आज अकादमी में बहुत खुशी का माहौल था। जिसे देखो वही एक दूसरे से हंस - हंस कर उत्साह से बात कर रहा था। ऐसा लगता था जैसे कोई बड़ा त्यौहार आने वाला हो।
मैस में काम करने वाले लड़के ये तो नहीं जानते थे कि ऐसा क्या हुआ है जो सब इतने खुश हैं, पर सबको खुश देख कर उनमें भी एक अनजाना सा जोश भर गया था। वो दोनों भी दौड़ भाग करके अपने काम खुशी से निपटा रहे थे।
लो, खुलासा भी हुआ। आख़िर सबको पता चला कि सारे में ऐसे उमंग भरे माहौल का कारण क्या है?
लड़कों की बातचीत से ही पता चला कि जल्दी ही विदेश में कोई बड़ी प्रतियोगिता आयोजित होने वाली है जिसके लिए यहां से भी एक दल भेजा जाएगा।
बात खुशी की थी। कुछ साल पहले तक दर- बदर घूमने वाले, रोटी- रोजगार के लिए संकट झेलने वाले, मवेशी चराने या आखेट में सारा दिन बिताने वाले ये खानाबदोश लड़के आज एक शानदार संस्था की सरपरस्ती में तो आ ही गए थे और अब इन्हीं में से कुछ को विदेश यात्रा पर घूमने जाने का मौका भी मिलने वाला था। जैसे कोई बड़ी लॉटरी लग रही हो। सारा खर्चा अकादमी की तरफ़ से!
नहीं नहीं, प्रशिक्षक कहते - इसे विदेश घूमने का अवसर मत समझो। ये कठिन परीक्षा की घड़ी है। ये हमारा और तुम्हारा इम्तेहान है। पल- पल वक्त की कसौटी पर होंगे हम। हमें कुछ कर दिखाने का जज़्बा रखना होगा, तभी हम कामयाब होंगे।ऐसी बातों से लड़कों का जोश दोगुना हो जाता।
अगले महीने ही पास के एक बड़े शहर में प्रतियोगिता के लिए टीम का चयन होना था। चारों ओर से एक से एक धुरंधर तीरंदाज़, निशानेबाज वहां आने वाले थे। वहां कड़ी स्पर्धा के बाद ही अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में जाने का अवसर मिलने वाला था।हर लड़का जैसे अपने बाजुओं की मछलियां पर हाथ फेरता हुआ उन्हें सहलाने लगा। सब में गज़ब का जोश भर गया।
रोजाना का रूटीन और भी कड़ा हो गया। सभी लड़के सख्ती से वहां के नियम कायदे का पालन करने लगे। हर बदन में करेंट दौड़ने लगा।दोपहर में लड़कों की विशेष क्लास भी होने लगी। अब उन्हें केवल शारीरिक कसरत के साथ साथ अन्य सामान्य बातों का ज्ञान भी दिया जाने लगा। कैसे कपड़े पहनने हैं, कैसे बोलना चालना है, कैसे बड़े लोगों के सामने खाने पीने का व्यवहार रखना है, कैसे हर बात में संजीदा होकर धन्यवाद, स्वागत आदि कहते हुए सभ्य और सुसंस्कृत दिखना है।
बड़ा मज़ा आता लड़कों को ये सब बातें सीखने में। अंग्रेज़ी सीखने की ललक बढ़ती जाती। शुरू शुरू में सब एक दूसरे से शरमाते मगर जल्दी ही झिझक और संकोच छोड़ कर नई नई बातें सीखने में दत्तचित्त हो जाते। सबको ऐसा लगता था मानो अंतिम रूप से उन्हीं का चयन होने वाला हो। आख़िर ऐसा सुनहरा मौका कौन छोड़ता?
जो लड़के सुबह दौड़ते समय अपने पैर के जूतों को बोझ समझ कर चाहे जैसे घसीटते हुए दिखते थे वही अब ध्यान देने लगे कि जूते रोज़ साफ़, धुले हुए, चमकते हुए, ठीक से बंधे हुए हों। यही बात कपड़ों को लेकर भी रहती। कोई कोई तो नहाने के बाद चेहरे की सजावट और बालों के रख रखाव के लिए भी चिंतित हो जाता।
कॉमन कक्ष में रखे रेज़र, मसाजर, लोशन आदि भी ख़ूब काम में आने लगे।
सबको यही लगता था कि देखें, किसके भाग्य जागते हैं। खिलाड़ी तो खिलाड़ी, मैस में काम करने वाले लड़के और दूसरे लोग तक इस कठिन परीक्षा में चाव से भाग लेने लगे थे। वो खिलाड़ियों पर मन ही मन वैसे ही दाव लगाते जैसे रेसकोर्स में लोग घोड़ों पर अपनी उम्मीदें लगाते हैं।
अब न तो सुबह की सैर से लौट कर जूस पीने में कोई लेट होता और न साहब को राउंड पर रात को कोई अपने कमरे से गायब ही मिलता।
हां, जिसे चमड़ी का रोग हुआ था उसके गाल पर काले भूरे निशान ज़रूर कभी कभी बड़े हुए दिखाई देते। एक दिन तो दांत...