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मोटे अनाज मल्टीग्रेन की संक्षिप्त जानकारी 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष

एक अनुमान के मुताबिक देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में कदन्न अनाज की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी। कदन्न अनाज को मोटा अनाज भी कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं।

मोटे अनाजों की खेती करने के अनेक लाभ हैं जैसे सूखा सहन करने की क्षमता, फसल पकने की कम अवधि, उर्वरकों, खादों की न्यूनतम मांग के कारण कम लागत, कीटों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता। कम पानी और बंजर भूमि तथा विपरीत मौसम में भी ये अनाज उगाए जा सकते हैं।

बारानी तथा वर्षा आधारित कृषि के अंतर्गत स्थान विशिष्ट उन्नत उत्पादन प्रौद्योगिकियों के उपयोगी के साथ विविधता को ध्यान में हुए कदन्न फसलों (मोटे अनाजों) की खेती से संसाधनों की कमी वाली वाले कृषकों की आय को बढ़ाने की अत्यधिक संभावनाएं हैं। इसके लिए प्रौद्योगिकियों, विपणन प्रणालियों आगत आपूर्तियों, ऋण और नीतियों में तालमेल की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त कृषकों की आय को दोगुना करने हेतु संस्थानों को खेत से रसोई प्रणाली पर बल देना होगा।

पोषक तत्वों का सस्ता स्त्रोत 
कदन्न फसलें ऊर्जा, पाच्या देशों रेशे की अधिक मात्रा, प्रोटीन, विटामिनों तथा खनिजों की सस्ता स्रोत हैं। पोषक तत्वों के सेवन के संदर्भ में कुल सेवन की गई कैलरीज, प्रोटीन, आयरन तथा जिंक में लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा कदन्न फसलों का होताहै। इसलिए यह आवश्यक है कि देश के, विशेषकर कम तथा औसत वर्षा वाले, क्षेत्रों में क्द्न्नों को सबसे ज्यादा पंसदीदा फसल विकल्पों के रूप में तैयार किया जाये। कदन्न (ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, सावां, कोदों, चेना, कुटकी) मानव के लिए भोजन, पशुओं के लिए चारा तथा उद्योगों के लिए कच्चे माल के मुख्य स्रोत हैं। ये फसलें अर्द्धशुष्क जलवायु के अंतर्गत वृद्धि करती है। जहाँ अन्य फसलों का विकास ठीक से नहीं हो पाता है। जलवायु परिवर्तन का कृषि, उद्योगों के साथ – साथ आजीविका पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। इससे केवल खाद्य सुरक्षा ही नहीं, बल्कि स्थिरता को भी खतरा है। अत: जलवायु अनुकूल श्रेष्ठ फसलों (क्लाइमेट स्मार्ट क्रौप्स) जैसे कदन्न के तत्काल प्रचार की आवश्यकता है। कदन्न 400 मि. मी. से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वृद्धि करके अपना जीवन चक्र पूरा करने की क्षमता के कारण जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। कृषकों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य की पूर्ति हेतु इन फसलों के लिए उपयुक्त उत्पादन प्रौद्योगिकियों  के विकास एवं मूल्य- श्रृखंला तैयार करने की आवश्यकता है।

चावल और गेहूं जैसे महीन अनाजों के विपरीत, मोटे अनाज (अनाज) पाचन में भारी होते हैं यानी वे पाचन के लिए समय लेते हैं। आम तौर पर वे उच्च तापमान (25-50 डिग्री सेल्सियस) क्षेत्र और कम वर्षा (50-80 सेमी) में उगाए जाते हैं

प्रौद्योगिकी प्रयोग
नई प्रौद्योगिकियों को कम निवेश, लागत प्रभावी, कम श्रमयुक्त तथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य होना चाहिए। कदन्नों की खेती के आधार पर कुछ आशाजनक एवं आवश्यक हस्तक्षेप निम्नलिखित हैं

उन्नत कृषि कार्य एवं समय प्रबंधन
अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों के अंतर्गत प्रदर्शित प्रौद्योगिकियों का प्रभाव दर्शाता है कि अग्रिम उन्नत कृषि कार्यों को 48 प्रतिशत से ज्यादा, विशेषकर बीजोपचार (85 प्रतिशत), उच्च उपजाऊयुक्त किस्मों के उपयोग (70 प्रतिशत), नाइट्रोजन उर्वरक के उपयोग (57 प्रतिशत), बुआई समय के अनुकरण (49 प्रतिशत) तथा पौधों में पर्याप्त अंतर (48 प्रतिशत) पर अपनाया गया। इसके कारण बेहतर गुणवत्ता (78 प्रतिशत) के साथ धान्य उपज (58 प्रतिशत) तथा चारा उपज (58 प्रतिशत) तथा चारा उपज (26 प्रतिशत) में वृद्धि पाई गई। परिणामस्वरुप शुद्ध लाभ में अत्यधिक वृद्धि (170 प्रतिशत) हुई। इससे यह सिद्ध होता है कि संस्तुत कम – लागतयुक्त कृषि के उपयोग एवं यथासमय प्रबंधन के द्वारा थोड़ा परिवर्तन करने से ही उपज तथा आर्थिक लाभ में अत्यधिक सकरात्मक प्रभाव देखा जा सकता है।

मोटे अनाजों का महत्व कदन्न प्रजातियां/किस्मों के व्यापक जलवायु अनुकूलनशील होने के बावजूद, चावल व गेहूं की अपेक्षा संस्थागत सहायता की कमी के कारण पिछले कुछ समय से इनकी खेती में धीरे-धीरे गिरावट आई है। इसलिए हमें उपभोक्ताओं में इन अनाजों की मांग को बढ़ाने हेतु ध्यान केंद्रित करना होगा। इस प्रकार लंबे समय तक कदन्नों की खेती की मांग बनी रह सकती है। कदन्नों की विकास प्रक्रिया के महत्व को ध्यान में रखते हुए तीन प्रमुख तत्वों पर ध्यान देना होगा i) भागीदारी प्रणाली से फसलों की वैज्ञानिक खेती तथा एकल खिड़की प्रणाली में निवेश आपूर्ति के साथ अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के समर्थन से क्षमता निर्माण, ii) मूल्य-वर्धन को बढ़ावा तथा कृषक निर्माता संगठनों एवं स्वयं सहायता समूहों जैसी समूह प्रणाली के माध्यम से बाजार में मांग में वृद्धि तथा iii) न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ पुनर्खरीद की व्यवस्था, फसल बीमा, मध्यान्ह भोजन तथा लोक-वितरण प्रणाली में शामिल करने के अतिरिक्त कटाई उपरांत प्राथमिक प्रसंस्करण एवं गोदामों हेतु नीतिगत सहायता की आवश्यकता है। इसके अलावा महिला एवं युवा तथा ग्रामीण एवं शहरी सभी वर्ग के लोगों को केंद्र में रखकर कदन्न आधारित उत्पादों पर उद्यमिता विकास हेतु कौशल को मजबूती प्रदान करनी होगी, ताकि लक्षित लाभार्थियों को सीधे लाभ मिल सके। 
 जल संरक्षण कार्य
खरीफ फसलों में वर्षा तथा रबी फसलों हेतु अवशिष्ट नमी पर निर्भरता चिंता का प्रमुख विष्ट है। रबी ज्वार तथा बाजरे की उत्पादकता में कमी का मुख्य कारण अवशिष्ट मृदा नमी पर रबी ज्वार व बाजरे की खेती तथा अंतस्थ (टर्मिनल) सूखे की स्थिति है। स्व –स्थाने नमी संरक्षण कार्य जैसे रबी ज्वार में क्यारी निर्माण (कम्पार्टमेंटल बांडिंग) से 12.6 प्रतिशत मृदा नमी संरक्षण ज्यादा हुआ तथा कृषक विधि की तुलना में इससे 20.6 प्रतिशत ज्यादा धान्य उपज प्राप्त हुई। इसके अलावा जैविक पलवार (आर्गेनिक मल्चिंग) उत्पादकता वृद्धि के महत्वपूर्ण प्रबंधन विकल्प हैं।

कदन्न – आधारित अंत:फसल
भूमि के उचित उपयोग हेतु मृदा प्रकार, वर्षा एवं वृद्धि की अवधि के आधार पर उपयुक्त अंतर व अनुक्रम फसल प्रणाली की सिफारिश की जाती है। ज्वार की फली की साथ अंत: फसल लेने पर प्रति इकाई क्षेत्र एवं समय में केवल उपज जी ज्यादा नहीं मिलती, बल्कि पोषण सुरक्षा और अधिक आर्थिक लाभ भी प्राप्त होता है। अलावा मृदा स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। ज्वार+अरहर (2:1/3:1/6:2) तथा ज्वार + सोयाबीन (3:6/2:4) दप अत्यधिक प्रचलित अंत:फसल प्रणालियाँ हैं। मध्यम अवधि के ज्वार जीन प्ररूप अंत:फसल हेतु ज्यादा उपयुक्त होते हैं। वार्षिक 700 मि. मी. से ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों तथा उच्च जल धारण क्षम्तायूक्त, मध्यम से गहरी मृदाओं में सोयाबीन – रबी ज्वार को तथा सीमित सिंचित परिस्थितियों के अंतर्गत ज्वार (खरीफ)- चना, कुसूम तथा सरसों (रबी) को ज्यादा उत्पादक एवं आर्थिक रूप से व्यवाहारिक प्रणाली पाया गया है। अन्य कई कदन्न – आधारित अंत:फसल तथा अनुक्रम फसल प्रणालियों को ज्यादा लाभप्रद पाया गया।

कदन्न खेती के नए पहलू
इसके अतिरिक्त धान – परती में ज्वार अथवा कद्न्नों की खेती कृषकों की आर्थिक सुरक्षा में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आंध्र प्रदेश के गूंटूर जिले में धान – परती में 2012 से 2016 के दौरान स्थानीय लोकप्रिय किस्म महालक्ष्मी 296 (5.86 टन हेक्टर) की अपेक्षा ज्वार संकर – सीएसएच 17 (7.50 टन हेक्टर) ने अत्यधिक उपज प्रदान की। धान्य उपज में 27 प्रतिशत अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गई। परिणामस्वरूप कृषकों को 73 प्रतिशत ज्यादा आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ। यह कृषकों को अतिरिक्त आय का आश्वासन प्रदान करता है।

मूल्यवर्धन तथा कटाई उपरांत प्रसंस्करण
ज्वार व कदन्नों के मूल्यवर्धन तथा प्रसंस्करण के द्वारा नियमित व्यवसाय की अपेक्षा ज्यादा आय अर्जन की संभावनाएं हैं। कदन्नों की स्वास्थ्यवर्धक खाद्य के रूप में प्रस्तुत करने तथा इनके मूल्यवर्धित उत्पादों हेतु मांग निर्माण करने पर इनके उत्पादन एवं खपत को बढ़ावा मिलेगा तथा इसका दीर्घकालीन प्रभाव होगा। कदन्न – आधारित मूल्यवर्धित उत्पादों के माध्यम से कृषकों की आय में भी पर्याप्त वृद्धि होगी।

मशीनीकरण
कदन्न, विशेषकर ज्वार व बाजरे, की खेती अत्यधिक श्रम प्रधान होने के कारण 55 प्रतिशत से ज्यादा लागत श्रम में आती है। कटाई कार्यों में ज्यादा श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है तथा लागत का एक बहुत बड़ा हिस्सा इस कार्य हेतु खर्च हो जाता है। अत: कटाई व गहाई हेतु संयूक्त रूप से कार्य करने वाली मशीन की अत्यधिक आवश्यकता है। इसके अलावा बारानी नम क्षेत्रों में सफलतापूर्वक फसल लेने हेतु उचित जुताई एवं बीजों की सटीक बुआई व उर्वरकों का उचित प्रयोग अत्यधिक महत्वपूर्ण कम हो सकती है। इससे कृषकों को कदन्नों की खेती हेतु भी प्रोत्साहन मिलेगा।

स्थाई कदन्न उत्पादन तथा समूह प्रणाली के माध्यम से मूल्य – श्रृंखला
अंतर्राष्ट्रीय व घरेलू बाजारों में ज्वार व अन्य कदन्नों की प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने में धान्य गुणता व जैविक उपज अत्यधिक महत्वपूर्ण कारक हैं। पीड़क एवं रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोगी तथा जैविक कदन्न उत्पादन से हमें ज्यादा सुअवसर प्राप्त होंगे। कृषक निर्माता संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से लक्षित घरेलू बाजारों के साथ – साथ अंतर्राष्ट्रीय  बाजारों में भारतीय कदन्नों की निर्यात प्रतिस्पर्धा में वृद्धि करने पर कृषकों को अच्छी आय पाने में सहायता मिलेगी।

मृदा के अनुसार उपजशील किस्मों का उपयोग

अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों के अंतर्गत सात राज्यों के सभी वर्षा आधारित क्षेत्रों में वर्तमान किस्मों की अपेक्षा नवीनतम 20 खरीफ किस्मों ने ज्यादा उपज प्रदान की। नवीनतम किस्मों ने स्थानीय किस्मों की अपेक्षा 78 प्रतिशत धान्य उपज तथा 60 प्रतिशत चारा उपज ज्यादा प्रदान की। परिणामस्वरूप शुद्ध आय में 51 प्रतिशत वृदधि हुई। इन क्षेत्रों में रबी ज्वार में भी इसी तरह के परिणाम प्राप्त हुए। ज्वारवर्ध्दक क्षेत्रों की मृदा को कम-मध्यम जलधारण क्षमता के साथ मृदा गहराई अर्थात हल्की (<45 सें.मी. गहराई), मध्यम (45-60 सें.मी. गहराई) तथा गहरी (>45 सें.मी. गहराई) के आधार पर तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया। इसी तरह ओडिशा के कोरपुट जिले में रागी की चार उच्च उपज देने वाली किस्मों ने भी उत्साहजनक परिणाम दर्शाए।
समेकित कृषि प्रणाली के रूप में संबद्ध उद्यमों का संवर्धन
एकल – फसल प्रणाली तथा पारंपरिक खेती व्यवाहरिक नहीं है। कृषि प्रणाली के किसी एक घटक अर्थात फसल किस्म, उर्वरक उपयोग अथवा फसल पालन से भी उत्पादकता में महत्वपूर्ण वृद्धि होने की संभावना नहीं है। सिंचित क्षेत्रों में इसका उदाहरण हमारे समक्ष प्रस्तुत है। पशुओं द्वारा सेवन किये जाने वाले सभी पशु – आहारों के आधार मृदा, पौधा, पशु चक्र हैं। उत्पादकता स्तर एवं मूल्य – श्रृंखला के प्रयोग हेतु अत्यधिक अप्रयुक्त संभावनाएं मौजूद हैं। कदन्न – आधारित समेकित कृषि प्रणाली में महिला केंद्रित गतिविधियों, जैसे – कूक्कूट पालन, दुग्ध उत्पादन, बकरी पालन, सूअर पालन तथा मधुमक्खी पालन द्वारा भी आय अर्जन के पर्याप्त अवसर संभव हैं।

मोटे आनाजों का महत्व
कदन्न प्रजातियाँ/किस्मों के व्यापक जलवायु अनुकूलशीलता होने के बावजूद, चावल व गेहूं की अपेक्षा संस्थागत सहायता की कमी के कारण पिछले कुछ समय से इनकी खेती में धीरे – धीरे गिरावट आई है। इसलिए हमें उपभोक्ताओं में इन अनाजों की मांग को बढ़ाने हेतु ध्यान केंद्रित करना होगा। इस प्रकार लंबे समय तक अनाजों की मांग बढ़ाने हेतु ध्यान केन्द्रित करना होगा। इस प्रकार लंबे समय तक कदन्नों की खेती की मांग बनी रह सकती है। कदन्नों की विकास प्रक्रिया के महत्व को ध्यान में रखते हुए तीन प्रमुख तत्वों पर ध्यान देना होगा (1) भागीदारी प्रणाली से फसलों की वैज्ञानिक खेती तथा एकल खिड़की प्रणाली में निवेश आपूर्ति के साथ अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के समर्थन से क्षमता निर्माण, (2) मूल्य – वर्धन को बढ़ावा तथा कृषक निर्माता संगठनों एवं स्वयं सहायता समूहों जैसी समूह प्रणाली के माध्यम से बाजार में मांग में वृद्धि तथा (3) न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ पुनर्खरीद की व्यवस्था, फसल बीमा, मध्याहन भोजन तथा लोक – वितरण प्राणाली में शामिल करने के अतिरिक्त कटाई उपरांत प्राथमिक प्रसंस्करण एवं गोदामों हेतु नीतिगत सहायता की आवश्यकता है। इसके अलावा महिला एवं युवा तथा ग्रामीण एवं शहरी सभी वर्ग के लोगों को केंद्र में रखकर कदन्न आधारति उत्पादों पर उद्यमिता विकास हेतु कौशल को मजबूती प्रदान करनी होगी, ताकि लक्षित लाभार्थियों को सीधे लाभ मिल सके।

 

आज भी भारत में कुछ क्षेत्रों में कदन्न फसलों में ज्वार (सोरघम), बाजरा (पर्ल मिलेट), रागी (फिंगर मिलेट), कंगनी (फॉक्सटेल मिलेट), कुटकी (लिटिल मिलेट), चीना (प्रोसो मिलेट), कोदो (कोडोमिलेट), सांवां (बार्नयार्ड मिलेट) तथा भूराशीर्ष कदन्न (ब्राउनटॉप मिलेट) आदि की खेती की जाती है।  

कदन्न प्रमुख खाद्य फसलों के अंतर्गत आते हैं तथा देश के विविध कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में इनकी खेती की जाती है। ये विशेषकर बारानी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा आधारित खेती के लिए उपयुक्त है। बहुत ही कम निवेश के साथ इनकी खेती की जा सकती है।

ये फसलें जलवायु अनुकूल, कठोर परिस्थितियों में जीवनक्षम तथा बारानी फसलें हैं, जो कि खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में अत्यधिक योगदान देती हैं। सामान्यतः कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इनकी खेती किए जाने के कारण टिकाऊ कृषिे एवं खाद्य सुरक्षा में इनका अत्यधिक महत्व है।

आज से लगभग तीन दशक पूर्व हमारे खाने की परंपरा बिल्कुल अलग थी। हम कदन्न/ मोटा अनाज खाने वाले लोग थे। लेकिन, 1960 के दशक में आयी हरित क्रांति के दौरान हमने गेहूं और चावल को अपनी थाली में सजा लिया और कदन्न अनाज को खुद से दूर कर दिया।

जिस अनाज को हमारी कई पीढियां खाते आ रही थी, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज अब इस पोषक आहार की पूरी दुनिया में मांग है। केंद्र सरकार भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल देना शुरू कर दी है। भारत सरकार द्वारा इन्हें पौष्टिक अनाज/न्यूट्री सिरियल्स की संज्ञा दी गई है।

ज्वार -

ज्वार दुनिया भर में उगाया जाने वाला पांचवां सबसे महत्वपूर्ण अनाज है। यह फाइबर से भरपूर वजन कम करने और कब्ज को दूर करके पाचनक्रिया को दुरुस्त रखने के लिए ज्वार बढ़िया ऑप्शन है। इसमें मौजूद कैल्शियम हड्डियों की मजबूती देने का काम करता है, जबकि कॉपर और आयरन शरीर में रेड ब्लड सेल्स की संख्या बढ़ाने और खून की कमी यानी अनीमिया को दूर करने में सहायक होते हैं। 

गर्भवती महिलाओं और डिलिवरी के बाद के दिनों के लिए इसका सेवन फायदेमंद है। इसके अलावा इसमें पोटैशियम और फॉस्फोरस की भी अच्छी मात्रा होती है। ज्वार का उपयोग बेबी फूड बनाने में भी होता है। ज्वार मुख्यतः बच्चों के भोजन में इस्तेमाल किया जाने वाला अनाज है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लौह तत्व मुख्य रूप से जाए जाते हैं।

यह अनाज पाचन में हल्का होता है। पोषक तत्वों से भरपूर इस अनाज को देहाती भोजन में रोटी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

बाजरा-

बाजरा उत्तर भारत में, विशेषकर ठंड में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें प्रोटीन, लौह तत्व, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट आदि अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें कुछ मात्रा में कैरोटीन (विटामिन ए) भी पाया जाता है। प्रोटीन से भरपूर बाजरा हमारी हड्डियों को मजबूत बनाता है। फाइबर की अधिकता के कारण यह पाचनक्रिया में सहायक होता है और वजन कम करने में भी मदद मिलती है। 

इसमें मौजूद कैरोटीन हमारी आंखों के लिए फायदेमंद होता है। इसमें एण्टी-ऑक्सिडेंट्स की भी अच्छी मात्रा होती है, जो नींद लाने और पीरियड्स के दर्द को कम करने में मदद करते हैं। यह कैंसररोधी भी है व कोलेस्टेरॉल के लेवल को रोकने में मदद करता है. अफ्रीका मूल के इस अनाज में अमीनो एसिड, कैल्शियम, जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम और विटामिन बी 6, सी, ई जैसे कई विटामिन और मिनरल्स की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इस अनाज की खेती बहुत सी बातों में ज्वार की खेती से मिलती जुलती होती है। यह खरीफ की फसल है और प्रायः ज्वार के कुछ पीछे वर्षा ऋतु में बोई और उससे कुछ पहले अर्थात् जाड़े के आरंभ में काटी जाती हैं। इसके खेतों में खाद देने या सिंचाई करने की विशेष आवश्यकता नहीं होती। इसके लिये पहले तीन चार बार जमीन जोत दी जाती है और तब बीज बो दिए जाते हैं। एकाध बार निराई करना अवश्य आवश्यक होता है। इसके लिये किसी बहुत अच्छी जमीन की आवश्यकता नहीं होती और यह साधारण से साधारण जमीन में भी प्रायः अच्छी तरह होता है। यहाँ तक कि राजस्थान की बलुई भूमि में भी यह अधिकता से होता है। गुजरात आदि देशों में तो अच्छी करारी रूई बोने से पहले जमीन तयार करने के लिय इसे बोते हैं। बाजरे के दानों का आटा पीसकर और उसकी रोटी बनाकर खाई जाती है। इसकी रोटी बहुत ही बलवर्धक और पुष्टिकारक मानी जाती है। कुछ लोग दानों को यों ही उबालकर और उसमें नमक मिर्च आदि डालकर खाते हैं। इस रूप में इसे 'खिचड़ी' कहते हैं। कहीं कहीं लोग इसे पशुओं के चारे के लिये ही बोते हैं। वैद्यक में यह वादि, गरम, रूखा, अग्निदीपक पित्त को कुपित करनेवाला, देर में पचनेवाला, कांतिजनक, बलवर्धक और स्त्रियों के काम को बढा़नेवाला माना गया है।

प्रति 100 ग्राम बाजरे में लगभग 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम कैरोटीन होता है. कैरोटीन हमारी आंखों को सुरक्षा प्रदान करता है।बाजरे की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके सेवन से कैंसर वाले टॉक्सिन नहीं बनते हैं। बाजरे में कुछ अल्प मात्रा में पाइटिक एसिड, पोलीफिनोल, जैसे कुछ पोषण विरोधी तत्व भी होते हैं। बाजरे को पानी में भिगोकर, अंकुरित करके, माल्टिंग की विधि द्वारा इन पोषा विरोधी तत्वों को कम किया जा सकता है।

मक्का

मक्के की रोटी और साबुत भुने मक्के यानी कॉर्न से लगभग सभी लोग वाकिफ होंगे। विटामिन ए और फॉलिक एसिड से भरपूर मक्का दिल के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसमें कई तरह के एण्टी-ऑक्सिडेंट्स मौजूद होते हैं, जो कैंसर सेल्स से लड़कर हमें सुरक्षित रखने में मदद करते हैं.

पके हुए मक्के में एण्टी-ऑक्सिडेंट्स की मात्रा 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। यह खराब कोलेस्टेरॉल को कंट्रोल करता है। गर्भवती महिलाओं को अपनी डायट में मक्का शामिल करना चाहिए।

यह खून की कमी को दूर करके गर्भ में पल रहे बच्चे को सेहतमंद रखने का काम करता है। हालांकि वजन कम करने की कोशिश में लगे लोगों इससे परहेज करना चाहिए, क्योंकि यह वजन बढ़ाने में मददगार है। इसमें कार्बोहाइड्रेट व कैलोरी अधिक मात्रा में पाई जाती है।

रागी - रागी (मड़ुआ)

भारतीय मूल का उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है। इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है। इसमें कैल्शियम की मात्रा अन्य अनाजों की अपेक्षा ज्यादा होती है। प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। कैल्शियम हमारी हड्डियों को मजबूत रखने तथा मांसपेशियों को ताकतवर बनाने में मदद करता है। प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है।

रागी में लौह तत्व भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जो रक्त का मुख्य घटक है। रागी के आटे से हम रोटी, चिल्ला, इडली बना सकते हैं। रागी की खीर भी बनती है। छोटे बच्चों को (विशेषकर दो वर्ष से छोटे) पारंपरिक तौर पर रागी की लप्सी बनाकर खिलाई जाती है। मधुमेह के रोगियों के लिए वह ज्यादा लाभदायक होता है। इसमें मौजूद एण्टी-ऑक्सिडेंट्स नींद की परेशानी और डिप्रेशन से निकलने में भी मदद करते हैं.

कोदो -

इसे प्राचीन अन्न भी कहा जाता है। कोदो में कुछ मात्रा में वसा तथा प्रोटीन भी होता है। इसका ‘ग्लाइसेमिक इंडेक्स’ कम होने के कारण मधुमेह के रोगियों को चावल के स्थान पर उपयोग करने के लिए कहा जाता है। इसकी फसल मुख्यतः छत्तीसगढ़ में होती है। वहां के वनवासियों का यह मुख्य भोजन है।

जौ -

पोषक तत्वों से भरपूर जौ (बार्ले) हमारी शरीर को कई बीमारियों से बचाने का काम करता है। जौ में गेहूं की अपेक्षा अधिक प्रोटीन व फाइबर मौजूद होता है, जिससे वजन कम करने, डायबिटीज कंट्रोल करने, ब्लडप्रेशर को संतुलित करने में मदद मिलती है। इसमें रेशे, एंटी ऑक्सीडेंट एवं मैग्नीशियम अच्छी मात्रा में होता है। इस कारण कब्ज और मोटापे से परेशानी लोगों को जौ का इस्तेमाल करना चाहिए।

जौ में आठ तरह के अमीनो एसिड पाए जाते हैं, जो शरीर में इंसुलिन के निर्माण में मदद करते हैं। दिल संबंधित बीमारियों के लिए भी जौ का सेवन फायदेमंद होता है। यह हमारे शरीर में एण्टी-ऑक्सिडेंट्स की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है। इसमें कोलेस्टेरॉल को कम करने वाले गुण भी पाए जाते हैं। 

इसके अलावा जौ में आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम, कैल्शियम जैसे कई महत्वपूर्ण मिनरल्स मौजूद होते हैं, जो हमारी सेहत के लिए जरूरी पोषकतत्व होते हैं। जौ में अन्य अनाजों की अपेक्षा सबसे ज्यादा मात्रा में अल्कोहल पाया जाता है। इस कारण वह एक डाईयूरेटिक है। इसलिए उच्च रक्तचाप वालों के लिए यह लाभदायक होता है। इसका सेवन दलिया, रोटी और खिचड़ी के रूप में किया जाता है।

शोध दर्शाते हैं कि कदन्न पोषण से भरपूर आहार हैं तथा ये स्वास्थ्य को बढ़ावा प्रदान करने वाले फाइटो रसायनों के सुरक्षात्मक प्रभाव के कारण असंक्रामक (गैर-संचारी) रोगों जैसे-मधुमेह, कैंसर तथा हृदय धमनी रोग के प्रति संभाव्य सुरक्षा प्रदान करते हैं।

कदन्नों के अंतर्गत सबसे ज्यादा क्षेत्र में बाजरे की और इसके बाद ज्वार, रागी व अन्य लघु कदन्नों की खेती की जाती है। इन फसलों की खाद्य व चारा, दोनों प्रयोजनों के लिए खेती की जाती है। इन अनाजों का अधिकांश भाग घरेलू स्तर पर प्रयुक्त किया जाता है तथा शेष भाग कुक्कुट आहार, खाद्य प्रसंस्करण एवं अल्कोहल हेतु औद्योगिक रूप में प्रयुक्त होता है।

इन अनाजों की कुछ मात्रा बीज पक्षियों के दाने तथा प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों के रूप में निर्यात भी की जाती है। दुनिया के अत्यधिक वंचित क्षेत्रों को एक महत्वपूर्ण उप-उत्पाद के रूप में कदन्नों से चारा प्राप्त होता है, जो कि पशुओं के लिए पोषण से भरपूर होता है।

पौष्टिक गुणों से भरपूर कदन्न अनाज: कदन्नों को पौष्टिक धान्य भी कहा जाता है, ये खाद्य तथा पोषण सुरक्षा में काफी योगदान करते हैं। कदन्न फसलें सीमांत (शुष्क) पर्यावरण में अच्छा प्रदर्शन करती हैं तथा ज्यादा सूक्ष्म पोषक तत्वों एवं कम रसाइसेमिक सूचकांक के साथ पौष्टिक गुणों में श्रेष्ठ होती हैं।

कदन्न जलवायु लचीली फसलें भी हैं। इनमें अद्वितीय पौष्टिक गुण विशेषकर जटिल कार्बोहाइड्रेट, पथ्य रेशे की प्रचुरता के साथ-साथ पौष्टिक-औषधीय गुणयुक्त विशिष्ट फिनॉलिक योगिक तथा फाइटो रसायन भी पाए जाते हैं। कदन्न भारत में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए आवश्यक आयरन, जिंक, कैल्शियम तथा अन्य पोषक तत्वों के प्राकृतिक स्रोत भी हैं। 

सेहत के लिए कितना फायदेमंद है कदन्न अनाज:

ऽ ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज में पौष्टिकता की भरमार होती है। रागी डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होता
ऽ ज्वार दुनिया में उगाया जाने वाला 5वां महत्वपूर्ण अनाज है। ये आधे अरब लोगों का मुख्य आहार है। आज ज्वार का ज्यादातर उपयोग शराब उद्योग, डबलरोटी के उत्पादन के लिए हो रहा है।
ऽ कदन्न रेशे का मुख्य स्रोत है तथा परिष्कृत अनाज में केवल भ्रूणपोष की अपेक्षा इनमें बीजाणु (जर्म), भ्रूणपोष इंडोस्पर्म तथा चोकर (ब्रॉन) में पाए जाते हैं। इसके अलावा साबुत अनाज या आंशिक रूप से कदन्न कई विटामिनों, खनिजों तथा फाइटो-रसायनों के मुख्य स्रोत होते हैं, जिनमें प्रति-कैंसर गुण पाए जाते हैं।
ऽ ग्लूटेन संवेदी लोगों को गेहूं के आटे का सेवन नहीं करने की सलाह दी जाती है और कदन्न, ग्लूटेनरहित होने के कारण ऐसेलोगों हेतु सुरक्षित अनाज है। सीलिएक रोगियों के लिए ग्लूटेन मुक्त आहार वैकल्पिक नहीं है, बल्कि इसे आवश्यक पोषण चिकित्सा माना गया है
ऽ टाइप-2 मधुमेह रोगियों के लिए कदन्न, चावल का अच्छा विकल्प है। कदन्नों में मौजूद रेशे की उच्च मात्रा पाचन को धीमा करती है तथा रक्त प्रवाह में शर्करा को धीमी गति से छोड़ती है। ये मधुमेह रोगियों को रक्त शर्करा की खतरनाक स्थितियों-ग्लूकोसोरिया से बचाने में सहायता करते हैं। कदन्न विटामिन ‘बी‘ का भी अच्छा स्रोत है, शरीर द्वारा कार्बोहाइड्रेट के पाचन के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
ऽ शारीरिक भार (मोटापा) कम करने तथा समग्र स्वास्थ्य हेतु गेहूं के आटे, सफेद चावल या पैक किए हुए स्नैक्स के स्थान पर कंदन अथवा अन्य साबुत अनाज खाने की सलाह दी जाती है। कदन्नों में रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं तथा इनमें चिपचिपाहट, जल धारण, जल अवोषण जैसी अनुपम भौतिक तथा रसायनिक विशेषताएं होती हैं, ये शारीरिक क्रिया व्यवहार को निर्धारित करती हैं।
ऽ गठिया के रोगी दवा के बिना शोथ (इनफ्लमेशन) का प्रबंधन कर सकते हैं। ऐसे लोगों के लिए शोथ को नियंत्रित करने व उसकी रोकथाम करने में कदन्न प्रकृति का दिया हुआ वरदान है। कदन्नों में इस रोग के निवारण हेतु सक्षम ग्लूटेनमुक्त प्रोटीन पाया जाता है।
ऽ कदन्न, माइग्रेन व हृदयाघात के प्रभाव को कम करने में सक्षम मैग्नीशियम के बहुत अच्छे स्रोत हैं। कदन्नों में कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक फाइटिक अम्लयुक्त फाइटो रसायन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इनमें उपस्थित टैनिन भी कोलेस्ट्रॉल कम करने में लाभदायक है।
ऽ कदन्न किण्वन योग्य कार्बोहाइड्रेट (प्रतिरोधी स्टार्च) के समृद्ध स्रोत हैं, जिनका आतों के जीवाणुओं द्वारा लघु-शृंखला वसीय अम्लों में परिवर्तन किया जाता है और ये पेट के कैंसर से रक्षा करने में सहायता करते हैं। ज्वार में उपस्थित 3-डिऑक्सी एथॉक्सिनिन (3-डीएक्सए) के संबंध में यह माना जाता है कि ये पेट की कैंसर कोशिकाओं के प्रसार की रोकथाम करते हैं। यह पाया गया कि कदन्न कैंसर की शुरुआत व प्रसार की रोकथाम में प्रभावी हो सकते हैं।
ऽ कदन्नों में रेशे बहुतायत से पाए जाते हैं तथा इनका सेवन कब्ज को कम करता है। प्रतिदिन लगभग दो से तीन बार साबुत अनाज /कदन्न तथा करीब पांच बार फल व सब्जियों का सेवन करके पर्याप्त पथ्य रेशे प्राप्त किए जा सकते हैं।
ऽ पशुओं के प्रोटीन में संतृप्त वसा अम्ल उच्च मात्रा में पाए जाते हैं, जबकि कदन्न वसा-मुक्त प्रोटीन प्रदान करते हैं। इनमें उपस्थित अमीनो अम्ल एवं ट्रिप्टोफेन भूख को नियमित करते हैं, जिससे मोटापे का नियंत्रण होता है।

कदन्न अनाजों की ऊपज को पुनर्जीवित करने की आवश्यकताः

पोषण सुरक्षा हेतु:

कदन्न अनाज गेहूंँ और चावल की तुलना में सस्ते होने के साथ-साथ उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन तथा आयरन आदि की उपस्थिति के चलते पोषण हेतु बेहतर आहार होते हैं। मोटे अनाजों में कैल्शियम और मैग्नीशियम की प्रचुरता होती है। जैसे- रागी में सभी खाद्यान्नों की तुलना में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है। इसमें लोहे की उच्च मात्रा महिलाओं की प्रजनन आयु और शिशुओं में एनीमिया के उच्च प्रसार को रोकने में सक्षम है।

कुपोषण भारत की गम्भीरतम समस्याओं में एक है फिर भी इस समस्या पर सबसे कम ध्यान दिया गया है। राष्ट्रीय परिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार न्यूनतम आमदनी वर्ग वाले परिवारों में आज भी आधे से ज्यादा बच्चे (51प्रतिशत) अविकसित और सामान्य से कम वजन (49 प्रतिशत) के हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक 14 अक्टूबर 2021 तक भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से आधे से ज्यादा यानी कि 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। देश में कुल 33,23,322 बच्चे कुपोषित हैं। 

एक अनुमान के अनुसार चालीस प्रतिशत छोटे बच्चों (स्कूल जाने के पूर्व) में आयरन की कमी के कारण रक्तहीनता (एनीमिक) से प्रभावित हैं। इसके अलावा विटामिन ‘ए‘ की कमी के कारण प्रतिवर्ष 250 से 500 बच्चों के अंधे हो जाने का अनुमान है। बाजरा तथा अन्य कदन्न के उपभोग से विश्व से रक्तहीनता की समस्या को प्रभावी रूप से दूर किया जा सकता है। रागी, कैल्शियम (300-350 मि.ग्रा. 1100 ग्राम) का प्रमुख स्रोत है तथा अन्य लघु कदन्न फॉस्फोरस व आयरन के अच्छे स्रोत हैं। इनमें लेसीथिन की मात्रा ज्यादा पाई जाती है, जो तंत्रिका तंत्र को मजबूती प्रदान करने हेतु उत्तम होती है। इनमें नियासिन, बी तथा फॉलिक अम्ल एवं कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम तथा जिंक की उच्च मात्रा पाई जाती है।

जलवायु अनुकूलन हेतु:

ये कठोर एवं सूखा प्रतिरोधी फसलें हैं जिनका वृद्धि काल (70-100 दिन) गेहूंँ या चावल (120-150 दिन ) की फसल की तुलना में कम होता है, इसके अलावा मोटे अनाजों (350-500मिमी) को गेहूंँ या चावल (600-1,200मिमी) की फसल की तुलना में कम जल की आवश्यकता होती है। ये गर्म तथा शुष्क जलवायु में जीवन निर्वाह करने में सक्षम हैं तथा जलवायु परिवर्तन का सामना करने में महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे।

कृषकों के आर्थिकी लिए उत्तमः

इनसे कृषकों की उपज में तीन गुना वृद्धि हो सकती है। इनके विविध उपयोग (खाद्य, चारा, ईंधन) हैं तथा सामान्यतः सूखे के समय जोखिम प्रबंधन नीति के अंतर्गत ये फसलें ही किसानों का साथ देंगी।
व्यवसाय/उद्यमिता के लिए उत्तमः भाकृअनुप-भारतीय कदन्न अनुसंधान के संस्थान ने कदन्नों पर कई खाद्य हे प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं तथा कई स्टार्टअप एवं उद्यमी इन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से कदन्नों के प्रचार-प्रसार एवं अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने में संलग्न हैं।

उपभोक्ता के लिए उत्तमः कदन्न पोषण तथा स्वास्थ्य

कदन्न हमारी पोषण तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं (आयरन, जिंक, फॉलिक अम्ल, कैल्शियम तथा अन्य की कमी) को दूर करने में सहायता कर सकते हैं।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने में सहायकः कदन्नों के अनेक स्वास्थ्य लाभ हैं। अध्ययनों से यह सिद्ध होता है कि कदन्नों के सेवन से हृदय रोगों का खतरा कम होता है, मधुमेह की रोकथाम होती है, पाचनतंत्र अच्छा होता है, कैंसर का खतरा कम होता है, शरीर विषैले पदार्थों से मुक्त होता है, ऊर्जा का स्तर बढ़ता है तथा मांसपेशियां व तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है। इसके अलावा मेटाबॉलिक सिंड्रोम, पार्किंसन्स रोग जैसे कई अपक्षयी रोगों की रोकथाम होती है।

वर्तमान समय में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा तथा जीवनशैली संबंधी रोगों का सामना करने हेतु कदन्न अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। आज विविध प्रकार के प्रसंस्करण हेतु उपयुक्त कदन्नों की कई किस्में उपलब्ध हैं। इसके अलावा कदन्नों के स्वास्थ्य लाभ संबंधी वैज्ञानिक आंकड़े भी मौजूद हैं। हम दैनिक आहार में पौष्टिकता से भरपूर कदन्नों को शामिल करके जीवनशैली संबंधी रोगों/विकारों का सामना करने के लिए अपनी प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ा सकते हैं। अतः आज कदन्नों का उपयोग वैकल्पिक नहीं, बल्कि आवश्यक खाद्य के रूप में करने की आवश्यकता है।

कदन्न/ मोटे अनाज की खेती की मांगः

मोटे अनाज कभी गरीबी के प्रतीक माने जाते थे. लेकिन, सेहत को लेकर बढ़ती चिंता ने लोगों का ध्यान इस ओर खींचा है। अब यह अमीरों की पसंद बन गया है। स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा होने की वजह से ही मोटे अनाजों (ब्वंतेम ळतंपदे) ने गेहूं की हैसियत कम कर दी हैै। केंद्र सरकार मोटे अनाज की खेती पर जोर दे रही है, क्योंकि बढ़ती आबादी के लिए पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराने में यही अनाज सक्षम हो सकते हैं।

कदन्न अनाज पोषण सुरक्षा का सबसे बेहतरीन साधन है। सरकार इसके पोषक गुणों को देखते हुए इसे मिड डे मील स्कीम और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी शामिल कर रही है। पीएम श्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘मोटे अनाज की मांग पहले ही दुनिया में बहुत अधिक थी, अब कोरोना के बाद ये इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में बहुत प्रसिद्ध हो चुका है।

अप्रैल 2018 में केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा मोटे अनाजों को उनके ‘‘उच्च पोषक मूल्य‘‘ और ‘‘मधुमेह विरोधी गुणों‘‘ के कारण ‘‘पोषक तत्त्वों‘‘ के रूप में घोषित किया गया था। वर्ष 2018 को नेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (छंजपवदंस ल्मंत व िडपससमजे) के रूप में मनाया गया। खाद्य और कृषि संगठन ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित करने को मंजूरी दी है, ताकि दुनिया भर में इन पोषक अनाजों को थाली में वापसी के लिए जागरूकता बढ़ाई जा सके।

वेसे तो प्रत्येक व्यक्ति के सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार में मोटे अनाज का होना जरूरी है, लेकिन गर्भवती महिला व उनके शिशुओं के लिए बेहद जरूरी होता है। आहार विशेषज्ञों की माने तो गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान महिलाओं में कैल्शियम की कमी होने से बच्चों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान अपर्याप्त कैल्शियम लेने से मां का स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है। इस दौरान मां की हड्डियों के कैल्शियम का इस्तेमाल भ्रूण के विकास और दुग्ध के निर्माण में होने लगता है। कैल्शियम की कमी के कारण माँ की संचरण प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है और उच्च रक्तचाप की समस्या पैदा होती है।

मोटे अनाज के सेवन से माँ व शिशुओं की सेहत बेहतर बनी रहती है। आहार में कदन्न अनाजांें को शामिल करके कुपोषण की रोकथाम की जा सकती है। बेबी फूड बनाने में भी कदन्न अनाजांें का इस्तेमाल होता है। बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा करने में कदन्न अनाजांें अहम भूमिका निभा सकता है।

ब्रहमैव तेन गन्तव्यं ब्रहमकर्मसमाधिना ॥ ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।

 

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