संध्या का समय विदा होकर रात्रि के आने की सूचना दे रहा था। सड़क पर गाड़ियों की कतारें ध्वनि प्रदूषण का अपना काम पूरी निष्ठा से कर रही थी। लोग अपने घरों की ओर जा रहे थे और चाट व रेस्टोरेंट वाले अपने ग्राहकों की भीड़ को निपटाने का प्रयास कर रहे थे। सड़क के किनारे बनी एक कोठी और उसके चारों और बनी लंबी चारदीवारी जिसके मुख्य गेट से एक गाड़ी अंदर प्रवेश करती है जिसके आगे विधायक नाम की पट्टी लगी है।
गाड़ी मुख्य भवन के आगे रुकती है और उनका पीए सुरेश गाड़ी का दरवाजा खोलता है और विधायक श्यामचरण बाहर निकलते है। उनके बाहर निकलते ही उनसे मिलने आये लोग उनको नमस्कार करने लगे और अपनी समस्या बताने के लिए विधायक आवास में ही बने एक बड़े कमरे में उनके पीछे-पीछे चल दिए।
अपनी व्यस्त दिनचर्या में जब वो शाम को वापस अपने आवास पर आते तो वहाँ भी लोग उनकी प्रतीक्षा कर रहे होते। पर आज थोड़ी भीड़ अधिक ही थी। इस भीड़ में कुछ स्टूडेंट्स थे तो कुछ व्यापारी,कोई अपनी व्यक्तिगत समस्या के निदान की आशा लेकर आया था तो कोई समाज सेवा के भाव से जनता की समस्या प्रस्तुत करने।
दो बार हार के पश्चात तीसरी बार निर्दलीय खड़ा होकर बड़ी मुश्किल से जीते श्यामचरण जीत के बाद पूरी तरह समर्पित भाव से कार्य कर रहे थे । क्योंकि उसको आने वाले चुनाव में फिर से जीतना जो था और साथ ही अपनी बेटी की भी राजनीति में एंट्री जो करवानी थी।
हालांकि पर्दे के पीछे क्या करते इसका पता भोली जनता को क्या चले ;पर पर्दे के हटने पर वो अपनी छवि को ध्रुव तारे के समान चमकाने में लगे हुए थे।
एक कमरे में बैठी दिव्या इस उहापोह में मशगूल थी कि उस लड़के के साथ क्या किया जाए जिसने उसके साथ ऐसे बात करने की हिम्मत की। कभी सोचती पापा को बोलकर उसकी खबर ली जाए तो कभी उसकी सूरत को यादकर उसकी बातों को फिर से याद करने लगती और सोचती इस खेल को ओर चलने दिया जाए। कभी सोचती वो एक आम आदमी है और मैं विधायक की बेटी उसको मजा चखाना जरूरी है । तो कभी सोचती वो आखिर है तो जिगर वाला जिसने मेरे से इस तरह बात करने की हिम्मत की।
"अरे! आज तू कहाँ खोई हुई है। लो तेरे पापा आ गए है क्या काम है उनसे जाके बोल दे।" अचानक इस आवाज के साथ दिव्या के खयालों का पुल टूट गया। दिव्या की माँ रूपवती दरवाजे के बाहर से ही उसको बोलती है और फिर रसोई में नौकरों को निर्देश देने चली जाती है।
"सर , हमारी कॉलेज में अभी तक लेक्चरर वाली पोस्ट खाली है। आपको इस बारे में पहले भी अवगत कराया गया था पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। " कॉलेज के छात्रों में से उनका लीडर बोला।
पी ए सुरेश तुरंत विधायक के निर्देश पर संबंधित अधिकारी को फ़ोन लगाता है और विधायक को पकड़ाता है।
"नमस्ते सर्...." अधिकारी फ़ोन उठाते ही डरते हुए बोला क्योंकि उसको पहले भी विधायक इस बारे में बात कर चुके थे।
"ए. पी. कॉलेज में अभी तक आपने स्टाफ नहीं लगाया। बताओ आप के साथ अब क्या किया जाए। मैंने उस दिन भी आपको बोला था।"
"सॉरी सर , हमनें प्रयास खूब किया लेकिन लगाए कहाँ से हर कॉलेज का अभी यही हाल है अगर किसी और कॉलेज से इस कॉलेज में लगा दे तो उस कॉलेज में स्टाफ की समस्या हो जाती है। अब नई भर्ती आएगी तभी शायद इस समस्या का समाधान संभव है। "
"मुझे कुछ नहीं सुनना है। आपके पास दो दिन है यह काम हो जाना चाहिए। कहीं से भी लाओ पर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ मैं नहीं होने दूंगा।"विधायक ने धमकी भरे स्वर में कहा। विधायक श्यामचरण निर्दलीय होकर भी सरकार के लिए महत्वपूर्ण थे क्योंकि यह सरकार निर्दलीयों के बल पर ही टिकी थी और श्यामचरण को इसके लिए काफी मोटी धनराशि प्राप्त हुई थी और उम्मीद थी कि शायद वक्त आया तो मंत्री पद के लिए टांग अड़ा दूंगा।
छात्रों का समूह धन्यवाद देके निकल गया और एक - एक कर अन्य लोग भी अपनी समस्या बताने लगे। इसी बीच दिव्या कमरे में प्रवेश करती है और पापा को व्यस्त देखकर पी ए को पूछती है,"सुरेश जी और कितना समय लगेगा पापा को फ्री होने में?"
"अभी तो भीड़ बहुत है और टाइम लगेगा। आपको कुछ काम है क्या बोलों अभी कह देता हूँ उनको " पी ए ने अपनी कमर और गर्दन को नब्बे डिग्री के कोण से कम करते हुए बोला।
"नहीं!नहीं! कोई बात नहीं । इतना जरूरी नहीं है मैं बाद में बोल दूंगी।" इतना कहकर दिव्या अपने वहाँ से चली गयी और खाना खाने के बाद अपने कमरे में जाकर फिर विचारों के भँवर में खो गयी और कब यह भँवर उसको नींद के जाल में फंसा गया इसका पता उसको भी नहीं चला।
सुबह जब उठी तो बालकनी से देखा कि उसके पापा गाड़ी में बैठ गए और प्रातः ही किसी दौरे पर निकल गए।
क्रमशः.....