6. सुनैना और विराजनाथ की मुलकात
सुनैना के जाने के बाद विराजनाथ अपने कक्ष की ओर जाता है और कक्ष में प्रवेश करने के बाद विराजनाथ कुछ समय तक आध्यात्मिक साधना करने लगता है।लगभग चार घंटे के आभ्यास करने के पश्चात विराजनाथ की शारीरिक और आध्यात्मिक शक्तियों में थोड़ी सी वृद्धि होती है ...इससे विराजनाथ कुछ ज्यादा खुश नहीं होता है...और ऋषि कपिलेश से प्राप्त शक्तियों को अपने अंदर पूर्ण रूप से स्थायित्व पाने के लिए और उन पर महारता हासिल करने के लिए विराजनाथ को अपनी स्वयं की शारीरिक व आध्यात्मिक शक्तियों में विकास करना जरूरी था।क्योंकि जब कोई गुरू पूर्ण शक्तिपात के द्वारा अपनी समस्त ऊर्जा को शिष्य के अंदर प्रवाहित करता है तो उन शक्तियों को अपने अंदर स्थापित व स्थिर करने के लिए साधक को अपनी शारीरिक क्षमता का विकास करना जरूरी होता है।यदि साधक ऐसा नहीं करता है तो वह अपने जीवन में कभी भी उन सिद्धियों व शक्तियों का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाता है और ये शक्तियाँ धीेरे-धीरे साधक पर अपना वशित्व जमाने लगती है ...यदि एक बार शक्तियों ने साधक पर वशित्व पा लिया तो ...फिर ये शक्तियां साधक को अपने अनुरूप चलाने लगती है।आज भी इस संसार में इस बात अनेक उदाहरण है कि कई साधक शक्तियों के ऊपर वशित्व प्राप्त ना पाने के कारण उल्टे ही शक्तियों के वशित्व में हो गये है ...जिसके कारण उनका जीवन अनेक कष्टों से युक्त हो गया था।
विराजनाथ इन सभी बातों से भलीभांति अवगत था...इसलिए वह अपनी शारीरिक और आध्यात्मिक क्षमता में वृद्धि करने का प्रयास कर रहा था।ऋषि कपिलेश ने जो शक्तियां विराजनाथ को शक्तिपात के माध्यम से दी थी वे अपने आप उच्चस्तरीय की आध्यात्मिक शक्तियां थी और उच्चस्तरीय आध्यात्मिक शक्तियों को अपने अंदर समाहित करने के लिए साधक की स्वयं की शारीरिक क्षमता व आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास भी उच्चस्तरीय का होना बेहद ही आवश्यक होता है।
विराजनाथ पुन: आभ्यास करने का मन बनाया और पुन: आध्यात्मिक साधना करने लगा..धीरे -धीरे विराजनाथ अपनी आध्यात्मिक साधना में ओर गहनता के साथ लीन होता गया।विराजनाथ आध्यात्मिक साधना में इतना लीन हो गया था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब सुबहा हो गया है और कब सूर्योदय हो गया है।यदि अगर उसके कक्ष के बाहर लगातार जोर -जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज ना आती तो शायद ही विराजनाथ अपनी आध्यात्मिक साधना की गहन अवस्था से बाहर आ पाता और ना जाे फिर कितने दिनों तक उसकी आध्यात्मिक साधना चलती रहती इस बात का अनुमान लगाना भी असंभव सा था...स्वयं विराजनाथ को भी यह पता नहीं था कि उसकी आध्यात्मिक साधना कितनी दिनों तक चलती रहती।
दरवाजे को खटखटाने के आवाज सुनकर विराजनाथ अपने आसन से उठ खडा होता है और दरवाजे की तरफ चला जाता और जैसे ही विराजनाथ दरवाजा खोलता है तो उसका मुख खुला का खुला रह जाता ...दरवाजे के बाहर बेहद ही खुबसूरत हुस्न की मल्लिका,अप्सरा जैसा श्रृंगार,गोरा बदन,सुडौल शरीर,उभरे वक्षस्थल ...मानों आज स्वयं ऊर्वशी श्रृंगार करके विराजनाथ के समक्ष खड़ी हो...यह और कोई सुनैना ही थी।जो आज पूरा श्रृंगार करके लाल रंग की साड़ी पहनकर ,और बालों को सजा -संवार ,और बालों पर चमेली के पुष्पों का गजरा लगाये हुये और शरीर से गुलाब के इत्र की खुशबू महक रही थी...इस रूप में सुनैना ऊर्वशी से कम नहीं लग रही थी।
विराजनाथ बस सुनैना को देखता ही रह गया ...विराजनाथ को अपने ऊपर नजर गड़ाये देखकर सुनैना शरमा जाती है और शरमाते हुये कहती है ....क्या हुआ ...अब आप मुझे यहीं दरवाजे पर ही रोके रखोगे या अंदर भी बुलाओगे...सुनैना की आवाज सुनकर विराजनाथ के होश मे होश आ जाते है ....और वह अभी -अभी क्या हुआ उसे सोचकर वह शरमा आ जाता है और कहता ...जी आप अंदर आ सकती है...मैं अभी- अभी ही अपनी आध्यात्मिक साधना को पूरा करके ही उठा था।
सुनैना फिर कक्ष के अंदर आ जाती है और फिर अपने साथ लाये हुये एक थैले बहुत ही मुलायम रेशमी गहरे लाल रंग के वस्त्र निकालते हुये विराजनाथ को देती है और कहती है आप इन वस्त्रों को पहने...आज मैं आपको एक ऐसी जगह ले जाऊंगी ...जो दिखने में स्वर्ग से कम नहीं है...सुनैना के हाथ से वस्त्र लेते हुये विराजनाथ सुनैना को धन्यवाद कहकर आभार प्रकट करता है ...फिर दूसरे कक्ष में जाकर अपने वस्त्र बदल कर सुनैना के लाये हुये वस्त्र धारण करता है और फिर वह सुनैना के समक्ष आ जाता है।
इन लाल रंग के वस्त्रों में विराजनाथ किसी देव पुरूष से कम नहीं दिख रहा था..चेहरे पर आध्यात्मिक ओज-तेज,कसा हुआ गठीला बदन,उभरे हुये कंधें,आँखों में तेज,और शरीर से आध्यात्मिक आभा निकल रही थी ...विराजनाथ को देखकर तो सुनैना भी एक पल के लिए विराजनाथ के ख्यालों में खो सी गई थी।
तभी उसे विराजनाथ की आवाज उससे कानों में सुनाई देती है।तुम किस जगह की पर जाने की बात कर रही हो।
सुनैना ख्बावों के दुनिया से बाहर आते ही खुद को संभालते हुये कहती है कि...वो जगह यहां से कुछ ही दूरी पर है और वहां का वातावरण अपने आपमें ही बहुत ही सुन्दर और आकर्षक है।वहां पर जाते ही मन व शरीर को एक अलग ही स्कुन सा मिलता है।चारों तरफ सुन्दर बर्फ से ढ़के पहाड़,कलकल बहती स्वच्छ नीले रंग की नदी,तालाब में खिले दिव्य सफेद रंग कमल .,...सबके मन को मोह लेते है।
मैं जब भी उदास होती हूं तो अक्सर उस जगह पर जाकर समय व्यतीत करती हूं..,वहां जाकर मुझे बहुत स्कुन मिलता है।
विराजनाथ सुनैना की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था....उसे लग रहा था कि मानों कोई अप्सरा अपने जीवन से अत्यंत दु:खी हो।
वैसे भी व्यक्ति बाहर से कितना भी खुशमिजाज का क्यों ना हो पर उसके भीतर के दु:ख को देख पाना और समझ पाना बेहद ही मुश्किल होता है।
सुनैना की बात सुनकर विराजनाथ मुस्कुराते हुये कहता है ....तब तो मुझे इस सुन्दर जगह को अवश्य ही देखना चाहिये।
इसके बाद सुनैना और विराजनाथ दोनों कक्ष से बाहर निकले और नाश्ता करने के बाद ..दोनों एक साथ घोड़ा गाड़ी में बैठ जाते है। घोड़ा गाड़ी के चालक को नैना उसे सुनहरी घाटी की तरफ चलने को कहती है।
घोड़ागाडी का चालक कस्बे के शहरी मार्ग से होते हुये घोडागाड़ी को मध्यम तेजी के साथ चलाते हुये सुनहरी घाटी की ओर बढ़ने लगता है।जब घोड़ागाडी कस्बे के शहर मार्ग से चल रही तो अनेक औरते विराजनाथ को देखकर खुश हो जाती है ...और विराजनाथ की कदकाठी को देखकर बहुत से स्त्रियां विराजनाथ पर मोहित हो जाती है और उसे अपना दिल दे बैठती है..और देखते ही देखते शहर के किनारे की एक ओर भीड़ सी लग जाती है। विराजनाथ की आध्यात्मिक आभा को भी वो स्त्रियां महसुस कर रही थी ।विराजनाथ को देखकर सभी स्त्रियां आपस में बातें करने लगती है..तभी उनमे से एक स्त्री कहती है कि यदि यह पुरूष मेरा हो जाता तो मैं इसे राजा की तरह रखती और इसके साथ आध्यात्मिक साधना करके स्वयं की शक्तियों में अधिक विकास करती ..वहीं दूसरी स्त्री कहती है कि मैं तो इसकी दासी बनने के लिए भी तैयार हू...तभी एक अन्य स्त्री कहती है जरा देखो उसके साथ वह लड़की कौन बैठी...अररे..ये तो माया की बेटी़ सुनैना है ना...
माया डायनों में से सबसे ज्यादा सुन्दर स्त्री थी...और मायावी शक्तियों में तो माया डायनों की मुखिया से ज्यादा शक्तिशाली ड़ायन थी..माया के बारे में अफवाह थी कि उसने एक मनुष्य से विवाह करके कस्बे के नियमों को भंग कर दिया था...,और उस मनुष्य को बचाने के लिए माया ने कस्बे की सभी डा़यनों के साथ युद्ध तक भी किया था ..जिसके कारण डायनों की मुखिया ने माया को मंत्री पद से हटा दिया था और उसे डायनों के महल से निष्कासित कर दिया था...और उसे निष्कासित करते समय मुखिया ने उसे यह सख्त निर्देश दिया था कि यदि माया डायनों के कस्बों को छोड़ देती है तो उसे देशद्रोही साबित कर दिया जायेगा और ऐसा करने पर उसे सजा ए मौत की सजा दी जायेगी...माया उस समय गर्भवती थी तो उसने उस समय अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए कस्बे में रहना उचित समझा और कस्बे के शहरी इलाके में छोटी सी कूटिया में रहती थी...उस दिन के बाद माया का प्रभाव खत्म होता गया हो ...और सुनैना के जन्म के बाद माया को हर ड़ायन उसे सुनैना को उसकी नायजायज औलाद कहती थी ...और बहुत ताने मारती थी...ऐसा नहीं था कि माया उन सबको जबाव नहीं दे सकती थी ..उसे चिंता थी अगर उसे कुछ हो जाये तो उसकी बेटी सुनैना का क्या होगा..इसी कारण से माया सब कुछ सहती रही ....जब सुनैना बड़ी हुई तो हर ड़ायन उसे नायजायज औलाद कहकर बुलाती थी...जिससे सुनैना को बहुत बुरा लगता था...उसने कई बार अपनी माँ से पुछा भी था कि उसका पिता कौन है और वो कहां पे रहते है और वो हमें अपने साथ क्यों नहीं ले जाते है...तो माया उसे हर बार कहती थी ..उसका पिता अब उस दुनिया में नहीं है।
घर का गुजारा बसेरा करने के लिए ही सुनैना कस्बे के शहरी इलाकों में काम करती थी..और आने वाले यात्रियों को उनके रहने का प्रबन्ध कराकर धन कमाती थी।
सुनैना को विराजनाथ के साथ देखकर सभी डा़यन उससे ईर्ष्या करने लगती है...और सभी उसली बुराई करने लगती है कि ..इन दोनों माँ -बेटियों का तो काम ही यही है ...पुरूषों को अपनी सुन्दरता के झाल में फंसाने का...जैसी माँ ...वैसी बेटी।
देखते ही देखते घोड़ागाड़ी कस्बे के शहर से बाहर निकलकर एक सुनसान जंगल के मार्ग की ओर बढ़ जाती है। जंगली मार्ग बहुत पथरीला और छोटा मार्ग था..कुछ दूरी तक चलने के बाद घोडा़गाडी रूक जाती है और चालक सुनैना से कहता ...आगे का मार्ग बेहद खराब है ...इस समय पर तो इस मार्ग पर घोड़ागाड़ी नहीं चल पायेगी...अब आप दोनों को यहां से चल कर ही सुनहरी घाटी तक जाना पड़ेगा..चालक की बात सुनकर सुनैना और विराजनाथ दोनों घोड़ागाड़ी से उतर जाते है और सुनैना चालक को उसका धन देकर चलकर ही सुनहरी घाटी की तरफ बढ़ने लगती है।
....आखिर ऐसी क्या खास बात थी सुनहरी घाटी ..और सुनैना ....विराजनाथ को क्यों उस सुनहरी घाटी पर ले जाना चाहती है...कहीं ये कोई साजिश तो नहीं ...या....कोई नई मुसीबत विराजनाथ के जीवन में आने वाली तो नहीं है ....आखिर क्या रहस्य है सुनहरी घाटी का और वहां पर क्या होगा विराजनाथ के साथ जानने के लिए पढ़ते रहिये """" मेरी भैरवी (रहस्यमय तांत्रिक उपन्यास) को Only pocket novel reader पर