Meri Bhairavi - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरी भैरवी - 8

9. माया और सिद्धेश्वर के बीच युद्ध
माया ने उच्चस्तरीय मायावी जादूई शक्तियों का प्रयोग सिद्धेश्वर के ऊपर करने के लिए मंत्र को बुदबुदाने लगी थी और मंत्र के प्रभाव से चारों का वातावरण में बहुत ही उच्चस्तरीय मायावी जादुई शक्ति का ओरा फैलने लग गया था,...यह देखकर सिद्धेश्वर ने माया के मंत्र जाप पूर्ण होने से पहले ही रणछोड़ युद्ध नीति का प्रयोग किया और वहां से भाग खड़ा हुआ।
यह देखकर माया जोर से चिल्लाते हुई बोली रूक कायर ...भागता कहां है...तुम बुजदिल हो जो युद्ध के मैदान में अपनी हार को देखते ही युद्ध के मैदान से भागने लग गये हो।इतना कायर ,बुजदिल तांत्रिक मैंने अपनी पूरी जिन्दगी में नहीं देखा।सिद्धेश्वर ....माया की हर बात को अनसुना करता हुआ जितनी तेज गति हो सकता उतनी तेज गति से भागना शुरू कर दिया।सिद्धेश्वर को तेज गति से भागता देखकर माया भी अपनी आँखों बेरहमी के लिए हुये उसके पीछे-पीछे भागना शुरू कर देता है मानों की एक शेरनी अपने शिकार को भागता देखकर और गुस्सा हो गई हो और अब वह किसी भी किमत में अपने शिकार को अपने हाथों से जाना ही नहीं देना चाहती हो।हालांकि मेरी भागने की गति उच्चस्तरीय की थी परंतु उसकी आध्यात्मिक गति के मुकाबले तो मेरी आध्यात्मिक गति बिल्कुल धीमी ही थी। पल भर में उसने मेरी तय की गई दूरी की आधी दूरी को पार कर लिया था और अब मैं उससे मात्र कुछ किलोमीटर की दूरी पर था। मुझसे जितना हो सका मैंने अपनी पूरी आध्यात्मिक शक्ति की गति का प्रयोग किया और भागना जारी रखा।भागते -भागते मैं एक सुनसान घने जंगल में पहुंच गया था और मेरे पीछे वो डायन भी उसी घने जंगल में मेरा पीछा करते -करते पहुंची। हम दोनों को ज्ञात ही नहीं था कि हम दोनों कब डायन क्षेत्र से कई हजार मील दूर आ गये है।माया को अपना पीछा करते हुये मैंने अपने आप से कहा कि,,...,किस तरह की स्त्री है ये.....मेरा पीछा छोड़ना का नाम ही नहीं लेती ....माना की मैं आकर्षक हूं...सुन्दर हूं...पर इतना भी नहीं कि ये मेरा पीछा ही करती रहे। अब मुझे यही लग रहा है कि कहीं हम दोनों की पूरी जिन्दगी इसी भागम -भाग में ही ना निकल जाये और मैंने तो अभी शादी भी नहीं की ....ना ही बच्चे पैदे किये .,,.हे भगवान ...आज सुबहा कौन सी मनुसियत समय पर मैं यात्रा पर निकला.....जो मेरा सामना इन खतकरनाक ड़ायनों से हो गया .... बाकी सब से तो निपट लेता मैं पर इस शक्तिशाली डायन से कैसे निपटूंगा मैं।ये तो अभी भी मेरा पीछा नहीं छोड़ रही...दुनिया में बहुत सारे सुन्दर पुरूष है ....पर इसे तो बस मैं ही चाहिये ..,हद होती है यार..,,जब बंदा युद्ध से भाग गया हो तो उसका पीछे करने का मतलब ही क्या होता है।अब तो यही लगता है कि भाग-भाग कर ही मार ड़ालेगी मुझे।तभी आचानक माया अपनी गति और तेज कर देती है और पलक झपकते ही वो मेरे पास पहुंच गई और मेरे पास कोई चारा ही रहा था सिवाये लड़ने।मैंने मन मेें ठान लिया था ...जब मृत्यु को आना है तो फिर भाग कर मरने से अच्छा है कि मैं युद्ध करते हुये वीरगति को प्राप्त करूं।फिर उसने मुझसे कहा ...तुम बहुत बड़े कायर हो ...बुजदिल ....ऐसे तांत्रिक योद्धा को जीने का कोई अधिकार नहीं है। तुम पूर्वजों को तुम पर धिकार होगा की तुमने उनके मान -सम्मान,गर्व को नीचा कर दिया।उसकी बाते सुनकर मैंने कहा ....,जान बचाने के लिए मान -सम्मान व गरिमा को नहीं देखा जाता है ...उस समय यही महत्वपूर्ण होता है कि किस तरह से हम स्वयं को सुरक्षित व जीवित रख सकते है और जान पहचाने के लिए युद्ध के क्षेत्र से भागना पड़े तो उस समय वो ही सझदारी का निर्णय होता है ना कि अपने से अधिक शक्तिशाली योद्धा से लड़कर खुद की ही खुदखुशी कर देना।मेरी बातों को सुनकर उसे और ज्यादा गुस्सा आ गया और उसने मेरे ऊपर एक जोरदार मुक्का मार दिया ....वो मुक्का इतना अधिक शक्तिशाली था कि मैं अपनी जगह से तीस फीट दूर उछल कर गिर गया और मेरे मुंह से खुन की उल्टी निकल पड़ी और मेरा पूरा मस्तिषक व शरीर मानों सुन सा हो गया हो और आँखों के सामने मानों अंधेरा सा छा गया हो।करीब बीस मीनट के बाद ही मैं होश में आया होगा ...तो मैंने भी मुष्टि अस्त्र मंत्र को पढ़ा और अपनी मुष्टि पर फूंक मारकर उसकी ओर मुष्टि का एक प्रहार अपनी पूरी ताकत के साथ किया ...परंतु उसने तो हवा में ही मेरी मुष्टि के प्रहार को रोक लिया और उस पर अपनी हथेली से प्रहार किया ...जिसके प्रभाव से मुझे अपने पूरे हाथ और हाथ की उंगुलियों में बेहद दर्द महसुस हुआ और मेरा पूरा बाजू सून सा हो गया ..इसके बाद वो आंखें बंदकरके कुछ मंत्र बुदबुदाने लगी और उसके मंत्र के बुदबुदाते ही आसमान में मेरे सिर के ऊपर एक जाल बनने लगा ..जो सुनहरे रंग था और बहुत शक्तिशाली लग रहा था।उसे देखकर मुझे एहसास हो गया था कि यह मायावी जाल विद्या की शक्ति है ...और एक बार व्यक्ति इस जाल के कब्जे में आ गया तो फिर उसे तोड़ पाना असंभव है और व्यक्ति जितना भी कोशिस इस जाल को तोड़ने की कशिस करता है तो यह जाल व्यक्ति उतनी ही मात्रा में शारीरिक व आध्यात्मिक शक्ति को सोख लेता है और जाल और शक्तिशाली होने लगता है और फिर धीरे धीरे जाल छोटा होते हुये व्यक्ति के शरीर को झकड़ लेता है और फिर व्यक्ति धीरे -धीरे तड़प कर इस जाल में ही अपनी सांसों को छोड़ कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि हे! ईश्वर मुझे बचा ले...मेरी रक्षा करो ...उधर उसने मंत्र जाप पूर्ण कर लिया था और मायावी जाल बनकर तैयार हो गया था ...अब बस जरूरत थी उसकी आज्ञा देने की...और मायावी जाल उसकी आज्ञा पाकर मुझे कैद कर लेता।वह मायावी जाल को आज्ञा देने वाली ही थी कि तभी हम दोनों के पैर के नीचे से जमीन हिलने लगती है और हम दोनों इससे पहले कुछ समझ पाते तो वह जमीन हम दोनों को अपने अंदर समेट लेती है और जमीन में एक सुरंग बन जाती है और हम दोनों उसमें गिरते ही जा रहे थे।मैं तो मन ही मन भगवान से कह रहा था कि ....कहां मैंने रक्षा करने को कहा ...पर आपने तो एक चीज से बचाया और दूसरी ओर मौत के कुअें में ढकेल दिया।उस सुरंग में गिरते हुये हम दोनों कुछ देर के बाद जमीन पर आकर गिरकर पड़ते है ..और पड़ने के बाद जब मैंने अपने चीरों ओर देखा तो हम दोनों एक घने अंधेरे जंगल में थे ..चारों तरफ कोहरा धूंध का घना धूंआं....दिखने में बहुत ही खतरनाक और ड़रावना लग रहा था।अब तो वो ड़ायन भी गम्भीर हो गई और मुझसे लड़ने की बजाये इस जंगल को बड़े गौर से देख रही थी। मानों की वह इस जंगल के रहस्य को जानने और समझने की कोशिस कर रही हो।मैं तो अंदर से बहुत डरा हुआ था कि आखिर अब यह कौन सा जंगल है ...और इस जंगल में कौन कौन से खतरे होंगे...किस तरह से यहां से बाहर निकलेंगे ...अब जिंदा बचने की जो संभावना थी ...वो भी नहीं लग रही थी। मैं अपने ही मन ही मन में भगवान से बोलता हं...वहां भगवान ,..वाह्हा..,इसे कहते है एक समस्या से निकाला दूसरी समस्या में ड़ाल दिया..क्या लीला है तेरी ...धन्यवाद हो तुम्हारा...पहली मौत आसान देख रही थी होगी ना आपको... जो अब इस तरह की मौत के जंगल में फंसा दिया।इससे अच्छा तो यही होता कि मुझे इसी सुन्दर हसीना के हाथों ही मरने देते।  मैं ये सब मन ही मन भगवान से कह रहा था। तभी माया मुझे पकड़ कर पीछे खींच लेती है और बिजली की तेज गति के साथ एक मायवी तीर मेरे चेहरे के पास से होकर पास ते पेड़ जाकर लग जाता है और तीर पेड़ से टकराते है एक जोर विस्फोट हो जाता है और पलभर देखते ही देखते वह पेड़ आग की लपटों से गिरकर जलने लगता है ..यह सब देखकर तो मेरे होश से उड़ गये ..,और मैंने हैरानी भरी आँखों से माया की तरफ देखा...उसने सिर्फ इतना कहा कि...तुम सिर्फ मेरा शिकार हो ....हो माया के शिकार को उसके हाथ कोई नहीं छीन सकता है और ना ही माया किसी को भी अपना शिकार छीनने देती है ।यह जगह खतरों से भरी हुई है तो यहां पर मरना नहीं चाहते हैं तो जैसा मैं कहती हूं तो तुम वैसा ही करो ...और हाँ ज्यादा शातिर या चालक बनने की जरूरत नहीं है....नहीं तो अनन्यथा ही बे-मौत मारे जाओगे।
आखिर कौन - सी जगह पर फंस गये है माया और सिद्धेश्वर ,अब आगे क्या -क्या होगा दोनों के साथ.. और किन -किन संकटों व मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा दोनों ...आखिर कौन सी जगह थी यह...क्या दोनों मारे जायेंगे या बच जायेंगे..क्या माया अब भी सिद्धेश्वर को मार देगी या दोनों साथ में मिलकर मुसीबतों का सामना करेंगे...यह सब जानने के लिए पढ़ते रहिये मेरे इस कहानी को मेरी कलम से जिसका नाम है !! """"मेरी भैरवी-रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास !!"""""Only on  Pocket fm or pocket novel reader app पर ...

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