तमाचा - 14 (मुकाम) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 14 (मुकाम)

दूर-दूर तक बिछी रेत की चादर और उनके बीच कहीं-कहीं उगे खींप के पौधे ऐसे लग रहे थे, जैसे चादर के बीच कोई कढ़ाई का कार्य किया गया हो। उन धोरो के बीच गिरे हुए चिप्स और खाली बोतलों के पैकेट उन निर्जन रेगिस्तान में मानव की उपस्थिति को प्रमाणित कर रहे थे। सूर्य की किरणें रेत पर पड़कर उसकी चमक को बढ़ा रही थी। पर इस चमक ने भी सिर झुका लिया जब बिंदु ने अपने कोमल पाँव उन मखमली धोरो पर रखे। पहली बार घूमने आई बिंदु का उत्साह उसके रूप लावण्य को और आकर्षित कर रहा था। दूर तक बिखरी रेत ही रेत और उन पर जब प्रातःकाल सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो वह रेत भी अपने को प्रकाश की तरह सोने सा बना लेती है।
गुजरात से आई पार्टी के लिए ऊँट की सवारी करना शानदार अनुभव रहा। गणेश बोला "मजो आवि गयो।" पर नीता और सुनील को तो तब मजा आया तब उनके पापा मयंक ऊँट पर चढ़े। बेचारा ऊँट ! बड़ी मुश्किल से संभल पाया।
विक्रम सभी को इन धोरों की सुंदरता का पाठ पढ़ा रहा था पर उसकी नज़र पड़ती है कि आसपास वाले बहुत से आदमियों के झुंड उनकी कन्या को ताड़ रहे थे। वो बार -बार अपने साथ आये सभी को आगे ही ले जा रहे थे। थोड़ी देर बाद जब वो मयंक,रेश्मा और उनके बच्चों को पास हो रहे लोक गायक कलाकारों के पास ले जाता है तभी वो देखता है कि आर्या , गणेश और बिंदु तीनों साथ में बातें कर रहे है और फ़ोटो भी ले रहे है। तभी वह सशंकित होकर उनको बुलाता हुआ कहता है। "अरे! सर् इधर आ जाओ आपको थार का आनंददायी संगीत सुनवाते है।"
"केसरिया बालम आओ नि पधारो म्हारे देश......" कामायचे के साथ उन मांगणियार लोक गायकों की धुन पर सभी मुग्ध हो गए।
बिंदु जब रेश्मा और आर्या से बातें कर रही थी तब उसके लबों पर एक अद्भुत सी मुस्कान थी। विक्रम ने जब यह देखा तो सहसा उसको आभाष हुआ कि यह दुनियाँ इतनी भी बुरी नहीं है जितनी मैं समझता हूँ। ये भी तो गुजरात से यहाँ आई है घूमने और उनके साथ ऐसे बात करते देख उसके दिल को बहुत सुकून मिल रहा था और साथ ही उसके लिए करुणा भी उत्पन्न हो रही थी कि काश इसकी माँ आज होती तो इसकी परवरिश कितनी अच्छे से हो पाती।

'सम' के धोरों की सैर के बाद वह अपने नए भ्रमण स्थान "कुलधरा" की और रवाना हो गए।रास्ते में अधिकांश गाड़ियों की तरह उनकी गाड़ी भी मधुशाला के आगे रुकी और मयंक अपने लिए अपनी पसंदीदा दारू की बोतल लाया और अपने भाई के लिए बियर की। रेश्मा और आर्या ने भी उनको रोका-टोका नहीं क्योंकि वैसे भी गुजरात पहुँचने के बाद ये होना नहीं ।

"यह एक शापित गाँव है, जिसे पालीवाल ब्राह्मणों ने बसाया था। इस गाँव के मुखिया की बेटी जो दिखने में बहुत सुंदर थी। एक बार जैसलमेर राज्य के एक मंत्री सालिम सिंह की नजर उस पर पड़ी और वह उस पर मोहित हो गया। सालिम सिंह ने उससे शादी करने का इरादा कर लिया पर उसी रात गाँव में सभा बुलाई गई और अपने कुल की लाज रखने के लिए सभी गाँव वालों ने रात ही रात को वहाँ से जाने का निश्चय कर लिया और इस तरह एक ही रात में पूरा का पूरा गाँव खाली हो गया । उनकी जमीन और जायदाद सब यहीं रह गए पर उन्होंने अपनी आन को कम न होने दिया । पर जाते - जाते वो ये शाप देते गए कि इस गाँव में और कोई बस नहीं सकेगा। अतः आज तक यह गाँव सूना है। रात को आज भी यहाँ आना मना है।" विक्रम ने अपनी रटि-रटाई यह आन - बान की कहानी मयंक और उसके परिवार को सुनाई और सभी उनकी बात को सुनकर विस्मय से भर गए। गणेश ने नीता और सुनील को "भूत.. भूत...." कहकर डराने का प्रयास किया पर आजकल के बच्चें खुद तो क्या डरे , भूत सामने आ जाये तो उसको डरा दे।
पत्थरों के बने पक्के मकानों के खंडहर, वो भी एक सुनियोजित पंक्तिबद्ध , अतीत के में जली हुई आग के राख की तरह थे। उन घरों में भी चूल्हे जलते होंगे,उन घरों में कभी शादियों की धूम रही होगी कभी कोई मौत का गम बिछा रहा होगा, कभी किसी माँ ने अपने बच्चो को प्यार से बड़ा किया होगा, कभी किसी विरहणी ने विरह के दिन और राते काटी होगी, कभी वहाँ त्योहारों की धूम रही होगी ,कभी किसी ने अपने छुपे हुए प्रेम को छुपाने की कोशिश की होगी। पर आज ये खंडहर है। जहाँ लोग कहते है रात को भूत होते है। आदमी और वर्तमान को आदमी से और वर्तमान से भूत होने में देर नहीं लगती। आखिर आदमी अंत में उस मुकाम पर पहुँच ही जाता है जहाँ से फिर वापस लौट के आने के रास्ते का उसको कोई बोध नहीं रह जाता।
उस अतीत की कहानी को दिल में समेटकर विक्रम और उसकी पार्टी एक नए मुकाम की ओर अग्रसर हो गयी।

- क्रमशः