तमाचा - 13 (मौका) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 13 (मौका)

"अरे यार ! तुझे मरने का शौक है क्या? आज कॉलेज ही क्यों आया तू? तुझे पता है न कल तेरे को धमकी मिली थी और फिर भी तू आ गया।" मनोज ने राकेश को कॉलेज में देखते ही बोला। अभी तक दोनों कॉलेज पहुँचे ही थे कि दोनों की मुलाकात हो गयी।
"हाँ यार और करता भी क्या? अब जो होगा देखा जायेगा।" राकेश ने अपने डर को भीतर ही दबाकर बोला।
दोनों कुछ देर बातें करते है और अपनी-अपनी क्लास की ओर अग्रसर हो जाते है।

प्रोफेसर विजय सिन्हा क्लास में भारत का संवैधानिक इतिहास शुरु करते है लेकिन राकेश पीछे की उसी बेंच पर बैठा अपने भविष्य की चिंता कर रहा था। दिव्या अभी तक आयी नहीं थी वो इसी चिंता में था कि दिव्या आई क्यों नहीं ? क्या पता वो बाहर अपने पापा के गुंडे लेके बैठी हो और मेरा इंतजार कर रही हो या हो सकता है वो मेरा भाग्य अच्छा हो और वो आये ही नहीं। लेकिन तभी राकेश की धड़कन की स्पीड बढ़ जाती है दरवाजे से दिव्या क्लास में प्रवेश करती है और वहीं कल वाली जगह राकेश के पास आकर बैठ जाती है। राकेश राजनीति की क्लास में अपनी आँखों को बार - बार दिव्या की तरह घुमाकर विभिन्न ऐंगल्स बना कर गणित के ज्ञान का प्रयोग कर रहा था।
थोड़ी देर बाद प्रोफेसर अपना पीरियड पूरा कर वहाँ से चले जाते है। क्लास में कुछ फुसफुसाहट शुरू होकर शोर सा मच जाता है। सभी अपनी- अपनी बातों में मशगूल हो जाते है पर राकेश अभी भी बोर्ड की तरफ देख रहा था उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी दिव्या की तरफ देखने की। और दिव्या अपनी कोहनी को टेबल पर रखकर अपनी हथेली को अपने कोमल कपोल से दबाकर राकेश की ओर देख रही थी पर कुछ बोलने में जिझक रही थी।
"आई एम सॉरी!" राकेश ने आखिर हिम्मत करके इस चुप्पी को तोड़ते हुए कहा।
"अरे वाह! क्या बात है। कल तो बड़े हीरो बन रहे थे और आज आ गए लाइन पे। पता है मैंने सोचा बेचारे को आज का दिन दे देती हूँ । क्या पता अक्ल का जाए। और अच्छी बात है आ भी गयी।" राकेश के सॉरी बोलने पर दिव्या ने अपने रॉब को पुनः प्रदर्शित करते हुए बोला। दिव्या के मन में भी दुविधा थी कि उसको क्या बोले और कैसे लेकिन राकेश ने सॉरी बोलकर उसका काम आसान कर दिया।
"क्या करूँ रहा नहीं गया मेरे से; आप हो ही इतनी खूबसूरत की तारीफ किये बिना रह नहीं पाया। आपको अगर मेरी बात से इतना बुरा लगा हो तो आई एम सॉरी! " राकेश ने एक ऐसा शब्दों का बाण छोड़ा कि दिव्या चित सी हो गयी।
कोई भी नारी हो अपनी सुंदरता की प्रशंसा सुनकर अपने कठोर व्यवहार में भी कुछ कोमलता ला ही देती है।
" ओके इस बार तो माफ किये देती हूँ । पर अगली बार कुछ ऐसा हुआ तो देख लेना उसका अंजाम बहुत बुरा होगा।" दिव्या ने इतराते हुए कहा और वहाँ से उठकर केंटीन की ओर चली गयी।
दिव्या के जाते ही राकेश ने चैन की साँस ली और ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया कि इस मुसीबत से बचा लिया वरना अगर कॉलेज में पिट गया होता तो इज्जत की धज्जियाँ उड़ जाती।

कॉलेज से निकलते टाइम मनोज गेट पर ही राकेश का इंतजार कर रहा था। वह यह जानने को उत्सुक था कि आखिर दिव्या ने क्या किया राकेश के साथ।
"अरे ! सुन भाई रुक तो सही।" मनोज राकेश को जाते हुए कहता है।
" अरे! मनोज तुम यहाँ ? क्या बात है आज दिखे ही नहीं ? तुमने क्या सोचा मैं .." कहते कहते राकेश अचानक रुक गया। दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है। अचानक राकेश के दिमाक में आया कहीं फिर से वह कोई ऐसा -वैसा बोल दे और वो सुन ले तो अबकी बार क्या पता घर जाने लायक भी बचेगा या नहीं।
" हाँ ! हाँ ! बोल भाई , रुक क्यों गया ? " मनोज ने पूरी बात सुनने की उत्सुकता में बोला।
" छोड़ो अभी । यह लंबी बात है , बाद में करेंगे अभी मुझे जल्दी जाना है घर, ओके बॉय। " राकेश बोला और कॉलेज से निकलती हुए भीड़ में विलुप्त हो गया।

क्रमशः ....