भूतिया पटरी Tarkeshwer Kumar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भूतिया पटरी

काल्पनिक कहानी!
यह घटना एक छोटे से गांव की है,  शहर से दूर जहां पर भोले भाले गांव वाले रहते थे अपनी छोटी सी दुनियां में सब मग्न थे ना किसी से बैर न किसी से दुश्मनी बहुत ही शांत स्वभाव के लोग यहां रहा करते थे।


पर जैसा कि कहते हैं की हर शांति के पीछे एक राज़ एक कहानी छुपा हुआ होता है। उस गांव से कुछ दूरी पर एक ट्रेन की पटरी गुजर रहीं थी जिस पर  सरपट ट्रेन आया जाया करती थी।

और उस पटरी को पार करके ही गांव में प्रवेश किया जा सकता था। ना ही कोई ओवरब्रिज था और ना ही कोई अंडरपासऔर जैसा की ट्रेन आया जाया करती थी तो दुर्भाग्य से कई प्रकार की घटनाएं भी घटित होती थी।
किसी को  किस्मत खराब तो वह ट्रेन के चपेट में आ जाता था तो कई जल्दबाजी के चक्कर में घटना के शिकार हो जाते थे।



उस गांव का एक होनहार लड़का तारक शहर में पढ़ाई किया करता था और पढ़ाई करने के साथ ही मॉडर्न सोच वाला हो गया था तो लाजमी है कि वह जब गांव में आएगा तो गांव के भोले भाले लोगों में अपने आप को श्रेष्ठ समझेगा।



तो एक दिन तारक पटरी पार करते वक्त उसने देखा को एक इंसान किसी ट्रेन के चपेट में आकर घायल होकर वहां पड़ा हैं और वहां पर लोगों की भीड़ जुटी हुई है उसको देखने में उसकी मदद करने में।



तारक अपने गांव आता है और बोलता है कि कैसे यह घटना हो गई क्या हम कोई और रास्ता नहीं बना सकते इस गांव में प्रवेश करने का तो लोगों ने कहा कि हमने बहुत कोशिश की पर नाही सरकार के कान पर जु रेंगी ना ही किसी बड़े आदमी ने हमारी मदद की।



दिन में उस गांव का नजारा ठीक रहता था।पर रात होते ही वह दिन की  शांति  एक अनजान सन्नाटे में बदल जाती थी लोग अक्सर अपने घर से निकालना पसंद नहीं करते थे और निकलते भी तो अकेले नहीं और जल्दी ही घर में घुस जाते थे।



एक दिन हुआ 2 दिन हुआ तारक यह सब बातें बड़ी गौर से देख रहा था,  फिर उसने गांव वालों से पूछा  यह इतना सन्नाटा क्यों हो जाता है?



लोगों ने कहा उस भूतिया पटरी  की वजह से! तारक ने चौकते हुए पूछा कि क्या भूतिया पटरी?



हां लोगों ने कहा, हां तारक तुमने सही सुना भूतिया पटरी।
तारक ने  झल्लाते हुए कहा, मैं नहीं मानता, मैं नहीं मानता की कोई भूतिया पटरी होती है, मुझे यकीन नहीं की भूत भी होते हैं।



गांव वालों ने कहा ऐसा मत कहो तुमसे पहले भी बहुत लोग ऐसा बोलते थे लेकिन सबको यकीन हो गया।ऐसा बोलकर गांव वाले अपने-अपने घरों को चले गए।



तारक वहां खड़ा सोचता रहा,"  भूत! मैं नहीं मानता भूत को"   कुछ नहीं होता यह भूत वगैरह.ऐसा सोचते सोचते रमेश भी सो गया।



अगले दिन सुबह उठकर वह पटरी की ओर गया और बड़े गौर से पटरी को देखने लगा और   सोचने लगा पटरी पर भूत कैसे आ सकते हैं?



फिर वहां के लोगों ने वही बात फिर से दोहराया तारक यहां पर सैकड़ो घटनाएं घट चुकी हैं और उन घटनाओं के शिकार भूत बनकर घूमते हैं।



तारक ने सब की बातों को हंसते हुए टाला।



वह रात को अपने छत पर टहल रहा था अचानक उसकी नजर उस पटरी पर पड़ी उसने देखा कि सफेद वस्त्र पहने एक औरत वहां घूम रही है और सामने से ट्रेन बहुत तेजी से आ रही है।



वह दौड़ता हुआ पटरी की ओर जाता है, उसके पहुंचने से पहले ही ट्रेन सफेद वस्त्र पहनी औरत के ऊपर से गुजर जाती है और रमेश बहुत तेजी से चिल्लाता है।



जैसे ही ट्रेन गुजरती है तो देखता है की वहां कोई सफेद वस्त्र या कोई महिला वहां नहीं हैं।अचानक तारक की नजर कुछ दूर इस पटरी पर पड़ती है तो वह देखकर चौंक जाता है की वहीं महिला वहां घूम रही है वह थोड़ा सा घबराता है पर इस बात को अपने दिमाग से निकाल कर फिर से घर चला जाता है।



थोड़ी देर उसके दिमाग में यह बात चलती है फिर वह शांत होकर सो जाता है।
अगली सुबह वह फिर से शहर चला जाता है।फिर कुछ दिन बाद वह अपने घर आने की तैयारी करता है।
तारक अपने चाचा के बेटे को शादी में आने को होता हैं मगर उस दिन बस लेट हो जाती हैं।



वह रात के 1 बजे अपने गांव के बस स्टैंड पर उतरता हैं। 
उसके दिमाग में एक प्रकार का सवाल चल रहा होता है की क्या सच में भूत होता है पर फिर से वह बात को टालते हुए आगे बढ़ जाता है।



वह अपना सामान हाथ में लेते हुए पटरी की ओर आगे बढ़ता है तो देखता हैं वहां एक लाश कटी हुई पड़ी हैं जिसका शक्ल एकदम साफ दिख रा हैं पर हाथ दोनो कट गए हैं।
तारक मदद के लिए इधर उधर देखता हैं पर कोई नहीं मिलता पर जब वो दुबारा लाश वाली जगह पर आता हैं तो घबरा जाता हैं क्योंकि वहां लाश हैं ही नहीं।



वह अब थोड़ा डरने लगता हैं और आगे बढ़ता हैं तो देखता हैं एक रिक्शा वाला इतनी रात मुंह बांधे रिक्शे पर बैठा हैं।
वह घबराए हुए भाग के जाता हैं और रिक्शे वाले को अपना पता बता देता हैं और रिक्शे पर बैठ जाता हैं। वो बहुत घबराया हुआ हैं। एक दम अंधेरी रात जहां बगल का समान नहीं दिख रहा और गांव में लाइट तो थी नहीं।



रिक्शा वाला एक दम चुप था एक शब्द भी नहीं बोला था अभी तक। और न ही साफ साफ दिखाई दे रहा था।तारक ने गौर किया कि रिक्शे वाले में से अजीब से खून की बदबू आ रहीं हैं।वह थोड़ा और घबरा सा जाता हैं और दबी हुई आवाज में बोलता हैं, भैया वहां एक लाश पड़ी थी वो गायब हो गईं आपने वो एक्सीडेंट होते देखा था क्या?



रिक्शे वाला एकदम चुप। तारक फिर बोलता हैं अंकल जल्दी ले चलो घर। अचानक वह ध्यान देता हैं इस अंधेरी रात में उसने ध्यान नहीं दिया था अभी तक, तब से रिक्शे वाला रिक्शा वहीं गोल गोल घुमा के ले आ रहा हैं।वह बोलता है यह क्या बदतमीजी है। 



तुम बार-बार इस जगह पर क्यों ले आ रहे हो।  अंधेरा होने के कारण मैं उस वक्त से ध्यान नहीं दे पा रहा था।  मैं पहले से ही इतना घबराया हुआ हूं।तुम मुझे यही उतार दो।   रिक्शा रुक जाता है। 
वह आनन फानान में रिक्शा से उतरता है।  अपना सामान उठाते हुए रिक्शा वाले पर चिल्लाता है। तुम जानते हो मैं कौन हूं।  मैं भी इसी गांव का हूं।  मैं तुम्हें सुबह बताता हूं।  रिक्शावाला अभी भी चुप। 



उसका मुंह बंधा हुआ है।  रिक्शा वाले ने कंबल  ओढ़ रखा है। तारक अपना सामान लेकर चलने लगता है। 
धीरे-धीरे अंधेरे में डरा सहमा रमेश  चुपचाप सीधा चले जा रहा है। 
पर उसी सन्नाटे में  कुछ दूर पीछे  रिक्शा की चलने की आवाज आ रही है।वह अपना स्पीड और तेज करता है चलने की।पीछे रिक्शा के चलने की आवाज भी तेज होती जा रही है।



वैसे तो तारक के घर से पटरी साफ दिखता है।पर आज दूरी कुछ ज्यादा ही मालूम पड़ रही है।तारक के दिल की धड़कनें बहुत तेज हो गई हैं।
तर तर माथे से पसीना चू रहा है। वह जैसे तैसे अपने घर के पास पहुंचने ही वाला होता है कि उसकी नजर पड़ती है।  एक रिक्शावाला उसके घर से थोड़ी दूर पर खड़ा है। 
और यह वही रिक्शावाला है। तारक चिल्लाता है तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो। सामान को अपने घर के दरवाजे पर रखकर।



वह गुस्से में रिक्शा वाले की ओर आगे बढ़ता है और जाकर उसका कंबल हटा देता है।
तारक की आंखें फटी की फटी रह जाती है। उसके पांव के नीचे की जमीन खिसक जाती है वह देखता है। यह तो वही लाश वाला आदमी है।
इसके भी दोनों हाथ नहीं है।  और यह वही लाश है जो उसने उसे पटरी पर देखा था। वह बेहोश होकर बेसुध गिर जाता है। 



घर वाले बाहर आते हैं तो देखते हैं वह बेहोश पड़ा है। अगली सुबह जब उसको होश आता है तो वह ना कुछ बोल पाता है ना कुछ सुन पता है बस चुप चाप बैठा रहता है। आखिरकार उसको विश्वास हो जाता है कि वह भूतिया पटरी वाली कहानी सच थी।
और यह भी समझ आ जाता है की क्यों गांव वाले रात को जल्दी अपने-अपने घरों में चले जाते थे।
यह कहानी काल्पनिक है इस कहानी को मैंने अपने विचारों से उत्पन्न किया है और अपने हिसाब से बनाया हैं। इसका किसी भी कहानी से कोई लेना-देना नहीं है अगर लेना देना है तो मात्र एक संयोग हैं।

मैं माफी चाहूंगा अगर किसको ये उसकी कहानी लगे तो। ये संयोग होगा अगर किसी की कहानी मेरी कहानी से मैच हुई तो।


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