मेरी अरुणी - 2 Devika Singh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मेरी अरुणी - 2

एक हाथ में सिगरेट और दूसरे हाथ में ब्रश ले कर मृणाल कभी कैनवास को घूरता, कभी टैरेस के दरवाजे को। आज से पोट्रेट का काम शुरू होना है। पर अरुंधती अभी तक नहीं आयी। मृणाल गुस्से में आ कर रघु को आवाज लगाने को हुआ कि तभी सीढ़ियों पर पायल की रुनझुन सुनायी पड़ी। अगले ही पल अरुंधती सामने थी।

इससे पहले कि मृणाल कुछ पूछता वह बोली, “सॉरी! तैयार होने में देर हो गयी!”

मृणाल ने लाल पाड़ की ढाकाई सफेद साड़ी में लिपटी अरुंधती के माथे पर लाल बिंदी और कमर तक झूलते लंबे बाल को देखा, और देखता रह गया। एक पल को उसकी आंखें उस मूर्तिमान रत्न की चमक से चौंधिया गयीं। वह संकोच में पड़ गया कि क्या वह इस खूबसूरती को अपने कैनवास पर उतार पाएगा!

मृणाल को अपनी तरफ यों देखता देख अरुंधती बेचैन हो गयी। बोली, “मुझे कहां बैठना है?”

मृणाल ने खुद को संभाला और सामने पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा कर दिया। वह बैठ गयी। मृणाल ने अपना काम शुरू कर दिया। वे चुप हो गए और उनके बीच की खामोशियां बोलने लगीं। तभी मृणाल ने अरुंधती के गाल पर पड़ी पसीने की बूंद के आर-पार जाती सूरज की किरण को देखा। उसे ऐसा लगा जैसे भोर उसके सामने स्त्री के रूप में बैठी हो।

वह बोल पड़ा, “आरुणि!”

अरुंधती चौंक पड़ी, “जी!”

मृणाल बोला, “कोई याद आ गया!”

अरुंधती ने पूछा, “कोई बहुत अपना?”

“शायद!”

“गर्लफ्रेंड?”

अरुंधती की इस बात पर मृणाल ने कुछ सोचा और बोला, “कुछ कह नहीं सकता। उसके और मेरे बीच अभी बहुत सारी खाली जगहें हैं। आप तो जानती हैं कि खाली जगहें अनकही बातों की तरह होती हैं, जो जितना बाकी रह जाती हैं, उतना ही अपनी तरफ खींचती हैं। तो अभी हमारे रिश्ते के बारे में बस इतना कह सकता हूं कि, इट्स कॉम्पलीकेटेड।”

“हम्म!” इतना कह कर वह अचानक चुप हो गयी। मृणाल की गर्लफ्रेंड वाली बात उसे अच्छी नहीं लगी। अपने मन की इस कमजोरी का कारण समझने की कोशिश में लगी अरुंधती को मृणाल ने टोका, “मेरे बारे में तो सब जान लिया। अब कुछ अपने बारे में बताइए।”

वह बोली, “मेरे बारे में जानने जैसा कुछ नहीं है!”

“कोई तो होगा!” मृणाल कुर्सी खींच कर उसके बगल में बैठ गया।

“शांतनु।”

“आपका?”

“मेरा फीयांसे। हमारी सगाई हो चुकी है। अब तक तो शादी भी हो जाती, अगर वह हादसा नहीं होता।”

“इसका मतलब वह हादसा आपकी सगाई में हुआ था!”

“नहीं! मेरी सगाई के एक दिन बाद। दरअसल, अरुणिमा और पापा मेरी शादी के लिए ही आए थे। सगाई के दस दिन बाद शादी की डेट थी। लेकिन उसके पहले ही अरुणिमा ने इतना बड़ा कदम उठा लिया। इस दुख ने हम सभी को तोड़ दिया। इसलिए शादी को एक साल के लिए पोस्टपोन कर दिया गया।”

“यह अच्छा हुआ!” इतना कहते ही मृणाल समझ गया कि उसके मुंह से कुछ गलत निकल गया है। इसलिए अपनी बात संभालते हुए फिर बोला, “अच्छा हुआ कि आप रुक गयीं। इस समय आपके परिवार को आपकी बहुत जरूरत है। सूना घर इस दर्द को कभी भरने नहीं देता।”

“यह दर्द तो अब शायद ही भरे!”

“हम इंसान मूव ऑन के फीचर के साथ इस दुनिया में आए हैं। इसलिए समय के साथ एक दिन आगे तो बढ़ना ही है। यादों को सहेज कर दर्द को जाने देना ही जीवन है,” मृणाल ने समझाया।

“पर तब क्या करें जब मन में एक काश हो!”

“काश तो हमेशा होता है!”

“पर कुछ काश में क्यों भी होता है!”

मृणाल ने उसकी हथेली को अपनी हथेलियों में भर लिया। वह कुछ नहीं बोली।

“अरुंधती, अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूं!”

“कहिए!”

“अरुणिमा ने यह कदम क्यों उठाया होगा?”

“इस क्यों का जवाब हम सब ढूंढ़ रहे हैं। इन फैक्ट हम तो इसे एक्सीडेंट मान रहे थे। पर फिर नानी मां ने बताया कि उन्होंने उसे कूदते हुए देखा था। अभी पुलिस की जांच-पड़ताल भी चल रही है। जो हम ना जान पाए, शायद वे जान लें!”

“पर उसने तुमसे कुछ तो कहा होगा!”

“हम क्लोज नहीं थे। मां-पापा के डाइवोर्स के बाद वह पापा के साथ रहने चली गयी। बचपन में हम छुट्टियों में जरूर मिलते, लेकिन बड़े होने पर वह भी कम हो गया। इसलिए हमारा वह बहनोंवाला बॉन्ड कभी बन ही नहीं पाया। वैसे मुझे वह नानी मां के बहुत क्लोज लगती थी। लेकिन इस हादसे के बाद लगता है जैसे वह सभी के लिए अजनबी थी। पर एक बात बताऊं, आप उसके लिए अजनबी नहीं थे।”

मृणाल को कुछ समझ नहीं आया। बोला, “पर मैं तो उनसे कभी मिला ही नहीं!”

वह मुस्करायी और बोली, “अरुणिमा एक पेंटर और आपकी बहुत बड़ी फैन थी। वह तो आपको इंस्टाग्राम पर फ़ॉलो भी करती थी। आपके बारे में नानी मां को उसी ने बताया था।”

“ओह! काश हम मिल पाते!”

अरुंधती ने अपनी कत्थई आंखें मृणाल की काली आंखों पर टिकायीं और बोली, “काश कि आप उसे ढूंढ लेते!”

“जी?”

मृणाल की बात का जवाब दिए बिना वह अचानक उठ कर खड़ी हो गयी। उसे यों खड़ा होते देख मृणाल भी चौंक कर खड़ा हो गया।

वह बोली, “अब चलती हूं!”

“क्यों!”

“क्यों क्या! मैं थक गयी हूं! आप भी आराम करें। डिनर पर मिलते हैं!”

वह चलने को हुई कि मृणाल बोला, “आज का काम तो देख कर जाइए!”

“मैं देख तो लूंगी, पर मुझे कहां कुछ समझ आता है!”

“समझने के लिए इतना काफी है।”

मृणाल की इस बात से उसके होंठों पर मीठी मुस्कान खिल गयी। वह पोट्रेट देखने लगी। मृणाल की तरफ उसकी पीठ थी। उसे पता ही नहीं चला मृणाल कब उसके ठीक पीछे आ कर खड़ा हो गया। जब उसके उड़ते बाल मृणाल की छाती को छूते, वह सिहर उठता।

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अचानक वह बोली, “तुम यह पोट्रेट देवदार के जंगलों में बनाओ। तुम्हारी कला को महलों में नहीं, जंगलों में जीवन मिलेगा। तुम्हें तो मुक्ति पसंद है ना मृणाल!”

अरुंधती ने उसका नाम ऐसे लिया जैसे बरसों से लेती आ रही हो। कुछ ही मिनटों में इतना बड़ा परिवर्तन मृणाल की समझ से परे था। उसकी आवाज भी अलग लगी।

वह फिर बोली, “तुम तो मुझसे अधिक जानते हो। कैनवास और चित्रकार का संबंध प्रेमी और प्रेमिका के जैसा होता है। इसलिए उनकी यात्रा लंबी नहीं गहरी होती है। ऐसे रूहानी संबंध को जुड़ने के लिए खुला आकाश चाहिए।”

मृणाल सोच में पड़ गया। क्या है यह लड़की। इसे समझना इतना मुश्किल क्यों हो रहा है?

तभी वह पलटी। खुद को मृणाल के इतना करीब देख कर वह झिझकी नहीं, बल्कि उसकी तेज नजरों से मृणाल सहम कर पीछे हट गया।

वह बोली, “आई होप तुम्हें बुरा नहीं लगा होगा।”

“किस बात का!”

“एक तो तुम्हें तुम बुलाने का और दूसरा पेंटिंग के बारे में जो मैंने बोला।“

“बिलकुल भी नहीं! आपकी बात बिलकुल ठीक है!”

“तुम भी मुझे तुम बुला सकते हो!” अरुंधती की इस बात पर दोनों एक साथ हंस पड़े।

हंसते-हंसते मृणाल ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया और बोला, “ताे चलो, दोस्ती कर लेते हैं !”

इतना सुनते ही अरुंधती के चेहरे पर पहले वाली गंभीरता आ गयी।

वह बोली, “दोस्त बनने की इतनी जल्दी क्या है? पहले मुझे ठीक से जान तो लो। अभी तो तुमने देखा ही क्या है!” और फिर मृणाल को अपनी सोच के साथ अकेला छोड़ कर चली गयी। मृणाल को ऐसा लगा जैसे वह पलभर पहले वाली अरुंधती ना होकर कोई और हो। जो कुछ देर पहले अपनी सी लगने लगी थी, वह फिर से परायी हो गयी।

अरुंधती के जाने के बाद मृणाल भी अपने कमरे में आ गया और बैग से ‘मधुशाला’ निकाल कर पढ़ने लगा। पर उसका ध्यान रह-रह कर अरुंधती पर चला जाता। हार कर उसने किताब नीचे रख दी। फिर उसके मन में आया कि एक बार जंगल की तरफ जा कर पोट्रेट बनाने की जगह देख ली जाए। वह बाहर निकला ही था कि उसे स्टडी से रानी मां की गंभीर और तेज आवाज सुनायी पड़ी। इसके बाद मनोहर की दबी हुई आवाज भी आयी। साफ था कि रानी मां किसी बात पर नाराज हैं। मृणाल को छिप कर बात सुनना और हवा में बातें बनाना बिलकुल पसंद नहीं। इसलिए बिना कुछ सोचे वह चुपचाप आगे बढ़ गया।

मकान की गेट पर रघु दरबानों से बातें करता हुआ मिल गया। मृणाल को देखते ही वे चुप हो गए।

मृणाल बोला, “भाई रघु, आज अपना जंगल दिखाओ।”

“साहब, अंधेरे में क्या दिखेगा। कल सुबह ले चलूंगा।”

उसकी बात सुन कर मृणाल को इस बात का ख्याल आया कि दिन तो ढल चुका है। उसने अपनी जेब से एक सिगरेट निकाल कर सुलगायी और बोला, “बात तो सही कह रहे हो रघु भाई। ठीक है, फिर कल सुबह ही चलेंगे।”

तभी मृणाल की नजर उसकी सिगरेट को ललचायी नजर से देख रहे पहरेदारों पर गयी। उसने अपनी जेब से पैकेट निकाला और उनकी तरफ बढ़ाते हुए बोला, “लो भाई, हम तो जल ही रहे हैं, तुम भी थोड़ा जल कर देखो!”

“सरकार, सरकार!” रघु और उन दोनों ने एक-एक सिगरेट ले ली।

रघु उनमें से एक पहरेदार की तरफ इशारा करते हुए बोला, “सरकार, आपने भोला का मन ठीक कर दिया। बेचारा बहुत उदास था।”

मृणाल ने एक कश लेते हुए पूछा, “क्या हुआ भोला भाई?”

“कुछ नहीं साहब, गेट खोलने में देरी होने के कारण मनोहर साहब ने डांट दिया।”

“कोई बात नहीं। नौकरी में तो यह सब चलता रहता है,” इतना कह कर मृणाल ने उसका कंधा थपथपाया और घूमने के इरादे से बाहर निकल आया।

“सरकार, सब अपना गुस्सा अपने से नीचे वालों पर ही निकालते हैं,” मृणाल ने देखा कि उसके पीछे-पीछे रघु भी आ गया है।

“अरे, तुम भी आ गए!”

“हां साहब, मैं सामने वाले मोड़ से भीतर जाऊंगा। वहां से मार्केट पास पड़ती है।”

मृणाल ने जब कुछ नहीं कहा, तो वह फिर बोला, “आज मनोहर साहब को रानी मां ने खूब डांटा, तो बस अपना गुस्सा उस गरीब पर निकाल दिया।“

“अच्छा!”

रघु को मृणाल का इतना छोटा जवाब पसंद नहीं आया। उसे लगा कि मृणाल उसकी बात को हल्के में ले रहा है। इसलिए उसने जेब से अखबार का एक तुड़ा-मुड़ा कागज निकाला और मृणाल की तरफ बढ़ाता हुआ बोला, “यह है सब मुसीबत की जड़ सरकार! आज के अखबार में यह छप गया और मनोहर साहब कुछ भी ना कर पाए। तभी तो रानी मां इतने गुस्से में हैं।”

मृणाल रघु को टालते हुए बोला, “क्या रघु, अंधेरे में क्या पढ़ूंगा?”

रघु ने मृणाल को ऐसे देखा जैसे उसे उसकी बुद्धि पर शक हो रहा हो। बोला, “क्या सरकार, इस मोबाइल की टॉर्च कब काम आएगी!”

ना चाहते हुए मृणाल को उसके हाथ में पड़ा पन्ना लेना पड़ा। अखबार में रानी मां की तसवीर के साथ एक खबर छपी थी-
“क्या छुपा रही हैं रमोला राजवीर शर्मा, आत्महत्या का कारण या हत्या का अपराधी।”

रघु के चले जाने के बाद मृणाल काफी देर तक यों ही भटकता रहा। जब घर लौटा, तो इतना थक गया कि डिनर की इच्छा ही नहीं हुई। इसलिए उसने अपने कमरे में ही दूध मंगाया और पी कर लेट गया।

मृणाल पलंग पर लेटा देर रात तक करवटें बदलता रहा। फिर ना जाने कब उसकी आंख लग गयी। लेकिन थोड़ी ही देर बाद हुई तेज आवाज ने उसकी कच्ची नींद को तोड़ दिया। उसने देखा टेबल पर से जग गिर जाने के कारण पूरे कमरे में पानी फैल गया है। वह बाथरूम से वाइपर लाने के लिए उठा कि बालकनी के दरवाजे पर हल्की दस्तक सुनायी पड़ी। पहले तो मृणाल को लगा कि यह उसके मन का भ्रम है। लेकिन दस्तक दोबारा हुई। मृणाल डरा तो नहीं, पर परेशान जरूर हो गया। इतनी रात उसकी बालकनी में कौन होगा! मृणाल सोच ही रहा था कि दस्तक फिर हुई। उसने धीरे से दरवाजा खोल कर देखा, तो वहां कोई नहीं था। तभी उसे नीचे से किसी के बोलने की आवाज आयी। बाहर बालकनी में आ कर उसने नीचे की तरफ झांका, तो चौंक गया। उसने देखा नीचे स्लेटी रंग के नाइट गाउन में अरुंधती खड़ी है। वह आकाश की तरफ देख कर कुछ बड़बड़ा रही थी। अचानक से वह मुड़ी और उसकी नजर मृणाल से मिल गयी। मृणाल सकपका कर पीछे हटा कि तभी कोई उसके कान में फुसफुसाया, “धप्पा!” वह पलटा और सामने अरुणिमा को देख कर चीख पड़ा।

मृणाल को क्यों इस घर में सब उलझता हुआ सा लग रहा था? वह कौन सी कशिश थी, जो उसे अरुंधती की ओर खींच रही थी? उधर अखबार में रानी मां को ले कर छपी खबर ने भी मृणाल को असमंजस में डाल दिया था। फिर रात को मृणाल को धप्पा कह कर चौंकाने वाली लड़की कौन थी? अरुणिमा या अरुंधति?

इन सब सवालों के जवाब अगले पार्ट में।