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मेरी भैरवी - 7

7. सुनहरी घाटी

सुनैना और विराजनाथ दोनों अब चलकर ही सुनहरी घाटी की ओर जा रहे थे....कुछ समय तक चलते हुये वे दोनों सुनहरी घाटी की सीमा पर पहुंच जाते है। सीमा पर पहुंचते ही सीमा की दीवार पर विराजनाथ को एक चेतावनी लिखी हुई दिखाई देती है ...जिसमें साफ -साफ बडे़-बड़े सुनहरे अक्षरों में लिखा था ..डायनों के लिए वर्जित क्षेत्र ...जिसका मतलब तो यही था कि डायने इस घाटी में प्रवेश नहीं कर सकती है।
चेतावनी को पढ़कर विराजनाथ थोड़ा हैरान सा हो जाता है ...आखिर ड़ायने कहां है यह पर...और जितना मैंने पड़ा और सुना है उनके बारे में तो डा़यने कभी भी भीड़-भाड वाली जगह पर नहीं रहती है।
विराजनाथ को रूका हुआ देखकर सुनैना कहती है ...क्या हुआ आप रूक क्यों गये..आओ अंदर चलते है हम। सुनैना की बात सुनकर उससे कुछ नहीं कहता है ..बस हाँ में ही अपना सिर हिला देता है और फिर दोनों एक साथ ही अपना पाँव सीमा के अंदर घाटी के अंदर रख देते है...दोनों के पाँव एक साथ घाटी के मुख्य प्रवेश द्वार की जमीन को छुते ही ...अचानक ही एक जोर का हवा को झोंका आता है ...हवा के झोंके की गति इतनी तेज थी कि ...दोनों की आँखे बंद सी हो गई...और दोनों प्रवेश द्वारा पर ही एक दूसरे का हाथ पकडे हुये खड़े रहे ...जब हवा का झोंका रूका तो तब जाकर दोनों ने अपनी -अपनी आँखें खोली ...तो देखा कि दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा हुआ ...और कब कैसे...दोनों को यह मालुम ही नहीं चला...जब दोनों ने अपने हाथ को एक-दूसरे से अलग करने की कोशिस की तो ....तो अपने दोनो के हाथों को एक दूसरे से अलग ही नहीं कर पाये...मानों किसी ने दोनों के हाथों को एक दूसरे बांध दिया।
बहुत कोशिस करने के बाद भी जब वे दोनों अपने हाथ को एक दूसरे के हाथ से अलग नहीं कर पाये तो थक हारकर दोनों ने इस तरह से अन्दर जाने का फैंसले किया ..दूसरा पाँव जब दोनों ने सुनहरी घाटी के प्रवेश द्वार के अंदर रखा तो..अचानक से प्रवेश द्वार की जगह एक बहुत ही मजबूत सुनहरे रंग द्वार प्रकट होकर बंद हो जाता है ...ये देखकर दोनों दंग रह जाते है और जल्दी से प्रवेश द्वार की ओर बढते है और उसे खोलने की नकाम कोशिस करते है।
थक हारकर दोनों अपनी पीठ द्वार के साथ लगाकर बैठ जाते है ...और विराजनाथ ....सुनैना से कहता है ....तुमने तो सुनहरी घाटी के बारे में कुछ और बताया था ...और यहां पर हम दोनों कैद हो गये और ऊपर से हमारे हाथ भी एक दूसरे से चिपक गये है...यह सुनकर सुनैना को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था ...कि वह आखिर विराजनाथ से क्या कहें...क्योंकि यह सब तो उसके साथ पहली बार हुआ है...और ये सब देखकर वह स्वयं भी हैरान थी।
विराजनाथ ने फिर कहा...कुछ तो बोलों...तुम खामोश क्यों हो....आखिर ये सब है क्या ..,बाहर दीवार पर लिखी वह चेतावनी और अब हाथों का आपस में चिपकना और फिर अचानक से द्वार आना और फिर अचानक से बंद हो जाना ...ये सब है क्या ...
सुनैना आखिर क्या कहती...फिर भी उसने हैरान होते हुये कहा ,.मुझे नहीं पता है ये सब क्या हो रहा है ..जब मैं अकेली आती थी तो ऐसा कुछ भी नहीं होता है और अभी तो पूरी घाटी ही बदल सी गई ...मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि ये सब क्या हो रहा है।
सुमैना की बात सुनकर विराजनाथ भी आश्चर्यच में पड़ जाता है और सोचने लगता है कि ..कहीं ये मुझसे झूठ तो नहीं बोल रही है...कहीं ये सब मुझे फंसाने के लिए कोई जाल तो नहीं है...ये सब विराजनाथ सोच ही रहा था कि तभी उन दोनों को एक बजुर्ग की आवाज सुनाई देती है।
वह बजुर्ग कह रह था कि आखिर तुम दोनों एक साथ आ ही गये ...कई वर्षों से मैं तुम दोनों की प्रतीक्षा कर रहा था।
बजुर्ग की बात सुनकर दोनों उस दिशा की तरफ देखने लगते है जिस ओर से उस बजुर्ग की आवाज आ रही थी...परंतु दूर -दूर तक दोनों को कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था।
....बजुर्ग जोर - जोर से हंसते हुये बोला...सुनैना ....विराजनाथ....सदियों से ही मैं तुम दोनों की प्रतीक्षा कर रहा हूं...अब जाकर वो समय जब तुम दोनों एक साथ इस सुनहरी घाटी में आये हो।
बजुर्ग की बातें सुनकर सुनैना डर से कांपने लगी...विराजनाथ ने सुनैना को देखते हुये कहा ..डरो मत...मैं हूं ना तुम्हारे साथ...अगर किस्मत में मरना ही लिखा है... तो हम साथ में ही मरेंगे...परंतु डर के कारण सुनैना के मुख से कोई भी शब्द नहीं निकल पा रहे थे।
विराजनाथ हिम्मत जुटाकर बोलता ....आप कौन हो...और इसका क्या मतलब है कि ...आप हम दोनों का सदियों से इंतजार कर रहे है।
विराजनाथ की बात सुनकर वह बजुर्ग हंसता है और विराजनाथ से कहता है।
बालक तुम अभी कुछ भी नहीं जानते हो..इस सुनहरी घाटी के बारे में ...यह कोई सामान्य घाटी नहीं ..यह एक तिलस्मी घाटी है ...जिसका निर्माण एक सिद्ध संत ने अपनी प्रेमिका के लिए किया था....इस घाटी में बहुत ही उच्चस्तरीय आध्यात्मिक ऊर्जा विद्यमान है।
यह सब कहकर वह बजुर्ग फिर खामोश सा हो गया ...मानों की वह अतीत की कुछ यादों में खो सा गया हो।
बजुर्ग का खामोश होता देखकर विराजनाथ कहता है ...कृपया आप हमें अपना वास्तविक स्वरूप दिखायें ..और अपने दर्शन देकर हमें कृतज्ञ करें।
विराजनाथ की बात सुनकर वह संत अपनी अतीत की यादों से लौटकर वर्तमान में आया और फिर विराजनाथ और सुनैना के सामने अपने वास्तविक शरीर में प्रकट हुआ ...उसके वास्तविक शरीर में प्रकट होते ही एक तेज रोशनी उस बजुर्ग के शरीर से निकल रही थी...रोशनी का प्रकाश इतना अधिक था कि विराजनाथ और सुनैना को अपनी-अपनी आँखें बंद करनी पड़ी ...यदि वे दोनों ऐसा नहीं करते तो उनकी आँखों की रोशनी उसे तेज प्रकाश के कारण जा सकती थी..फिर उस बजुर्ग ने अपने तेजपूंज प्रकाश को अपने कम किया ...तो विराजनाथ और सुनैना ने देखा कि सफेद पोशाक में एक दस फीट के आस पास हटा-कटा शरीर वाला बजुर्ग उनके समक्ष खड़ा है।
जिसके सिर के लंबे-लंबे सफेद बाल और लम्बी सफेद दाड़ी है और आँखों में दिव्यता है ..और हाथ में एक लम्बा सा डंडा लिये है...उस डंडे पर एक बेहद चमकने वाला सुनहरे रंग का क्रिस्टल पत्थर लगा हुआ और उस क्रिस्टल के चारों और स्वर्ण रंग की कमल जैसी नौ पंखुंड़ियां लगी हुई और उसके पूरे शरीर से उच्चस्तरीय आध्यात्मिक आभा प्रवाहित हो रही थी।
दिखने में वह बजुर्ग एक सिद्ध संत लग रहा था और उसके बालों और दाढी़ से देखा जाये तो उसकी आयु कम से कम सत्तर या अस्सी साल के आस पास होगी।
सुनैना और विराजनाथ दोनों उस बजुर्ग को हैरानी से देखते ही रहते है।

आखिर कौन है था यह बजुर्ग ... और क्यों सुनैना और विराजनाथ की प्रतीक्षा कर रहा था ...और क्या सुनैना और विराजनाथ कहीं किसी बड़े खतरे में तो नहीं फंस गये...जानने के लिए पढ़ते रहिये मेरी इस कहानी को मेरे साथ यानि निखिल ठाकुर के साथ जिसका नाम है ....""""!!मेरी भैरवी(रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास)!! Only on pocket novel reader App पर ।।

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