हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग बीस) Ranjana Jaiswal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग बीस)

बेटे की सास ने रिसोर्ट में ही बताया कि वे एक महीने से बेटी के पास ही थीं और उसके साथ ही रिसोर्ट आई हैं ।तो...इसलिए बेटे ने मुझे साथ नहीं लिया था।वह मुझसे ससुराल की बातें छिपाता है,पर मेरी एक -एक बात उसकी सास को पता थी।उन्होंने मुझे उलाहना दिया कि 'आप बच्चों से कोई मतलब नहीं रखतीं।उनके सुख -दुःख में काम नहीं आतीं,ये ठीक बात नहीं ।आखिरकार वही काम आएंगे। आपके भाई -बहन नहीं ।माता- पिता होते तो और बात थी।मायके वाले साथ नहीं देते।'
मुझे हँसी के साथ गुस्सा भी आ रहा था कि ये सब बातें वह औरत कह रही है,जो अपनी सारी जिम्मेदारी दामाद पर लादे हुए है और ज्यादातर उसके घर ही पड़ी रहती है।मैंने कई बार महसूस किया कि वह अपने अन्य दामादों पर इस तरह डिपेंड नहीं रहती।ज्यादातर मेरे बेटे का ही दोहन करती है।क्या इसलिए कि वह अपने इस दामाद की कमजोरियों से वाक़िफ़ है या इसलिए कि उसकी माँ एक भागी हुई स्त्री है कि उसका पिता दूसरी औरत के साथ है?
मेरा बेटा ससुराल में मेरी बुराई ठीक उसी तरह करता है,जैसे उसका पिता करता रहा है।कभी -कभी मुझे आश्चर्य होता है कि बेटा गर्भ से लेकर सात वर्ष तक सिर्फ मेरे पास रहा।मेरे संस्कारों से पला फिर भी अपने पिता की ही कार्बन कॉपी बना। क्या एक बीज का इतना प्रभाव होता है कि खेत की उर्वरा,किसान की मेहनत,हवा,खाद-पानी,सूरज की किरणें सब व्यर्थ हो जाती हैं?क्या फसल वैसी ही होती है जैसा बीज होता है?शायद हाँ,तभी तो बेटे में अपने पिता जैसी ही आदतें,सोच और क्रियाकलाप है।पिता की तरह वह भी दूसरी औरतों का रसिया है।औरतों के बीच बैठना,उनकी मदद करना,इधर- उधर बात,चुगली,निंदा ,दिखावा उसके स्वभाव का हिस्सा है।ऐसा नहीं कि उसमें मेरा कुछ नहीं है ।पढ़ाई- लिखाई,साहित्य-कला,नृत्य संगीत,पूजा- पाठ में रूचि उसने मुझसे ही पाई है।यह बात वह कहता भी है।उसका चेहरा ,उसके बाल ,होंठ,दांत बिल्कुल मेरी तरह हैं लेकिन वह पिता की तरह कुटिल भाव से मुस्कुराता है।उसी की तरह आँखें तिरछी करके देखता है और हर किसी का मजाक उड़ाता है।अपने-आपको सबसे ऊपर रखने के साथ ही कुतर्क देना भी उसकी आदत में शुमार है।अजीब खिचड़ी स्वभाव बना है उसका।अलग व्यक्तित्व वाले मजबूत शख्शियत के रूप में उसका विकास नहीं हो पाया।इस बात का मुझे दुःख है।जब वह गर्भ में था मैंने बहुत सारे संयम -नियमों का पालन किया था।धार्मिक के साथ वैज्ञानिक पुस्तकें भी पढ़ी थीं।जिह्वा पर नियंत्रण करके सिर्फ पुष्टिकर भोजन किया था ताकि उसका शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक,चारित्रिक हर तरह का विकास सर्वोत्तम हो।हुआ भी था ।वह हजारों में एक बालक -सा था।खूब स्वस्थ,सुंदर और बुद्धिमान।सात साल की उम्र में भी वह दस वर्ष के बच्चे- सा दिखता था।पिता के घर जाते ही उसका स्वास्थ्य गिरने लगा।फिर वह पिता के संस्कारों में ही रच -बस गया।अपनी गलती को न मानना,हर परेशानी के लिए दूसरों को दोषी ठहराना,जिम्मेदारियों से बचने के लिए खुद बेचारा बन जाना और सबसे बड़ी खूबी -दुहरा चरित्र रखना बाप- बेटे दोनों की विशेषता है।समाज में ज्यादातर लोग ऐसे ही हैं,इसके लिए किसी एक को दोषी ठहराना उचित नहीं।मैं ये सब बातें कहने को इसलिए मजबूर हुई हूँ कि अपना पक्ष पाठकों के सामने रख सकूं।वरना जीवन में कभी भी अपने किए की सफाई देना मैंने उचित नहीं समझा।समय और हालात से जूझते हुए भी मैंने खुद को कभी पतित नहीं होने दिया।हमेशा अपनी मेहनत की खाई।कभी किसी के प्रति कोई अन्याय नहीं किया।अपनी आत्मा के प्रति मैं हमेशा ईमानदार रही हूँ।मुझसे कभी कुछ गलत
हुआ भी तो मैंने उसे माना और फिर कभी वो गलती दुबारा नहीं की।
पति ने मेरी आत्मा को छलनी न किया होता और अपनी गलती स्वीकार कर ली होती तो मैं उसे माफ कर देती।पर वह आज भी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि उसकी किसी कमी के कारण मैं भागी।वह सबसे यही कहता है कि मैं अपनी महत्वाकांक्षा के कारण भागी।अगर उसके साथ होती तो तमाम सुख भोगती।समाज में इज्जत और सम्मान होता।बेटे भी इज्जत करते।भाग कर क्या मिला?न सरकारी नौकरी न दूसरा पति।न कोई सहारा ,न किसी का आश्रय।न इज्जत न प्रतिष्ठा,न सम्मान न मान,न नात न रिश्तेदार,न दोस्त न मित्र।।ये सब तब मिलता है न ,जब औरत सब कुछ बर्दास्त करके पति के साथ रहती है।पति के वचन को परमेश्वर का वचन मानती है।
उसे यह अभिमान है कि उसके पास सरकारी नौकरी रही।मुझसे कम उम्र की पतिव्रता ,घरेलू,आज्ञाकारी पत्नी मिली।चार- चार बेटे हैं।समाज में मान- प्रतिष्ठा है।धन है दौलत है।गाड़ी है चार-मंजिला दो -दो घर है।
बेटा भी पिता की ही बात दुहराता है।उनकी दृष्टि में मैं असफल,बदनाम और बेचारी -सी वह औरत हूँ,जिसे कोई नहीं पूछता।
ठीक है मैं ऐसी ही हूं फिर मुझसे ही अपेक्षा क्यों?मुझे छोड़ क्यों नहीं देते?