प्रमोशन Ashwajit Patil द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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प्रमोशन

            अनिशा बाथरूम में शीशे के सामने खड़ी होकर अपने चेहरे को ही देखे जा रही थी. उसके चेहरे पर डर और परेशानी के भाव स्पष्ट देखे जा सकते थे. उसका दिल जोरो से धड़क रहा था. उसके एक हाथ में एक प्रेगनेंसी कार्ड था तो दूसरे हाथ में प्लास्टिक के मग में अभी अभी ली हुई उसी की पेशाब थी. बस दो बूंदे उस कार्ड के सफेद वाले छेद में डालनी थी और देखना था कि कार्ड के दूसरे सिरे पर बने खाचे में बनी दो सफेद पट्टियां लाल होती है या नहीं.

            अनिशा की परेशानी ये थी कि कहीं ये लाल ना हो जाये, उसे अभी मां बनने में जरा भी रूचि नहीं थी. बी.ई. और उसके बाद एम.बी.ए. करते ही उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में असिस्‍टेंट मैनेजर की पोस्ट पर जॉब मिल गई थी. पर नौकरी मिलते ही घर वालों ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि, अब उसे शादी कर लेना चाहिए, वह जैसा चाहती थी वैसी पढ़ाई कर ली है और अब तो नौकरी भी मिल गई है. घर वाले बड़े ही जोर शोर से उसके लिए लड़के की तलाश जुट गए.

जिसके जीवन में सब कुछ अच्छा ही होता है और अच्छी सोच रखते है उन्हें सच में तकलीफे कम ही होती है और खुशियां भी चलकर उनके पास आती है. अनिशा के साथ भी ऐसा ही कुछ था. उसके रिश्ते के लिए भी ज्यादा भटकना नहीं पड़ा. एक साल के भीतर ही अरविंद के रूप में उसे अच्छा पति मिला. अरविंद को देखने के बाद और उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि जान लेने के बाद अनिशा इस रिश्ते से मना नहीं कर पाई.

            सगाई होते ही अनिशा ने अरविंद से कह दिया था की वह शादी तो कर रही है लेकिन वह खुलकर जीना चाहती है. अपनी निजी जिंदगी और नई नई मिली नौकरी का पूरा मजा लेना चाहती है. अरविंद इसके लिए राजी हो गया था. वह भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर के तौर पर काम करते हुए महिने के सवा लाख रूपया वेतन पा रहा था. विचारों से सुलझा हुआ पूरी तरह आधुनिक, महिलाओं का सम्मान करने वाला ऐसी ही छवि अनिशा के सामने अरविंद की हो गई. सगाई के तीन महिने बाद ही दोनों विवाह के बंधन में बंध गये.

            सुहाग रात वाली रात दोनों काफी खुश थे. अपने पहले प्रमोदकाल को यादगार बनाने के लिए अरविंद उतावला हो रहा था वहीं अनिशा भी इस नये अनुभव के लिए खुद को तैयार करते हुए आंदोलित हो रही थी. प्रणय के सैलाब में अरविंद अनिशा के किया हुआ वादा भूलकर बिना किसी प्रोटेक्शन के आगे बढ़ने ही वाला था कि अनिशा ने उसे रोक दिया. अरविंद ने प्रोटेक्शन कि कोई व्यवस्था नहीं की थी. वह रात उनके मिलन की कहानी पूरी न कर सकी. दूसरे ही दिन अरविंद ने सबसे पहले कोई काम किया तो वह यहीं की वह बाजार से कंडोम के कई पैकेट रखीद लाया.

            “अनिशा.. अनिशा उठो, नौ बजने वाले है काम पर नहीं जाना क्या ?” अरविंद की आवाज से अनिशा हड़बड़ाकर उठ बैठी. “अरे.. बाप रे…! इतना समय कैसे सोई रही मै” वह मन ही मन बुदबुदाते हुए बाथरूम की ओर भागी. बेसिन पर रात उसने टेस्ट किया हुआ प्रेगनेंसी कार्ड रखा हुआ था. जिस पर कोई लाल पट्टियां नहीं थी. वह खुश थी कि वह प्रेगनेंट नहीं है और इसी खुशी में वह बड़ी चैन की नींद सो पाई थी. सुबह आँख खुलने में इसी वजह से देरी हो गई.

दरअसल, तीन साल तक अरविंद ने एक बार भी फॅमिली आगे बढ़ाने की बात नहीं की, किन्तु पिछले कुछ दिनों से अरविंद अनिशा को राजी करने में लगा हुआ था. उसका कहना था कि, “मै पैतीस का होने को आया हूं और तुम भी तीस को छू रही हो. प्रमोशन होने तक और तीन या चार साल इंतजार करते रहे तो मै चालीस और तुम पैतीस के करीब पहुंच जाओगी. जब मै बीस साल का था तब मेरे पापा पैंतालीस के थे. यहां तो पैंतालीस की उम्र में मुझे अपने बच्चे को गोद में खिलाना पड़ेगा.”

अरविंद की इन्हीं बातों से दबाव में आकर तथा भावुक होकर अनिशा ने महीने भर पहले मदनास्त्र को संरक्षक कवच से आच्छादित किये बिना ही रतिद्वार भेदने दिया था. तत्पश्चात अगले ही महीने ऋतुस्त्राव में व्यत्यय से अत्यंत व्याकुल हो गई थी. वह अभी मां नहीं बनना चाहती थी, उस पर काम का अत्याधिक दबाव था तथा मां बनाना उसके प्रमोशन के लिए बहुत बड़ा व्यवधान था.

अनिशा अपने ऑफिस पहुंचते ही लवलीन के केबिन में चली गई. यह केबिन अनिशा के केबिन से काफी बड़ा था. लवलीन की चेयर पर बैठते ही अनिशा को आत्मिक सुकून प्राप्त हुआ. उसने एक नजर अपने केबिन पर डाली जो की इस समय खाली था. उसकी चेयर, टेबल और सामने दो कुर्सियां बस इतना ही उस केबिन में था. जबकि यहां तो टेबल के सामने चार कुर्सियां रखी हुई है. एक आकर्षक-सा टी टेबल और सोफा भी था. वह सोचने लगी, अब जल्द से जल्द इस केबिन के बाहर उसके नाम की प्लेट भी लग जाये तब सही मायने में यह केबिन उसका होगा. उसके नाम के आगे ब्रांच मैनेजर लगा होगा. फिलहाल लवलीन के मैटरनिटी लीव से वापस आने तक ही मै इस चेयर पर बैठ सकती हूं, ऑन पेपर मै असिस्टेंट मैनेजर ही हूं, यानी यह कोई मेरा प्रमोशन नहीं है.

तभी उसका ध्यान टेबल, कम्प्यूटर और फाइलों पर फैले धूल पर गया. “कितनी धूल है, ये विमला बाई आज आई नहीं क्या ?” बुदबुदाकर स्वयं से प्रश्न करते हुए अनिशा ने विमला को आवाज दी, “विमला बाई.. ओ…. विमला बाई..” तभी विमला लगभग दौड़ती हुई केबिन में आई तो अनिशा बोली,

“क्या विमला बाई… कितनी धूल है, आते से ही सफाई होनी चाहिए ना”

“अरे… मेम सा’ब बच्चे को दूध पिला रही थी. आज कुछ ज्यादा ही रो रहा है.”

“तुम लोग भी ना, जब एक बच्चा ढंग से पाल नहीं सकते दो-दो, चार-चार पैदा कर लेते हो. रोज ही तुम दोनों बच्चों को लेकर आती हो. यह अच्छा है कि यहां ऑफिस में पालन घर बना हुआ है वरना तुम्हें तो यह काम ही छोड़ना पड़ा होता या काम पर से निकाल दिया जाता. और तुम तो इतनी महान हो की एक बच्चा अभी गोद से उतरा नहीं था कि दूसरा भी गोद में ले आई”

“मेम सा’ब बच्चे तो भगवान की देन है, ये हमारे हाथ में होता है क्या”

“क्यों …? मेरे शादी को तीन साल हो गये मुझे हुआ क्या बच्चा. हमारे ही हाथ में होता है. पर तुम लोग कोई प्लानिंग तो करते नहीं.”

“क्या करे मेम सा’ब, मेरा मर्द रोज रात दारू पिकर आता है और शुरू हो जाता है, उसे थोड़ी ना फिकर होती है मेरी. मुझे कैसा भी लगे, कुछ भी तकलीफ, परेशानी हो उसे कोई फरक नहीं पड़ता. तो वो क्या कोई उपाय करेंगा.”

“अरे वो नहीं करता तो तुम कर सकती हो.. गोलियां है ..नहीं तो वो कॉपर टी.. और भी कुछ है, सब मै खुद भी नहीं जानती पर डॉक्टर से पूछ सकती हो ”

“मेम सा’ब गोलियां मुफ्त में नहीं मिलती और फिर गोलियों से वो साई… क्या कहते है सा..”

“साइड इफेक्ट”

“हां वही साइड इफक्ट होता है और दूसरे वो टी.. वगैरे… इनसे मुझे डर लगता है” 

“उससे डर लगता है… पर यह अब दो दो बच्चों का एक साथ बोझ लेकर घूम रही हो वह चलता है. तुम अपने पति को रोक नहीं सकती. उसे मना कर दिया करो.”

“ना .. रे बाबा… उसे मना करना. आप नहीं जानती मेम सा’ब.. उसे मना करने का मतलब है मार खाना, बहुत पीटता है, वो तो ऐसा है कि….” उसकी बात बीच में ही काटकर अनिशा बोली,

“तुम यह सब कैसे सह लेती हो”

“मै ही नहीं मेम सा’ब मेरी बस्ती की कई औरते ऐसी ही है. झोपडपट्टी में किसी का कुछ छिपा रहता है क्या, हम सभी सहती है, ना सहे तो सर से छत छिन जाती है. सड़क पर भूखे भेड़िये घुमते है जो लाचार अकेली औरत का शिकार करने में माहिर होते है. उनका शिकार बनने से बेहतर है पति जैसा रखे वैसे रहो”

“कैसी बेवकूफी वाली बातें करती हो, अरे जब तुम खुद कमा रही हो, खुद घर चलाती हो फिर तुम्हें पति का सहारा ही क्यों चाहिए मेरी तो कुछ समझ नहीं आता”

“हम ऐसी ही है, बचपन से यही सिखाया गया है हमें, एक बार मायका छोड़ दिया तो फिर मायके में हमारे लिए कोई जगह नहीं होती. मां-बाप, भाई-बहन सभी सिर्फ शब्दों का सहारा देते है, उससे छत नहीं मिलती. क्या करे… उनकी भी अपनी खुद की जिंदगी होती है, जब उनके रहने-खाने का सही ठिकाना ना हो तो वे हमें कहां से आसरा देंगे. ऐसे में जो छत मिली है वही पूरी जिंदगी सर पर रहे यही कोशिश रहती है हमारी. जीवन में बहोत तकलिफे है मेम सा’ब एक से पीछा छूटा नहीं दूसरी आ दबोचती है. इसीलिए हम तकलीफों से पल्ला नही झाड़ते उनके साथ जीना सीख लेते है. जो मिला उसी में खुश रहते है.”

विमला की बातों ने अनिशा को सोचने पर मजबूर कर दिया था, क्या वाकई औरत की जिंदगी ऐसी ही है …? वह बिना पुरूष या बिना सहारे के यह जीवन जी नहीं सकती. अनिशा ने देखा बातें करते करते विमला ने केबिन की साफ सफाई भी कर दी थी. वह सोचने लगी, एक औरत जो अभी कुछ ही महीनों पहले मां बनी है और जिसका पहला बच्चा अभी एक-सवा साल का ही हुआ है वह इतनी चपलता से कैसे काम कर लेती है. तभी विमला का स्वर फिर से अनिशा के कानों से टकराया,

“मेम सा’ब ये लवलीन मेम सा’ब कब तक काम पर लौटेगी. उन्होंने तो मेरी डिलीवरी से पहले से ही मैटरनिटी छुट्टी ली थी ना. शायद वो उनका छठवां महीना चल रहा था. अब तक तो उनका बच्चा भी आठ-नौ महिने का होगा, उन्होंने आ जाना चाहिए था काम पर.”

“हर कोई तुम्हारी तरह नहीं होते है विमलाबाई, मै जानती हूं तुमने तो डिलीवरी के कुछ ही दिन पहले मैटरन‍िटी लीव के लिए अर्जी दी थी और डिलीवरी के हप्ते भर बाद ही काम पर वापस भी आ गई. मै जानती नहीं क्या स्कार्फ बांधकर तुम काम कर रही थी. इतनी शक्ति कहां से तुम लायी हो पता नहीं. इतनी ताकत शायद लवलीन में नहीं होगी.”

“ऐसा कुछ नहीं है मेम सा’ब… हमारा शरीर भी हाड मांस का ही बना हुआ है हमे भी दर्द होता है. ये तो हमारी मजबूरी है आप जैसे बड़े लोग काम पर आओ या ना आओ आपका पेमेंट मिलता रहता है और नौकरी भी बची रहती है. हम तो टेम्पररी है काम पर नहीं आये तो हमारी परमनन्ट छुट्टी करके किसी दूसरे को काम पर रख लेते है. वो कंपनी हमको दोबारा कभी काम पर नहीं बुलाती.”

तभी किसी ने विमला को आवाज दी. विमला वहां से चली गई. अनिशा अपने काम में व्यस्त हो गई. लेकिन विमला की बातें उसके जेहन में बार-बार चक्कर लगा रहे थे.

वह जिस चेयर पर बैठकर काम कर रही थी यह चेयर लवलीन की थी. पढ़ाई और नौकरी के चक्कर में लवलीन ने देर से शादी की थी. जब गर्भवती हुई तो उसी समय कंपनी को एक नया प्रोजेक्ट मिला था. इस प्रोजेक्ट की सफलता पर लवलीन का प्रमोशन टीका हुआ था. लवलीन ने अपना गर्भपात करवा कर प्रोजेक्ट को प्राथमिकता दी थी. एक तो उम्र ज्यादा उस पर गर्भपात, इससे उसके स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं बढ़ गई और आगे उसे प्रेग्नेन्ट होने के लिए प्रसूती चिकित्स से परामर्श लेकर उपचार कराना पड़ा, जिसमें सालो बित गये. आखिर अपने अडतीसवें साल में जब उसे गर्भ ठहरा तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा. लेकिन लवलीन को छठे महिने से ही तकलीफ शुरू हो गई थी. अत: इस बार बिना कोताही बरते वह तभी से मैटरनिटी लीव लेकर छुट्टी पर चली गई थी.

उसके जाने से ब्रांच मैनेजर की जिम्मेदारी किसी ना किसी को मिलना तय था. अनिशा को कंपनी में ज्वाइन हुए दो ही साल हुए थे उसके साथ और दो लड़कियां भी असिस्टंट मैनेजर की पोस्ट पर नियुक्त की गई थी. पर अनिशा अत्यंत महत्त्वाकांक्षी थी उसे जल्द से जल्द ब्रांच मैनेजर और फिर रीजनल मैनेजर बनना था और यह तब मुमकिन था जब वह अपने काम से कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को प्रभावित कर सके. और उसने किया, तभी वह लवलीन की अनुपस्थिती में एक साल से उसकी जिम्मेदारी संभाल रही थी.

लेकिन विमला की वह बात, ‘लवलीन अभी तक वापस नहीं आई’ उसे कचोट रही थी. क्या हुआ होगा लवलीन के साथ..? उसका बच्चा तो अच्छा होगा ना ? फोन पर खुशखबरी तो दी थी लवलीन ने कि उसे बेटा हुआ है और वह भी अच्छी है. लेकिन उसके बाद से ना तो लवलीन ने फोन किया और ना ही कहीं ओर से उसके बारे में कोई जानकारी ही मिल पाई थी.

देखते देखते उसके बाद पांच महिने और बित गये. अभी तो अनिशा के दिमाग से यह बात भी निकल गई की वह असिस्टंट मैनेजर है और लवलीन की जगह पर काम कर रही है. ऐसे लगने लगा था कि लवलीन अब शायद ही काम पर वापस आयेगी. यानी की एक-दो महीने में उसका प्रमोशन तय है. कंपनी ने शायद लवलीन को नोटिस भी भेज दिया होगा की यदि आप काम पर वापस नहीं आ सकती तो रिजाइन कर दो. उसके रिजाइन करते ही उसके हाथ में भी प्रमोशन लेटर आ जायेगा और केबिन के बाहर उसके नाम की प्लेट लग जायेगी. अनिशा इसी सोच में डूबी हुई थी की तभी,

“हैलो…! आय केम बैक” केबिन का दरवाजा खुला और एक खूबसूरत सी औरत एक बच्चे के साथ अंदर दाखिल हुई. अनिशा उठ कर खड़ी हुई और गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए बोली,

“हैलो…! लवलीन… कैसी हो” और उसकी गोद से लिपटे हुए बच्चे का लाड दुलार करते हुए बोली, “काफी प्यारा बच्चा है, सो…..क्यू…..ट.” अनिशा को अपनी उम्मीद पर पानी गिरते हुए नजर आने लगा. अंदर से उसका मन उदास हो गया. क्यों लवलीन वापस आ गई… अब उसे और ना जाने कब तक इंतजार करना पड़ेगा अपने प्रमोशन का.

            अनिशा लवलीन की चेयर खाली करते हुए बोली, “बैठो लवलीन”

“अरे नहीं.. मै सोफे पर ही बैठती हूं. तुम ही बैठो उस पर”

“पर इस पर तो आप का ही हक है. मै तो आपके अब्‍सेंस में यहां बैठती हूं.”

“नहीं… अब शायद तुम यह चेयर तभी छोड़ पाओगी जब तुम्हारा रीजनल मैनजर के लिए प्रमोशन होगा”

“मतलब”

“मतलब कुछ नहीं पगली.. मैंने रिजाइन दे दिया है. मै तो तुम लोगों से मिलने ही आई थी और मेरे कुछ पेपर्स यहां पर है उन्हें लेना है फिर तुम्हें लीगली चार्ज सौंपना है तो कुछ पेपर्स पर मेरे साइन भी लगेगे. चलो.. मै बताती हूं वह वह फाईल्‍स और पेपर मुझे दो”

अनिशा अवाक होकर लवलीन को देखती रही, “देख क्या रही हो… फाईल्स और पेपर्स निकालो” अनिशा ने अलमारी से फाइल्स और पेपर निकाल कर टी टेबल पर लवलीन के सामने रख दिये. लेकिन लवलीन ने अभी तक अपने बच्चे को अपनी गोद से उतारा नहीं था उसे अपने से अलग नहीं किया था. अनिशा ने अपने दोनों हाथ बच्चे की ओर बढ़ाएं और बोली,

“लवलीन बच्चे को मेरे पास दे दो और तुम साइन करो”

“नहीं. मै ऐसे ही कर देती हूं” लवलीन के इस जवाब से अनिशा को धक्का सा लगा. आखिर लवलीन अपने बच्चे को अपने से शरीर से दूर क्यों नहीं कर रही है. वह अपने हाथ वापस लेते हुए बोली, “ओ के”

जब अनिशा से रहा नहीं गया तो वह बोली, “कितने साल का हो गया है बेबी”

“फिफ्टीन्थ मंथ का है”

“पंद्रह महीने का… फिर तो ये खड़ा भी रह सकता है” 

“नहीं… नहीं रहता है”

“क्यों ? विमलाबाई का बच्चा तो दसवें महिने से ही खड़ा होने लगा था. अभी दो का होने को आया है दौड़ता भागता है”

अनिशा की बात सुनकर लवलीन की आंखें नम हो गई पर अपना काम बदस्तूर जारी रखते हुए वह अनिशा से अपनी भावना छुपाने का भरसक प्रयास करने लगी लेकिन अनिशा से कुछ भी छुपा नहीं पायी.

“क्या प्रॉब्लम है लवलीन, तुमने रिजाइन भी कर दिया, बच्चे को भी गोद से उतार नहीं रहीं हो. सब ठीक तो है ना.” अनिशा की इस बात से लवलीन का सब्र का बांध फूट गया और वह व्यक्त होते हुए बोली,

            “कुछ… कुछ भी ठीक नहीं है, सब मेरी ही गलती है, पैसा कमाने और अपने करियर को बेहतर बनाने के चक्कर में मैने गॉड के सबसे बड़े गिफ्ट का मजाक बना दिया है. माय सन इज पैरालिटिक. वह दिखने में भले ही सुंदर दिख रहा हो पर उसके पैर हिलते ही नहीं. उसके माइन्ड की ग्रोथ भी नहीं हो रही है. यह सिर्फ मुझसे चिपका रहता है तभी कुल रहता है. तुम्हारे पास दिया होता तो रोना शुरू कर देता. अब बताओं ऐसे चाइल्ड को मै किसके भरोसे छोड़कर आती. करियर बनाने के चक्कर में मेरा करियर ही खत्म हो गया है.”

            “पर इसमें तुम्हारी क्या गलती है. बच्चे का नॉर्मल या एब्‍नार्मल पैदा होना हमारे हाथ में नहीं है. तुम क्यों खुद को ब्लेम कर रही हो.”

            “मेरी ही गलती है, जब गॉड की मर्जी से पहली बार मै प्रेग्नेन्ट हुई तो तभी उस चाइल्ड का बर्थ होने देना था. लेकिन प्रमोशन के लालच में.. आय डीड अर्बाशन… उसके बाद तो ऐसे कॉम्प्लिकेशन्स हुए कि, मै कंसीव ही नहीं कर पा रही थी. मेरे हसबंड मुझे आलवेज टॉन्ट मारते. मैने कई डॉक्टर्स को दिखाया चार साल तक इलाज करवाने के बाद जब कंसीव हुआ तो मै बहुत खुश हुई पर मुझे हमेशा फियर रहता कि कही मै अपने इस चाइल्ड को भी खो दूंगी. मै रेगुलर चेकअप कराने जाती रही. हर महिने सोनोग्राफी करवाई. डॉक्टर्स ने जो दवाइयां प्रिस्क्राइब की वो सारी दवाइयां ली. मेरे ओवर मेडीकेशन से मेरे कॉम्प्लिकेशन्स और हाई हो गये और छठे महिने में ही मुझे बहुत ज्यादा पेन होने लगा. मै छुट्टी लेकर अपने गांव चली गई. वो एक महिना .. आय लिव्ड इन अ लॉट ऑफ पेन.”

जैसे वे पल लवलीन के आंखों के सामने आ गये थे और उन पलों का दर्द उसके चेहरे और आंखों में स्पष्ट नजर आ रहा था. वह थोड़ी देर रूकी रही. अनिशा भी उसे सहानुभूतिपूर्ण नजरों से देख रही थी. अनिशा ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर उसका ढाढस बढ़ाया.

“आय डिलीवर्ड प्रिमेच्युर बेबी… सातवे महिने में ही. वो बहोत विक था. रो भी नहीं रहा था. डॉक्टर्स ने कैसे भी उसे बचाया वो पंद्रह दिनों तक आय.सी.यु. में था. जब वह मेरे हाथा में आया तो आय…आय.. सो मच हैपी. मैने तुम लोगों को फोन करके बताया कि मुझे मेल बेबी हुआ है. लेकिन उसके बाद मुझे बेबी की बहोत ज्यादा केयर करनी पड़ रही थी. मेरा हसबंड बेबी की कंडीशन के लिए मुझे ब्लेम करने का एक भी चांस नहीं छोड़ता है. क्या करती.. कैसे वापस आती काम पर. अभी दस दिन पहले मुझे नोटीस मिला ज्वाइन करो या रिजाइन करो. मुझे रिजाइन का फैसला करना पड़ा. गॉड ने मुझे पनीश किया है”

लवलीन की दास्तां सुनने के बाद अनिशा एकदम उदास हो गई थी. पूरा मन अवसाद से भर गया. उसे अब जरा भी खुशी नहीं हो रही थी की लवलीन के रिजाइन से उसकी पोस्ट खाली हो गई है और उसका इसी महिने में प्रमोशन का चांस है. पर जिन्दगी किसी के लिए रूकती नहीं. सभी को अपने अपने कर्म करने ही पड़ते है जो जिम्मेदारियां उठाई है उसे पूरा करना ही होता है. अनिशा रोज की तरह दूसरे दिन भी अपने काम पर आई लेकिन अब उसे ब्रांच मैनेजर की कुर्सी पर कांटे चुभने का एहसास होने लगा था. पहले की तरह उसमें जोश बचा नहीं था. लवलीन की बातें शूल बनकर पूरे कुर्सी को ही घेरे हुए थी. काम में जरा भी मन नहीं लगा रहा था. ऐसे ही चार दिन बित गये. अनिशा को उसके प्रमोशन का मेल प्राप्त हुआ.

“क्या करू खुशी से नाच भी नहीं सकती. लवलीन की बाते नहीं सुनती तो शायद नाच भी लेती लेकिन अब मुझे खुशी क्यों नहीं हो रही है. उसके दर्द को मै अपना दर्द कैसे मान रही हूं. मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि यह सब लवलीन के साथ नहीं मेरे साथ हुआ है.” मन ही मन यह सोचते हुए वह लवलीन में अपने आप को देखने लगी थी. क्योंकि अनिशा की सोच भी वैसी ही थी. पहले करियर फिर बाकी सब. लेकिन विमलाबाई और लवलीन इन दोनों की आपबीती सूनने के बाद अनिशा सोचने लग गई एक तरफ पैसों का अभाव होते हुए भी बच्चे पैदा करने के लिए आगे पीछे कुछ न सोचने वाली विमलाबाई जैसी महिला तो दूसरी ओर पैसा होते हुए भी और ज्यादा पैसों की भूख और अपने सपनों के पिछे भागते हुए प्रकृति ने जो नेमत दी है उसकी अवहेलना करती हुए लवलीन जैसी महिला. कौन सही कौन गलत पता नहीं, ये विचार अनिशा के मानस पर मकड़जाल की तरह फैल चुके थे और अनिशा उसमें खुद को फंसी हुई महसूस कर रही थी.    

उसे यह मकड़जाल तोडकर बाहर निकलना था. उसने फैसला किया कि उसे आगे क्या करना है और मेल का रिप्लाय कर दिया. अब उसे काफी हलका हलका महसूस हो रहा था.

            उसी रात, अरविंद पैकेट फाडने ही वाला था कि, अनिशा ने झपटा मार कर अरविंद के हाथ से पैकेट छिन लिया और उसे बिस्तर से सटे स्टडी टेबल पर रखते हुए बोली, “अब इसकी जरूरत नहीं, तुम्हारी जैसी मर्जी, कर सकते हो, तुम्हे पूरी छूट है”

अरविंद पहले तो अवाक-सा अनिशा को देखता रहा और फिर खुश होते हुए बोला, “तो आखिर तुमने अपना फैसला बदल दिया, मुझे बता सकती हो यह चमत्कार कैसे हुआ.”

अनिशा  ने उसकी बात का जवाब देने के बजाय अरविंद को चुमते कहा पहले जो शुरू किया है उसे तो खत्म करो फिर बताती हूं.

अनिशा तृप्ती का अनुभव करते हुए अरविंद की बाहों में और सिमटे जा रही थी कि उसे यादा आया वह शाम को ऑफीस से घर आते हुए अरविंद के पसंद की मिठाई लेकर आई है. वह जल्दी से उठी और फ्रिज में रखा हुआ मिठाई का डिब्बा लेकर आई. अरविंद को मिठाई खिलाते हुए बोली,

“तुमने पूछा ना कि यह चमत्कार कैसे हुआ, तो लो अब बताती हूं, बहुत जल्द मेरा प्रमोशन होने वाला है और मेरा ही नहीं तुम्हारा भी प्रमोशन साथ में होगा”

“यानी”

“यानी… बुद्धू इन हरकतों के बाद तो हम जल्द ही मम्मी और पापा बन जायेगे ना. तो हुआ ना प्रमोशन, पति-पत्नी से मम्मी-पापा वाला”

“पर तुमने तो बताया था कि लवलीन ने रिजाइन कर दिया है और तुम्हे जल्द ही प्रमोशन मिल जायेगा”

“हां… आज ही मुझे प्रमोशन का मेल मिला लेकिन…”

“लेकिन.. तुमने एक्सेप्ट तो कर लिया ना”

“अरविंद… मेरा प्रमोशन इस कंडीशन पर था कि मुझे किसी दूसरे शहर में जाकर चार्ज लेना है और इस ब्रांच में किसी और को भेजने वाले है. दूसरे मुझे यह ऑफर दी गई कि उस शहर में दो साल में अच्छे रिजल्ट देती हूं तो वे मुझे सीधे रीजनल मैनेजर बनाने वाले है.”

“वा… ऊ ! यानी तुम्हारी तो दसों उंगलियां घी में और सर कडाई में”

“पर मुझे नौकरी और बच्चा दोंनो चाहिए. नौकरी वाले प्रमोशन के लिए मै आठ-दस साल और इंतजार कर सकती हूं. इस प्रमोशन के लिए प्रकृति ने जो सही समय दिया है ये प्रमोशन तो उसी समय पर होना चाहिए ना. इसीलिए मैने ऑफर ठूकरा दिया.”

*** समाप्त ***

अश्वजीन पाटील