श्राप एक रहस्य - 23 Deva Sonkar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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श्राप एक रहस्य - 23

कितनी गलतफहमियां लेकर जी रहे थे इन दिनों लोग। ये सबूत था इस बात की....

वो बस तेरह वर्ष की थी। लेकिन उसने कल रात जो देखा था, वो देखना भी अपने आप में मौत को बिल्कुल करीब से देखने के बाद लौटने जैसा ही था। उसके माँ और पिता दोनों की मौत हो चुकी थी। और पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स में ये भी क्लियर हो गया था कि उनकी मौत किसी लोमड़ी के हमले की वजह से नहीं हुआ था। और इस बार तो उसने साफ़ साफ़ अपनी आँखों से देखा तक था। वो जिंदा थी लेकिन लगातार रह रह कर वो कांप उठती। उसने अपने होंठ भींच रखे थे, इतनी ज़ोर से की होठों से अब खून भी बहने लगा था।

उसकी आँखें पत्थर के समान कठोर और भवनहीन हो गए थे। ऐसा लगता जैसे वो कुछ भी सोचने और समझने की अपनी शक्ति खो चुकी है। ले देकर कह सकते है कि अदिति इस वक़्त एक गहरे सदमे में थी। वो किसी को भी कुछ बता सकें इस हालत में तो हरगिज़ नही थी। उनकी गाड़ी अपने आगे के हिस्से से बुरी तरह टूट चुकी थी। वो सुबह कुछ लोगों को दिखी थी, कार के पिछले सीट में ख़ामोशी से बैठी, और कार से थोड़ी ही दूर दो लाशें पड़ी थी। नीलेश और रौशनी की लाशें। अजीब सी लाशें थी ये.....जैसे मरने के बाद ही मरने वाले कि उम्र अचानक बढ़ गयी हो। कुबड़ा हुआ जिस्म, टूटे दांत और सुखी हुई चमड़िया। लगता जैसे कोई इनकी सारी जवानी ही चूस गया हो।

इधर शहर के सरकारी अस्पताल के आगे पत्रकारों की एक भारी भरकम भीड़ खड़ी थी। कोई सरकार की व्यवस्था को गालियां दे रही थी, तो कोई कल ही हेडलाइन्स में तारीफें बटोरने वाले पुलिसवालों को मक्कार बता रहा था। मतलब अब ये तो बिल्कुल साफ़ ही था कि ये हत्याएं जो इन दिनों धड़ल्ले से हो रही थी, वो किसी जानवर का काम नहीं था। बेकार ही लोमड़ियों का एक समूह मारा गया।

अदिति के ग्रैंड पेरेंट्स आ चुके थे। और लाशों को जलाने की तैयारी हो रही थी। कुछ भी तो सामान्य नहीं था इस शहर में। लगता जैसे पूरे शहर को ही किसी डायन की नज़र लग गयी है। तभी तो शहर में वो सब हो रहा है जो अब तक ये बेचारे मासूम शहरवासी फिल्मों में ही देखते आ रहे थे। एक साथ इतने सारे लोगो को मर जाना छोटे शहरों के लिए आसान बात नहीं होती। आसान बात नहीं होती लोगों का यूँ अपने परिवार को छोड़ जाना। ख़ासकर जवान लोगों की मौत को हज़म कर पाना बहुत मुश्किल होता है। किसी ने इस बात पर ग़ौर नहीं किया घिनु के शिकार अधिकतर जवान लोग ही होते है। वो उनसे उनकी सारी जवानी ही छीन लेता है।

एक एक मरने वाले के नाम और उम्र को न्यूज़ पेपर में पढ़ते वक्त इस बात पर ग़ौर सिर्फ़ सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने ही कि थी। इसका मतलब था....उसकी कुछ कमियां तो है, उसकी उम्र बढ़ती है, वो डरता है बूढ़े होने से औऱ इसलिए वो लोगों से उनकी जवानी छीन रहा है।

वे फ़िर अपने डायरी में कुछ लिखने लगे। इस वक़्त वे अखिलेश बर्मन के घर पर ही थे। वे वहीं रह रहे थे, क्योंकि अखिलेश बर्मन ने उन्हें कहीं जाने ही नहीं दिया था। जबकि वे चाहते थे कि वो घिनु के विषय मे सारी बातें अखिलेश बर्मन को बताकर वापस जर्मनी लौट जाएंगे। लेकिन शायद बड़े बुजुर्ग ठीक ही कहते है.... जिस जगह पर, जिस धरती में आपका जन्म हुआ हो, आपकी मौत भी आपको उसी जगह पर बुलाती है। मतलब मरने के ठीक पहले आपको उस जगह की बहुत याद आती है जहाँ आपका जन्म हुआ हो, वे लोग भी याद आते है जिन्होंने आपको जन्म दिया हो।

अदिति इस वक़्त भी। सरकारी अस्पताल के एक बिस्तर पर पड़ी थी। उसकी आँखें अस्पताल के छत को घूर रही थी। न तो वो पलकें झपका रही थी ना ही उसके आंखों में एक बूंद आंसू भी था। सामने ही उसकी दादी बैठी ऊंघ रही थी। बहुत देर से वो रो रोकर थक गयी थी, और अपनी पोती को रुलाने की अनगिनत बार कोशिशें कर चुकी थी। डॉक्टरों का कहना था उसका रोना बेहद जरूरी था, नहीं तो शायद ये सदमा उसे भी खा जाएगा।

इधर बाहर बैठे रिपोर्टर थे, जिन्हें किसी की संवेन्दनाओ से कोई मतलब नहीं था। वे बस कल की हेडलाइन्स के लिए एक मसाला ढूंढ रहे थे। वे सब बार बार अदिति से मिलने के लिए डॉक्टरों से गुहार लगा रहे थे, लेकिन डॉक्टरों ने इसके लिए शख़्त मना कर रखा था।

"कितनी ख़ुश थी वो, सौम्या की मुँह जूठी के प्रोग्राम में गए थे वो लोग। सौम्या उसकी मामा की छोटी सी गुड़िया, महज़ छह महीने की। कितना प्यार करती है अदिति उसे। उसकी अपनी कोई बहन या भाई तो नहीं थे इसलिए सौम्या को ही वो अपना सबकुछ समझती थी। भले ही दोनों के बीच उम्र का एक बड़ा फ़ासला था लेकिन छोटी सौम्या भी तो अदिति को देखकर कितना ख़ुश हो जाया करती थी।

काश उसने अपने पापा की बात मान ली होती। वे तो रात में वापिस लौटना ही नहीं चाहते थे, लेकिन अदिति के स्कूल में अगले ही दिन टेस्ट था। ना चाहते हुए भी उसने पापा को घर लौटने के लिए जिद्द की। और फ़िर रास्ते मे वो गाड़ी के पिछले सीट में सो गई। लेकिन कार के एक जोरदार झटके से उसकी नींद टूटी थी। ये वहीं वक़्त था जब नीलेश ने उस अजीब सी चीज़ को सामने देखकर गाड़ी को जोरदार ब्रेक दिया था।

पता नहीं क्या था वो। इतना बड़ा की उसके ऊपर का हिस्सा तक नहीं देख सकीं थी अदिति। फ़िर अजीब से कीड़ो से पूरी गाड़ी भर गयी, यक़ीन करना भी मुश्किल था उन कीड़ो ने गाड़ी को तोड़ दिया था। कांच टूट गये थे। और वो पिछले सीट पर नीचे ही दुबक गयी थी। शायद इसलिए तो वो बच गयी थी। कितनी डरपोक थी वो, उसने अपने परिवार को बचाने के लिए एक हाथ भी आगे नहीं बढ़ाया था। उन कीड़ो ने एक तरह से हमला कर दिया उसके पिता और माँ पर। वे चिल्लाने लगे थे, और गाड़ी से निकलकर भागने लगे थे। लेकिन वे दबोचे गए। उसी विशालकाय के हाथों। उसने कोई रहम नहीं दिखाई और उसके मां और पापा को मार डाला उसने। पता नही कैसे लेकिन अचानक उनकी चींखें आनी बंद हो गई और सबकुछ फ़िर बिल्कुल शांत हो गया। सिर्फ़ एक चीज़ थी जो लगातार आवाज़ कर रही थी वो थी अदिति की धड़कने।

क्रमश :- Deva sonkar