मेरी भैरवी - 11 - विशालकाय मायावी जानवर से युद्ध निखिल ठाकुर द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी भैरवी - 11 - विशालकाय मायावी जानवर से युद्ध

वे सभी लोग उस विशालकाय जानवर को गौर से देख रहे थे और उसकी कमजोरी को ढूंढ़ने की कशिस कर रहे थे...ताकि उस विशालकाय जानवर को मारा जा सके।
इधर माया भी गौर से उस जानवर को देख रही थी..पत्ता नहीं उसकी दिमाग में क्या चल रहा था। मैं तो बिल्कुल से चुपचाप माया को देख रहा था और उन सभी लोगों को भी ,,,आखिर सभी दिमाग में चल क्या रहा है ...कहीं माया और ये सभी इस जानवर से लड़ने की तो नहीं सोच रहें...आखिर है कौन सा जानवर ...इस तरह के जानवर के बारे में मैंने कभी भी कहीं पर भी ना पढ़ा था और ना ही किसी कुछ सुना था।मैं यह सब सोच ही रहा था कि तभी वह विशालकाय मायावी जानवर जोर से दहाड़ना शुरु करता है ..और उसकी दहाड़ इतनी ज्यादा तेज थी...कि मानों हमारे कानों के पर्दे तक भी फट रहे हो उसे सुनकर ।
वह विशालकाय मायावी जानवर देखने में तो बहुत ही खुंखार और डरावना लग रहा था।उसके बडे़-बडे़ पंख और बड़ा सा चमगादड़ जैसा मुंह और मोटे-मोटे चार पंजे ..जिनके नाखुन बहुत नुकीले और लंबे थे।उस देखकर तो एक पल के लिए किसी भी व्यक्ति का दिल दहल उठता और वह उसे देखकर बहोश पक्का हो जाता।
उस जानवर गौर से देखने के बाद..वह बजुर्ग कहता है ... यह कोई सामान्य जानवर नहीं है यह एक मायावी जानवर है ...और इसकी काली शक्ति की आभा भी उच्चस्तरीय है...इस तरह के जानवरों का जिक्र प्राचीन शैतान- ए- काला जादु के ग्रंथ में वर्णित है और उस ग्रंथ में इस तरह के जानवर को उत्पन्न करने के अनेक मायावी प्रयोग है।हमारे आध्यात्म तंत्र के क्षेत्र में इस तरह के जानवरों मायाधारी असुर कहते है...ये मायावी जानवर अपने शरीर को अनेक जानवरों के रूप में परिवर्तित करने की सक्षम होते है।इस तरह के जानवरो का निर्माण तो एक उच्चमायावी स्तर को पार कर चुका तांत्रिक ही कर सकता है ..जो पूरी तरह से मायावी शैतानी विद्या में पारांगत हो चुका हो...मायावी शैतानी विद्याओं के द्वारा इसकी उत्पति होने के कारण इसमें अनेक मायावी क्षमतायें विद्यमान होती है और ये जानवर मनुष्य की तरह सोचने-समझने की क्षमता भी रखते है।मायावी शैतानी तांत्रिक विद्या में...जिसे मायावी शैतानी काली विद्या कहते है उसके द्वारा इस तरह की मायावी जानवरों का निर्माण किया जाता है और इन जानवरों में आसुरी प्रवृति अत्याधिक होती है और अपने मालिक के प्रति वफादार भी होते है।शैतानी विद्या में इस विशालकाय जानवर को मायावी भैरूंडासुर के नाम से जाना जाता है। सभी उच्चस्तरीय मायावी शैतानी जानवरों में यह पचासवीं मायावी श्रेणी का उच्चस्तरीय मायावी जानवर आता है। शैतानी विद्या में उच्चस्तीरय मायावी जानवर की कुल श्रेणियां सौ होती है। जिन्हें उच्चस्तरीय मायावी जानवरों की सौ प्रजाति कहा जाता है ...प्रत्येक प्रजाति में एक शक्तिशाली मुखिया होता है और उसके नीचे दस उच्चस्तरीय मायावी सेनापति जानवर होते है और इनके नीचे मध्यम स्तर के बीस अंगरक्षक मायावी जानवर होती है ..इनके अलावा सैंकड़ो शैतानी जादुई जानवरों की सेना होती है।उच्चस्तरीय मायावी जानवरों की सबसे खतरनाक प्रजाति कालकुण्डी असुर प्रजाति है ..जो प्रथम श्रेणी में आती है।
यह जानवर बेहद ही शक्तिशाली है और इसका सामना करना सरल नहीं होगा। इसके प्राण केवल इसके जन्मदाता के पास ही होते है।इसके बारे में ज्यादा कुछ तो मालुम नहीं है ..जितना मैंने अपने गुरू से सुना है उतना तुम सबको मैंने बता दिया है.....तुम सभी लोग सावधान और सतर्क रहें और हां इस बात का विशेष ध्यान भी रखें कि यह अपने मुख से भीषण अग्नि फेंकता है और यदि इस अग्नि के सम्पर्क में कोई आता है तो उसका शरीर तुरन्त जलकर राख में बदल जाता है और अपनी आँखों के माध्यम से अनेक विनाशक संहार शक्तियों का प्रयोग करता है ...हम लोगों को इसे हमले करने का कोई भी मौका नहीं देना होगा।तभी हम इसे हारा पायेंगे...अन्यथा इसके प्रहार से हमारा बचाना नामुकिन ही है।
उस बजुर्ग की बातें सुनकर सभी लोग सचेत हो जाते है और अपनी -अपनी मायावी तलवारें निकाल कर लड़ने के लिए तैयार हो जाते है और वह बजुर्ग भी अपना दण्ड़ निकालकर लड़ने के लिए तैयार हो जाता है।
देखते ही देखते भैरूण्डासुर के हमला करने से पहले ही वे छ: आदमी..जो देखने हटे-कटे पहलवान जैसे थे ....वे अपनी तलवारों में आध्यात्मिक शक्तियां डाल देते हैं और तलवारों में आध्यात्मिक शक्ति प्रवेश होते ही वे छ: की छ: तलवारें में एक साथ एक तेजमय प्रकाश चमकने लगता है और फिर छ: के छ: हटे-कटे आदमी अपनी तलवारों को हवा में उछाल देते हैं और छ: की छ: तलवारे हवा में लहराने लगती है और फिर वे छ: के छ: हटे -कटे आदमी अपनी - अपनी तलवारों को आध्यात्मिक संदेश देते है ...और उनका आध्यात्मिक संदेश पाते ही वे छ: की छ: तलवारें बिजली की तेजी के साथ लहराते हुये सीउउउउउउऊं की आवाज करते हुये भैरूण्डासुर के ऊपर हमला करने के लिए उसकी ओर बढ़ने लगती है। तलवारों की गति इतनी अधिक तेज थी कि ... उनको चलते देख पाना खुली आँखों मुश्किल सा था... कि कब वे भैरूण्डासुर के करीब पहुंच गई।अपने ऊपर तलवारों से हमला होता देखकर भैरूण्डासुर जोर से दहाड़ता है और उसकी दहाड़ से हवा में ही एक पारदर्शी हवा की लहर की एक गोल कवचनुमा परत सी बन जाती है और वे छ: की छ: तलवारें जोर से उस हवा के लहर से बने कवच से जाकर टकराती है और उनके टकराते ही एक जोर की आवाज होती है ...जैसे की कोई कठोर धातु एक दूसरे से टकरा गई हो ..,और फिर देखते ही देखते उस हवा के लहर से बने कवच से टकराते ही वे छ: की छ: तलवारें टुकड़ों में टुटकर जमीन पर गिर जाती है।
ये सब देखकर उन छ: के छ: हटे -कटे आदमियों के साथ- साथ सभी लोगों के होश उड़ जाते है ...क्योंकि इतने ताकतवर हमले को भी मायावी जानवर भैरूण्डासुर ने बड़ी आसानी से रोक दिया था.....बल्किउस ताकतवर हमले को रोका ही नहीं अपितु विपल भी कर दिया था।
अपने हमले को विपल होता देखकर और अपनी तलवारों को टूटताहुआ देखकर वे छ: के छ: हटे-कटे आदमी अब थोड़े से घबरा कर डर जाते है ..उन्होंने कभी भी यह नहीं सोचा था कि एक जानवर इतना ज्यादा शक्तिशाली होगा।
इससे पहले की वे छ: केछ: हटे -कटे आदमी फिर से भैरूण्डासुर पर दूसरा कोई हमला कर पाते की उतने मे तो भैरूण्डासुर ने अपनी आँखों बंद कर देता है और तुरंत ही आँखों को खोलता है और उसके आँखें खोलते ही ,,,उसकी आँखों में से एक काले रंग की चमकती हुई तेजी रोशनी निकालती है ...और उसकी आँखों से निकलते ही वह चमकती हुई काले रंग की तेज रोशनी देखते ही देखते वह चमकती हुई काले रंग की तेज रोशनी छ: भागों में बंट जाती है और उन छ: हटे -कटे आदमियों की ओर बढ़ने लगती है ..जिसे देखकर वे छ: के छ: हटे-कटे आदमी डरकर घबरा जाते है और उनकी कलेजे में ही आकर अटक जाती है।
....उस रोशनी को देखकर मैं भी हैरान था कि एक जानवर इस तरह की उच्चस्तरीय शक्ति करने में सक्षम है ..यह कोई आम मायावी जानवर नहीं है ...
उसी चमकती हुई काले रंग की तेज रोशनी को देखकर मेरे मुख से अनायास ही कुछ निकल पड़ता है.., ...यह क्या ...अमोघ शैतानी काली शक्ति का प्रयोग....इससे से बचना तो असंभव है... और मेरे मुख से जोर से ही यही शब्द निकल पड़ते है ....नि:संदेह मेरे शब्द उन सभी लोगों के कानों तक सुनाई दे गये थे।परंतु अभी उन लोगों के पास हमारी तरफ देखने का समय नहीं था..क्योंकि समय रहते इस शक्ति की काट नहीं की तो ...उन छ: आदमियों की तुरन्त मृत्यु हो जाती और उनकी हड्डियां तक भी नसीब नहीं हो पाती ।
वह बजुर्ग आदमी भी अब परेशान सा लग रहा था..शायद उसके पास भी इस शक्ति का काट नहीं होगी...अगर होती तो वह अब तक प्रयोग कर चुका होता है...हमारे पास सोचने -समझने का समय नहीं था...तो मैंने अपने थैले से भभूत निकाली और ब्रह्म चक्र कवच मंत्र को बुदबुदाने लगा और मंत्र पूरा होते ही मैंने भभूत पर फूंक मारकर अभिमंत्रित किया और जल्दी से अमोघ शैतानी काली शक्ति की ओर फेंक दी जिसके प्रभाव हम सभी के चारों अदृश्यरूप से ब्रह्मचक्र कवच लग गया था और वह अमोघ शैतानी काली शक्ति ब्रह्मचक्र कवच से जाकर टकराती...ब्रह्मचक्र कवच से टकरात ही एक जोर की टकराने की आवाज आती है...मानों की कोई बहुत बड़ा विस्फोट हुआ हो और ब्रह्मचक्र कवच से टकराते ही वह शक्ति अपनी वास्तविक गति से चौगुना तेज गति से वापिस होते हुये भैरूण्डासूर पर पलटवार करती है और भैरूण्डासुर पर उसी की शक्ति का चौगुणा प्रहार होता है और उसी की वह शक्ति उसे जोर से जाकर लगती है ...जिसके कारण वह अपने स्थान हवा में उछल कर दस फीट की दूरी पर जाकर जोर गिर जाता है ... ...और इस वापिस के प्रहार से वह अच्छा -खासा घायल तो जरूर हो गया था ...और वह दर्द के मारे जोर- जोर से दहाड़ने लगेगा।
उसकी शक्ति की निष्फल होते देखकर उन छ: आदमियों की आदमियों जान में जान जाती है।
अगर समय रहते मैंने ब्रह्मचक्र कवच का प्रयोग नहीं किया होता तो शायद ही वे छ: आदमी अभी तक जीवित होते है। यह तो गुरू कापलेश्वर की कृपा थी कि उन्होंने मुझे इस कवच की सिद्धि करवाई ...और इसका प्रयोग करने का निर्देश तभी दिया था जब मेरे पास कोई विकल्प ना बचा हो और मेरे प्राण संकट में हो ...और इस विद्या को सीखाते समय उन्होंने यह भी बताया कि एक बार इस कवच का प्रयोग करने के बाद तुम दुबारा इसका प्रयोग तीस दिन के बाद ही कर पाओगे ...क्योंकि इसके प्रयोग में साधक की अच्छी -खासी आध्यात्मिक ऊर्जा खर्च हो जाती है ...फिर साधक को एक माह तक पुन: कठोर साधना करके ब्रह्मचक्र कवच से ही अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि करनी पड़ती है।
ब्रह्मचक्र कवच का प्रयोग करने के बाद मेरे अंदर की आध्यात्मिक व शारारीरिक ऊर्जा में बहुत मात्रा में कमी आ गई थी और मेरी आँखों के आगे अब धीरे -धीरे अंधेरा छाने लगा था...मैंने खुद को संभालने की कोशिस की परंतु मैं अचानक से लडखड़ा कर जमीन पर गिर गया। मुझे जमीन पर गिरते देखकर माया जल्दी से मुझे थामकर उठा लेती है और वे सभी लोग भी हमारे पास आ जाते हैं और हमे देखकर हमें..धन्यवाद कहते है ..,मैं बहोश हुआ पड़ा था।तभी भैरूण्डासुर जमीन से उठ खड़ा होता है...और उसके शरीर पर जगह- जगह पर चोट के निशान थे और उनमें से रक्त बहता जा रहा था .वह खुन से लथपथ था..,परंतु अभी भी उसकी क्षमता उच्चस्तरीय थी...और उसे हारना अभी भी नामुकिन था।
भैरूण्डासुर ...जोर - जोर से रूदन वालीआवाजे निकालना शुरू कर देता है ..,उसकी इन आवाजों को सुनकर यही लग रहा था कि मानों वह किसी को आदेश दे रहा हो....और थोड़ी देर में बहुत कदमों की तेज आहाट जोर - जोर से सुनाई देने लगी थी...मानों की सैकड़ों जानवर जमीन पर दौड़ रहे हो ...और उनके चलने से जमीन तक भी हिलने लगी थी...तभी वह बजुर्ग कहता है जल्दी -जल्दी सभी इस जगह से भागों....क्योंकि आवाज सुनकर यही लग रहा है बहुत से जानवर हमारी दिशा में आ रहे हो...और हो ना हो ये सभी जाननव मायावी असुर ही होंगे।इसलिए अभी सभी लोग अपनी जान बचाओ और यही कहते वह बजुर्ग शालिनी को पुकारता है और उसकी तरफ देखकर उसे कुछ इशारा अपनी आँखों से करता है ... शालिनीजो देखने भी अत्यंत सुन्दर और आकर्षक थी ..पत्तली कमर,उभरे स्तन,कोमल ,मुलायम व गौरा शरीर ..,मानों सौंदर्य की तराशी मुर्त हो...उसने सफेद रंग का लिबास पहना हुआ था...जिसमें वह किसी परी से कम नहीं लग रही थी....उसे देखकर यही लग रहा था कि उसकी उम्र यही कोई ...उन्नीस -बीस साल के आस-पास हो..,बजुर्ग का इशारा पाकर वह हमारे पास आई और कुछ मंत्र बुदबुदाने लगी...उसके मंत्र बुदबुदाते एक जादुई कालीन वहां पर प्रकट हो गई और उसने माया से कहा आप ..इन्हें इस पर लिटाकर ...इस पर बैठें....माया उसकी बात मानकर उस कालीन पर मुझे लेटाकर मेरे पास बैठ गई थी...और फिर शालिनी और सुहाना व एक युवती जो उनके साथ आई हुई थी बैठ जाती है और फिर शालिनी कालीन को हवा में चलने का आदेश देती है और उसका आदेश पाकर वह कालीन जमीन से ऊपर उठकर तेजी गति के साथ आसमान में जाकर हवा में चलने उड़ने लगती है और अन्य लोग भी वायुगमन सिद्धि का प्रयोग करते हुये हवा में तेज गति से उड़ उस जगह से भागकर निकल जाते है।
भैरूण्डासुर अत्याधिक घायल था जिसके कारण वह इस समय हवा में नहीं उड़ सकता था..यदि वह घायल नहीं होता तो उसके सामने हमारी यह भागने की नीति सरासर बेकार ही थी...उसकी वायुगमन की क्षमता उच्चस्तरीय की होगी।जब वह अमोघ शैतानी काली शक्ति मात्र घायल ही हुआ था..यदि उसकी जगह और होता और चौगुना रूप से इस शक्ति का प्रहार होता तो ..उसका अभी तक नामोनिशान ही नहीं रहता।उसका पूरा शरीर राख में तबदील हो जाता।
वहां से भागते हुये वे सभी अपने महल पहुंच जाते है और मुझे उन छ: हटे -कटे लोगों मे से दो हटे-कटे लोग उठाकर महल के कक्ष में ले जाकर लेटा देते है और माया को सुहाना अपने साथ दूसरे कक्ष में ले जाती है।

क्या सिद्धेश्वर बच पायेगा..कहीं माया और सिद्धेश्वर को ये लोग मार देंगे...आखिर कौन सी जगह है .....यह अनजान जगह....आखिर कौन सा नया रूख मोड लेगी अब यह कहानी ...जानने के लिए पढ़ते रहे मेरे साथ यानि निखिल ठाकुर के साथ मेरी कलम से इस कहानी को ..जिसका नाम है """!!मेरी भैरवी -रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास!!""""""