मेरी भैरवी - 5 निखिल ठाकुर द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी भैरवी - 5

5.डायन क्षेत्र में प्रवेश

चेतना वापिस आते ही विराजनाथ अचानक से अपनी गहरी नींद से जाग जाता है और जागते ही अपने चारों ओर देखता है हल्का -हल्का सा अंधेरा था और आसमान में चंद्रमा की रोशनी भी धीमी पड़ रही थी..साथ ही तारों की चमक भी फिक सी होने लगी थी...धीरे -धीरे रात्रि का अंधकार समाप्त होने लगा था..और सुबहा की हल्की -हल्की लौ आसमानी रंग में फूटने लगी थी...आसमान ये देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि सुबहा के चार बजे गये होंगे ..और यह जो दृश्य आसमान में दिखाई दे रहा था और हल्की कोरेपन की मधूर से ताजगी भर देने ठंड़ .....जिसका अर्थ यही है कि ब्रह्ममुहूर्त का समय शुरू होने वाला है ...विराजनाथ अपने स्थान से उठकर पास में ही बहते झरने के पास जाकर स्नानादि करके अपने नित्यकर्म की पूजा के लिए जल भरकर ब्रह्ममुहूर्त की संध्यावादन करने के लिए एक जगह को साफ कर वहां आसन बिछाकर बैठकर अपनी नित्यकर्म की पूजा करना प्राराम्भ करता है..पूजा के बाद विराजनाथ कुछ समय के लिए ध्यान लगाने के लिए बैठता है जैसे ही ध्यान की गहराई में वह उतरता जाता है तो उसे अपने अंदर बहुत तेज प्रकाश की आभा दिखाई देने लगती है और अपने शारीरिक व आध्यात्मिक शक्तियों में हुये परिवर्तन महसुस होने लगते है ..तभी अचानक उस कुछ याद आता है तो वह हैरानी से दंग रहे बिना रह ही नहीं पाता ...क्योंकि जो उसे अभी महसुस हुआ वह बात वास्तव स्वप्न नहीं हकीकत थी...उसकी आत्मा नें स्वप्न के माध्यम से महर्षि के शिष्य ऋषि कपिलेश से मुलाकात की और उनसे दुर्लभ शक्तियों को प्राप्त किया है और शिष्य मण्ड़ल में भी पूर्णता प्राप्त कर भी लिया...यह सब याद आने के बाद विराजनाथ की खुशी का कोई टिकाना ही नहीं रहा...वह मन ही मन मुसकुराने लगा...इन सभी बातों को याद करते करते ना जाने कब समय गुजर गया और आकाश में सूर्योदय की हल्की सी लाल रंग की सुनहरी लालिमा प्रस्फुटित होने लगी...विराजनाथ ने स्वयं को किसी तरह से संभाला और सूर्य को प्रणाम करके सूर्य को जल अर्पण किया और फिर स्वयं के खाने के लिए कुछ कंदमूल फलों इक्ट्ठा किया ...फलों का सेवन करने के बाद विराजनाथ ने अपनी यात्रा आगे जारी रखी..और आज बेहद खुश था...तो खुशी के साथ झूमते हुये विराजनाथ भैरव पहाड़ी की ओर अपनी यात्रा को शुरू कर दी।यात्रा करते हुये दिन के बारह बज गये थे..,अत्याधिक चलने की बजह से अब उसके पेट में चुहे भी कूदने लगे थे...तो थोड़ी कुछ देर आगे चलने तक विराजनाथ एक कस्बा दिखाई देता है..उसे देखकर विराजनाथ खुश हो जाता है और कस्बे की ओर चल पड़ता है ....और मन ही मन सोचता है कि इस कस्बे में थोडी देर विश्राम करके ...कुछ खा पी लूंगा...तो मेरी भूख शांत हो जायेगी।फिर मैं अपनी आगे की यात्रा को जारी रखूंगा।
यही सब सोचते हुये ...बिना कुछ जाने विराजनाथ कस्बे की ओर चलना शुरू कर देता है...दूर से वह कस्बा बिल्कुल शांत ,भव्य और सुन्दर दिख रहा था। चारों तरफ हरियाली से भरे पर्वत व पहाड़...हालंकि यह कस्बा अभी विराजनाथ से पांच किलोमीटर की दूरी पर खुले मैदान पर बना हुआ ...विराजनाथ अपने कदमों को तेज करते हुये जल्दी से उस कस्बे की ओर बढ़ना शुरू करता है..क्योंकि जब व्यक्ति को भूख लगती है तो तब उसकी बुद्धि भोजन के अलावा कुछ ओर सोच ही नहीं पाती।
जैसे -जैसे विराजनाथ कस्बे के नजदीक आता जा रहा था वैसे -वैसे लजीजदार स्वादिष्ट भोजन की सुगंध विराजनाथ के नाक तक पहुंचने लगी।जिसे सूंघकर विराजनाथ की भूख अब और ज्यादा बढ़ने लगी।
परंतु विराजनाथ इस बात से अनजान की यह कस्बा आम कस्बा नहीं है ..बल्कि डायनों का कस्बा है ....जो डायन क्षेेत्र कहलाता है ...और विराजनाथ इसी डायन क्षेत्र की सामा में प्रवेश कर चुका था और ये डायनें इस क्षेत्र में आने वाले हर यात्री पुरूषों को अपने इस कस्बे की सुन्दरता से और स्वादिष्ट भोजन की सुगंध से ललायित करके आकर्षित करती थी ...और फिर पहले उन पुरूषों की हर प्रकार से सेवा करके ..स्वादिष्ट भोजन कराकर उनके साथ शारीरिक संबंध बनाकर उनकी आत्मिक व आध्यात्मिक ऊर्जा को अवशोषित करती है ..और फिर अपनी सिद्धियों की प्राप्ति के लिए उनकी बलि देती थी।
डायनों का इस संसार में अपना ही एक खौफ था ...तरह -तरह की बातें ,कहानियां व किस्से उनके संबंधित आज भी लोगों के बीच में प्रचलित थे।कहते हैं कि डायन एक शक्तिशाली जादूगरनी होती है ..जो काली शक्तियों की स्वामी होती है और वह अपनी शक्ति के द्वारा किसी भी इंसान को पल झपकते ही अपने वश में कर लेती है और उससे मनचाहा कार्य करवा सकती है...डायनों की शक्तियां इतनी खतरनाक होती है कि अच्छे से अच्छे तांत्रिकों को भी उनका सामने करने में छक्के छूट जाते है। डायन विद्या काले जादू की वो विद्या होती है जिसमें डाकिनी शक्ति के साथ शैतानी देवता चलता है और इस विद्या को सीखने के लिए अच्छी -खासी किमत भी चुकानी पड़ती है।ड़ायन बनना कोई सरल कार्य नहीं होता है।डायनों की अपनी ही एक अलग दुनिया होती है..जिससे वे समाज से दूरकर अपनी साधनाओं को पूर्ण करके शक्तियों को अर्जित करती है।
डायनें शैतान के अलावा किसी अन्य देवी-देवता को अपना स्वामी नहीं मानती है...और डायन बनने के लिए उन्हें जिन्दा रहते हुये इंसानी खून,इंसानी मांस,मल-मूत्र का भक्षण करना पड़ता है और इंसानी गुणों का त्याग करना पड़ता है।इनके जीवन में इंसानी कर्म की कोई महत्ता नहीं होती है।ये अपने पूरे जीवन को काले जादू की गुप्त से गुप्त विद्याओं को सिद्ध करने में लगा देती है।इसके बावजूद यह कह पाना कठिन होता है कि इनमें इंसानियत है कि या नहीं।लोक किंवदंत्तियों के अनुसार एक डायन की शक्ति उसकी चोटी में होती है।लोक कहानियों में इनकी बुराईयां और ड़रावने किस्से बताये गये ...परंतु यह भी सच है कि सारी डायनें बुरी नहीं होती है ....क्योंकि उनकी अच्छाई और बुराई उनके काले जादू की विद्या के लेवल को सीखने पर निर्भर करता है।
काला जादू दो प्रकार के होते है।प्रथम सात्विक और दूसरा तामसिक।हालांकि दोनों विद्याओं को गलत माना जाता है। सात्विक काले जादू में शैतानी मंत्रों,इल्मों को अघोरी पद्धति जैसा सिद्ध किया जाता है और दूसरे काले जादू में सिफली काला ईल्म ...जिसमें नकारात्मक प्रेतों,भुतों,मसानों,राक्षस,शैतानों को सिद्ध किया जाता है ...जिनमें गंदे आसुरी मंत्रों को सिद्ध किया जाता है और ज्यादातर ये मंत्र किसी को कष्ट देने वाले,किसी के जीवन को समाप्त कर देने वाले,किसी को नपुसंक बना देना,पागल कर देना,पशु,पक्षि बना देना आदि के होते है।
विराजनाथ अब कस्बे के नजदीक पहुंचा और कस्बे के मुख्यद्वार पर पहुंच एक सुन्दर आकर्षक युवती विराजनाथ का स्वागत करती है।वह युवती देखने भी बेहद ही सुन्दर ,मनमोहक और आकर्षक थी,सुराहीधार गर्दन,बडी -बडी आकर्षक आँखें,गुलाब जैसे होंठ,लंबी नाक,उभरे वक्षस्थल,आकर्षक पतली कमर,और गोरा बदन। जिसे देखकर कोई भी पुरूष उसका दिवाना हो सकता और उसे पाने के लिए अपनी जान को जोखिम में ड़ाल सकता।
उस युवती ने अपनी एक मधुर सी मुस्कान लाते हुये कहा ...श्रीमान आपका स्वागत हो हमारे कस्बें ..मुझे बताईये मैं आपकी किस तरह से मदद कर सकता है। विराजनाथ युवती को देखते हुये कहता है कि....मुझे अत्यंत भुख लगी ...और लंबी यात्रा करके हुये मैं थक गया हूं ...क्या यहां पर कोई अच्छा सा विश्रामगृह और भोजनालय होगा...कृपा करके आप मुझे वहां ले जायें। युवती ने मुस्कुराते हुये कहा ...श्रीमान आप चिंता ना करें ...मैं आपको यहां के सबसे अच्छे भोजनालय में ले जाऊंगी और यहां के सबसे उतम किस्म के विश्रामगृह पर आपको एक कक्ष दिलवा दूंगी ....कृपया आप मेरे साथ आयें ...विराजनाथ उस युवती के साथ उसके पीछे चल दिया और रास्ते में चलते हुये विराजनाथ से उस युवती से उसका नाम पुछा ...तो उस युवती ने शरारती आँखों से इशारा करते हुये मुस्कुराते अपना नाम ...सुनैना बताया....विराजनाथ अपना परिचय देने ही वाला था कि तो युवती ने उससे कहा कि श्रीमान ये लिजिये आपका भोजनालय आ गया है और यह भोजनालय यहां का सबसे प्रसिद्ध भोजनालय है और यहां के पकवान अत्यंत स्वादिष्ट होते है। सुनैना विराजनाथ को भोजनालय के अंदर ले गई और सामने पड़ी एक लकड़ी की मेज़ के साथ की लकड़ी से बने बैठने के लिए बैठक पर बैठ गई और विराजनाथ भी कुछ कहे बैठ गया है और थोड़ी देर में उनके पास एक महिला आई और उसने विराजनाथ से कहा श्रीमान जी आप क्या खाना पसंद करेंगे ...हमारे यहां पर भेड़ का मांस अत्याधिक स्वादिष्ट बनता है ...तो विराजनाथ ने कहा ऐसा करो कि आप हम दोनों के लिए भेंड़ का मांस और थोडे चावल लेकर आओ..विराजनाथ की बात सुनकर वह महिला कहती है जी श्रीमान मैं अभी लाई आप थोड़ी प्रतीक्षा करें।थोडी देर में सुनैना और विराजनाथ के सामने एक पात्र मे मसालों में पकाया हुआ भेड़ का मांस और एक पात्र में चावल उनके सामने परोसे जाते हैं। मांस की खुशबू बहुत अच्छी लग रही थी...दोनों ने भोजन किया और खाने के पैसे देने के बाद सुनैना विराजनाथ को विश्रामगृह में ले जाती है और वहां पर कक्ष विराजनाथ को दिलाती है .,.और उसके बाद सुनैना विराजनाथ विदा लेती...सुनैना जैसे ही वापिस जाने लगती है तो विराजनाथ पीछे से कहता है..सुनैना...क्या तुम कल भी आओगी मेरे ...वो क्या है ना...मैं यहां पर नया -नया हूं तो इस जगह के बारे में मुझे कुछ खास मालुम नहीं...सुनैना विराजनाथ की तरफ मुड़ती है और उसे शरमाते हुये एक हल्की सी मुस्कान देकर वहां से चली जाती है।

क्या विराजनाथ को सुनैना से प्रेम हो गया है ...का सुनैना विराजनाथ से मिलने आयेगी और क्या तब जब विराजनाथ को मालूम चलेगा,..वो जहां पर रह रहा है वो डायन क्षेत्र का कस्बा लाल घाटी है और सुनैना भी एक डायन है ..जानने के लिए पड़ते रहे मेरी इस कहानी को मेरे साथ यानि आपके अपने निखिल ठाकुर के साथ जिसका नाम है ....मेरी भैरवी(रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास)