मेरी अरुणी - 7 Devika Singh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मेरी अरुणी - 7

अरुंधती ही मृणाल की आरुणि है। जब मृणाल ने अरुंधती को उलझा हुआ देखा, तो उसे बांहों में भर कर पलंग पर बिठा दिया और खुद उसके पैरों के पास बैठ गया। बोला, “तुम मेरे लिए सदा से एक पहेली रही। जैसे कि तुम अरुंधती तो हो, लेकिन कुछ और भी हो। फिर उस सुबह जब तुम्हें देखा, तो ऐसा लगा कि जैसे मैंने तुम्हें जान लिया। और फिर मेरे मन ने तुम्हें यह नाम दिया। तुम इस दुनिया की लिए चाहे जो भी हो, मेरे लिए आरुणि ही रहोगी, मेरी आरुणि!”

“फिर तुम लेने किसे गए थे?” अरुंधती के इस सवाल पर मृणाल हंसता हुआ खड़ा हो गया। अपने वॉलेट से छोटा सा लिफाफा निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाता हुआ बोला, “जब पोट्रेट का काम पूरा हो जाने की बात मैंने रानी मां को बतायी, तो उन्होंने फ्रेम कराने की जिम्मेदारी भी मुझे सौंप दी। मुझे भी लगा कि यही सही होगा। तुम दोनों बहनों की पोट्रेट बनाने के साथ मैंने अपनी आरुणि की भी एक स्केच बनायी थी। और उस स्केच के साथ मैंने कुछ प्लान किया था। अधिक क्या बोलूं, तुम खुद ही देख लो ना!”

कांपती उंगलियों से अरुंधती ने लिफाफा खोला। लिफाफे में सोने का गोल लॉकेट था। अरुंधती ने लॉकेट खोला, तो उसकी आंखें छलक पड़ीं। उसने देखा, लॉकेट में सूरज की रोशनी के गोल घेरे के भीतर अरुंधती का चेहरा मुस्करा रहा है।

वह बस इतना कह पायी, “तुमने कुछ कहा क्यों नहीं?”

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“जरूरी तो नहीं, जज़्बातों को हर बार शब्द ही मिलें

कभी यूँ भी हो

कि हम मौन रहें

और तुम सुन लो !”

अरुंधती मृणाल की बांहों में समा गयी। बोली, “मृणाल, मैं क्या बोलूं!”

“तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है। तुम्हें बस सोने की जरूरत है, वरना जब कल रानी मां आएंगी, तो तुम्हारी आंखों के घेरे उन्हें परेशान कर देंगे।”

अरुंधती के होंठों पर एक मीठी मुस्कान खेल गयी। उस रात अरुंधती मृणाल की बांहों का तकिया बना कर तुरंत ही सो गई। मृणाल भी अरुंधती की बंद आंखों से गिरते आंसुओं को पोंछता-पोंछता जल्दी ही सो गया। अगली सुबह अरुंधती की आंख दरवाजे पर हुई दस्तक से खुली। मृणाल गहरी नींद में सो रहा था। अरुंधती ने झुक कर उसके माथे को चूम लिया। फिर दबे कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़ी ताकि मृणाल की नींद ना खराब हो।

दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि सामने शांतनु खड़ा मुस्करा रहा है। अपने फीयांसे शांतनु को सामने देख कर अरुंधती घबरा गयी। इससे पहले वह कुछ कहती शांतनु ने उसे गले लगा लिया। बोला, “आई एम सो सॉरी बेबी!”

अरुंधती उससे अलग होते हुए बोली, “सॉरी फॉर वॉट!”

“वो नानी मां नहीं...”

“आगे कुछ मत कहना शांतनु। मैं जानती हूं कि रानी मां ठीक हैं!”

“ऑफकोर्स बेबी!” इतना कहते हुए शांतनु कमरे के अंदर आया और सोफे पर मृणाल को बैठा देख चौंक पड़ा। चौंकी तो अरुंधती भी, लेकिन उसने अपने मन के भावों को दबा लिया। वह समझ गयी कि मृणाल ने उनकी बातें सुन ली होंगी। इसलिए सिचुऐशन संभालने के लिए वह बिस्तर से उठ कर सोफ़े पर बैठ गया होगा। मृणाल भी शांतनु को देख कर कुछ हैरान सा हुआ। शांतनु ने मृणाल की तरफ हाथ बढ़ाया, “हेलो, आई एम शांतनु। नाम तो सुना होगा?”

“जी नहीं!” मृणाल के इस जवाब से शांतनु झेंप गया। बोला, “ओह! मुझे लगा कि अरुंधती ने आपको मेरे बारे में बताया होगा!”

इस बात पर मृणाल ने ऐसे अभिनय किया जैसे उसे कुछ अभी-अभी याद आया हो। शांतनु का हाथ थामते हुए बोला, “जी-जी, अरुंधती ने बताया था। आई एम सॉरी। मुझे भूलने की आदत है।’’

“लेकिन भाई, यह मत भूल जाना कि अरुंधती मेरी है!” शांतनु की इस बात का मृणाल ने कुछ जवाब नहीं दिया। वह अरुंधती की तरफ पलटा और बोला, “मैं एक्सीडेंट साइट पर जा रहा हूं!”

“वहां जाने की जरूरत नहीं है। मैं वहीं से आ रहा हूं। वहां का काम पूरा हो गया है!” शांतनु ने बेड पर लेटते हुए कहा। अरुंधती यह सुनते ही चीखी, “वे ऐसा कैसे कर सकते हैं! तुमने कुछ पूछा क्यों नहीं!”

शांतनु ने लेटे-लेटे ही जवाब दिया, “ऑफकोर्स पूछा! इंस्पेक्टर ने बताया कि वहां उन्हें कुछ नहीं मिला, इसलिए आसपास के गांवों में खोजबीन चल रही है।” इतना कह वह रुका और मृणाल की तरफ देखते हुए बोला-“मिस्टर मृणाल, इफ यू डॉन्ट माइन्ड, मैं अपनी मंगेतर के साथ अकेले में कुछ बात करना चाहता हूँ!”

“जी!” कमरे से बाहर निकलते समय बस एक पल के लिए मृणाल की आँखें अरुंधती से मिली और एक दर्द का सागर लहरा गया। अरुंधती चाहकर भी कुछ नहीं कह पाई।

उसके जाते ही शांतनु ने पूछा-“ये पेंटर यहाँ क्या कर रहा था?”

“वह मेरा दोस्त है! और वही कर रहा था जो ऐसे समय में दोस्त करते हैं।”

शांतनु उठ खड़ा हुआ और अरुंधती की दोनों बाजुओं को पकड़कर अपनी तरफ खींचता हुआ बोला-“किसी लड़की के बेडरूम में बैठकर ऐसे दोस्त क्या करते हैं, मुझे मत सिखाओ।”

“सब मर्द एक जैसे नहीं होते!”

“लगता है, मेरी गैर मौजूदगी में मर्दों पर रिसर्च कर लिया तुमने!”

अरुंधती अपनेआप को उससे अलग करते हुए बोली, “शांतनु ये समय इन सब बातों का नहीं है। मुझे अभी फ्रेश होकर ऑफिस भी जाना है। इस दुर्घटना का काम पर असर नहीं होना चाहिए!” अरुंधती ने कहा और बिना शांतनु की तरफ देखे बाथरूम में घुस गई। लेकिन वह शांतनु की आँखों में उतरता गुस्सा नहीं देख पाई।

तैयार होकर जब अरुंधती नीचे पहुँची तो मृणाल को ड्राइवर से बातें करते हुए देखा। मृणाल ने उसे देखते ही बोला-“तुम ऑफिस अकेले नहीं जाओगी!” अरुंधती उसे देखती रह गई। मृणाल ने साथ चलने के लिए पूछा नहीं, वह साथ चल पड़ा। क्योंकि वह जानता है कि इस समय साथ चलना ही बहुत है।

रास्ते में ड्राइवर की उपस्थिति में मृणाल चाहकर भी अरुंधती से कुछ कह नहीं पाया। लेकिन कनखियों से उसका सफेद चेहरा देखकर जान लिया कि वह बहुत डरी हुई है। धीरे से उसने अरुंधती की ठंडी हथेली थामकर दबा दी, जब तक कार ऑफिस पहुँच नहीं गई, उसकी काँपती हथेली मृणाल की मजबूत पकड़ में बंद रही।

ऑफिस पहुँचकर जैसे ही अरुंधती गाड़ी से उतरी, वहाँ मौजूद औरतों और आदमियों ने उसे घेर लिया। वे सभी रानी माँ के लिए चिंतित थे। अरुंधती कभी किसी औरत के आँसू पोंछती तो कभी किसी आदमी का हौसला बढ़ाती। उनके बीच जैसे वो अपना दुःख भूल गई हो। मृणाल अरुंधती के भीतर एक अच्छे लीडर के सभी गुणों को देख पा रहा था।

तभी मृणाल को पीछे से रघु की आवाज सुनाई पड़ी-“राम-राम सरकार!”

“अरे रघु! तुम कब आए?”

“हम तो यही खड़े थें। बस आपकी नजर में देर से आए!”

“सही कहते हो भाई!” इतना कहकर मृणाल फिर अरुंधती को देखने लगा। लेकिन वो यह नहीं देख पाया कि रघु उसे अरुंधती को देखते हुए देख रहा है।

चंद मिनटों बाद रघु फिर बोला-“गहरी दोस्ती हो गई है आप दोनों में!”

“क्या मतलब?” मृणाल ने चौंककर पूछा।

रघु कपटता से हँसते हुए बोला-“उस रात जंगल में मैंने आपको और दीदी माँ को देखा था!” मृणाल और रघु की नजरें मिली और इससे पहले कि मृणाल कुछ बोलता, अरुंधती की आवाज कान में पड़ी, “मृणाल, तुम मेरी कैबिन में चलकर बैठो। मैं अभी आती हूँ!” अरुंधती की आवाज सुनते ही रघु तुरंत वहाँ से हट गया। लोगों की नजरें खुद पर जमी देखकर मृणाल ने भी वहाँ से हटना ही ठीक समझा।

आसमानी रंग के उस केबिन में घुसते ही मृणाल की नजर दीवार पर लगी पेंटिंग पर थम गई। बादलों पे नाचती हुई उस लड़की की पेंटिंग मृणाल ने ही कुछ वर्षों पूर्व बनाई थी। ठक-ठक, मृणाल को लगा कि टेबल के नीचे से कोई आवाज आई हो। उसने झुककर नीचे देखा तो एक आठ-दस साल की बच्ची को देखकर चौंक पड़ा। उस बच्ची की पीठ मृणाल की तरफ थी। मृणाल ने उसे बाहर निकालने के लिए हाथ लगाया तो वो चीख पड़ी। मृणाल ने तुरंत अपना हाथ खींच लिया और बोला-“बेटा, तुम कौन हो?”

वो बिना पलटे ही बोली-“केसर!”

“पर तुम यहाँ क्यों बैठी हो?”

“मैं दीदी माँ को देखे बिना कहीं नहीं जाऊँगी! सब कह रहे हैं, रानी माँ मर गईं। अगर दीदी माँ मर गईं तो माँ मेरी पढ़ाई छुड़ा देगी। फिर मैं डॉक्टर कैसे बनूँगी?”

“केसर, तुम्हारी दीदी माँ कभी नहीं मरेंगी!” तभी पीछे से अरुंधती की आवाज आई। उसकी आवाज सुनते ही बच्ची तुरंत बाहर आ गई। अरुंधती उसे गोद में बैठाकर दुलारने लगी कि तभी उसकी माँ कमरे में आई। अरुंधती के गालों को चूमकर केसर अपनी माँ के साथ चली गई।

“कहने में अजीब लग रहा है, लेकिन अगर उस दिन अरुणिमा की जगह तुम्हें कुछ हो जाता तो इस कंपनी, इस गाँव और इन लोगों का बहुत नुकसान हो जाता। तुम और रानी माँ तो जड़ हो इस कंपनी की!”

“हम्म!” अरुंधती केवल इतना बोली और अपने खुले बालों का जूड़ा बनाने लगी। मृणाल उसे ऐसा करते हुए एकटक देखने लगा। थोड़ी देर बाद जब अरुंधती ने सामने देखा तो मृणाल को अपनी तरफ देखता हुआ पाया। बोली-“क्या देख रहे हो?”

“तुम्हें!”

“मुझे क्या पहली बार देखा है?

“तुम एक ऐसी पेंटिंग हो जिसे जितनी बार देखो, उसमें एक नया रंग नजर आता है!”

“अच्छा जी!” अरुंधती अपनी कुर्सी से उठकर मृणाल के करीब आकर टेबल पर बैठ गई। उसे अपने इतना करीब आया देखकर मृणाल को रघु की बात याद आई और वह असहज हो गया। मृणाल ने बात बदलने के लिए पूछा-“मेरी पेंटिंग तुम्हारे ऑफिस में क्या कर रही है?”

“मुझे अरुणिमा ने गिफ्ट की थी ये पेंटिंग!” उसी समय अरुंधती का मोबाईल बज उठा। उसने फोन उठाकर देखा तो स्क्रीन पर शांतनु का नंबर फ्लैश हुआ। एक गहरी साँस लेकर उसने फोन उठाया। लेकिन शांतनु की बात सुनते ही उसके चेहरे का रंग बदल गया।

“आती हूँ!” कहकर उसने फोन रखा और उठने को हुई कि उसका सिर घूम गया। यदि मृणाल थाम न लेता तो वो नीचे गिर पड़ती।

परेशान मृणाल ने पूछा-“क्या हुआ अरुंधती?”

“मनोहर मिल गया है और..”

“और क्या?”

“लौटते समय गाड़ी नानी माँ ड्राइव कर रही थीं। मनोहर तो शिमला में वकील अंकल के घर पर था। नानी माँ ने अंकल को कुछ पेपर तैयार करने को कहा था, जिसे लेकर आने के लिए मनोहर वहाँ रुका।”

“पर वह अब तक कहाँ था? क्या उसे हादसे की जानकारी नहीं थी?”

“मुझे नहीं पता! मुझे नहीं पता! वकील अंकल ने मुझे बंगले पर बुलाया है!” कहते-कहते अरुंधती रो पड़ी। मृणाल ने उसे अपनी बाँहों में भींच लिया। बोला-“तुम हिम्मत मत हारो! रानी माँ ठीक हैं! पहले ही कोई राय मत बनाओ। हम वहाँ चलते हैं!” मृणाल के समझाने पर अरुंधती ने खुद को संभाला और दोनों ऑफिस से बाहर निकल पड़े। पूरे रास्ते अरुंधती मृणाल के कंधे को अपने आँसुओं से भिंगोती रही। मृणाल कभी उसके माथे को सहलाता, कभी उसके आँसू पोंछता। दर्द ने दोनों को ही ड्राइवर की मौजूदगी के प्रति बेपरवाह कर दिया।

वे कुछ ही घंटों में बंगले पर पहुँच गए। बिना एक पल गवाए अरुंधती अंदर भागी। चिंतित मृणाल उसके पीछे दौड़ा। वो कमरे में पहुँची, तो धीमी रोशनी जल रही थी। उसने देखा कमरे में आसपास स्वर्णा और रवि बैठे है और वकील साहब शांतनु के कान में कुछ कह रहे हैं। वहीं सोफ़े पर सिर से पैर तक चादर ओढ़े कोई सो रहा है। शरीर के आकार से वह औरत ही लगी। लेकिन उसका पेट बेहद फूला-फूला लगा। कमरे के कोने में कुछ पुलिसवाले भी चिंतित खड़े दिखे। तभी पीछे से एक परिचित पुरुष की आवाज आई। अरुंधती ने देखा, वह मनोहर है।

“ओ माई! मनोहर आप! नानी माँ कहाँ हैं?” मनोहर की आँखें सोफ़े पर जाकर ठहर गईं। अरुंधती को कुछ समझ नहीं आया। मृणाल चुप ही रहा। तभी कमरे में वकील साहब की गंभीर आवाज गूंजी-“मेरे पास आओ अरुंधती!” अरुंधती ने उनकी आवाज को सुनकर भी अनसुना कर दिया। वह जैसे आगे बढ़ना ही नहीं चाहती थी। मृणाल आगे बढ़ने को होता उससे पहले ही शांतनु ने आगे बढ़कर अरुंधती को थाम लिया।

जब बहुत कहने पर भी अरुंधती आगे नहीं बढ़ी तो शांतनु लगभग धकेलता हुआ उसे आगे ले गया। उसकी इस हरकत पर मृणाल को गुस्सा भी आया। लेकिन वह क्या करता। दुनिया की नजर में शांतनु अरुंधती का मंगेतर है और मृणाल, कुछ नहीं।

वकील अंकल ने फिर कहा-“अरुंधती चादर हटाओ!” लेकिन अरुंधती नहीं हिली। इस पर शांतनु ने आगे बढ़कर खुद ही चादर हटा दी। उस शरीर पर नजर पड़ते ही अरुंधती चीख के साथ बेहोश होकर गिर पड़ी।

किसकी लाश थी चादर के नीचे? क्यों चीखी थी अरुंधती? एक तरफ शांतनु अौर एक तरफ मृणाल, अरुंधती इनमें से किसे चुनेगी?

इन सवालों के जवाब अगले पार्ट में