सेहरा में मैं और तू - 11 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सेहरा में मैं और तू - 11

( 11 )
वो खबर भी अकादमी में ऐसे आई जैसे कोई कटी पतंग आसमान से आकर वहां मैदान में गिरी हो। हर लड़का इस पतंग को चाव से देखता हुआ लूटने के लिए लपका पर जैसे कटी पतंग दौड़ते हुए लड़कों में से किसी एक के ही हाथ लगती है वैसे ही ख़बर का ये लिफाफा भी उन्हीं को मिला जिनका नाम उस पर लिखा था।
सारे में हलचल सी मच गई। कबीर और रोहन के पासपोर्ट तैयार होकर आ गए थे। वीज़ा की कार्यवाही भी शुरू हो रही थी।
वे ने जु ए ला... वे ...ने
रोहन और कबीर से तो ये नाम भी ठीक से नहीं बोला जा रहा था। बार - बार गलत बोलते पर फिर कोई न कोई उसे ठीक कराता।
तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पर्धा में भाग लेने के लिए वेनेजुएला जाना था। न तो वहां लड़कों ने इस देश का कभी नाम ही सुना था और न ही किसी को ये पता था कि ये कहां पर है।
उनके प्रशिक्षक महोदय ने उन्हें बस इतना बताया था कि ये दुनिया के दूसरे छोर पर है और उन्हें सात समंदर पार करके जाना होगा।
लड़कों को तो यकीन तक नहीं हुआ। जैसे कोई दूसरे लोक की बात हो। इतनी दूर???
कबीर और रोहन की आंखों में तो खुशी के आंसू आ गए। एक ही साथ दोनों का चयन होने से दोनों को एक दूसरे का आसरा तो हो ही गया था। ये सोच कर ही काफ़ी हिम्मत आ गई थी कि कम से कम दोनों तो साथ में रहेंगे ही। वैसे तो उन्हें बताया गया था कि उनके साथ बाहर के और भी लोग होंगे। फिर सफ़र में तो अजनबी भी तुरंत दोस्त बन जाते हैं।
दिनों दिन अब उनकी तैयारियों में तेज़ी आ गई। लेकिन अब उनकी तैयारियों का स्वरूप बदल गया था। अब उनका ध्यान घूमने, सैर सपाटे या फॉरेन कंट्री देखने पर सीमित नहीं था बल्कि अब अपनी परफॉर्मेंस को लेकर दोनों सजग हो गए थे।
वो जानते थे कि ये पहला ही मौका है जो संयोग से उन्हें हासिल हो गया है लेकिन आगे के रास्ते उनके लिए तभी खुलेंगे जब वो अपने पूरे दमखम से कुछ कर दिखाएंगे।
उनकी चुनौती और भी बढ़ गई थी।
जल्दी ही ट्रेनिंग के लिए जाने का दिन भी आ गया। अब वो कुछ आश्वस्त से थे क्योंकि जिस स्टेडियम में उन्हें प्रशिक्षण के लिए रहना था वो उनका देखा हुआ था।
अपना सामान पैक करके वो दोनों सुबह से ही तैयार हो गए। सुबह वो राजमाता की तस्वीर की पूजा करना भी नहीं भूले। दोपहर के खाने के बाद ही उन्हें निकलना था। परिसर से एक जीप की व्यवस्था उनके लिए की गई थी जो उन्हें बारह किलोमीटर दूर एक कस्बे के बस स्टैंड पर छोड़ने वाली थी। वहां से आगे उन्हें बस लेकर जाना था।
सुबह नाश्ते के बाद वो दोनों जब अपने कमरे की ओर आए तो उन्हें लड़कों ने घेर लिया। सब उन्हें अपने अपने हिसाब से सलाह और हिदायतें देने लगे। शुभकामनाएं भी उन्हें ढेर सारी मिलीं।
वो दोनों लड़कों से घिरे हुए ही थे कि सहसा एक चमत्कार और हुआ।
एक मोटर साइकिल तेज़ी से आकर लॉन में रुकी। उस पर कोई दो लोग सवार थे। किंतु चेहरे पर हेलमेट होने के कारण दोनों ही लोग पहचान में नहीं आ रहे थे।
जिज्ञासा से उधर देखते हुए लड़के उस ओर बढ़े।
किंतु पास आते ही जो दृश्य दिखाई दिया किसी को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। सब पलट कर उसी तरफ़ दौड़ से पड़े।