सेहरा में मैं और तू - 10 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सेहरा में मैं और तू - 10


अब माहौल थोड़ा बदल गया था। दोनों लड़के कबीर और रोहन अब जैसे हीरो बन गए थे।

छोटे साहब कुछ सहमे और बुझे बुझे से रहने लगे थे। अब उनका कबीर से अकेले में मिलना उतना नहीं हो पाता था क्योंकि वह और लड़कों से घिरा हुआ रहने लगा था।

उड़ती उड़ती ख़बर ये भी आई थी कि तीनों ही प्रशिक्षक भी अपनी ओर से इस बात के लिए ज़ोर लगा रहे थे कि खिलाड़ियों के साथ कोच के रूप में जाने के लिए उन्हें चांस मिले। इतना तो तय था कि दोनों खिलाड़ी इस अकादमी से चुने जाने के कारण उनके साथ जाने के लिए एक कोच भी यहीं से चुने जाने की संभावना बलवती हो गई थी। फिर भी चारों ओर से लोग अपने- अपने रसूख और राजनैतिक कनेक्शंस का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूक रहे थे। और इस बारे में किसी भी अंतिम निर्णय की अभी प्रतीक्षा ही थी।

लगभग एक सप्ताह बाद दोनों खिलाड़ियों को उस प्रशिक्षण शिविर में जाना था जो उसी महानगर के एक स्टेडियम में आयोजित किया जा रहा था जिसमें चयन के लिए ये सब खिलाड़ी जाकर आए थे।

मुख्य प्रशिक्षक महोदय के कक्ष के बाहर बरामदे में दिवंगत राजमाता का एक सुंदर नयनाभिराम चित्र भी लगा हुआ था जिनकी स्मृति में इस अकादमी का गठन हुआ था।

सुबह की दौड़ और प्रैक्टिस के बाद दोनों खिलाड़ियों रोहन और कबीर को अक्सर उस कक्ष के बाहर देखा जाता था। प्रायः वो दोनों सुबह राजमाता के चित्र के समक्ष हाथ जोड़ने के बाद ही नाश्ते के लिए जाते देखे जाते थे। कबीर तो कभी - कभी इस चित्र के समक्ष अगरबत्ती भी जला कर आता था।

आख़िर यही तो वो स्थान था जिसने उसकी जिंदगी में उजाला किया था। कहते हैं कि जैसे जैसे जीवन में उपलब्धियां बढ़ती हैं वैसे वैसे ही मनुष्य की आस्थाएं भी बढ़ती हैं।

तभी अचानक एक दिन लड़कों को पता चला कि उनके प्रशिक्षक छोटे साहब अकादमी छोड़ कर चले गए हैं। अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया। तरह तरह की बातें सुनाई देने लगीं।

कोई कहता था कि साहब बीमार हैं इसलिए बीमारी का लंबा अवकाश लेकर अपने गांव चले गए हैं।

किसी किसी को न जाने कहां से ये खबर भी मिल गई थी कि साहब के ससुराल से आए उनके रिश्तेदारों ने साहब की शिकायत कर दी है और पुलिस कार्यवाही से बचने के लिए साहब एकाएक अंडर ग्राउंड हो गए हैं। वो अचानक कहीं चले गए हैं जिसके बारे में कोई नहीं जानता।

लड़के कबीर से उनके बारे में पूछते तो वो ख़ुद आश्चर्य से पूछने वालों का चेहरा देखने लग जाता। उसे कुछ पता नहीं था कि क्या हुआ, कैसे हुआ और क्यों हुआ। लेकिन इतना जरूर था कि कबीर भी कुछ बुझा बुझा उखड़ा हुआ सा रहने लगा। कुछ दिन पूर्व उसके चेहरे पर आई सफलता की उमंग यकायक न जाने कहां गुम हो गई।

रात का खाना खाने के बाद कभी कभी कबीर, रोहन और कुछ अन्य लड़के टहलने के लिए मिलते तो ये चर्चा ही छिड़ जाती कि अचानक छोटे साहब की शिकायत उनके रिश्तेदारों ने क्यों कर दी। क्या उन्हें छोटे साहब के संबंधों के बारे में कुछ पता चल गया। क्या किसी ने उन लोगों से छोटे साहब और कबीर के बाबत कुछ कह दिया?

कबीर मन ही मन कभी- कभी अपने को भी दोषी मानने लग जाता और ऐसे में उसका जी और भी उचाट हो जाता। पर वो मन ही मन ये भी सोचता था कि साहब को इस तरह जाने से पहले कम से कम उसे तो कुछ बता कर जाना चाहिए था।

उसकी सफलता की खुशी को भी जैसे कोई ग्रहण लग गया था।

बाकी दोनों प्रशिक्षक भरसक ऐसा जताने की कोशिश करते थे कि जैसे कहीं कुछ न हुआ हो और सब कुछ ठीक चल रहा हो लेकिन लड़के फिर भी इस बात को आसानी से पचा नहीं पा रहे थे और मौके- बेमौके चर्चा करते ही थे।

और तभी एक दिन मिली वो ख़बर!