8. संंत सिद्धेश्वर
(आप सबसे पाठकों से क्षमा चाहता हूं कि गलती से नौंवा भाग आठवें भाग की जगह पोस्ट हो गया ..जिसके लिए मुझे दिल से खेद है आप सब मेपी इस भुल को माफ करें..इसके लिए मैं आप सभी से दिल से क्षमा चाहता हूं)
अब वह बजुर्ग सुनैना और विराजनाथ के समक्ष अपने वास्तविक रूप को प्रकट करके खड़ा था ।सुनैना और विराजनाथ उसे देखकर हैरान थे। क्योंकि उसे देखकर दोनों को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।
सुनैना और विराजनाथ को देखकर वह बजुर्ग अपना परिचय देता है और अपना नाम संत सिद्धेश्वर बताता है। उसका नाम सुनकर सुनैना और विराजनाथ उसे आश्चर्य होकर देखते है और फिर विराजनाथ उससे पुछता है कि आप इस स्थान पर कब से रह रहे है।विराजनाथ का प्रश्न सुनकर संत सिद्धेश्वर कहता है जबसे इस सुनहरी घाटी का निर्माण हुआ तभी से मैं इसी स्थान पर रह रहा हूं।
संत सिद्धेश्वर की बात सुनकर विराजनाथ कहता है .....इसका मतलब यह है कि इस सुनहरी घाटी का निर्माण आपने ही किया है। विराजनाथ की बात को सुनकर संत सिद्धेश्वर कुछ नहीं कहता है ...बस हल्का सा मुस्कुरा देता है।
कुछ देर की चुपी के बात संत सिद्धेश्वर ...विराजनाथ से कहता है कि ...इस सुनहरी घाटी का निर्माण मैंने ही किया है।परंतु जिसके लिए मैंने इस घाटी का निर्माण किया था...वह शायद अब इस दुनिया भी जीवित ही ना हो...यदि मैं उस समय उसका साथ देता तो शायद आज वो मेरे साथ इस सुनहरी घाटी में होती और हम दोनों खुशी के साथ अपने जीवन को व्यतीत कर रहे होते।उस समय मेरी जान बचाने के लिए उसने स्वयं की जान को खतरे में ड़ाल दिया था ......और मैं कायरों की तरह उसे खतरों के बीच अकेला छोड़कर भाग खड़ा...धिक्कार है मेरे इस जीवन पर ...जिससे मैं अत्यंत प्रेम करता था ....मैं उसे मृत्यु के मुख में छोड़कर भाग खड़ा।
इतना कहकर संत सिद्धेश्वर के आँखों से अश्रुधार प्रवाहित हो गई...उसकी बातों से साफ पता चल रहा था कि वो अपनी पत्नी से कितना प्रेम करता था...ये सब बताते समय उसकी आवाज में उसके अंदर के दु:ख को महसुस किया जा सकता था। संत सिद्धेश्वर के खामोश होने पर विराजनाथ उससे पुछता है ...आखिर ऐसा क्या हुआ था बाबा,और कौन थी वह स्त्री जिसने आपकी जान बचाने के लिए खुद की जान की बाजी लगा दी थी।
विराजनाथ की बात सुनकर संत सिद्धेश्वर उसे अपने जीवन की कहानी सुनाता है।आज से करीब बीस वर्ष पूर्व की बात है ...उस समय मेरी उम्र चालीस के आस पास थी...और उसकी यही कोई बीस के आस -पास थी। मैं उस समय जवान था....और आध्यात्म की खोज में अनेक -अनेक जगह पर भ्रमण करता था..और अनेक सिद्धों,गुरूओं से मिला उनसे ज्ञान व सिद्धियां भी बहुत अर्जित की।परंतु मेरी ज्ञान प्राप्त करने लालसा खत्म ही नहीं हुई ...मुझे बस सबसे शक्तिशाली सिद्धपुरूष बनना था।इसलिए मैं अनेक क्षेत्रों का भ्रमण करने निकलता था...इसी तरह से एक बार भ्रमण करते हुये मैं ड़ायन क्षेत्र पहुंचा।उस समय डायनों का खौफ भी बहुत था...और उनकी शक्तियों के चमत्कार और उनके कार्यों की खूब चर्चे भी थे।डायन क्षेत्र के सीमा पर मेरी मुलाकात एक सुन्दर स्त्री हुई ...जो बहुत सुन्दर ....सौंदर्यंमयी...उसके नयन सागर की झील जैसे गहरे और सुन्दर आंखे,गोरा चेहरा,तराशा हुआ बदन,सुराहीधार गर्दन,गोल चेहरा,हर एक तरह से तराशा हुआ सौंदर्यं मानों स्वयं कोई अप्सरा या परी इस धरा पर स्वर्गलोक से उतरकर आई होगी...मैं तो उसे देखकर ही पहली ही नजर में उसे दिल बैठा था...मुझे खुद का होश ही नहीं रहा ....कि मैं डायन क्षेत्र में हूं...जिसे मायावी नगरी भी कहते है। बस मैं उसके ख्बावों में ही डूब सा गया...उस समय ऐसा लग रहा था कि बस यह समय इसी समय यहीं थम जायें और हम दोनों इसी पल में कैद होकर रहें।
जब उसने मुझे देखा तो उसने अपनी साथी डायनों से कहा कि इसे भी पकड़कर बंधी बना लो। मैं मानों उसके सम्मोहन के पाश मे बंध सा गया हो ... उसकी आज्ञा सुनकर दो डायनें हाथं में लोहे की बेड़ियां लेकर मेरे पास आई। जैसे ही मुझे उन दोनों डायनों ने छुआ और मेरे हाथों बेडियां बांधने की कशिस की तो तभी मुझे होश आया ,उसके मोहपाश से बाहर निकला और फिर मैंने अपनी शक्तियों के प्रयोग से उन डायनों पर प्रहार करना शुरू कर दिया ...जिसके कारण वे मुझसे कुछ दूरी पर जाकर गिर गई।फिर अन्य डायनों ने उन दो डायनों को उठाया और मेरे ऊपर अपनी-अपनी शक्तियों के द्वारा प्रहार करना शुरू कर दिया ।मैं पहले से ही इन सबके लिए तैयार था और मैंने भी उन्हें कड़ी टक्कर दी।,काफी देर हमारा युद्ध चलता रहा ...और वो बस हमारे बीच के युद्ध को गौर से देख रही थी।
दोनों तरफ से भयंकर शक्तियों का प्रयोग से एक दूसरे पर प्रहार किया जा रहा था।उनकी हर शक्ति काट होती देखकर उन डायनों में से एक डायन ने मेरे ऊपर महाप्रेत शक्ति का प्रयोग किया ...उसके मंत्र बुदबुदाते ही एक भीषण ध्वनि की गर्जना हुई और उसके सामने एक शक्तिशाली प्रेत प्रकट हुआ ...और उसने मेरी तरफ ईशारा करते हुआ कहा कि इस दुष्ट के शरीर के अभी के अभी टुकड़े कर दो। उसकी आज्ञा पाकर वह महाप्रेत मेरी ओर तेजी से आ रहा था और समझ गया था अब छोटे-मोटे तांत्रिक प्रयोग से कुछ नहीं होगा ...अब कुछ बड़ा करना पड़ेगा....तो मैंने अपनी थैली में से राख निकाली और मंत्र बुदबुदाना शुरू किया ।मंत्र पूरे होते ही महावीर पवन मेरे समक्ष प्रकट हुआ और मैंने उसे उसके लक्ष्य की ओर ईशारा किया...मेरा ईशारे को समझते है पलक झपकते महावीर पवन उस महाप्रेत के समीप पहुंचकर उसके साथ युद्ध करने लगा ..तो कुछ ही समय में महावीर पवन नें उस महाप्रेत को हार दिया।
अपने महाप्रेत को हारता देखकर उस डायन को गुस्सा सातवें आसमान में चढ़ गया और गुस्से में जोर से चिल्लाते हुये ...कहा अब तुझे मृत्यु से कोई नहीं बचा सकता है...और वह मंत्र बुदबुदाने लगी..मुझे महसुस हो गया था कि यदि मैने समय रहते कुछ नहीं किया तो मृत्यु निश्चत है ...मेरे पास एक ही रास्ता था कि किसी भी तरह से उसके मंत्र उच्चारण को पूरा ना होने देना।
मैंने गुरू बंगालीनाथ से प्राप्त मायावी शक्तियों का प्रयोग किया और शक्ति जाल मंत्र के द्वारा उसे शक्तिजाल के अंदर कैद कर लिया।यह देखकर वह ड़ायन दंग रह गई और चीखते हुआ कहा ..ये असंभव है ...तु...तुम यह जाल विद्या कैसे जानते हो ....यह विद्या तो बेहद ही प्राचीन है और आज के समय तो लुप्त सी हो गई है।फिर मैंने कहा अभी तुमने मेरे शक्तियों को देखा ही कहां ...यह तो सिर्फ मेरी शक्तियों का एक प्रतिशत अंश भी नहीं है। तभी उसने ऊंची आवाज में कहा तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुमने मेरी साथियों की ये हालात की ...अब तो तुम्हारा बचना ही मुश्किल और उसने मंत्र बुदबुदाना शुरू किया ..उसके मंत्र बुदबुदाते आसमाने मानो घनघोर घेरा छा गया हो ..आसमान में बिजली जोर जोर से कड़कने लगी ....चारों तरफ आंधी -तुफान आने लगे ...और उस समय वह देखने में मौत की देवी से कम नहीं लग रही ..उसके लम्बे -लम्बे केश हवा में लहरा रहे थे और आँखों गुस्सा।वह देखने में एक खुंखार शेरनी सी लग रही थी और आँखों एक बेहरमी सी....मुझे समझते देर ही नहीं लगी ...कि अब तो ये उसी शक्ति का प्रयोग कर रही है जो इस संसार में दुर्लभ सिद्धि मानी जाती है ....इसे भयास्त्र विद्या कहते है ...जिसका वर्णन शाबरी अस्त्र विद्या में नाथयोगियों ने किया है..इसके प्रयोग से अपने शत्रु के अंदर के भय का संचार किया जाता है और शत्रु अपने सबसे बड़ा ड़र का सामना करके कमजोर होता है और इसकी काट तो उच्चकोटी के योगी या सिद्ध ही कर सकते है।
परंतु मुझे तांत्रिक शंभुनाथ ने शाबरी अस्त्र विद्या का ज्ञान दिया हुआ था...यदि उन्होंने मुझे गुप्त शाबरी अस्त्र विद्याओं का ज्ञान नहीं दिया होता तो मेरे लिए भी उसके इस बार की काट करना ही असंभव सा होता है।मैंने अपनी झोली से राख निकाली और चाक्षुष्मतमहास्त्र का मंत्र बुदबुदाया उधर उसने भी मंत्र जाप पूर्ण कर लिया था ...और शक्ति का प्रयोग मेरे ऊपर कर दिया मैंने भी जितनी जल्दी हो सका अपना मंत्र जाप पूर्ण किया और राख को हवा में फेंक दिया दोनों शक्तियों की आपस में टकराते ही एक भयंकर विस्फोट की गर्जना हुई और पल भर में दोनों शक्तियां लुप्त हो गई। अपनी शक्ति की काट होती देखकर वह आश्चर्यचकित हो गई ..कुछ देरी चुपी के बाद बोली ...तुम सिद्ध तांत्रिक जान पड़ते हो ...तुम्हारा नाम क्या है...मैंने कहा..सिद्धेश्वर और मैंने कहा ..तुम भी उच्चस्तरीय मायावी जादुई शक्तियों से सम्पन्न हो ...तुम्हारा नाम क्या है...उसने हंसते हुये कहा ..,,..क्या करोगे मेरा नाम जानकर ..,वैसे भी अब तुम मरने वाले हो .....तो मैं तुम पर एक एहसान कर देती हूं तुम्हारी अंतिम ईच्छा मानकर ..,..वैसे भी तुम्हें पता होना चाहिये कि तुम्हारी मृत्यु किसके हाथ से हुई है ...और यह जानना भी तुम्हारा हक भी है...तो सुनो मेरा नाम """माया """""है...अब तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ...एक शक्ति की काट कर देने तुम इतना खुश मत हो और ना ही ये गलतफहमी पालों की तुम मुझे हार सकते हो।उसकी बात सुनकर मैने उससे कहा... हार -जीत तो लड़ने के बाद ही पता चलती है ..बिना लड़े ही जीत का आंकलन करना गलत है और यही गलतसहमी है व्यक्ति को ले डुबती है...बाद में पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगता है।
तुम्हारी इतनी हिम्मत .....लो फिर अब तुम मेरी इस शक्ति का सामना कैसे करोगे।जैसे ही उसने शक्ति का प्रयोग करने के लिए मंत्र बुदबुदाना शुरू किया तो मैं समझ गया था अब मेरा बचना मुश्किल है ...मैं स्वयं को मन ही मन में कोस रहा था कि क्यों इस खुंखार शेरनी को मैंने ओर उकसा दिया।
मैं अब अच्छे से जान गया था उसकी क्षमता और शक्तियां मुझसे अधिक है ...और ...मेरी वर्तमान क्षमता उस स्तर तक की नहीं थी ...मैं उसका अधिक देर तक सामना कर पाऊं या उसकी मायावी जादुई शक्तियों का सामना कर पाऊं ..,,, हम दोनों की ताकत में जमीन और आसमान का फर्क था। यह तो गुरू बंगाली नाथ की कृपा से मैं उसके पहले हमले की काट करने में सफल हो गया था अन्यथा मैं तो उसके पहले हमले में डेर हो चुका होता। और अब तो मुझे कुछ भी समझ नहीं रहा था मैं क्या करूं...किसी तरह से खुद को बचाऊं और मैं खुद को मन ही मन में कोस रहा था...कि क्या जरूरत थी तुझे इन सब ड़ायनों से दुश्मनी मोड़ लेने की और ड़ायनों से तो लड़ लेता पर सामने जो बेहद शक्तिशाली ड़ायन है उससे कैसे लडूंगा।मैं यही सब सोच ही रहा था कि इतने में उसने अपनी मायावी जादुई शक्ति से मेरे ऊपर एक बड़ा सा आग का गोला फेंका ।इसे देखकर तो मैं दंग सा रह गया..इस तरह की मायावी जादुई शक्ति इसके पास...इस तरह की शक्तियां ऋषि मण्ड़ल को सिद्ध करके उसे पार कर चुके व्यक्ति के पास ही होती है और एक ड़ायन के पास इस तरह की आलौकिक मायावी शक्तियां होना यह कोई आम बात नहीं।
इससे बचने के लिए मुझे समय गति शक्ति का प्रयोग करके रणछोड़ की नीति अपनानी पड़ी।
क्या अब माया ...सिद्धेश्वर को पकड़ पायेगी...या सिद्धेश्वर भाग जाने में सफल होगा ...क्या सिद्धेश्वर अपने आपको बचा पायेगा...जानने के लिए पढ़ते रहे रोमांच,एक्शन,रोमांस,ज्ञान,तिलिस्मों,मंत्रों,तंत्रों की शक्तियों से भरी मेरी इस कहानी को मेरे साथ यानी आप सबके अपने निखिल ठाकुर के साथ ...जिसका नाम है """"!!मेरी भैरवी (रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास)!!""""Only on POcket novel reader और Pocket fm पर ।