श्राप एक रहस्य - 22 Deva Sonkar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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श्राप एक रहस्य - 22

उसे कोई शक्ति नहीं मार सकती। उसे बस एक चीज़ ख़त्म कर सकती है...वो है "छल"। हा, छल से ही उसे मारा जा सकता है। क्योंकि उसका जन्म ही उसके किये धोखे से हुआ है। लेकिन उसे छलने से पहले उसका बिस्वास पात्र भी बनना होगा"।

"लेकिन उसके इतने करीब भला कौन जा सकता है..?" थोड़ा सा परेशान होकर अखिलेश बर्मन ने कहा।

"तूम"

बड़े आराम से सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने जवाब दिया।

"क्या कहा मैं..? लेकिन मैं कैसे, और मैं ही क्यों...?"

"क्योंकि तुमने ही उसके सबसे बड़े दुश्मन को मारा है। तुम्हारा बेटा, वहीं था जिसने इतने दिनों तक उसे रोक रखा था। उसकी शक्तियों का एक दायरा बंधा था। लेकिन अब वो आज़ाद है, किसी को भी मारने के लिए। सबकुछ जड़ से ख़त्म कर देगा वो अगर उसे रोका नहीं गया। तुम ही बनोगे उसके सबसे ख़ास।" सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने साफ़ साफ़ शब्दों में ये बात अखिलेश बर्मन को समझा दिया था।

उसके बाद वे लिली को लेकर वहां से निकल गए। हां वे चाहते थे की, घिनु और प्रज्ञा की रूह में दुश्मनी हो जाएं तभी तो कोई और घिनु के करीब जा पायेगा। घिनु अभी तैयार नहीं था लोगों के बीच आने के लिए, वो तो अभी ख़ुदको तैयार कर रहा था। और बाहर उसके कीड़ो ने ही पूरी घाटी को ख़त्म कर डाला। पता नहीं घिनु बाहर आएगा तो और क्या क्या होगा...?

मासूम लोमड़ियों का झुंड बेमौत ही मारा गया था। अगली सुबह फ़िर शहर में अफरा तफ़री मची थी। धड़ल्ले से न्यूज़ पेपर की बिक्री हो रही थी। हेडलाइन्स में लिखा था...." घाटी का दुश्मन ख़त्म हुआ"। पुलिस और रेस्क्यू टीम ने मिलकर घाटी के अंदर से कुल मिलाकर सात खूंखार लोमड़ियों को धर दबोचा। बाद में अपने बचाव के लिए लोमड़ियों के दल को मार देना पड़ा। इस काम में दो दिग्गज पुलिसकर्मियों को चोटें भी आई है। लेकिन घाटी के लोग और पूरा शहर अब चैन की सांसे ले सकता है।"

सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने गुस्से में ज़ोर से पेपर को टेबल में पटका। "मतलब हद है, ख़ुद को ऊंचाई पर ले जाने के लिए इन लोगों ने क्या षड्यंत्र रचा है। भोले जानवरों को ही अपना शिकार बना लिया। यूँ ही तो ये श्राप लौट नहीं आया। किताब में साफ़ साफ़ ही लिखा था , जब कभी दुनियां बेईमानी,झूठ, और धोखेबाजों से भरने लगेगी। तब तब ये श्राप फ़िर से जी उठेगा। हर बार जी उठेगा। ताकि लोगों को समझ आये धोखे कभी कभी कितना बुरा अंजाम दिखाते है। अपनी वाहवाही के लिए ही तो इन लोगों ने जबरदस्ती कहीं से लोमड़ियों के झुंड को ढूंढा होगा और उन्हें मारकर पेश कर दिया इस नौटंकी सरकार के सामने। यक़ीनन अब किसी की पदौन्नति होगी और किसी की तनख्वाह में बढ़ोतरी भी होगी। लेकिन बेमतलब मारे गए उन जानवरों पर किसी को दया नहीं आएगी।

ख़ैर.....सोमनाथ चट्टोपाध्याय हर दिन इसी इंतजार में थे कि कब घिनु पूरी तरह से तैयार हो और कब उनका आमना सामना हो। वो चाहते थे कुछ भी और करने से पहले घिनु उनसे ही टकराये और उलझ जाएं उनके रचे षड्यंत्र में। ताकि और मासूम लोगों की जान को ख़तरा ना हो। लेकिन सबकुछ हमारे सोचे हुए जैसा ही तो नहीं होता ना। कुछ चीजों का होना तो पहले से तय होता है।

उस रात भी ऐसा ही हुआ। :-

"देखो गाड़ी ढंग से चलाओ। पीछे अदिति सो रही है"

रौशनी ने थोड़ा कठोर होकर अपने पति नीलेश को कहा।

नीलेश :-" दिमाग़ ख़राब है तुम्हारा, कभी अपने रसोई से बाहर निकलकर न्यूज़ भी पढ़ लिया करो। पता भी है शहर में क्या चल रहा..? अरे घाटियों में लोमड़ियों ने हमला किया है, कितने लोग मारे गए। वो तो अच्छा है हमारे पुलिस टीम ने लोमड़ियों को अगले दिन ही पकड़ लिया। वरना रात में इन रास्तों से गुज़रना असंभव ही था।"

नीलेश और रौशनी अपनी 13 वर्षीय बेटी अदिति के साथ एक फैमिली फंक्शन से लौट रहे थे। रात के करीब ग्यारह बज रहे थे। इस वक़्त वे घाटी वाले रास्ते से होकर ही अपने घर लौट रहे थे। नीलेश जो सबकुछ जानता था कि इन दिनों घाटी में क्या चल रहा है, इसीलिए वह थोड़ा स्पीड में कार चल रहा था। जिसके वजह से घुमावदार रास्ते में गाड़ी अपना नियंत्रण बार बार खो रही थी। रोशनी ने भी घाटी के बारे में ऐसी बातें सुनी जरूर थी, लेकिन उसे इन बातों पर यकीन नहीं था। उसे लगता था यह सब जरूर किसी राजनीतिक दल का काम है। लेकिन वह गलत थी। वह जल्द से जल्द घर पहुंच जाना चाहते थे। लेकिन अभी कुछ दूर ही आगे बढ़े थे की उनकी गाड़ी एक जोरदार ब्रेक लेकर रुक गयी।

सामने कुछ था, कुछ ऐसा जो मानवीय नहीं था। नहीं वो कोई लोमड़ी भी नहीं था। वो एक विशाल दानव जैसा ही था। वो आकार में इतना बड़ा था कि घाटी के ऊंचे पहाड़ भी उसके आधे तक ही आ रहे थे। नीलेश और रौशनी चिल्लाने लगे, उनकी चीख सुनकर उनकी बेटी अदिति भी जाग गयी। वे तीनों फंस चुके थे। उन्होंने देखा उस विशालकाय जीव पीछे और भी कुछ था। आसमान में उड़ रहे कुछ बेहद छोटे भिनभिनाते हुए कीड़े। जिन्होंने अब उस दानव को भी आगे से ढंक लिया था। वे कीड़े अजीब सी भिनभिनाहट के साथ उनकी गाड़ी की ही तरफ़ आ रहे थे। और महज़ कुछ मिनटों बाद ही उन कीड़ो ने पूरी गाड़ी को ढंक लिया । भीतर से चिल्लाने की आवाज़ अब और तेज़ हो गयी थी। ऐसा लगता जैसे कीड़ो ने बड़ी आसानी से कार के मज़बूत शीशो को ख़त्म कर दिया हो।

उन्होंने उन तीनों पर हमला कर दिया था। लेकिन सोमनाथ चट्टोपाध्याय तो वही थे, कुएं के पास। वे तो अपनी नज़र घिनु पर ही गड़ाए बैठे थे। फ़िर कैसे वो उनसे बचकर भाग गया। क्या वो एक ही वक़्त में दो जगहों पर रह सकता है..?

क्रमश :- Deva sonkar