कुछ झूठे बने बहानों से

हां भगवान मैं डरता हूं
अकेलेपन की मार से
अपनों के ललकार से
झूठे चमत्कार से
दिखावे के सत्कार से

हां भगवान मैं डरता हूं
किसी दुखी के अभिशाप से
किसी अनहोनी के भाप से
किसी अनजाने पाप से
सामने मौत को देख कांप से

हां भगवान मैं डरता हूं
बहुत ज्यादा लगाव से
अपनों के दिए घाव से
यादों के गहरे तनाव से
दिखावे के बचाव से

कविता अभी बाकी हैं, नीचे तक पूरा पढ़ें।
हां बहुत डरता हूं मैं और शायद आप भी डरते होंगे, या डरते नहीं भी होंगे तो इन बातों से हां में हां तो मिला ही रहें होंगे, सहमत तो होंगे ही।
हां हम दिखावा करते हैं के हम मजबूत हैं, पर अपनों के लिए तो डर बना ही रहता हैं।
जब कोई अपना बना के फिर आपसे झूठी दिखावा करने लगे या फिर आपकी अहमियत कम कर दें।

हां भगवान मैं डरता हूं
ईमानदारी पर लगाए दाग से
बेईमानी से निकले झाग से
मेरे अपनों के लगाए आग से
मुझसे दूर भागम भाग से

मैं आख़िर क्यों ना डरूं
दिखावटी अपनों से
झूठे सपनों से
सच का दिखावा जो करें
किसी डर से जो ना डरें

हां भगवान मैं डरता हूं
अपनेपन के दिखावे से
अपना बना चल जाने से
झूठा हक्क जताने से
आंसु बहुत बहाने से

हां प्रभु मैं बहुत डरता हूं
गैरों सा बर्ताव से
गैरों सा बर्ताव से
हां बहुत डरता हूं मैं


और क्यों ना डरूं साहब, मैं कौन सा अमर हूं और अमृत का घड़ा पिया हैं मैंने।
एक आम इंसान हूं और ये डर बहुत जरूरी हैं।
क्योंकि ये डर आपको अलग बनाता हैं भीड़ से।
आपको खुद से खुद की पहचान कराता हैं।