शोषण Ashwajit Patil द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

शोषण

मदन एक झटके से उठ बैठा. बदहवास सा सबसे पहले उसने अपने जिस्म को टटोला, वह नाईट सुट में था. अपने बिस्तर पर देखा उसके सिवा वहां कोई और न था. वह सोचने लगा, अभी-अभी तो एक औरत थी और वह उसके साथ…. तो क्या ये सपना था. कैसा सपना था ये ? कितना गंदा ! मैं किसी औरत के साथ…. उसे एहसास हुआ उसका शरीर पसीने से भिगा हुआ है. वह अपने दिमाग पर जोरे देने लगा कि सपने में वह कौन औरत थी. वह उस चेहरे को याद करने लगा. जब चेहरा साफ हुआ तो उसे काफी शर्मिदगी महसूस हुई. वह बुदबुदाया, “नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता… वो मेरी टीचर, मेरी मॅम.. रति मॅम थी”.

रति मदन के ही बिल्डींग के उपरी माले पर फ्लैट में रहती है और मदन के ही स्कूल में पढ़ाती है. करीब सात साल से वह मदन के स्कूल में पढ़ाने का कार्य कर रही है. रति चालीस साल की अधेड उम्र की तलाकशुदा महिला है. जबकि मदन नीचले माले पर अपने माता-पिता के साथ रहता है. जब वह काफी छोटा था तो उसकी दादी उसकी देखभाल करती थी. उसके माता-पिता दोनों नौकरी करते है. वह बारह साल का हुआ उसी समय उसकी दादी गुजर गई. उसके बाद वह माता-पिता के काम पर चले जाने के बाद अकेला ही अपने कमरे में पड़े रहता था. स्कूल से आने के बाद टीवी देखना, वीडियो गेम खेलना, यही उसका दिनक्रम था. जिसके कारण वह पढ़ाई में पिछड़ने लगा. यह बात ध्यान में आते ही उसके मम्मी-पप्पा ने उसे रति के पास पड़ने के लिए भेजना शुरू किया. रति घर में टयूशन चलाने के खिलाफ थी. किन्तू एक ही बिल्डींग में रहते हुए रति और मदन के परिवार से ऐसे संबंध हो गये थे कि वह मदन के मम्मी-पप्पा को मना नहीं कर पाई.

दूसरे रति के पास काफी समय होता था. स्कूल से आने के बाद घर के काम निपटाकर टीवी देखना या बिस्तर पर पड़े रहना या कोई किताब पढ़ने के अलावा कोई काम नहीं था. अकेलापन काटने को दौड़ता था वह अलग. मदन उसके पास पढ़ने आने लगा तो उसका भी समय अच्छे से कटने लगा. मदन के तो जैसे दो घर हो गये थे. जब चाहे तब वह अपने घर में होता और जब चाहे तब वह रति के घर में होता. रति भी उसे किसी बात के लिए टोकती नहीं थी. बारह-तेरह साल का बच्चा टीवी देखना, कम्प्यूटर पर गेम खेलना, फिल्में देखना और गाने सुनना नीचे मम्मी-पप्पा ने मना किया तो उपर रति के घर जाकर वह यह सब करने लगा. जब रति पढ़ाती तो वह मन लगाकर पढ़ता भी था.

देखते देखते उसे पढ़ाते हुये चार साल बित गये. मदन दसवी कक्षा में पहुंच गया. उसमें काफी शारीरिक बदलाव आये. होंठों के उपरी हिस्से पर बालों के रोये उग आये. आवाज थोड़ी भारी सी हो गई. वह रति से दो इंच उंचा भी दिखने लगा था.

सपने से जागने के बाद मदन ने वाशरूम में जाकर अपने कपड़े बदले. पर दिमाग में हलचल मची हुई थी. उसे ख्याल आया स्कूल में दोस्तों से पढ़ाई के अलावा ज्यादातर लड़कियों के बारे बातें होती है. दोस्तों के साथ एक जगह खड़े होकर आती जाती अपने ही स्कूल की युवा लड़कियों के शारीरिक बदलाव उनके उभारों को देख कर आपस में उस पर कटाक्ष भी करते है. चोरी छिपे लॅपटॉप पर नग्न तस्वीरे और फिल्म भी देखी है. लेकिन कभी भी उसने रति के बारे में कुछ ऐसा सोचा नहीं था. उसने बड़बड़ाते हुए खुद से ही सवाल किया  “फिर क्यूं रति मॅम मेरे सपने में आयी ?” उसे ग्लानी होने लगी. वह कैसे सामना करेंगा रति मॅम का. उस पूरे दिन वह बेचैन रहा. पढ़ाई के समय भी वह रति के फ्लैट पर नहीं गया.

रति को लगा शायद बीमार होगा इसीलिए आज पढ़ने नहीं आया. उसका हाल पूछने रति खुद नीचे आ गई. बेल बजने पर दरवाजा मदन ने ही खोला. सामने रति को देखकर वह नजरे चुराने लगा. “तुम तो अच्छे लग रहे हो फिर आये क्यूं नहीं ?” रति के सवाल करने पर भी मदन ने कोई जवाब नहीं दिया वह सिर्फ नीचे की ओर देखता रहा. यहां तक की जब तक बातें होती रही उसने एक बार भी सिर उठाकर रति को नहीं देखा. रति ने उसे थोड़ा डांटा, थोड़ा समझाया. वह सबकुछ चुपचाप सुनता रहा. दूसरे दिन आने का बोलकर रति चली गई.

जहां पहले मदन बे-झिझक रति के पास बैठ जाता था. अब वह कुछ दूरी बनाकर बैठने लगा था. कोशिश होती की शरीर का कोई भी हिस्सा रति के शरीर के किसी भी हिस्से को ना छूये. मदन के सपने ने उसमें संकोच की भावना भर दी थी. उसका मन पढ़ाई से उचट गया था. जब वह रति के साथ पढ़ने बैठा तो एक बार भी उसने रति से नजरे नहीं मिलायी किंतु बार-बार वह रति के शरीर के अन्य भागों को देखे जा रहा था. रति घर में हमेशा नाईट गाउन में ही रहती थी. मदन की नजरे गाउन के अंदर रति के शरीर को टटोलने की कोशिश कर रही थी. जबकि रति इन सब से अनभिज्ञ थी. वह रोज की तरह उसे पढ़ा रही थी.

रति ने मदन से पाठ्यक्रम से संबंधित सवाल पुछा तो मदन अचानक से पूछे सवाल से हड़बडा गया. एक बार दोनों की नजरे टकराई. मदन ने नजरे चुराते हुए जवाब देने की कोशिश की.

उसके जवाब से खीजते हुए रति बोली, “मदन…! मैने पूछा क्या और तुम बोल क्या रहे हो. तुम्हारा जरा भी ध्यान नहीं है पढ़ाई में. आखिर तुम्हें हो क्या गया है ? पहले की तरह तुम आते नहीं सिर्फ पढ़ने के समय आते हो और तुरंत ही चले जाते हो. मेरे किसी भी काम में आजकल तुम हाथ नहीं बंटाते, हो क्या गया है? किस उधेड़बुन में हो?” मदन ने कोई जवाब नहीं दिया वह नजरे झुकाएं बैठा रहा.

रति ने उसको अपने एकदम पास बुलाया और खुद से सटकर बैठने का इशारा किया. पहले तो मदन बेझिझक रति के करीब बैठ जाता था. पढ़ाई करते समय नींद आ जाये तो उसकी गोद में सिर रखकर सो भी जाता था. रति भी ममत्व भरे अहसास से उसके बालों पर हाथ फेरती थी.

आज रति से सटकर बैठने में मदन को संकोच हो रहा था. पर रति ने उसका हाथ पकड़कर उसे बिठा दिया. मदन के मन-मस्तिष्क में द्वंद्व शुरू हो गया. जहां उसके संस्कार उसे रोक रहे थे. वही वासना के घोड़ों की लगाम हाथ से छूटे जा रही थी. मदन की नाक रति के गर्दन के एकदम पास थी. मदन ने अपनी आंखे बंद की और रति के शरीर की गंध लेने लगा. उसका हाथ स्वाभाविक रूप से रति के जांघों पर था. मन में हां… ना… हां… ना में युद्ध चल रहा था. घोड़ों की लगाम पूरी तरह छूट चुकी थी. मदन का हाथ धीरे धीरे रति के जांघ से जोडों की जाने लगा और उसकी ऊंगलियों ने ऐसी हरकत की कि रति एकदम से उठ खड़ी हुई. “ये क्या कर रहे हो मदन” वह मदन पर चिख पड़ी. मदन का पूरा शरीर थरथर कांपने लगा. वह बिना कुछ बोले वहां से तेजी से निकल गया. पर जाते जाते रति को उलझन में ड़ाल गया.

रति सोचने लगी, ये क्या था? मदन ऐसे बर्ताव कर सकता है उसे विश्वास नहीं हो रहा था. वह समझने की कोशिश कर रही थी. तो यही वजह थी मदन के उसके यहां कम समय रूकने की और कभी-कभी पढ़ने ना आने की. क्या चल रहा है उसके दिमाग में. कैसे उसके दिमाग में ये ख्याल आया. हां… यह उसके उम्र का तकाजा है. उसने अपने लॅपटॉप की ब्राउजर हिस्ट्री चेक की. ये क्या मदन पोर्न देख रहा था. “ओह…! माई गॉड…मदन मै तो समझ ही नही पाई. इसीलिए वह मुझसे दूर दूर बैठने लगा था मुझसे नजरे चुराता था. पढ़ाई में मन नहीं लगा रहा था. मै जो भी समझाती थी वह समझ नहीं रहा था.” रति अकेले में ही बड़बड़ा रही थी. नहीं उसे समझाना होगा. यह गलत है. जिन जांघों पर वह सिर रखकर सोता था आज उन्ही जांघों को उसने कामुकता से सहलाया.

रात भर रति ठीक से सो भी नहीं पायी. बार-बार मदन की हरकत आंखों के सामने आ रही थी. लेकिन वह मदन पर सिर्फ एक बार चीखी उस पर हाथ नहीं उठा पायी. ऐसा क्यूं हुआ. जबकि वह तो ऐसी औरत थी किसी का गलत स्पर्श होने पर उसे अच्छी खासी खरी खोटी सुना दे और दो-चार थप्पड़ रसीद दे. पर वह मदन में मामले में इतनी नर्म क्यों पड़ गई ? क्यों नही उसे भी चांटे लगाये ?

कामुकता भरे हाथों से तकरीबन सात साल बाद किसी पुरूष ने स्पर्श किया था उसे. रति को शादी के बाद पति के साथ बिताये हुए नीजी क्षण याद आने लगे. जो दो साल के वैवाहीक जीवन में काफी कम ही नसीब हुए थे. ज्यादातर उनमें बहस और झगड़े ही होते था. नतिजा यह होता कि रात में रोमांस की जगह एक-दूसरे से मुंह फेरकर सो जाते थे.

सुबह रति को अपना सिर और शरीर भारी भारी महसूस होने लगा. रात को नींद पूरी न होने का असर था. फ्रेश लगे इसलिए वह स्नान करने चली गई. बाथरूम में नहाते हुये भी उसे मदन की हरकत याद आते ही वह अपने अतित में चली गई.

रति का पति औरतों का रस‍िया था. रति के साथ में रहने के बावजूद वह दूसरी औरत को निहारते रहता था तथा कई बार तो कुछ अजीबो-गरीब टिप्पणीयां भी कर देता था. इसी बात को लेकर दोनों पति-पत्नी में झगडते होते थे. इससे रति इस नतीजे पर पहुंची थी कि, मर्दो में सेक्स की भूख ज्यादा होती है. इसीलिए हर रोज अखबार में छपा होता है कि आज फलां शहर में नाबालिग के साथ बलात्कार हुआ, फलां शहर में बुढ़ी औरत की अस्मत लुटी गई. किसी विधवा, किसी तलाकशुदा को शादी का झांसा देकर उनका शोषण किया गया. मर्दो के लिए वेश्यालयें खुल हुए है और वे धडल्ले से अपनी वासना को मिटाने बेशर्मो की तरह वहां जाते है.

सोच में डूबी रति शॉवर बंद कर आईने के सामने खड़ी हो गई. अपनी सोच को पति की स्मृति से हटाकर खुद के शरीर को देखते हुए सोचने लगी. “काफी खुबसुरत और छरहरे बदन वाली मै आज कैसी थुलथुली हो गई हूं. कमर का घेरा बढ़ गया है. वक्षों का कसाव कम होकर लटक से गये है. लेकिन क्या मैं आज भी मर्द के लिए, वह भी एक बच्चे के लिए आकर्षण की पात्र हूं या उस बच्चे के लिए मेरा औरत होना ही काफी है. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है. ये क्या हो रहा है और मै क्या सोच रही हूं.” रति अपने से ही सवाल करती और खुद ही उसके जवाब पाने के लिए अपने ही द‍िमाग पर जोर देने लगी.

हम औरतों ने कभी किसी गैर मर्द की ओर नजर उठाकर भी देखा तो कितने ही लांछन लग जाते है. क्या हममें भावनाएं नहीं होती. क्या हमारा शरीर किसी सुख की कामना नहीं कर सकता. जहां औरत पति के साथ भी खुद पहल करके संबंध बनाना चाहे तो भी उसे बेशर्म कुलटा की उपाधि दी जाती है. हमारे देश, धर्म और समाज ने औरतों को जो संस्कार दिये है वे हम औरतों की भावनाओं का दमन ही करते है. कभी कुछ अलग करने की सोच उस औरत को समाज से बहिष्कृत ही कर देती है. सभी नैतिकता के पाठ औरतों के लिए ही है. अब भी कोई यह देख ले कि मै आईने के सामने बिना कपड़ों के खुद के शरीर को निहार रही हूं तो वे मुझे चरित्रहीन कहने से भी नहीं चुकेगे. पर मै क्यों न देखू. यह मेरा शरीर है. मैं यह क्या उटपटांग सा सोचने लगी. रति ने अपने आप को झकझोरा और इन विचारों से बाहर आयी. उसे अहसास हुआ की उसने अब तक कोई भी कपड़ा नहीं पहना है. उसका गिला बदन ऐसे ही सुख चुका था. वह जल्दी से अपने बेडरूम में गई और कपड़े पहन लिये.

दो दिनों तक जब मदन उससे पढ़ने नहीं आया तो रति समझ गई कि शायद मदन अपने ग्लानी की वजह से आ नहीं रहा है और जब तक उसे समझाया नहीं जायेगा, उसका अपराध बोध मिटाया नहीं जायेगा शायद ही मदन पढ़ने आ सके. तीसरे दिन रति अपने फ्लैट पर जाने से पहले मदन के घर गई और उसे कॉपी-किताबें लेकर उपर आने को कहा.

मदन सच में डरा हुआ था. उससे भावनाओं में बहकर गलती हो गई थी. वह अपने ही मन को समझाने लगा, “क्या करता मै भी, स्कूल में दोस्तों से वहीं बातें, दोस्तों ने एक बार एक बार पोर्न मुवी दिखाई, उसके बाद तो मै खुद चोरी छुपे कभी अपने घर में तो कभी मॅम के लॅपटॉप पर देखने लगा. खुद को कितना भी समझाता की अब नहीं देखूंगा पर मन भटक ही जाता है और हां ना करते हुऐ लॅपटॉप पर वह सब देख ही लेता हूं. इसलिए तो मै मॅम से थोड़ा छिटक कर बैठने लगा था. मॅम से दूरी बनाये रखता था. पर उस दिन मॅम ने हाथ पकड़ कर अपने एकदम करीब बिठा दिया और मॅम के जिस्म की खुशबू ने मुझे पागल बना दिया था. मॅम के जांघों पर हाथ तो स्वाभावित तौर पर बिना किसी गलत सोच के ही रखा हुआ था. पर जब सुरूर छाने लगा तो अपने आप ही मेरे हाथ की ऊंगलियों ने गलत हरकत कर दी. मै अपने पर काबू नहीं रख पाया. मै कैसे मॅम का सामना करूं. यह तो अच्छा हुआ मॅम ने मुझे मारा नहीं और ना ही मेरे पेरेन्ट्स को कुछ बताया. मॅम कितनी अच्छी है और मै उनके बारे में ऐसा कैसे सोच पाया. यह तो सारा दोष उस सपने का ही है. वह सपना नहीं आता तो मै कभी भी मॅम को इस नजर से नहीं देखता. अब मै कभी मॅम के सामने नहीं जाऊंगा. वो बुलाएगी तब भी नहीं. मै उनका अपराधी हूं. वे भले ही मुझे माफ कर दे पर मै कभी अपने आप को माफ नहीं कर पाऊंगा.”

मदन दो दिनों से यहीं सोचे जा रहा था. उसका कही भी मन नहीं लग रहा था. ना ही इन दो दिनों में दोस्तों से मिलने गया ना ही उसने कोई कार्टून फिल्म देखी, ना ही पोर्न और ना ही कोई विडीयों गेम खेल पाया था. बस अपने बिस्तर पर पड़े रहा. मां ने पूछा भी कि क्या तबीयत खराब है. माथा छू कर देखा, बुखार तो नहीं. अपनी मां की इस हरकत से मदन चीड़ सा गया. झल्लाते हुये मां को दो बातें भी सूना दी, “बोला ना कुछ नहीं हुआ है, मै ठीक हूं, बस मुझे अकेला छोड़ दो.” लेकिन तीसरे दिन जब रति उससे मिलने आयी और उसे बोली कॉपी-किताबें लेकर उपर आ जाना तो वह सिर्फ सिर हिलाकर रह गया और चुपचाप अपनी कॉपी-किताबें उठाकर उपर जाने लगा. दो दिनों तक बार-बार मॅम के यहां न जाने का प्रण लेने वाला मदन रति के एक बार बुलाने पर ही सीधे उसके पीछे चल पड़ा.

मदन रति के सामने सिर झुकायें बैठा था. रति अपने गाउन का फिता बांधते हुये उसके सामने आकर बैठ गई. “कब तक ऐसे बैठे रहोगे?” रति के सवाल के जवाब में मदन से सिर उठाया और रोनी-सी सूरत बनाते हुऐ बोला, “सॉरी मॅम, मुझसे गलती हो गई.”

रति उसे समझाते हुए बोली, “हां.. गलती तो हुई है. यह उम्र तुम्हारी पढ़ने लिखने की है. ना की किसी अन्य बातों पर ध्यान देने की. कब से देख रहे हो मेरे लॅपटॉप पर वैसी मुवी”

तब मदन ने बताया की वह एक महिने से रोज ही आधा एक घंटा मुवी देख रहा था. रति ने उससे सीधे सवाल किया, “मेरे साथ ऐसी हरकत करने का तुम्हारे द‍िमाग में आया कैसे?”

मदन ने सोच लिया था की वह मॅम से कुछ भी नहीं छुपाएंगा अत: अपने सपने में मॅम के साथ किये सहवास से लेकर तो उस घटना तक का सारा वाकया मदन ने रति को बता दिया.

रति ने उसे समझाया कि, यह उम्र बड़ी चंचल होती है और इस उम्र में विपरित लिंग के प्रती आकर्षण कुछ ज्यादा ही होता है. यहीं बात रति साइन्स के माध्यम से उदाहरण देकर भी समझाने लगी कि कैसे लड़के और लड़कियों में शारीरिक परिवर्तन होते है. यह परिवर्तन क्यों और किसलिए होते है साथ ही स्त्री-पुरूष के मिलन से क्या होता है क्या परिणाम सामने आते है. पूरा सेक्स एज्यूकेशन ही रति ने मदन को दे दिया था. मदन भी रति की सारी बाते ध्यान पूर्वक सून रहा था.

रति ने उसे समझाया कि, “यह भावना अति तिव्र होती है. खास कर पुरूषों में. वे अपने आप पर काबू नहीं रख पाते है और जैसे तुमने एक छोटा-सा अपराध किया है वैसे ही बड़े-बड़े अपराध कर बैठते है. कुछ पुरूष वासना में इतने अंधे हो जाते है और किसी भी महिला के साथ चाहे वह बच्ची हो या बुजूर्ग, वे विकृति भरा घृणित कार्य करते है. कभी अकेले तो, कभी अन्य पुरूषों को साथ में लेकर सामुहिक बलात्कार जैसा जघन्य अपराध करते है. इसीलिए आगे से ध्यान रखना और इसके बाद तुम पोर्न देखना बंद कर दोंगे और अच्छे सकारात्मक विचार ही अपने मन में आने दोंगे. अन्यथा यहीं छोटी गलती विकृति का रूप लेकर तुम्हे गलत मार्ग पर ले जा सकती है. समझे !”

मदन ने सिर हिलाकर हामी भरी और रति को आश्वस्त किया कि वह अब कभी पोर्न नहीं देखेंगा तथा अपने मन में कभी ऐसे विचारों को नहीं आने देंगा. तत्पश्चात वे दोनों अध्ययन और अध्यापन में मशगुल हो गये. करीब आठ दिनों तक सब कुछ सामान्य सा ही चल रहा है ऐसा वे एक-दूसरे को दर्शाते रहे. लेकिन दोनों के मन विचलित थे. कितनी भी कोशिश करे वह घटना और उसके बाद के उस विषय पर हुई बातचित दोनों को याद आती ही रहती थी. जबकि दोनों अगल-बगल बैठने के बजाय आमने-सामने बैठने लगे थे. दोनों ने अपने बीच एक सीमित अंतर रखना शुरू किया. मदन जब कुछ असहज सा नजर आने लगा तो रति ने पूछ ही लिया, “क्या हुआ है मदन? आज तुम कुछ परेशान से लग रहे हो.”

मदन ने बताया कि, आज फिर सपना आने से उसकी निंद खुल गई और उसी चिपचिपे पदार्थ से उसकी अंडरवियर गीली हो गई.

रति बोली, “मदन यह नैचरल है, जैसे हम पेशाब और मल त्यागते है वैसे ही जब हमारा शरीर सीमेन की निर्मिती करता है तो उसे बाहर तो आना ही है और वह इस तरह बाहर निकला. तुम इस बात को ज्यादा सोचो मत और पढ़ाई में ध्यान दो.”

मदन रति की बातों से आश्वस्त नहीं हुआ. उसने यह बात नहीं बताई की सपने में फिर उसे रति ही नजर आयी थी. रति का सपने में आना ही उसकी परेशानी का कारण था ना की सपने में स्खलित होना. यह तो समझ ही गया था की सिमेन निकलना यह नैचरल है और अब तक जो ज्ञान उसे मिला था उस आधार पर वह सोचने लगा, “या तो मुझे अपने हाथों का इस्तेमाल करना होगा या किसी के साथ संबंध करना होगा नही तो यह इसी तरह सपने में निकलेगा. नेचर ने इसी उम्र को चुना है नये निर्मिती के लिए वह चाहती है की इस उम्र में लड़का-लड़की का मिलन हो और वे नये जीव को जन्म दे. पर देश का कानून हमे 21 साल की उम्र तक शादी की इजाजत नहीं देता. परिवार वाले कहते है, पहले अपनी पढ़ाई पूरी करो, अपने पैरों पर खड़े हो जाओं तब शादी करना. तब तक सब्र करो. कैसे सब्र करे?” यही बचकाने से सही-गलत विचार बार-बार मदन के मन में आने लगे.

रति की भी स्थिति मदन से अलग न थी. सात वर्षो तक तो उसे कभी लगा नहीं की उसे पुरूष का सहवास चाहिए. लेकिन मदन के छू लेने, उससे उस विषय पर बात करने तथा मदन उसके लॅपटॉप में जो देख रहा था वह चेक करने के चक्कर में उसने भी वह देख लिया था. अत: उसके मन की सोई हुई सुप्त इच्छा बार-बार उछले मार रही थी. पर एक संस्कारी स्त्री होना, उस पर भी उसका शिक्षिका होना उसकी काम भावनाओं का दमन कर रही थी. जहां वह मदन को ऐसे किसी भी सोच से बचने के लिए समझा रही थी तो वह सिर्फ मदन के लिए नहीं था बल्कि उसके अपने लिए भी था. वह खुद को भी यही बातें समझाने की कोशिश कर रही थी.

रोज की तरह मदन पढ़ने आया तो रति बोली, “मदन, कल जो पढ़ रहे थे आज तुम उसी की और अच्छे से प्रैक्टीस करो. मुझे पार्टी में जाना है तो मै नहाने जा रही हूं. कुछ समझ में ना आये तो मेरे नहा कर आने के बाद मै तुम्हें समझा दूंगी” कह कर रति बाथरूम में घुस गई.

उसके बाथरूम में जाते ही मदन बेचैन हो गया. उसका मन उससे बातें करने लगा, “मैने सपने में मॅम को जैसे देखा वह सच में वैसी ही दिखती है क्या? क्या करू ? जाकर देखूं. नहीं… नहीं यह ठीक नहीं. लेकिन मॅम जल्दी ही बाहर आ जायेगी तो मै देख नहीं पाऊंगा. यहीं मौका है.” वह उठा और दबे पांव बाथरूम के दरवाजे के सामने खड़ा हो गया. अब भी उसका मन हां-नहीं में उलझा हुआ था. शरीर बेचैनी और डर से कांप रहा था. सांसे तेज हो गई थी. हाथ भी थरथरा रहे थे तो उसने दोनों हाथों की उंगलिया एक-दूसरे में फंसा कर हाथ मसलना शुरू कर दिया.

वह खुद को रोक नहीं पाया और उसने अपनी आंख की-होल से सटा दी. रति की पीठ उसे नजर आयी. की-होल से वह सिर्फ रति का कंधे ले लेकर कमर तक का ही हिस्सा देख पा रहा था. वह बुदबुदाया, “मॅम पलटो ना, सामने से देखने दो” उसी समय रति को एहसास हुआ की शायद बाथरूम के दरवाजे के बाहर कोई खड़ा है और उसे देख रहा है. वह एक झटके से पलटी और दरवाजे का हैंडल घुमाकर दरवाजा खोल दिया. यह सब इतनी तेजी से हुआ कि, मदन को सीधे खड़े होने का मौका तक नहीं मिला. अब मदन के सामने रति साक्षात वैसी ही खड़ी थी जैसी उसने सपने में देखा था. रति भी यह भूल गई की उसने दरवाजा तो खोला है पर वह किस अवस्था में है. कुछ क्षणों तक दोनों एक दूसरे को देखते रहे. लेकिन जैसे ही रति को एहसास हुआ कि उसके तन पर एक भी कपड़ा नहीं है उसने जोर से दरवाजा बंद कर दिया और दरवाजे से पीठ लगाकर खड़ी हो गई. उसकी सांसे तेज हो गई थी. रति का भी शरीर कांपने लगा था. उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या करे. मदन को डांटे, मारे या… या फिर उसे … वह आगे सोचना नहीं चाहती थी. उसने अपनी सोच को विराम दिया. वह फफक फफक कर रोने लगी. क्यों रो रही है यह उसकी भी समझ में नहीं आ रहा था.

मदन भी कुछ देर तक स्तब्ध खड़ा बंद दरवाजे को घुरता रहा और सोचने लगा. अब तो मॅम उसे मार ही डालेगी. उसने जो हरकत की है वह बिल्कुल भी माफी के लायक नहीं है. यहां से भागने में ही भलाई है. मॅम कपड़े पहनकर बाहर आये उससे पहले भाग जा. यहीं सोचते हुये मदन तेजी से वहां से अपनी कॉपी-किताबें लेकर निकल गया.

इस घटना को घटीत हुए आठ दिन हो गये थे. ना ही मदन उपर पढ़ने आया था और ना ही रति उसे बुलाने नीचे गई थी. इन आठ दिनों में दोनों ने एक-दूसरे का चेहरा तक नहीं देखा था. सीढ़ियों पर चढ़ते उतरते हुए कभी मदन रति को देख लेता तो झट से भाग जाता था. वह रति का सामना ही नहीं करना चाहता था. लेकिन रति की स्थित कुछ और ही थी. वह अपने आप से लढ़ रही थी. उसका खुद से ही संघर्ष चल रहा था. मदन की हरकत ने उसे आहत तो कर दिया था किन्तु कहीं ना कहीं रति की दबी हुई भावना भी हिलोरे ले रही थी. वह चाह कर भी मदन के प्रति अपने मन में नफरत और गुस्से को उभरता हुआ नहीं देख रही थी.

वह सोचने लगी, “मैने मदन को कितना समझाया, लेकिन वह अपने पर काबू नहीं रख पा रहा है, उसे तो मैने बच्चे की तरह ट्रिट किया, वह मेरी गोद में सिर रखकर सोता था. मै भी कितना सुकून महसूस करती थी. उसने मेरे अकेलेपन को खत्म किया था. वह हमेशा खाली समय में यहां रहता था. किसी भी कमरे में आने-जाने पर उसे रोक नहीं थी. मुझसे बातें करते रहता. हंसी-मजाक सब चलता था. लेकिन वह अब आ नहीं रहा है. ठीक है नहीं आ रहा. उसने अब आना भी नहीं चाहिए. पर मै फिर इतना बेचैन क्यूं हो रही हूं ? क्या सच मे मुझे उसकी आदत पड़ गई है ? उसका मेरे आस-पास होना मेरे लिए सुखद है. वह नहीं आ रहा है तो मै इतनी दु:खी क्यूं हूं ? क्यों नहीं खुश रह पा रही हूं ? क्यों मेरा मन कहीं लग नहीं रहा है ? क्या मै उससे प्यार…. नहीं नहीं ये तो मुमकीन ही नहीं. फिर उससे यह लगाव क्यूं ? क्या मैं खुद भी चाहती हूं की वह….. नहीं यह तो सोचना भी पाप है.”

उसके बाद जैसे जैसे एक-एक दिन और बितता रति का अकेलापन बढ़ता ही जा रहा था. यह अकेलापन उसे निराशा की गहरी खाई में ले जा रहा था. वह फिर अपने अतित में खोती चली गई. जहां उसके पति ने उससे बेवफाई की थी, फिर भी रति ने सुधरने का मौका दिया था. पर कुत्ते की दुम कभी सीधे होते हुए देखी है. उस पर स्कूल के एक बच्ची के साथ शारीरिक शोषण का आरोप लगा और उसे स्कूल से निलंबित कर दिया गया. रति के कानों तक जब यह बात पहुंची तो उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ व अपने पति की असलियत अच्छी तरह जान चुकी थी. लेकिन उसका पति बेशर्मो की तरह जीवन जी रहा था.

वह सोचने लगी, “कैसे जीते है ये मर्द ऐसा घृणित कार्य करके भी और एक मै हूं जो पीछले सात सालों से अपनी इस जिंदा लाश का बोझ ढोये जा रही हूं. गलती मेरे पति ने की और सजा यहां अकेले, तनहा, निरस सा जीवन मै गुजार रही हूं. कोर्ट में तलाक का केस चालू रहते हुए ही उसने दूसरी शादी भी कर ली थी. एक साल भी अकेला नहीं रहा वह. जबकि मै यहां इस अनजान शहर में आकर बस गई और अपने नसीब को दोष देते हुए निरस सी जिन्दगी जी रही हूं. नहीं मुझे भी हक है कि मै अपनी खुशियां पा सकूं. मेरे इस थूलथूले जिस्म को फिर से छरहरा कर सकूं. एकदम आजाद और खुशनुमा जिन्दगी बिताऊं. वह कमिना जिससे चाहे सेक्स कर सकता है और मै संस्कारों के बोझ तले दबकर, समाज के रीति रिवाजों से डर कर अपने तन और मन को जो चाहिए वह भी ना दूं. मै अगर अपनी मर्जी से अपनी जिन्दगी ना जी सकी तो क्या मतलब है ऐसी जिन्दगी का. हक है मुझे खुश रहने का मनमर्जी से जीने का.” यह सब सोचते हुए रति आंदोलित होते जा रही थी. अजीब सी कशमकश थी. उसके मन में यह लड़ाई नैतिकता एवं संस्कार के विरूद्ध निजी सुख एवं स्वैर जीवन के बीच हो रही थी.

यह ऐसी बातें थी जो वह किसी के साथ बांट भी नहीं सकती थी. जिससे उसका मन हलका हो. वह किसी नतिजे पर पहुंच सके कि, उसे क्या करना चाहिए. संस्कार या स्वैर जीवन इनमें से किसे चुने ? नैतिकता या सुख इनमें से किसका दामन थामें रखें. वह फैसला नहीं कर पा रही थी. उसे मदन की तीव्रता से याद आने लगी. इस विषय पर उसी से बातें कर मन हलका कर सकती थी. उसने सोच लिया कि वह मदन को बुलाएंगी उसी से बातें करेंगी. उसे अपनी इस दूविधा से अवगत कराएंगी. उसी से पूछेंगी की क्या करना चाहिए इस स्थिति से निकलने के लिए.

लगातार दो दिनों तक रति सीढ़ियों से उपर आते हुए मदन के फ्लैट के दरवाजे के सामने रूकी, कुछ क्षण इंतजार किया हिम्मत जुटाकर डोर बेल बजाने का. लेकिन बिना बेल बजाये ही वह उपर आ गई थी. तीसरे दिन जब वह स्कूल से वापस आयी और सीढ़ियां चढ़ रहीं थी तभी उसे मदन सीढ़ियों से उतरते हुआ दिखा. रति को उपर आते देख मदन नीचे उतरने की जगह फिर से उपर चढ़ने लगा और अपने फ्लैट का दरवाजा खोलने का नाटक करने लगा.

रति उसके एकदम पीछे जाकर खड़ी हो गई और अत्यंत ही धीमी आवाज में बोली, “मदन उपर आओं, तुमसे बात करनी है” और अपने फ्लोअर पर जाने वाली सीढ़ियां चढ़ने लगी. मदन ने उसकी आवाज सून ली थी. वह रति के पीछे पीछे ही उसके फ्लैट में दाखिल हुआ. “तुम बैठो मै पानी लेकर आती हूं” कहते हुए रति किचन में चली गई. थोड़ी देर बाद दो गिलास पानी लाकर उसने टी-टेबल पर रखा और सोफे पर बैठ गई. मदन उसके सामने वाले सोफा चेयर पर बैठा हुआ था. उसका सिर झुका हुआ, नजरे फर्श पर जमी हुई थी. रति ने पानी पिया पर मदन ने दूसरे गिलास को देखा तक नहीं. रति भी चुप थी कि क्या बोले, कैसे बात की शुरूआत करें. दोनों आमने-सामने ऐसे ही दस मिनट तक बैठे रहे. ना रति कुछ बोल पा रही थी ना मदन अपना सिर उठाकर रति की ओर देखने के लिए तैयार था. उसे तो लग रहा था अभी मॅम उसे डांटेगी, फटकारेगी. वह अंदर से पूरी तरह डरा हुआ था.

आखिर रति ने चुप्पी तोड़ी बोली, “मदन, तुमने ऐसा क्यों किया?” रति के इस सवाल से तो मदन और भी ज्यादा डर गया वह समझ गया की मॅम उसकी की-होल से छांकने वाली हरकत के बारे में ही बात कर रही है. वह एकदम से पूरी तरह खड़े न होते हुए धम्म से अपने घुटने फर्श पर टिकाते हुए घसीटता हुआ ही रति के करीब पहुंचा और अपना सिर उसके चरणों में रखकर रोने लगा और साथ ही “मुझे माफ कर दो, मुझे माफ कर दो” दोहराएं जा रहा था. आंसू की धारा तो रति के आंखों से भी बह निकली.

उसने मदन को कंधों से पकड़कर उठाया और अपने करीब सोफे पर बिठाते हुए बोली, “यहां बैठों” वह यंत्रवत-सा अपने निढ़ाल शरीर के साथ वहां बैठ गया. रति ने उसका सिर अपनी गोद में लिया और उसके बालों पर हाथ फेरते हुए बोली, “मदन मैं बहुत ही उलझन में पड़ गई हूं. तुमने मेरी शांत और सुकून भरी जिन्दगी को अशांत बना दिया है. क्यूं किया तुमने ऐसा ? तुम्हारी हरकतों ने मुझे बेचैन कर दिया है. मै तुमसे कितनी बड़ी हूं. यदि मुझे बच्चा होता तो वह तुमसे थोड़ा ही छोटा रहता. मै तुम्हें उसी तरह देखती थी. तुम्हारे बालों में फिरने वाले मेरे हाथ ममत्त्व भरे होते थे. फिर तुमने मुझे उस एहसास के छूकर मेरे पवित्र एहसास का खून क्यों किया ? मैने तुम्हे समझाया भी था की, यह सब गलत है. तुम्हारी उम्र के बच्चों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है. तुम्हारा आकर्षण कोई तुम्हारी हमउम्र लड़की होनी चाहिए थी. लेकिन मै तो ऐसी बेडौल, चालीस की उम्र में पैतालिस की दिखने वाली औरत हूं, फिर तुम क्यों मेरी ओर आकृष्ट हुए. मैने तो कभी भी उस एहसास से तुम्हारे साथ कोई बर्ताव नहीं किया. फिर तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ?” जब रति ने यही सवाल दोहराया तो इस बार मदन के मुंह से आवाज निकली, “सपना.. सपना, मॅम”

“हां तो मैंने समझाया था की ऐसा होता है, तुम्हें अपने दिमाग से वह सब निकाल देना चाहिए था.”

“मैंने बहुत कोशिश की मॅम, पर.. आप फिर दूसरी बार भी मेरे सपने में आयी और मैंने आपके साथ वह सब किया. मै खुद को रोक नहीं पा रहा था मॅम और फिर जैसा मैंने आपको सपने में देखा वैसा ही मै आपको सच में देखना चाहता था इसीलिए मैंने उस दिन बाथरूम के की-होल से देखने की कोशिश की. मै क्या करू मॅम मै अपने आप पर काबू नहीं कर पा रहा हूं. मेरा एक मन मुझसे कहता भी है कि यह सब गलत है. जब आपने बाथरूम का दरवाजा खोला उसके बाद का सीन मेरे दिलो-दिमाग पर इस कदर छा गया है कि मेरा कहीं भी मन नहीं लग रहा है. मुझसे फिर कोई गलती ना हो जाये इसलिए मैं आपकी तरफ देखना भी टाल रहा था. आपके सामने आने से भी डर रहा था. लेकिन जब आपने खुद बुलाया तो मै किसी अंजान डोर से बंधा हुआ यहां चला आया. और अब भी मै आपसे नजरे नहीं मिला पा रहा हूं.”

मदन और रति दोनों ही अपने मन की बातें खुलकर कर रहे थे. जिससे उनका मन हलका हो रहा था. रति बोली, “मैंने भी सोचा था मै तुमसे अब कभी बात नहीं करूंगी, तुम्हारा मुंह तक नहीं देखूंगी. पर इन आठ दिनों की दूरी ने मुझे एहसास दिलाया की मै तुमसे ज्यादा समय दूर नहीं रह सकती. तुम्हारी आदी हो चुकी हूं. तुम दिन भर मेरे घर में इधर से उधर घुमते रहते हो, हंसी-मजाक करते हो मुझे अच्छा लगता था. मेरे सूने जीवन में बहार आ जाती थी.” रति थोड़ी देर रूकी कुछ सोचती रहीं और फिर आगे बोली, “मदन तुम्हारी इन हरकतों ने मेरे मन में दबे हुए दूसरे अहसास को जगा दिया है. मुझे भी लगने लगा की मै भी खूबसूरत दिखूं, खुश रहूं, जिन्दगी का हर वह मजा लूं जो मै आज तक नहीं ले पायी. सुख के सागर में गोते लगाऊं” कहते कहते रति ने मदन का माथा चुम लिया.

रति की इस हरकत से मदन को झटका लगा वह एक झटके से उठ बैठा और रति की आंखों में आंखे डालकर देखने लगा. कुछ क्षणों तक दोनों एक-दूसरे की आंखों में ही देखते रहे. पूरे कमरे में एकदम शांति थी. कही कोई आवाज नहीं. मदन के लिए रति का उसे चूमना मदन की समझ में नहीं आ रहा था. पर उसके दिलो-दिमाग में तो एक ही अहसास था. उसकी हिम्मत बढ़ी उसने अपने होंठ रति के होंठों पर रख दिये. रति ने कोई विरोध नहीं किया. लेकिन एक क्षण बाद उसने मदन को अपने से अलग किया और उठ खड़ी हुई. पहले तो मदन की समझ में नहीं आया कि अब मॅम क्या करेंगी या उसे क्या करना चाहिए. वह वैसे ही बैठा रहा. रति ने उसके दोनों हाथ पकड़ कर उसे उठाया. दोनों एक-दूसरे की आंखों में देख रहे थे. कुछ न कहते हुए भी उनकी आंखें बातें करने लगी थी. बिना इशारों के ही उनकी आंखों ने उन्हें बता दिया था की उन्हें आगे क्या करना है. दोनों एक-एक कदम बढ़ाते हुए बेड़ की ओर बढ़ने लगे. इंसान अपने मन और इच्छाओं के सामने कितना कमजोर है यह मदन और रति साबित करने जा रहे थे.

बिस्तर पर नैतिकता और संस्कार रौंदे जा रहे थे. सुख और स्वैर जीवन का उन्माद अपने चरम पर था. भविष्य में इस अजीब से रिश्ते के दुष्पर‍िणामों से बेखर दोनों अपनी स्वार्थपूर्ण वासना को तृप्त करने में लगे हुए थे. वे भूल गये थे कि जब उनके इस रिश्ते की जानकारी मदन के अभिभावकों को होगी तो वे रति पर एक ना-बालिग बच्चे का शोषण करने का इल्जाम भी लगा सकते है और जब रति पर सारा इल्जाम आएंगा तो क्या रति इसे चुपचाप कबुल कर लेगी या वह भी औरत के प्रति कानून की कृपादृष्टि को देखते हुए बोलेगी कि, एक पुरूष ने एक अकेली असहाय, निराधार औरत का फायदा उठाते हुए ब्लैकमेल कर उसका शोषण किया. किसकी बात को यह समाज, यह कानून सच मानेगा. कैसे फैसला होगा की किसने किसका शोषण किया ?