नर्क - 14 Priyansu Jain द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नर्क - 14

" तो आप रिजाइन कर रही है!!" निशा की आँखों में देखते हुआ पियूष ने कहा। उसके आगे निशा का रेजिग्नेशन लेटर पड़ा था। जिसे पढ़ने के बाद पियूष के भाव ही बदल गए। "क्या इसका परिणाम जानती हैं आप??"

निशा (व्यंग्य से मुस्कुराते हुए) -" हाँ सर, मुझे पता है। मुझे आपकी कंपनी को हर्जाने के तौर पर 20 लाख रूपये देने पड़ेंगे वो भी 1 हफ्ते के अंदर। वरना मुझे जेल हो सकती है।"

पियूष -"तो आपने जेल जाने की ही ठान ली है।"

निशा -"जी नहीं सर, फिलहाल मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। आगे अगर किसी को मार कर चली गयी तो कह नहीं सकती।"

पियूष (खुद से बड़बड़ाते हुए)-" ओह्ह तो मोहतरमा मेरा कत्ल करने का इरादा रखती है। कोई बात नहीं, इनके हाथों तो मरने के लिए भी हम तैयार है।"

निशा (चौंकते हुए) -" क्या कहा आपने??"

पियूष (प्रत्यक्ष में) -" जी मैंने कहा कि आपने शायद सारे रेगुलेशंस सिग्नेचर करने से पहले ठीक से पढ़े नहीं। कोई बात नहीं.... मैं हूँ । आपको पढ़कर सुनाता हूँ।" (अपनी दराज से एक एग्रीमेंट निकलते हुए) "मैं सीधा तीसरे क्लॉज़ पर आता हूँ। जो कहता है कि आपको जॉब छोड़ने से पहले हमें एक महीने का नोटिस देना पड़ेगा वरना आप पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी। तो आपने जो नोटिस दिया था उसकी कॉपी मेरे मुँह पर मारिये और दफा हो जाइये मेरी कंपनी से।"

निशा को पैरों के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुई। वो जोश में ये भी भूल गयी कि उसको एक महीने का कंपनी को नोटिस देना पड़ेगा जो उसने दिया नहीं और अब पियूष उसे इसी नोटिस के नाम पर चिढा रहा है। यदि वो आज भी नोटिस दे तो उसे पियूष को एक महीना और झेलना पड़ेगा जो कि अब सब कुछ याद आने के बाद निशा के लिए असंभव था। पियूष जैसी बड़ी शक्ति के लिए कुछ भी असंभव न था। एक महीने में तो वो कोई न कोई तरीका निकाल ही लेगा किसी बड़ी योजना को अंजाम देने के लिए

कौनसी योजना?? शायद उस परशु को ढूंढ रहा है। जो अभी इसके हाथ में नहीं है। शायद इसके पिता जी यानी भगवान् ने इससे ले लिया है इसके कुकर्मों के कारण। परन्तु ये मेरे पीछे क्यों पड़ा है??? शायद ये अब भी चाहता है कि मैं इसके सारे गुनाह माफ करके इससे वापस मिल जाऊँ..

निशा परेशान सी आकर अपने केबिन में बैठ गयी और अनमने भाव से प्रोजेक्ट की फाइल देखने लगी। उसकी आँखें जरूर प्रोजेक्ट फाइल में थी, पर दिमाग में उसके तूफान चल रहे थे। एक तरफ उसका मन था कि छोड़ कर ये सब चुपचाप राहुल को लेकर कहीं भाग जाए जहाँ कोई उसे न पहचानता हो पर पियूष......!!!!.....वो तो उसे कहीं से भी ढूंढ़ ही लेगा। यानी उसे चुपचाप कोई मौका ही ढूँढना पड़ेगा। वो किसी से अपने मन की बात शेयर भी तो नहीं कर पा रही थी। कौन यकीन करेगा कि यहाँ धरती पर बहुत बड़ी शक्ति आयी हुई है, जिसके लिए पूरी धरती को खत्म करना महज एक चुटकी का खेल है। जो लोग भगवान के अस्तित्व को नकारते फिरते है उनको क्या पता कि उनका ही बेटा जो की सबसे ज्यादा खतरनाक है, इस धरती पर इसी शहर में उन लोगों के बीच साधारण इंसान बनकर रहता है।

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निशा अपने ख्यालों में गुम ही थी कि तभी किसी ने उसकी आँखों पर हथेलियाँ रख दी। निशा उस हाथ के स्पर्श को पहचान कर बोली -"मधु"।

पीछे मधु ही थी। मधु आकर उसके सामने बैठ गयी और बोली-" क्या बात है मेरी जान, मुँह पर बारह क्यों बजे हुए है तेरे??"
"यार क्या बताऊँ, प्रॉब्लम ही ऐसी है कि मैं किसी को बता भी नहीं सकती और उसका सोल्यूशन भी मेरे पास नहीं है। ऐसा लगता है कि मेरा सर फट जायेगा अब।"

मधु -" देख निशा, मैं तुझे मेरी बहन मानती हूँ। अब तेरी इच्छा है कि तूं मुझे सब बताने लायक समझती है या नहीं। अगर तूं मुझे कुछ न बताएगी तो भी मुझे बुरा नहीं लगेगा, पर मैं ये जरूर चाहूँगी कि तेरी हर परेशानी का कारण जानूँ।"

निशा -" मधु, जब तुमने इतनी बात बोल दी तो मैं क्या कहूं?? मुझे तुम जैसी प्यारी सहेली मिली, यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। असल में मैं शहर में घूम रहे उस विक्षिप्त हत्यारे की वजह से परेशान हूँ।"

मधु -" उसकी वजह से तुम ही क्यों पूरा शहर ही परेशान है। सब लोग डर रहे हैं कि पता नहीं कब किस से उसका सामना हो जाये और किसकी मौत आ जाये। मैंने तो सुना है कि उस पर गोलियों का भी असर नहीं हो रहा है। तो वो तो जहाँ चाहे, जैसे चाहे जाकर कुछ भी कर सकता है। ऐसा ही चलता रहा तो जल्दी ही ये शहर वीरान हो जायेगा।"

निशा -" असल में मेरी प्रॉब्लम ये नहीं है मधु।" निशा असमंजस में थी कि वो पियूष के बारे में मधु को बताये या नहीं, क्यूँकि मधु इन बातों पर विश्वास न कर पायेगी।

उसकी सोच को मधु का अगला सवाल भंग करता है -" क्या तू मुझे कुछ और कहना चाह रही है?? यदि कुछ ऐसा है तो मुझे बता कि क्या है तेरी प्रॉब्लम?? हम दोनों उसे मिलकर सोल्व करेंगे। मैं यूं अकेले तुम्हें परेशान होते नहीं देख सकती।"

निशा मधु को सब कुछ बताती है बस ये नहीं बताती कि वो हत्यारा पियूष ही है और निशा उस हत्यारे से पूर्वजन्म में प्रेम करती थी और वो रक्षकुमारी निशिका है। उसने मधु को ये बताया कि वो कुछ ढूंँढ़ रहा है और उस तलाश के बीच में जो कोई भी आया वो मारा गया।

मधु आँख और मुँह फाड़े उसकी हर बात सुन रही थी। पूरी बात खत्म होने के बाद वो हिस्टीरियाई अंदाज में बोली -" मतलब उस हत्यारे से तूं मिल चुकी है और उसने तुम्हारी वजह से क्लब में कत्लेआम रोक दिया था?? तूं भी कोई उसकी रिश्तेदार तो नहीं है न?? कहीं ऐसा न हो कि तूं भी नीली-पीली होकर यहाँ मारना काटना शुरू कर दे।"

निशा -" यार मधु, अब मजाक मत कर तूं जानती है कि ऐसा कुछ नहीं है। मेरी परेशानी कम करने की जगह तूं मेरे साथ ही मजाक कर रही है??"

मधु -"अरे नहीं यार, आई एम सॉरी, मुझे तुझ पर और तेरी हर बात पर यकीन है।मैं तो बस मजाक कर रही थी। पर अब बता हमें क्या करना होगा??? मैं अकेले तो उस दरिंदे से तुझे भिड़ने नहीं दूंगी। अब चाहे ये जान रहे या न रहे उस सनकी को रोकने की कोशिश तो करनी ही होगी और उस कोशिश में मैं तेरे साथ हूँ। अब वो पागल तो हमें बताएगा नहीं कि वो क्या ढूंँढ़ रहा है और कैसे। तो हमें ही कोई क्लू का पता लगाकर वो चीज उस से दूर करनी होगी।"

निशा -" हाँ तूं सही कह रही है। तेरी बात एकदम ठीक है कि उसको क्या चाहिए ये पता लगाकर हम वो चीज हथिया सकते हैं। फिर तो वो हत्यारा हमारी मुठ्ठी में होगा। पर वो चीज क्या है, ये पता कैसे करें??"

मधु (मजाक में) -" अगली बार वो मिले तो उसी से पूछ लेना।"

निशा मन में कुछ सोचने लग जाती है। कुछ तो था उसके दिमाग में जो कोई सोच भी नहीं सकता था। मधु बस उसका चेहरा ही देखे जा रही थी। वो समझ गयी थी कि निशा ने कुछ न कुछ सोच लिया है। अब बस उन दोनों को उस पर अमल करना बाकी था। यानि अब चूहे बिल्ली का खेल शुरू होने वाला है। उन दोनों की जोड़ी क्या कमाल करेगी अब ये तो आने वाला समय ही बताएगा........

To be continued.......