सेहरा में मैं और तू - 13 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सेहरा में मैं और तू - 13

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वैसे तो कबीर और रोहन दोनों की कड़ी मेहनत के अभ्यस्त थे मगर यहां आकर उनका प्रशिक्षण और भी सख्त हो गया था। स्टेडियम के आसपास बड़े शहर की रौनकें बिखरी पड़ी थीं जिन्हें देख कर शुरू शुरू में तो उन दोनों का जी खूब ललचाता। ज़रा सा समय मिले तो ये करें, वो देखें, यहां जाएं, वो लाएं...पर वहां का रूटीन ही इतना कड़ा था कि सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक किसी और बात के लिए समय ही नहीं मिलता था। रात तक इतनी थकान में चूर होते कि बिस्तर पर गिरते ही सोने के अलावा और कोई ख्याल आसपास भी नहीं फटकता। सीधी सुबह ही आंख खुलती।
यहां की भीड़भाड़ में उनका अपने छोटे साहब से भी ज्यादा मिलना जुलना नहीं हो पाता था पर कबीर को यही बहुत अच्छा लगता था कि वो कम से कम आंखों के सामने तो रहते हैं। दिन में कभी न कभी कहीं दिखाई भी दे जाते हैं। इसी से बड़ी तसल्ली रहती। रोहन ने भी कड़े अभ्यास में खुद को झौंक डाला था।
देखते देखते समय बीत गया।
एक दिन शाम के समय उन्हें थोड़ा सा समय बाज़ार के कामों के लिए भी दिया गया। सभी प्रशिक्षणार्थियों ने तब आसपास की दुकानों और मॉल आदि से अपने लिए कपड़े और दूसरा ज़रूरत का सामान खरीदा। अब तक आपस में कई लोगों से पहचान और यारियां भी हो चुकी थीं। रोहन ने ऐसे में समझदारी का परिचय दिया। वह ख़ुद ही दूसरे लड़कों के साथ घूमने फिरने में व्यस्त हो गया। कबीर और छोटे साहब को आज साथ में घूमने का खूब वक्त मिला। आज सभी ने खाना भी बाहर ही खाया।
कबीर और छोटे साहब ने भी बहुत से सामान की खरीदारी साथ में की। ऐसा मौक़ा उन्हें कई दिनों के बाद में मिला था। ऐसा लगता था जैसे बचपन के दोस्त बहुत समय बाद में मिले हों।
कबीर और छोटे साहब में केवल दो तीन साल का ही उम्र का अंतर था मगर जब साथ में होते तो दोनों बराबर के दोस्त हो जाते। सबके सामने तो कबीर शिष्टाचार और बोलने चालने में मान सम्मान का पूरा ध्यान रखता था पर जब वो दोनों अकेले होते तो उनके बीच बिल्कुल भी किसी तरह का दुराव छिपाव नहीं था। दोनों की पहुंच एक दूसरे के दिल से दिल तक थी।
रोहन तो अब कबीर से इतना खुल चुका था कि मज़ाक में ही उनके रिश्ते की कई गोपनीय बातें पूछ बैठता। किंतु कबीर इस बारे में ज़्यादा खुल कर कभी कुछ बताता नहीं था। वह तो खुद इस बात पर हैरान होकर रहता कि छोटे साहब से उसे इतना लगाव क्यों है। क्यों उनकी अनुपस्थिति में उसे सूना सूना सा लगता है। उन्हें दूर से ही देखते ही उसके मन की वीरानी जैसे छट जाती थी।
उसे रोहन के साथ ऐसी कोई फीलिंग कभी नहीं होती थी जबकि रोहन भी युवा ही नहीं बल्कि अच्छा खासा खूबसूरत लड़का था। उसके साथ खुला हुआ भी।
छोटे साहब की आंखों में उसे एक अपनापन छाया नज़र आता। वो दोनों अपना सामान तक एक दूसरे के साथ शेयर कर लेते थे। यहां तक कि जूते, कपड़े और अंडर गारमेंट्स तक।
रोहन भी अब अठारहवें साल में था। इन बातों को अच्छे से समझता था और जहां तक संभव हो उन्हें कोऑपरेट करने की कोशिश ही करता था।
ट्रेनिंग के दौरान ही उन्हें पता चला कि उनके पासपोर्ट और वीजा की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। छात्रों को खेल की बारीकियों के साथ अन्य कुछ सामान्य बातों की जानकारी भी यहां अच्छे से दी गई। देश के बारे में, भाषा के बारे में, देश के झंडे और संविधान तथा आत्म सम्मान से जुड़ी बातें भी उन्हें सिखाई गईं। मीडिया को फेस करना भी उन्होंने पहली बार जाना।
खाने पीने की आदतों और अनुशासन का पाठ भी उन्हें पढ़ाया गया। ड्रेस कोड आदि की सामान्य जानकारी भी मिली।
सूचनाओं और जानकारियों से लदे- फदे वो तीनों लौट कर आए। अब विदेश यात्रा में बस चंद दिन ही शेष थे।