बेटियों के दरिंदे Tarkeshwer Kumar द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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बेटियों के दरिंदे

एक कविता बेटियों के नाम करना चाहूंगा,आजकल की जो घटनाएं हो रहीं हैं हमें उसके खिलाफ आवाज उठाना ही होगा,हमें बेटियों की रक्षा इन्न दरिंदो से करनी ही होगी वरना बेटियां एक डर की जिंदगी जीने को मजबूर होने लगेंगी,सबसे पहले हमें हमारी और हमारे बच्चों की और समाज की नकारात्मक सोच को मिटाना होगा।बेटियों के लिए कुछ पंक्तियाँ लिखी है जरा ध्यान से पढ़िएगा।

बेटियों के दरिंदे

कभी सुना था दादी नानी की जुबानियों में,
के कभी होते थे दरिंदे हैवान कहानियों में,
लगता था डर सुनके, कभी होश भी खो जाते थे,
डर में भी एक सुकून था इसलिए हम सो जाते थे,
पर नानी ने कभी ये नही बतलाया था,
के एक दिन ये सब कहानी सच हो जाएंगे,
इंसान के रूप में वो दरिंदे फिर से वापस आएंगे,
ये वही दरिंदे है जो रावण के पुतले फूंकते हैं,
कोई बुराई करे अगर तो उनकी गलती ढूंढते हैं,
है वही ये हैवान जो परिवार के साथ रहते हैं,
अपनी माँ को दुर्गा माँ और बेटी को सरस्वती कहते हैैं,
पर कहाँ गयी इनकी इंसानियत देख दूसरे की बेटी को,
हर माँ बेटी एक समान फिर कैसे भूल गए उस बेटी को,
शर्म नही आई क्या तुझे जाके उस बेटी के पास में,
कह रही थी वो भैया तुझको बच जाने की आस में,
पर है दरिंदा तू,तेरे ज़हन में तो दरिंदगी बैठी है,
अरे जालिम ये सोच के वो भी किसी की बेटी है,
ओ दरिंदे क्या तू अपनी बेटी से नज़र मिला पाएगा,
जब तेरे इस करतूत का पता उसे चल जाएगा,
क्या तेरी दुर्गा माँ तुझे फिर सेे बेटा बोल पुकारेगी,
क्या तेरी सरस्वती बेटी फिर से तेरी नज़र उतारेगी,
मान जा ऐ निर्दयी जाने दे इस कली सी गुड़िया को,
दे दे सम्मान उसे उसका ,मत घोल ज़हर की पुड़िया को,
मां बाप ने तेरे तुझे इंसान का ही तो जन्म दिया था,
तेरा लालन पालन तो इंसानो सा ही किया था,
फिर क्यों ये दरिंदगी का रंग तुझमे ऐसे घुल गया,
इंसान से जानवर बना तू फिर इंसानियत पूरा भूल गया,
जिंदा जला रहा तू इंसान को,खुद दिये का जलन न जाने,
हमला किया है लोहे से खुद ईंट की चोट ना जाने,
दुआ है इस दर्द से सौ गुना ज्यादा तुझको दर्द मिले,
तेरे दर्द की दास्तान सुनने वाला न हमदर्द मिले,
एक पल भी चैन न आये बस दर्द ही दर्द मिले,
तड़पे तू उस बेटी से ज्यादा फिर भी ना तुझे मौत मिले,
उड़ जा बेटी नन्हीं सी चिड़िया तुम्हे अब आराम मिले,
जहां रहो बस खुश रहो अब दर्द को विराम मिले,
जागो अब समय आ गया होके कठोर हुंकार भरो,
देवी की है लाज दाव पर हो सके तो संघार करो,

दिखे जहाँ भी ये दानव तुम्हें,बेटी की रक्षा करो,

है हर बेटी एक समान बांध गाँठ तुम ध्यान धरो,
आओ प्रण करे फिर से इस बार इरादा पक्का हो,
है दाग जो इस समाज पर,कर दो साफ न कोई धब्बा हो,
चाहे जो हो जाये, बस अपने इरादे और पक्का करो,
दुर्गा वही है सरस्वती वही हैं ,बस उसकी रक्षा करो।

दुर्गा वही हैं सरस्वती वहीं हैं,बस उसकी रक्षा करो।