मेरी अरुणी - 9 - अंतिम भाग Devika Singh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

मेरी अरुणी - 9 - अंतिम भाग

कमरे में उजाला होते ही सभी की नजर सामने खड़ी रानी मां पर गयी। उनके पीछे पुलिस इंस्पेक्टर के साथ कुछ और पुलिस वाले भी खड़े दिखे।रानी मां के बगल में खड़े शांतनु के पिता ने सिर झुका रखा था। उन सभी को यों अचानक अपने सामने देख शांतनु घबरा उठा। उसने पहले पलट कर मनोहर और फिर वकील साहब को देखा।

रानी मां की आवाज गूंजी, “मनोहर और वकील साहब की तरफ मत देखो शांतनु। आज भी वे मेरे लिए ही काम करते हैं। वे बस तुम्हारे साथ होने का नाटक कर रहे थे। कुछ लोग और कुछ रिश्ते आज भी बिकाऊ नहीं हैं!”

“यह सब कैसे! वह साया! अरुणिमा!” शांतनु बड़बड़ाता हुआ नीचे बैठ गया।

मृणाल की तरफ इशारा करते हुए रानी मां बोलीं, “मैं शर्त जीत गयी मृणाल! तुम्हें लग रहा था कि शांतनु जैसा पढ़ा-लिखा लड़का भूत-प्रेत के भुलावे में नहीं आएगा। लेकिन मैं जानती थी कि शांतनु जैसे लोग कानून से भले ना डरें, पर अपने पाप को जिंदा होते देख जरूर डर जाएंगे।”

अरुंधती ने हैरत में भर कर पहले रानी मां और फिर मृणाल को देखा। यह बात साफ हो गयी कि मृणाल इस सबके बारे में पहले से जानता है। वह बोली, “नानी मां, आपने मुझे अंधेरे में क्यों रखा?”

“तुम पर पहले से ही बहुत प्रेशर था!” रानी मां ने आगे बढ़ कर अरुंधती को गले लगा लिया।

अरुंधती ने पूछा, “लेकिन शांतनु आपको मारना क्यों चाहता है?”

रानी मां के होंठों पर भेद भरी मुस्कान खेल गयी। बोलीं, “इसका जवाब शांतनु खुद देगा।” शांतनु जवाब देने में आनाकानी जरूर करता, लेकिन अपने पीछे खड़े तगड़े कांस्टेबल के डर से उसे बोलना ही ठीक लगा। बोला, “अपने पापा के दबाव में आ कर मुझे पिछली छुट्टियां यहां आपके होम स्टे में बितानी पड़ी। वे चाहते थे कि मैं अरुंधती से मिलूं। मैं मिला भी। और दो-चार डेट्स के बाद ही अरुंधती ने मुझे प्रपोज कर दिया।याद है ना डार्लिंग!”

शांतनु ने रुक कर अरुंधती को देखा, तो उसने गुस्से में अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया। वह थोड़ा हंसा और फिर बोलना शुरू किया, “इतना तो आप सभी मानेंगे, आई एम क्वाइट चार्मिंग! तभी तो बेटी के साथ मां भी पैकेज डील में मिल गयी। मुझे क्या प्रॉब्लम होती। अरुंधती के साथ शादी तय हो जाने के कारण पापा की नाराजगी भी खत्म हो गयी थी। मुझे अरुंधती के साथ अपना फ्यूचर सेफ लगा और स्वर्णा के साथ बिस्तर। वैसे भी स्वर्णा और मेरा ओपन रिलेशनशिप था। कोई बंधन नहीं। प्रॉब्लम अरुणिमा के आने के बाद शुरू हुई। शी वाज अ बिच। पता नहीं कैसे, पर उसने मुझे पहचान लिया था। मैंने उसे अपने चार्म से फंसाने की भी कोशिश की। लेकिन वह पता नहीं किस मिट्टी की बनी थी।”

“तुम उसे समझने की कोशिश भी मत करो। तुम्हारे गंदे दिमाग में उसे समझ पाने की ताकत नहीं है!” अरुंधती गुस्से में कांप उठी, तो रानी मां ने उसे संभाला और कड़ी आवाज में बोलीं, “जबान संभाल कर बोलो, शांतनु!”

“ओके-ओके, सॉरी! अब आगे बोलूं या चुप हो जाऊं?”

“नाटक मत कर! आगे बोल!” जब पुलिसवाले ने शांतनु को डपटा, तो उसने फिर बोलना शुरू किया, “मैंने ही स्वर्णा के दिमाग में यह बात डाली कि अरुणिमा मेरे प्यार में दीवानी हो गयी है। लेकिन सच कहता हूं, वह हादसा मैंने प्लान नहीं किया था। बस इस शादी का टूटना मैं अफोर्ड नहीं कर सकता था! इसलिए मैंने अरुणिमा को बचाने की कोई कोशिश नहीं की।”

“और रानी मां, उन्हें मारने का प्लान तो बनाया ना तुमने?” पुलिस इंस्पेक्टर ने पूछा।

“जी! लेकिन वह मेरी मजबूरी थी!”

“मर्डर करने की कैसी मजबूरी भाई, जरा हम भी सुनें!” इंस्पेक्टर ने दोबारा कहा।

“सर, उस हादसे के बाद सब कुछ बदल गया। शादी की डेट आगे बढ़ गयी। अरुंधती भी गुमसुम रहने लगी। रानी मां का व्यवहार भी मेरे साथ रूखा हो गया था। तब तक मनोहर को मैंने अपने साथ मिला लिया था। वही मुझे यहां की खबरें दिया करता। मैं तब रानी मां को डराने और फंसाने के नए-नए मंसूबे बनाता था। फिर इन्हें मारने का भी ख्याल आया। पर जब मुझे इनकी बीमारी का पता चला, तो मैंने आइडिया ड्रॉप कर दिया। अब जो वैसे ही मरनेवाला हो, उसे मार कर मैं अपने हाथ गंदे क्यों करता?”

“फिर प्लान दोबारा क्यों बनाया? बोल!” शांतनु के पीछे खड़े कांस्टेबल ने उसे धक्का दिया।

“उसके लिए मेरे पापा श्री जिम्मेदार हैं। अचानक से उन्हें मेरे खर्चों और लाइफस्टाइल से प्रॉब्लम होने लगी। उन्होंने मुझे जायदाद से बेदखल करने की धमकी दे डाली। और इतना ही नहीं, उन्होंने मुझे यह भी बताया कि रानी मां को भी मेरी हरकतों का पता लग गया है। अब इससे पहले कि वे अरुंधती को कुछ बतातीं, मैंने मनोहर के साथ उन्हें चुप करने का प्लान बना लिया। महारानी के मरने के बाद छोटी रानी और राजकुमारी को संभालना मेरे लिए कोई मुश्किल काम नहीं था! मनोहर ने ही वकील साहब को हमारे प्लान में शामिल होने के लिए राजी किया। पर अब पता चल रहा है कि मेरे साथ ही खेल हो गया!”

मनोहर ने उसका कॉलर पकड़ा और खींच कर रानी मां के पास खड़ा कर दिया। रानी मां उसकी आँखों में घूरते हुए बोलीं, “मैंने उस रात तुम्हें टैरेस पर देख लिया था। लेकिन स्वर्णा को नहीं देख पायी थी। बस इतना पता चला कि कोई और भी वहां था! बस उस कोई और का राज जानने के लिए यह सारा नाटक करना पड़ा!”

“वाह! आप तो ऐक्टर के साथ डाइरेक्टर भी अच्छी निकलीं!” शांतनु ने चिढ़ कर कहा।

“थैंक्स! तुमसे ही सीखा!” रानी माँ मुस्करायीं।

“मैं मनोहर को पहचानने में धोखा खा गया!” शांतनु ने कहा।

“हां, क्योंकि दोस्ती, वफादारी, प्यार,और सम्मान जैसे शब्द का अर्थ तुम जानते ही नहीं। मनोहर मेरे कहने पर ही तुम्हारे साथ मिला था। जब तुमने मनोहर को अरुंधती के कमरे में वह खास पुतला लटकाने को कहा, मैं तभी समझ गयी थी कि तुम मुझे फंसाना चाहते हो। आखिर वे पुतले मेरे कहने पर जो बने थे। इससे एक तरफ अरुंधती को डराने का दोष मुझ पर आ जाता, तो दूसरी तरफ पुलिसवालों का शक भी मुझ पर ही जाता। मेरे प्लान के लिए तुम्हारा मनोहर पर भरोसा करना बहुत जरूरी था। सो मनोहर ने किया वह, जो तुमने करने को कहा। लेकिन उसने तुम्हें बताया वह, जो मैंने उसे बताने के लिए कहा। पुलिस तो मेरे साथ हमेशा से ही थी।”

“और ये डेड बॉडी!” अरुंधती ने पूछा।

“इसके लिए इंस्पेक्टर साहब को धन्यवाद करना होगा!”

“हमने तो अपना काम किया रानी मां!”

तभी अरुंधती फिर बोली, “उस रात टैरेस पर मैंने और आपने दोनों ने ही शांतनु को देखा था। उसके बाद जैसा आपने कहा, मैं करती चली गयी। यह भी समझ में आ गया कि वकील अंकल, पुलिस और मनोहर सब आपके साथ हैं। लेकिन इस सबमें मृणाल का क्या रोल है?”

इस बात का जवाब मृणाल ने दिया, “मैं इस नाटक में मनोहर की गलती से फंस गया।”

“मतलब?”

“हुआ यों कि शिमला से लौटते समय मैंने मनोहर को रानी मां की गाड़ी खाई में फेंकते हुए देख लिया। जब मैंने गाड़ी से उतर कर मनोहर से इसका कारण पूछा, तो वह सकपका गया। इसके बाद रानी मां के पास मुझे अपने प्लान में शामिल करने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया। वैसे पहले प्लान कुछ और था। लेकिन जैसे ही मैंने स्वर्णा और शांतनु को पहचाना और इस बारे में रानी मां को बताया, प्लान को पूरी तरह से बदल देना पड़ा। वैसे रानी मां शांतनु के बारे में सही थीं। स्वर्णा के गिल्ट ने उसे सच बोलने पर मजबूर कर दिया। लेकिन शांतनु जैसे नीच लोगों की तो आत्मा ही नहीं होती। ऐसे लोगों से सच निकलवाने के लिए भूतों को ही आना पड़ता है।”

तभी पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, “रानी मां, सब कुछ रेकॉर्ड हो गया है। अब हम इन्हें ले कर निकलें!”

aruni-last
“बिलकुल! आप तुरंत अपराधियों को ले कर निकलें। और हां, मेरी बेटी होने के कारण किसी अपराधी को स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिलना चाहिए!”

“जी रानी मां!”

महिला पुलिस कांस्टेबल स्वर्णा को लेने के लिए आगे बढ़ी, तो वह बोली, “मां! अरुंधती! आप दोनों मुझे कभी माफ मत करना!” इतना कह कर वह रो पड़ी। रानी मां और अरुंधती की आंखें भी भर आयीं। लेकिन कोई कुछ नहीं बोला। पुलिसवाले शांतनु और स्वर्णा को ले कर चले गए। वकील साहब भी उनके साथ ही निकल गए।

उन लोगों के जाने के बाद रानी माँ ने तेज आवाज में कहा, “मनोहर, रवि बाबू से पेपर पर साइन ले कर उन्हें आज ही रवाना करो। मैं अब इस घर में किसी तरह का कचरा बर्दास्त नहीं कर सकती।”

“जी सरकार। उस रात अगर उस आदमी ने सही से मारा होता, तो धरती से भी यह बोझ हट जाता,” मनोहर ने खीझ कर कहा और रवि से बाहर चलने का इशारा किया।

“तो वह भी आपके प्लान का हिस्सा था!” अरुंधती चौंकी।

“नहीं-नहीं बेटा। वह नीच तो अपनी पूर्व प्रेमिका को उसके पूर्व पति के साथ देख कर भड़क गया था। वह स्वर्णा की ना को हां में बदलवाने आया था। पता नहीं कब मर्द, औरत की ना को ना समझना सीखेंगे!”

रवि चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया। उसने एक बार भी अपनी बेटी को पलट कर नहीं देखा। अरुंधती अपने माता-पिता का घृणित रूप देख कर सकते में थी। लेकिन अगले ही पल उसने तय कर लिया कि किसी प्रकार की हताशा को वह अपने ऊपर हावी नहीं होने देगी।

कमरे में अब रानी मां, अरुंधती और मृणाल रह गए थे। अरुंधती गुमसुम सी मृणाल के पीछे खड़ी हो गयी, जैसे उसके कुछ कहने का इंतजार कर रही हो। रानी मां भी जब ना जाने किस संकोच के कारण कुछ कह नहीं पायीं, तो सोफे पर बैठ गयीं। दो-चार मिनट तक कोई कुछ नहीं बोला।

फिर रानी मां ने ही कहा, “सब समाप्त हुआ!”

“अभी कहां?” मृणाल ने कहा।

“अब क्या बाकी है?” रानी मां ने पूछा, तो मृणाल मुस्कराया। बोला, “ अभी तो आपके सबसे बड़े झूठ से परदा उठना बाकी है!”

मृणाल की इस बात पर रानी मां चौंक कर खड़ी हो गयीं। बोलीं, “मेरा कौन सा झूठ?”

“आपने सबसे यह क्यों कहा कि अरुणिमा मर चुकी है?”

“क्योंकि यही सच है!”

“पर यह तो झूठ है!”

“क्या मतलब?” रानी मां की आवाज धीमी हो गयी।

“मतलब यह कि अरुणिमा तो कभी मरी ही नहीं। वह यहीं है!”

“अच्छा! कहां? मुझे तो नहीं दिख रही!”

“ठीक आपके पीछे!” मृणाल ने कहा, तो रानी मां तुरंत पीछे पलटीं। उनके पीछे लगे आईने में अरुंधती मुस्करायी, एक फीकी उदास मुस्कान। रानी मां कुछ नहीं बोल पायीं।

“मैं सच का इंतजार कर रहा हूं!”

“तुम सही हो! जो मरी, वह अरुंधती थी! अरुणिमा जिंदा है!” रानी मां ने कहा और थोड़ी देर रुक कर फिर बोलीं, “ कुछ सच झूठ से अधिक खतरनाक होते हैं! तुम नहीं समझोगे!”

“आप समझाएंगी, तो जरूर समझूंगा!”

“बात सिर्फ मेरी होती, तो शायद मैं ऐसा कभी नहीं करती। पर हमारे कारण लाखों घरों का चूल्हा जलता है। जब मेरी बीमारी का सच सबके सामने आया, तब सभी ने अरुंधती में अपनी रानी मां को देखा। अरुंधती ने यह भरोसा अपनी मेहनत से कमाया था। अब अगर मार्केट में यह खबर फैल जाती कि अरुंधती की मौत हो गयी है, तो उसके साथ हमारे बिजनेस की भी मौत हो जाती। हम तो फिर भी संभल जाते, लेकिन हमारे लिए काम करनेवालों का क्या होता। मैंने तो सभी जरूरी कागजात में अरुणिमा के हिसाब से एंट्री भी करा ली थी। मुझे लगा था कि अब इसके हाथ में सब कुछ सौंप कर आराम से मर सकूंगी। लेकिन!” रानी मां की बात सुनते ही मृणाल को ऑफिस में हुई घटना और केसर याद आ गयी।

“तुम तो अरुंधती से पहले मिले भी नहीं। फिर तुम्हें कैसे पता चला?” रानी मां ने मृणाल से पूछा।

“मेरी कला ने मुझे एक ताकत दी है। मैं किसी भी चेहरे के उस भेद को भी देख सकता हूं, जो नॉर्मल लोग नहीं देख पाते। इस अरुंधती के भीतर अरुणिमा को मैंने कई बार देखा। आपने मुझे अरुणिमा की फोटो दी। लेकिन अरुणिमा तो मेरे सामने भी थी। मुझे जानने में देर नहीं लगी कि ये दोनों लड़कियां एक ही हैं। फिर एक दिन आपके फैमिली एलबम में मैंने असली अरुंधती का चेहरा भी देख लिया। इसके बाद मेरा शक यकीन में बदल गया। मैं इतना तो समझ गया कि आप इस पोट्रेट को हॉल में लगा कर, अरुंधती और अरुणिमा के चेहरे की हर असमानता को खत्म कर देना चाहती हैं। और आज इसका कारण भी समझ गया हूं!”

थोड़ी देर बाद मृणाल फिर बोला, “बस इतना नहीं समझ पाया कि यह सब हुआ कैसे? अरुणिमा को अरुंधती सबने कैसे और क्यों मान लिया?” मृणाल की इस बात पर रानी मां ने अरुणिमा की तरफ देखा।

वह बोली, “सगाई की अगली रात अरुंधती को नानी मां के साथ किसी डिनर पर जाना पड़ा। पर वह शांतनु के साथ अकेले रहना चाहती थी। उसने नानी मां को मना नहीं किया, क्योंकि उसके दिमाग में एक आइडिया आ गया था। उसने मुझे उसके कपड़े पहन कर नानी मां के साथ जाने को कहा। मैंने उसे मना भी किया, लेकिन वह कहने लगी कि उसने शांतनु के लिए कुछ प्लान किया है। उसकी एक्साइटमेंट देख कर मैं भी मान गयी। घर के नौकरों और बाकी लोगों को यही लगा कि अरुंधती नानी मां के साथ चली गयी है। लेकिन बीच रास्ते में ही नानी मां ने हमारी चोरी पकड़ ली और हम घर वापस आ गए। उसके बाद का तो तुम्हें सब पता है। कई जानों को बचाने के लिए, मरने के बाद भी अरुंधती को जिंदा रखना पड़ा और अरुणिमा मर गयी। मेरे लिए मेरे नाम से अधिक जरूरी मेरी नानी मां का सम्मान और मेरे अपने लोगों की जिंदगी है।”

मृणाल अपलक उसे देखता रह गया। और ना मालूम कब तक देखता रह जाता, अगर रानी मां उससे ना पूछतीं, “तो मृणाल तुम्हारा क्या फैसला है?”

“रानी मां, कुछ झूठ सच से अधिक सच्चे होते हैं,” मृणाल ने कहा, तो रानी मां ने उसके हाथ को अपने हाथ में ले कर चूम लिया। फिर बोलीं, “अरुंधती, मुझे लगता है अब तुम दोनों को भी बात कर लेनी चाहिए!” और वहां से चली गयीं।

रानी मां के जाने के बाद वह कुछ देर तक अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से मृणाल को घूरती रही, पर बोली कुछ नहीं।

“क्या देख रही हो?” मृणाल बोला।

“जब तुम सब जानते थे, तो कभी कुछ पूछा क्यों नहीं?”

“जहां भरोसा होता है, वहां सवाल नहीं होते।”

“तो अब?” वह बोली।

“तुम्हारे साथ पेंटिंग करनी है। तुम्हारा डांस भी देखना है। और...”

“और क्या?”

“मेरे साथ मसूरी घूमने चलोगी, आरुणि!”



-The End-