नर्क - 15 Priyansu Jain द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नर्क - 15

अब निशा को एक जोड़ीदार मिल ही गयी। उसकी हिम्मत अचानक कई गुना बढ़ गयी थी मधु का साथ पाकर। कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये वही निशा है जो भयंकर डरपोक थी। दोनों सहेलियाँ मिलकर ऑफिस टाइम के बाद अब घटनाओं पर नजर रखने का अपना (बहुत जरुरी) काम कर रही थी। परन्तु निशा ने पियूष के बारे में मधु को अब तक कुछ नहीं बताया था, तो बात किसी भी सिरे से आगे नहीं बढ़ी।

इस दौरान मधु राहुल से बहुत घुल-मिल गयी थी। आयुष भी उनके साथ काफी वक्त बिताने लगा था। सबकुछ ठीक चल रहा था परन्तु निशा के मन में बेचैनी थी। अभी शहर में छिटपुट घटनाओं के अलावा कोई बड़ी वारदात नहीं हुई थी। अचानक ऐसा क्या हो गया कि नीला हत्यारा (पियूष) इतना शांत बैठा है??? उन दोनों को भी कोई सफलता अब तक न मिली थी। बिना किसी हिंट के वो किस प्रकार उस हथियार या हत्यारे के उद्देश्य को ढूँढे???

राहुल की भी तबीयत में काफी सुधार होने लगा था, ये देखकर निशा को बहुत शांति मिली थी। मधु एक माँ की तरह उसका पूरा ख्याल रख रही थी जिस से निशा की जिम्मेदारी में कुछ हल्कापन आया था इसलिए निशा मधु के लिए बहुत सम्मान और कृत्तज्ञता फील करती थी। सब कुछ एकदम शांति से बीत रहा था शहर के लोग भी अब आश्वस्त हो गए थे शायद वो हत्यारा कहीं छुप गया हो या कहीं और चला गया हो। डर काफी हद तक कम हो गया था। पर इधर इन सब के बीच में एक रात.........

........एक परछाई शहर के एक सुनसान इलाके से गुजर रही थी। उसने पूरा शरीर लबादे से ढ़क रखा था। लबादे के अंदर भी उसका शरीर असाधारण रूम से लम्बा दिख रहा था। उस इलाके में शहर की अपेक्षा काफी कम घर थे। शहर वाले जानते थे यहाँ पर कई अवांछित लोग रहते थे जो गैर कानूनी काम करते थे या ऐसे काम जो सभ्य समाज में अच्छी नजर से नहीं देखे जाते थे। कुछ मकानों में जुओं की मेहफिल सजती थी तो कुछ में चोर-उचक्कों और अन्य कलाकारों का अड्डा था, तो कुछ महान हस्तियां प्रतिबंधित मादक औषधियों का (ड्रग्स) व्यापार करते थे। ऐसे इलाके में वो लाबादाधारी आराम से चल रहा था जैसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वहाँ काम करने वाले लोगों ने जब एक अकेले इंसान को वहाँ इत्मीनान से चलते देखा तो चौंक गए। ऊपर से वो इंसान असाधारण रूप से लम्बा था और भरी गर्मी में भी उसने खुद को पूरी तरह लबादे से ढ़क रखा था।

परन्तु यहाँ कानून से छुपकर अक्सर लोग आते ही है, तो इसमें कोई बड़ी बात तो नहीं, तो सब वापस अपने-अपने काम में लग गए।

वो लबादाधारी चलते-चलते एक जगह ठिठका। उसने अपने किनारे की तरफ देखा तो सड़क पार एक बड़ा मकान था, जिसके बाहर एक बीमार सा कम पावर का बल्ब जल रहा था। जिसकी रौशनी इतनी अपर्याप्त थी कि आने वाले की शक्ल ही न दिखे। कुछ पल लगे उसे ये सोचने में कि उसे उस मकान में जाना चाहिए या नहीं। परन्तु उसने अपना निर्णय लेने में अधिक समय न लगाया। वो उस मकान की तरफ बढ़ा और उसके दरवाजे को दस्तक देने लगा।

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दुबई अंडरवर्ल्ड का माफिया किंग भारत आया था। किसी ने उसके ड्रग्स कन्साइनमेंट लाने वाली बोट के सभी आदमियों को मारकर उसका करोड़ों का नुक्सान कर दिया था और उसके एक नाईट क्लब में उसके कई आदमियों को मौत के घाट उतार दिया था। उसके आदमियों में दहशत का माहौल था। अब बॉस की भी साख का सवाल था कि वो उसके आदमियों के हत्यारों (हत्यारे) को मार कर अपने आदमियों के डर को खत्म करे।

वहाँ पर हथियारों की जैसे मंडी लगी हुई थी। बहुत सारे भारी मात्रा में असलहे और बारूद वहाँ पर थे। शायद बॉस ने पक्का इरादा कर लिया था कि यदि वो हत्यारों को मारने में सफल न हुआ तो वो इस पूरे शहर को ही उड़ा देगा। वो अपने आदमियों की क्लास ले रहा था, उनको खूब सारे निर्देश दे रहा था।

........की तभी किसी ने दरवाजे को खटखटाया। वो खटखटाहट उस माहौल में किसी धमाके की तरह गूंजी। अचानक वहाँ ऐसा सन्नाटा हो गया जैसे वहाँ कोई जिन्दा इंसान ही न हो। सबके हाथों में पलक झपकते ही खतरनाक हथियार आ गए थे। बॉस यहाँ है, इसकी जानकारी किसी को न थी तो बाहर कौन था?? कोई मुखबिर या पुलिस!!!!!

सब किसी भी स्थिति से निबटने के लिए तैयार थे। एक आदमी दबे पाँव दरवाजे तक गया और उसने सबकी तरफ एक नजर डाली मानो इशारा कर रहा हो कि अगर बाहर वाला या वाले हमारे हिसाब के न हुए तो आग बरसाने के लिए तैयार रहे।

दरवाजा खुलते ही जो सामने था उसकी लम्बाई असाधारण थी और उसने लबादे से खुद को ढक रखा था। उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। उस आदमी ने पुछा -" कौन हो तुम?? क्या चाहिए?? यहाँ कोई नहीं रहता, जाओ यहाँ से.."

एक धीमी परन्तु खरखराहट भरी स्पष्ट आवाज आयी -" अगर तुम शांतिपूर्वक मुझसे वार्ता करोगे तो कोई कष्ट न होगा, अन्यथा परिणाम हानिकारक भी हो सकता है।"

उस आदमी ने अपने बॉस की तरफ सवालिया नजरों से देखा और बॉस ने अपनी मूक सहमति दे दी। उनको अपने हथियारों पर गुमान था, तो उन्होंने आगंतुक को अंदर आने दिया। आगंतुक अंदर आया और उसने अपना लबादा उतारा, उसकी नीली काया सबके सामने उजागर हो गयी। एक आदमी सदमे और गुस्से मिश्रित आवाज में चीखा -" बॉस ये वही है।"

सबकी गनें पलक झपकते ही अनलॉक हो गयी। सबके सब उसे भून डालने पर आमादा थे। आगंतुक ने उस चिल्लाने वाले की तरफ अजीब निगाहों से देखा और कहा -" तुम उपस्थित थे न उस समय, जब मैं उस मयखाने (बार - नाईट क्लब) में प्रविष्ट हुआ था?? तो तुम अपने सहचरों को वर्णन क्यों नहीं करने कि मुझ पर आयुधों की बारिश पूर्णतया व्यर्थ है।"

तुरंत उस आदमी की आँखों में खौफ आ गया। उसे याद आ गया कि गोलियों से उसे कोई फर्क न पड़ा था। उल्टा उसने गोलियों पर ध्यान ही न दिया था। उसकी नजरें बॉस से मिली और बॉस ने उसकी आँखों में डर देख लिया था। बॉस का मिजाज कुछ ठंडा पद गया। वो बोला -" तो अब तुम यहां क्यों आये हो?? जब हमारी तुम्हारे आगे कोई औकात ही नहीं है तो तुम हमारे पीछे क्यों पड़े हो??"

आगन्तुक ने कहना शुरू किया -" मुझे सिर्फ वार्ता करनी है। अगर तुम लोग मेरा कथन शांतिपूर्वक श्रवण करो तो मैं यहाँ आगमन का अपना उद्देश्य स्पष्ट करता हूँ।"

बॉस (अपने आदमी से धीरे से) -" ये कौनसी लैंग्वेज में बोल रहा है, आधे शब्द ही समझ आ रहे है?? कहीं ये हमें गालियाँ तो नहीं दे रहा?? तुम तैयार रहना जैसे ही सही लगे यहाँ से गोलियां चलाते हुए भागना है पीछे वाले गेट से।"

आगन्तुक -" ओह्ह... तो मेरे कथन तुम्हारे मस्तिष्क में प्रविष्ट नहीं हो रहे!!!! कोई कष्ट नहीं, मैं तुमसे उस भाषा में वार्ता करता हूँ जो तुम सहजता से समझ सको।" कहते हुए उसने एक बड़ा हीरा बॉस के आगे अपनी हथेली में रखा। हीरा सामान्य हीरों से काफी बड़ा था। उसकी रौशनी से वहाँ सबकी आँखों में लालच आ गया।

आगन्तुक -" मैं यहाँ समग्र चक्षुओं में लालसा का अवलोकन कर रहा हूँ। ऐसे सहस्रों कीमती पाषाण तुम्हारे समक्ष उपहार के तौर पर प्रस्तुत किये जा सकते हैं। सिर्फ मेरा अल्प(छोटा) सा कार्य पूर्ण करना है। ये पाषाण भी तुम लोग उपहार के तौर पर अपने अधिकार में ले सकते हो।" कहते हुए उसकी आँखों में चमक और चेहरे पर कुटिलता भरी मुस्कुराहट आ गयी थी।

बॉस ने वो हीरा अपने हाथ में लिया और बोला -" ऐसे हीरों के लिए तो मैं पूरे शहर को आग लगा दूँ। तुम बताओ काम क्या है?? पर पहले हमें मेहमान नवाजी का मौका तो दो।" फिर अपने आदमियों से -" सेठजी के आराम और मनोरंजन की व्यवस्था करो और मुझे ऐसी भाषा समझने वाला आदमी लाकर दो।"



To be continued......