मेरी भैरवी - 12 - रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास - स्वर्ण महल निखिल ठाकुर द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मेरी भैरवी - 12 - रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास - स्वर्ण महल

सिद्धेश्वर और माया को वे लोक अपने साथ स्वर्ण महल में लेकर आते है और सिद्धेश्वर को दो हटे-कटे आदमी उस पकड़कर महल के कक्ष में ले जाते है और माया को सुहाना अपने साथ अपने कक्ष में ली जाती है।
थोड़ी देर में वैद्य को बुलाकर मेरे पास लाया जाता है और वो वैद्य मेरे शरीर को गौर से देखता है और फिर उसने मेरी नब्ज को देखा ...कुछ देर मौन होकर देखने के बाद ..वो वैद्य कहता है..,इसकी शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों ऊर्जा अत्याधिक कम हो गई...इसने बहुत मात्रा में अपनी ऊर्जा का प्रयोग कर लिया है...यह तो भगवान का शुक्र है कि यह अभी जीवित है ,,,,यदि कुछ और ऊर्जा का प्रयोग कर लेता तो संभवत: इसकी मृत्यु हो जाती है।
उस वैद्य की बात सुनकर वह दोनों हटे-कटे युद्ध के स्थान में जो कुछ भी हुआ था ...वो सब सारी की सारी बातें बता देते है और कहते है..इसने हम लोगं को बचाने के लिए ही ऊपनी इतनी ज्यादा ऊर्जा का प्रयोग कर लिया ,...कृपया आप किसी भी तरह से इसे स्वस्थ कर दें। आप तो मायावी चिकित्सा में निपुण वैद्य है और अनेक मायावी जड़ी बूटियों के ज्ञाता भी...आप इसे बचा लें..उनकी बाते सुनकर वह बजुर्ग वैद्य कुछ देर चुप हो जाता है और थोड़ी देर के बादल अपनी चुप्पी तोड़ते हुये कहता है..इसे ठीक करने के लिए...शक्तिवर्धक रसायनिक गोली का ही निर्माण करना पड़ेगा और वे गोलियां मेरे पास अभी खत्म है और उनके निर्माण के लिए मुझे एक दिन और रात का समय लगेगा।
उस बजुर्ग वैद्य की बात सुनकर वे दोनों आदमी कहते है ...एक दिन और एक रात का समय तो बहुत ज्यादा है...यदि इसके बीच में भी इसे कुछ हो गया तो हम मालिक को क्या कहेंगे।
उन्होंने अपनी बात पूरी की ही थी तभी कक्ष के अंदर वो ही बजुर्ग अन्दर आता है जो उनके साथ उस मायावी जंगल में था...उसे देखकर वह अधेड़ उम्र का बजुर्ग वैद्य अपने घूटनों में बैठकर अपने मस्तक को जमीन लगाकर उसे प्रणाम करते हुये कहता है...मालिक को मेरा प्रणाम हो?
फिर वह अधेड़ उम्र का बजुर्ग खड़ा हो जाता है और वह बजुर्ग उससे पुछता है ....अब इसका स्वास्थ्य कैसा है...वैद्य जी आप इसे बचा सकते है।
फिर वह वैद्य कहता है मालिक ..,इसे बचाने के लिए शक्तिवर्धक रसायनिक औषधि का प्रयोग करना पड़ेगा...परंतु दुर्भाग्यवश से वो औषधि मेरे पास समाप्त है और उसके निर्माण के लिए मुझे एक दिन और एक रात का समय लगेगा और इस युवक की हालात भी बहुत गम्भीर है ....मुझे संदेह है कि यह एक दिन और एक रात के समय अवधि तक जीवित रह पायेगा।
वैद्य की बात सुनकर वह बजुर्ग परेशान सा हो जाता है और कहता है ..इसकी यह दुर्दशा हमे बचाने की बजह से हुई है ...और अब जब यह नवयुवक मौत और जिन्दगी के बीच में अपनी आखिरी सांस पर है तो हम इस बचाने में असमर्थ है...क्या शक्तिवर्धक रसायनिक औषधि के अलावा कोई अन्य उपाय नहीं इसे बचाने का ...वह बजुर्ग बैद्य से कहता है।
कुछ देर सोचने के बाद वह बजुर्ग कहता है ..,एक उपाय है ....यदि कोई उच्चस्तरीय आध्यात्मिक ऊर्जा वाली योगिनी मण्ड़ल को पार कर चुकी कुंवारी युवती यदि अपनी ईच्छा से इसके साथ आध्यात्मिक साधना करते हुये अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा इसके अंदर ड़ालती है तो ...कुछ समय तक यह युवक जीवित रह सकता है...परंतु इस कार्य में उस युवती को अपनी आधी आध्यात्मिक ऊर्जा का खोना पडेगा।यदि कोई युवती ऐसा करती है तो यह युवक एक दिन और एक रात तक जीवित रह पायेगा और इसके अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास होना फिर से प्राराम्भ होगा और तब तक मैं शक्तिवर्धक रसायनिक औषधि का निर्माण भी पूर्ण कर सकता है।
परंतु मालिक ऐसा जोखिम कौन युवती उठा पायेगी और हमारे इस महल में तो योगिनी मण्ड़ल में पूर्णता प्राप्त कर चुकी ऐसी कोई भी युवती नहीं है .....
बजुर्ग की बात सुनकर बह बजुर्ग परेशान हो जाता है और अपनी भौंहों को भींचते हुये कहता है ...यह तो बहुत मुश्किल कार्य है ....यदि ऐसी युवती मिल भी जाती है तो क्या वो इस कार्य के लिए तैयारी हो पायेगी। इसके अलावा तुम्हारे पास अन्य कोई उपाय नहीं है क्या...अपने मालिक की बात सुनकर वह वैद्य कहता है..,इसके अलावा अन्य कोई भी उपाय नहीं है।
इस युवक ने अपनी शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का बहुत ही मात्रा में प्रयोग कर लिया है और जिस शक्ति के प्रयोग के लिए इसने अपनी ऊर्जा का प्रयोग किया था उसके लिए यह युवक अभी परिपूर्ण नहीं था...जिसके कारण उस शक्ति ने इसकी ऊर्जा को सोख लिया और जिसके कारण इसे आंतरिक चोटें भी आ गई है। उस शक्ति पर नियंत्रण करने के लिए और अपने आपको स्वस्थ करने के लिए इसे आध्यात्मिक साधना करना जरूरी है ..और अभी इसकी हालात आध्यात्मिक साधना करने के योग्य नहीं है...एक योगिनी मण्ड़ल में पूर्णता प्राप्त की हुई युवती ही इसके शक्तियों को नियंत्रण करके इसके अंदर अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा ड़ालकर बचा सकती है..या तो शक्तिवर्धक रासायनिक औषधि ही ...परंतु दुर्भाग्यवश दोनों परिस्थिति में हमारे पास दोनों ही उपलब्ध नहीं है।
उधर दूसरी तरफ सुहाना अपने कक्ष में माया को कुछ कपड़े पहनने को देती है और माया उन कपड़ों को पहनकर बेहद ही सुंदर लग रही थी....लाल रंग के गाऊन में माया बिल्कुल से एक देवकन्या से कम नहीं लग रही थी...और गाऊन में लगे छोटी-छोटी हीरे -मोतियों की मालायें उस गाऊन में माया की सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे।उसे देखकर कोई भी मर्द अपना होश खो बैठता और उसकी सुन्दरता का दीवाना हो जाता है।
वस्त्र पहनने के बाद सुहाना ...माया को अपने साथ महल के बाहर भ्रमण करने के लिए ले जाती है और माया को देखकर महल के परिसर और महल के बाहर के सभी पुरूषों उसकी सुन्दरता के आगे अपने दिल हार बैठ़ते है और सभी उसे पाने के स्वप्न देखने लगते है और उसकी सुन्दरता की तारीफ करने लगते है। तभी एक पुरूष कहता है ..यह तो वास्तव में बेहद ही सुन्दर है..,ऐसा लग रहा है कि कोई देवकन्या साक्षात हमारे समक्ष आ गई हो। दूसरा पुरूष कहता है ..,यदि यह एक बार मेरी हो जाती है तो मैं उम्रभर इसकी गुलामी करूंगा...इस तरह से सभी पुरूष माया की सुन्दरता की तारीफ अपने -अपने शब्दों में कर रहे थे।
माया तो इन सभी की तरफ कोई ध्यान तक नहीं देती है और चुपचाप से सुहाना के साथ चलने लगती है ...और मानों कि माया को उन सबकी बातों में कोई दिलचस्पी हो ही नहीं।
कुछ समय तक भ्रमण करने के पश्चात माया और सुहाना दोनों महल वापिस लौट आती है और महल लौटते ही दोनों को सिद्धेश्वर का ख्याल आता है और वे दोनों फिर सिद्धेश्वर के स्वास्थ्य देखने लिए उसके महल की ओर चली जाती है।
सिद्धेश्वर के कक्ष पर पहुंच कर वे दोनों वहां पर उपस्थित लोगों को देखती हैं और फिर सुहाना अपने दादा जी से कहते है...दादा जी अब इसका स्वास्थ्य कैसा है...यह ठीक तो है ना दादा जी..सुहाना की बात सुनकर उसका दादा उसकी ओर देखता है और कुछ भी नहीं बोलता है...दादा जी की चुप्पी देखकर सुहाना को कुछ समझ नहीं आता है ...वह बस खामोश होकर अपनी मासुम नजरों से अपने दादा जी की ओर देखती रहती है।
कुछ देर की खामोश चुप्पी के बाद माया ..सुहाना के दादा से कहती है...क्या इसे ठीक कर पाना मुश्किल है....यह बच तो जायेगा ना..माया की बात सुनकर सुहाना के दादा को कुछ भी समझ नहीं आता है कि वह माया से क्या कहें...कैसे उसके प्रश्नों का उतर दें।
फिर बड़ी मुश्किल से मायुस भरे चेहरे के साथ सुहाना का दादा माया से कहते है...पुत्री मुझे माफ करना ...इसे बचा पाने का उपाय हमारे पास नहीं है...हम सब बहुत विवश है .....इसने अपनी आध्यात्मिक और शारीरिक ऊर्जा का अत्याधिक प्रयोग अपनी वास्तविक क्षमता से ज्यादा कर लिया है ...जिसके कारण इसे बहुत सी आंतरिक चोटें भी आई है...जिन उपायों से इसके प्राणों की रक्षा की जा सकती है...दुर्भाग्यवश वह उपाय अभी हमारे पास उपलब्ध नहीं और ना ही शक्तिवर्धक रासायनिक औषधि भी बची है ...इस औषधि के निर्माण के लिए एक दिन और एक रात का समय लगेगा और इस युवक की हालात पल -पल नाजुक होती जा रही है तो ये कह पाना कठिन है कि जब तक शक्तिवर्धक रासायनिक औषधि का निर्माण पूर्ण होगा तब तक शायद यह युवक जीवित बच पायेगा।
मुझे अपनी मृत्यु तक इस बात का अफसोस और खेद रहेगा कि जिसने हम सबके प्राणों की रक्षा की मैं उसे बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर पाया।यह कहते हुये उस बजुर्ग की आँखें नमी सी हो गई थी और वह चुप हो गया।
बजुर्ग की बात सुनकर माया उससे पुछती है ...दूसरा उपाय कौन सा है ....कृपा करके मुझे बतायें....अगर उस उपाय को करने से इसकी जान बच पाती है तो मैं उस उपाय को करूंगी...जहां से भी जड़ी-बूटियां लानी पडे़ तो मैं स्वयं लेकर आऊंगी ...समय से पहले ही।
माया की बात सुनकर वह बजुर्ग कहता है..पुत्री यदि जड़ी -बूटी ही लाने को होती तो मैं स्वयं ही उसे लाने के लिए जाता ...माया बजुर्ग की बात सुनकर आश्चर्य में पड़ जाती है और आश्चर्य होकर पुछती है ...तब दूसरा विकल्प क्या है ...अगर जड़ी -बूटी नहीं लानी है तो..किसी दुर्लभ वस्तु को लाने की जरूरत है क्या...माया की बात सुनकर बजुर्ग कहता है ...उससे भी ज्यादा दुर्लभ चीज है वह...क्योंकि उसे जल्दी खोज पाना नामुकिन है...माया हैरान होकर पुछती है ..ऐसी कौन सी दुर्लभ चीज है ....और उसे खोज पाना भी कठिन है।
कुछ देर तक बजुर्ग को कुछ समझ नहीं आता है कि वह माया को कैसे बताये कि किस चीज़ को खोजना है ..फिर थोड़ा साहस करके कहता है ...वह दूसरा उपाया है एक कुंवारी युवती ..जिसने योगिनी मण्ड़ल में पूर्णता प्राप्त कर ली हो...यदि कोई ऐसी स्त्री इस युवक के संग एकरत होकर आध्यात्मिक साधना करते हुये अपनी ऊर्जा इस युवक के अंदर ड़ाल देती है तो यह युवक एक दिन एक रात तक के समय तक जीवित रह सकता है और तब तक हमारा वैद्य शक्तिवर्धक रासायनिक औषधि का निर्माण कर लेगा।इस तरह से हम इस युवक की जान को बचा पायेंगे।
परंतु ऐसी कुंवारी युवती को इतने कम समय में ढ़ढें भी तो कहां ...यदि मिल भी जाती तो क्या वह अपने कौमार्य को भंग करने के लिए तैयार होगी और तो और अपनी आधी ऊर्जा देने के लिए भी तैयार होगी..क्योंकि योगिनी मण्ड़ल पूर्ण करने में ही बहुत कठोर मेहनत और आभ्यास की जरूरत होती है और फिर अपनी आधी ऊर्जा देने से वह पूर्ण योगिनी ना होकर अर्धयोगिनी ही कहलायेगी और अपनी पूर्ण ऊर्जा प्राप्ति के लिए उसे फिर कठोर उग्र साधना करनी पड़ेगी।
बजुर्ग की बात सुनकर माया भी हैरान हो जाती है और कक्ष में एक दम सन्नाटा पसार जाता है..इतनी खामोशी हो जाती है कि यदि एक सुई भी गिरा दी जाये तो उसके गिरने की आवाज स्पष्ट रूप से सुनाई देती।

क्या माया अपना रहस्य सबके समक्ष उजागर करेगी...क्या माया सिद्धेश्वर को बचा पायेगी...या यूं ही उसे मरने के लिए छोड़ देगी...क्या होगा अब आगे ,..,जानने के लिए पढ़ते रहे इस कहानी को मेरे साथ यानी निखिल ठाकुर के साथ मेरी कलम से जिसका नाम है """"""मेरी भैरवी(रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास).....!!