मेरी भैरवी - 4 निखिल ठाकुर द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी भैरवी - 4

4.ऋषि कपिलेश
विराजनाथ के सामने वह रहस्यमय परछाई अब साकार रूप में प्रकट हो गई थी। उस परछाई में जो व्यक्ति था उसकी कद-काठी से वह कोई स्वर्ग देव जैसा प्रतीत हो रहा था और उसकी आध्यात्मिक आभा भी उच्चस्तरीय की थी। जिसके प्रभाव से उस व्यक्ति का व्यक्तित्व अत्यंत दिव्यमय लग रहा था।
विराजनाथ उस रहस्यमय अदृश्य परछाई व्यक्ति को देखकर उसके चरणों में नतमस्तक होकर प्रणाम किया और प्रार्थना करते हुये कहा:- हे! दिव्य पुरूष सिद्धमहायोगी आपने मुझे अपने दर्शन दिये में धन्य हो गया। कृपा करके आप मुझे अपना नाम बतायें ..कि मैं आपको किस नाम से संबोधित करके पुकारूं।
विराजनाथ की बात सुनकर वह रहस्यमय अदृश्य परछाई वाला व्यक्ति कहता है।
मैं """महर्षि केशव""" का शिष्य ऋषि कपिलेश हूं ...मैं वर्षों से उनकी आज्ञा से इस जगह पर रहकर इस दिव्य भुमि की देखभाल और सुरक्षा कर रहा हूं।यह भूमि सिद्धभूमि है और यहां पर महर्षि केशव की आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित है।इस भूमि पर जो भी साधक या साधिका साधना करते है तो उनकी साधना शीघ्रता से सफल हो जाती है...क्योंकि इस जगह पर समय का कोई बंधन नहीं है ..यहां पर समय एक जैसा ही रहता है और ना ही दिन होता है और ना ही रात होती है।तुम ऊपर आकाश पर देख रहे हो ..जहां पर सूर्य और चंद्रमा एक साथ उदय रहते है।यहां के वातावरण के प्रत्येक कण-कण में आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित है।जो साधक इस वातावरण की आध्यात्मिक ऊर्जा को अपने अंदर अवशोषित कर लेता है तो उसकी शारारिक और आध्यात्मिक दोनों शक्तियों में बहुत तेजी से वृद्धि होती है।
यह तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम इस सिद्धभुमि में प्रवेश करने में सफल हो गये है....क्योंकि पिछले तीन हजार वर्षों में आज तक कोई भी इस सिद्धभुमि में प्रवेश नहीं कर पाया है।
ऋषि कपिलेश की बात सुनकर विराजनाथ हैरान होकर आश्चर्यचकित हो जाता है और हैरानी के साथ पुछता है कि ...आप यहां पर कितने वर्षों से है और आपकी आयु कितनी है।
विराजनाथ का प्रश्न सुनकर ऋषि कपिलेश थोड़ा मुस्कुराते है और फिर थोड़ा रूककर कहते है कि तीन हजार वर्ष मैं ही इस भुमि पर प्रवेश कर पाया था महर्षि केशव से मिल पाया था और उनसे साधनाओं का दुर्लभ ज्ञान प्राप्त किया था। जब मैने तीन हजार वर्ष पूर्व इस दिव्य सिद्धभुमि में प्रवेश पाया था तो उस समय मेरी आयु चौबीस वर्ष की थी तुम यह कह सकते है कि वर्तमान में मेरी आयु तीन हजार चौबीस वर्ष है।
ऋषि कपिलेश की बात सुनकर विराजनाथ और ज्यादा आश्चर्य में पड़ जाता है .....विराजनाथ को आश्चर्य में पड़ा देखकर ऋषि कपिलेश कहता है....यह सत्य है कि भौतिक दुनिया में एक आम मनुष्य इतनी लंबी आयु तक नहीं जी पाता है ...क्योंकि आम मनुष्य का जीवन केवल भौतिक क्रिया-कलापों में उलझा रहता है..जिसके कारण वे साधना,योग, और आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त नहीं कर पाते है।
तुम जानते हो मृत्यु का रहस्य क्या ...विराजनाथ कहता हीं मैं नहीं जानता हूं।कृपा करके इस दुर्लभ ज्ञान को बताने की कृपा करें...मैं आपका आभारी रहूंगा इस गोपनीय रहस्य को बताने के लिए।
विराजनाथ की बात सुनकर ऋषि कपिलेश कहता है...मृत्यु और जीवन के बीच की कड़ी है सांस ...भौतिक जीवन में व्यक्ति की सांस लेने की प्रक्रिया अधम होती है...वे सांस को शीघ्रतातिशीघ्रता से लेते है...जिसके कारण व्यक्ति की मृत्यु अतिशीघ्र हो जाती है। मान लो कि यदि तुम्हारा जीवन की केवल दस सांस बची हुई है तो यदि तुम उन दस सांसों को एक मिनट में लेते है तो तुम्हारी एक मिनट के समय के अंतराल में हो जायेगी ..यदि इन्हीं दस सांसों को तुम एक घंटे तक ले जाते है तो तुम्हारी मृत्यु एक घटे के अंतराल के बाद होगी। आयु की अवधि तुम्हारे जीवन की सांस नाम की पूंजी पर ही निर्भर करती है।
पर एक योगी की आयु इसलिए अधिक हो जाती है कि वह योग विद्या के माध्यम से अपनी प्राणवायु अर्थात सासं को अत्याधिक सूक्ष्म बना लेता है और अपने शरीर के प्रत्येक रोम छिद्रों को प्राणवायु से भर देता है...योगी यदि नाक से सांस भी ना लें तो उसके शरीर रोमछिद्र प्राणवायु को ब्रह्माण्ड से अवशोषित करना शुरू कर देते है। जब योगी योगविद्या में पूर्णता प्राप्त कर लेता है तो तब उसके शरीर के रोमछिद्र चलते -फिरते,उठते-बैठते,सोते-जागते अपने आप ही ब्रह्माण्ड़ से प्राणवायु को अवशोषित करते रहते है और जब योगी प्राणवायु को अवशोषित करने में महारता हासिल करता है तो उसे ना भुख लगती है,ना प्यास लगती है,ना उसके शरीर में कमजोरी आती है ,ना ही मोटापा,और ना ही समय और काल का कोई प्रभाव पड़ता है,ना ही धूप,गर्मी,सर्दी का कोई असर होता है।
सांस जितनी सूक्ष्म होगी आयु में वृद्धि उतनी अधिक होती है। परंतु यह सब तब होगा जब साधक साधना करते हुये स्वयं को सिद्ध कर लें और योगविद्या में पूर्णता प्राप्त कर लें।
ऋषि कपिलेश की बाते सुनकर विराजनाथ को मृत्यु और जीवन का रहस्य समझ आ गया था और अब उसके मन में साधनाओं में निष्णात पाने का संकल्प और अधिक दृढ़ हो गया।अपने मन को दृढ़ करते हुये विराजनाथ विनम्रपूर्वक ऋषि कपिलेश आग्रह करता है।
हे!ऋषिवर आप मुझ पर कृपा करें और मेरा मार्गदर्शन करें .....जिससे मैं साधनाओं के क्षेत्र में पूर्णता प्राप्त कर सकूं। कृपाकरके आप मुझे दुर्लभ विद्याओं का ज्ञान दें...और ये बताने की कृपा करें कि किस तरह से मैं समय की गति के साथ अपने आभ्यास को बढ़ा सकूं...और किस तरह से मैं योगविद्या में पूर्णता प्राप्त कर सकूं...मुझे ज्ञान दीजिये ....मुझे अपना शिष्य स्वीकार करें।
विराजनाथ की प्रार्थना सुनकर ऋषि कपिलेश विराजनाथ को काल बंधन साधना और समय की गति के साथ अपने आभ्यास को बढ़ाने की कला सीखाते है और उसके मस्तिषक पर हाथ रखकर शक्तिपात के द्वारा अपनी समस्त विद्याओं को उसके अंदर प्रवाहित करके स्थापित कर देते है और फिर विराजनाथ को कुछ समय तक ध्यान लगाने का निर्देश देते है..विराजनाथ ध्यान लगाने का प्रयास करता है और फिर कुछ ही समय के बाद विराजनाथ के पूर्ण शरीर के अंदर से तेज रोशनी निकलने लगती है और उसका पूरा शरीर उस तेज रोशनी में ढ़क जाता है।कुछ समय के बाद विराजनाथ खोलता है और अपने अंदर हुये परिवर्तन को महसूस करके वह बेहद ही खुश हो जाता है।
वह तुरंत ऋषि कपिलेश के चरणों में नतमस्तक हो जाता है...ऋषि कपिलेश कहता है तुमने सफलतापूर्वक अपने आभ्यास को पूर्ण किया है अब तुम साधना मण्ड़ल के दूसरे मण्ड़ल को पार कर लिया और शिष्य मण्ड़ल के 49 स्तर में पूर्णता प्राप्त कर लिया है..अब तुम तांत्रिक मण्ड़ल को प्राप्त करने के लिए आभ्यास कर सकते है और दिव्य शक्तियों को भी तुमने आत्मसात कर लिया है।मैं जानता हूं तुम कालभैरवनाथ जी को खोज रहे हो..ध्यान रखना पुत्र उन तक पहुंचने के लिए तुम रास्तों में कई मुश्किलों का सामना करना ..पड़ेगा .,बहुत सी समस्या और कठिनाईयां तुम्हारे सामने उभर कर आयेगी ।यदि तुमने उन सब को पार कर लिया तो तभी तुम सिद्ध महायोगी परमहंस कालभैरवनाथ जी के पास पहुंच सकते हो।
ऋषि कपिलेश से अद्भुत सिद्धियों को प्राप्त करके विराजनाथ उनसे विदा लेता है और फिर आचनक से उसके सामने तेज रोशनी चमकती है और विराजनाथ आँखों में अंधेरा छा जाता है और विराजनाथ की चेतना पुन: उसके शरीर में वापिस आ जाती है।
.....ऋषि कपिलेश किन समस्याओं व कठिनाईयों कि बात कर रहे है...ऐसी और कौन सी समस्यायें विराजनाथ की यात्रा में आने वाली है ..आखिर आगे कौन सा खतरा विराजनाथ का इंतजार कर रहा ..क्या विराजनाथ ...कालभैरवनाथ जी मिल पायेगा...जानने के लिये पढ़ते मेरी इस पुस्तक को ..यानि """मेरी भैरवी- रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास को......