सेहरा में मैं और तू - 12 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सेहरा में मैं और तू - 12

( 12 )
सिर से हेलमेट उतरते ही लड़कों ने अपने प्रशिक्षक छोटे साहब को पहचान लिया जो कुछ दिन पहले एकाएक किसी को बताए बिना यहां से चले गए थे।
लड़कों ने उन्हें घेर लिया और एक के बाद एक सवालों की झड़ी लगा दी।
सबको ये जान कर घना अचंभा हुआ कि वो सब लोग उनके बारे में जो कुछ सोच रहे थे वैसा कुछ भी नहीं हुआ था। न तो वो बीमार ही थे और न उनके किसी रिश्तेदार ने पुलिस में उनकी कोई शिकायत की थी। ये सब तो कोरी अफवाहें थीं जो न जाने कैसे यहां फैल गईं।
छोटे साहब को तो स्टेडियम के अधिकारियों की ओर से बुलावा आया था और क्योंकि उन्हें खुद ये पता नहीं था कि उन्हें क्यों बुलाया गया है इसलिए वो यहां किसी को भी कुछ बता कर नहीं गए थे।
लो, सोचा क्या और हुआ क्या? लोग वैसे ही तिल का ताड़ बना देते हैं।
कुछ दूरी पर एक दीवार के सहारे खड़े कबीर की हालत तो देखने लायक थी। वह कुछ भी बोले बिना टुकुर टुकुर साहब को देखे जा रहा था। और लड़कों ने साहब के पास जाकर कम से कम उन्हें अभिवादन तो कर लिया था। किसी ने उनसे हाथ मिलाया तो किसी ने पैर छू दिए। कोई कोई केवल नमस्ते कर के रह गया। रोहन भी उत्साह से उनसे गले मिल कर आ गया था पर कबीर वहीं खड़ा रहा।
उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर से कोई लहरें निकल कर उसे छोटे साहब की ओर जबरन बहा ले जाने की कोशिश कर रही हैं।
आख़िर कुछ चल कर छोटे साहब ही उसके पास तक आए और पहले उससे हाथ मिलाते मिलाते उसके गले ही लग गए।
लड़कों का हुजूम उनके पीछे पीछे आया।
और फिर हुआ एक जबरदस्त धमाका। छोटे साहब ने जैसे कोई पटाखा फोड़ा जिसकी गूंज से लड़कों की सीटियां किलकारियां और तालियां गूंज उठीं।
छोटे साहब ने बताया कि शूटिंग की टीम के साथ वेनेजुएला जाने के लिए एक कोच के रूप में उनका ही चयन हो गया है और उन्हें आज से ही वापस खिलाड़ियों के प्रशिक्षण शिविर में शामिल होने के लिए वापस शहर जाना है।
थोड़ी देर बाद ही वो बड़े साहब के कक्ष से निकल कर सबको वो मिठाई खिला रहे थे जिसका डिब्बा उनके हाथ में लगा हुआ था। साहब ने भी गर्म जोशी से उनसे हाथ मिला कर उन्हें बधाई दी।
परिसर की फिज़ा एक बार फ़िर से बदल गई।
कबीर बाहर से तो पहले की तरह धीर गंभीर बना हुआ था पर मन ही मन जैसे उसके दिल में लड्डू फूट रहे थे। उसके मानस पर कई दिन से छाए हुए बादल आज एकाएक छिटक कर छंट गए थे और एक सुनहरी धूप निकल आई थी।
उसने मन ही मन एक बार फिर राजमाता की तस्वीर को याद करते हुए उन्हें प्रणाम किया। मानो उसने राजमाता की तस्वीर के आगे खड़े होकर कभी कोई मन्नत मांगी थी जो आज पूरी हो गई।
प्रतियोगिता के लिए अपनी सफलता का जो उत्साह उसने पिछले दिनों खो दिया था वह अकस्मात उसके युवा चेहरे पर फिर लौट आया। उसके चेहरे पर चमक आ गई।
रोहन ने एकबार फिर उसे "ब्लैक होल" कह कर उसके हाथ पर चिकोटी काटी तो वह संकोच से सिमट गया।
रोहन बोला - बॉस, निशाने बाज़ी पर भी ध्यान देना! कबीर उसकी बात का अर्थ समझा नहीं, हैरानी से उसकी ओर देखने लगा। रोहन ज़ोर से हंसा और बोला - मेरा मतलब है कि निशाने बाज़ी में ही मत रह जाना। जीत कर भी आना है।
कबीर ने उसकी पीठ पर एक धौल जमाया और सब इकट्ठे होकर खाने के लिए मैस की ओर चल पड़े।