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समीक्षा कहानी संग्रह

डॉ प्रणव भारती जी
वरिष्ठ कहानीकार उपन्यासकार जब मेरी कहानियाँ पढ़कर मुझे फ़ोन करती है तो मन पुलकित हो उठता है । उन्होंने मेरी पुस्तक #कोईखुशबूउदासकरतीहै पढ़कर अपने विचार अपनी वाल पर शेयर किए है जो आप सबके साथ सांझा कर रही हूँ।

कोई खूशबू उदासकरती है ---#कहानीसंग्रह
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लेखिका---#नीलिमाशर्मा
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कहानी बालपन की सहेली है ,माँ की लोरियों के साथ शुरु होती है ,आँचल में बँधी युवावस्था की धड़कनों को सप्रयास दबातेहुए न जाने कितने भीषण मार्गों से गुज़रती हुई कहानी चिता में भस्म होकर भी अपनीछाप पूरे ब्रह्मांड में छोड़ जाती है |मैं ऐसी कहानियों के बारे में कहना चाहतीहूँ जो हमसे बतियाती हैं ,कुछ गुफ़्तगू करती हैं | कभी कुनमुनाती हैं तो कभी ठहाके के साथ, खिलखिलाहट के साथ आँसुओं का सैलाब भी छोड़ जाती हैं |
नीलिमा शर्मा आज के युग की युवा लेखिकाहैं जिनके ज़ेहन में कहानी कुलबुलाती है, कसमसाती है और बाध्य करती है कि वे अपनीइस कुलबुलाहट को साझा करें |यह साझा करना दरअसल अपने आपको उस छटपटाहटसे मुक्त करना है जो भीतर ही भीतर घुन की भाँति खोखला करती रहती है |
‘कोई ख़ुशबू उदास करती है ‘की कई कहानियाँ मैंने पहले पढ़ी हैं किन्तु उन्हें नए सिरे से पढ़ने में मुझे उतना ही नयापन महसूस हुआ जितना पहली बार पढ़ने पर हुआ था | संभवत: इसका कारण यह है कि इन कहानियों में पाठक एक ऐसा लगाव महसूस करता है जो उसके भीतर उथल-पुथल मचाकर एक वातावरण खड़ा करने काप्रयास करता है | कहानियों का प्रभाव पाठक पर इस कदर हावी हो जाता है कि पाठक के दिल की गति सप्तम पर जाकर एक शोर बरपा कर देती है |
नीलिमा की कहानियों में पंजाबियत की एक ख़ुशबू बसी हुई है जिसका कारण ,मैं समझती हूँ उनकी अपनी भाषा का होना है जो एक तरल,सरल लहज़ा देता है | संग्रह की सभी ग्यारह कहानियों में उनकी यह ख़ुशबू बसी हुई है और जैसे एक झंकार पाठक की हृदय-तंत्री के तार हिला देती है | तारों की इस हलन -चलन से पाठक न केवल रूबरु होता है ,वह इस संवेदन से आसानी से मुक्त नहीं हो पाता ,इनकी ख़ुशबू को अपने भीतर से छुड़ा नहीं पाता है |
नीलिमा की कहानियों में जगह-जगह प्रेम झाँकता नज़र आता है ,यह प्रेम कहीं मुहब्बत से सराबोर करता है तो कभी एक वितृष्णा भी उत्पन्न करता है | कुछ चीज़ें आवरण में लिपटी हुई बहुत आकर्षक लगती हैं किन्तु आवरण हट जाने पर वे कभी इतनी भद्दी लगने लगती हैं कि विद्रोह पैदाकरके जीवन के समक्ष सौ प्रश्न ला खड़े करती हैं |
ये कहानियाँ ‘मनका कोना‘में संवेदित होकर सिमटती हुई ‘लम्हों ने ख़ता की’को सिसककर जीती हैं |कहानी ’उत्सव’ के व्यंग्य को अनकही पीड़ा से झेलती हुई विद्रोही बन बैठती है |ये ‘इत्ती सी खुशी’ में सिमटी नज़र आती है |ये तलाशती हैं ख़ुद के अक्स को और दर्पण से पूछती रहती हैं ‘आखिर तुम हो कौन ?’
‘कोई रिश्ता न हो तब ---‘में एक आदिम भूख का क्रंदन सुनाई देता है |कहानी ‘एक खूशबू उदास करती है‘वास्तव में एक उदास वातावरण में खींचकर ले जाती है | ‘अंतिम यात्रा और अंतर्यात्रा’ भावातिरेक से भर देती है तो ‘मायका’ स्थिति के स्पष्टीकरण से रिश्तों में सौंधी बयार का झौंका बहुत कुछ कह जाता है | संग्रह की पहली कहानी ‘टुकड़ा-टुकड़ा ज़िंदगी’में कहानीकारा ने कमाल का ‘ट्रीटमेंट’दियाहै | कोविड की यातना में से निकली हुई कहानी पाठक को एक फ़िल्म की चरम-सीमा का सा अनुभव देती है |कहानी में इतनी सारी बातों पर लेखिका की सूक्ष्म पकड़ है कि पाठक उसमें डूबकर मानो चलचित्र में डूब जाता है |मनोवैज्ञानिक झरोखों से झाँकती कहानी सत्रह वर्षीय नसरीन के दिल की धड़कनों के साथ पाठक के दिल की धड़कनें भी बढ़ाती रहती हैं तो कभी मुख पर मुस्कान की रेखा भी फैला देती हैं |लेखिका ने कहानी की ‘टीन-एज नायिका' नसरीन को एक अद्भुत साँचे में ढालकर उसका रूप निखार दिया है |
संग्रह की अंतिम कथा ‘उधार प्रेम की कैंची है‘में लेखिका ने मुस्लिम परिवार का ताना-बाना बुनकर यह साबित कर दिया है कि हर मज़हब में प्रेम की कसौटी होती है ,युवा हृदयों को झंझावातों से गुज़रना लाज़मी होता है | पाठक इस कहानी से गुज़रते हुए एक पंजाबी माहौल से ख़ुद को घिरा पाता है | सभी कहानियों का ट्रीटमैंट शानदार है और पाठक के मन में आगे पढ़ने की रुचि जगाता है |
स्त्री के मन की बारीकी को पहचानने वाली नीलिमा शर्मा किसी खेमे से बँधी नहीं हैं ,उनका अपना कौंसेप्ट है जिसको वे बड़ी सहजता से अपनी कहानियों में उतारती हैं |
बेशक यह नीलिमा का पहला कहानी-संग्रह है किंतु इसकी कहानियों की भाषा ,वाक्य -रचना ,शैली इस बात की गवाही देती हैं कि संवेदनशील विषयों पर कहानी का चिंतन इनके मन में न जाने कब से पनपता रहा है जो सहज,सरल रूप में एक ‘फ़्लो’कीभाँति पन्नों पर उँडेला गया है और वह बूंद-बूंद पाठक के मस्तिष्क में स्थान बना लेता है|
प्रियनीलिमा को अशेष स्नेहिल बधाई देते हुए मैं इनकी साहित्यिक –यात्रा के लिए अभिनन्दन प्रेषित करती हूँ|इनकी कलम की निरंतरता में माँ शारदे सदा अनुकंपाकरें !! यह पुस्तक आप Shivna Prakashan से या अमेज़न से खरीद सकते है ।
डॉ .#प्रणवभारती
अहमदाबाद

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