दो नावों में Ranjana Jaiswal द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दो नावों में

अनामा को ऐसा लग रहा था जैसे उसके प्राण निकल जायेंगे। जैसे वह चिता पर लेटी हुई है या फिर नरक की आग में जल रही है। इतनी जलन- इतनी तड़प- इतनी बेचैनी......उफ, रह-रहकर सीने में ऐसी तकलीफ होती जैसे वहाँ आग का गोला अटक गया हो। वह बार-बार तड़पकर रोने लगती। उसके हाथ दुआ के लिए ऊपर उठ जाते- ’हे ईश्वर, रहम कर....रहम ! मुझे इस तकलीफ से निजात दिला।’ पर दर्द था कि बढ़ता ही जा रहा था। वह सोच रही थी तो क्या यह उसके पापों का दण्ड है ? पाप ! पर उसने तो कोई पाप नहीं किया है-हाँ प्रेम जरूर किया है....प्रेम ! पर कौन मानेगा इसे प्रेम ! पर पुरूष से स्त्री का प्रेम हमेशा कठघरे में खड़ा रहा है !
क्यों हो गया था उसे प्रेम।उसे याद है जब पहली बार अनवर ने प्रेम का नाम लिया था, उसने बुरी तरह डाँटा था उसे। वह विवाहिता थी। उससे मजाक का रिश्ता था, इसलिए सबके सामने भी मजाक करता रहता। सब उसकी उम्र देखकर बात हँसी में टाल देते। कम से कम उम्र में उससे पाँच साल छोटा तो था ही वह। वह उसके पति की मित्रमंडली में था और जब सब लोग सपरिवार किसी महफ़िल में उपस्थित होते, वह उसके इर्द-गिर्द ही रहता ।वह दूसरी औरतों का मज़ाक बनाता और उसकी तारीफों के पुल बाँधता रहता। अपनी दूसरी भाभियों से भी वह उसकी प्रशंसा करता। उसके बाल ,उसकी आँखें, उसके होंठ, उसका भोला चेहरा और उसकी योग्यता अनवर की बातचीत के प्रिय विषय थे । वह उसका प्रशंसक है यह बात सभी जानते थे। वह कभी भी उसे फ़ोन कर सकता था, उससे मिलने आ सकता था। उसके पति को भी इस पर ऐतराज, न था क्योंकि ऐसी-वैसी कोई बात ही न थी। पूरे तीन वर्ष तक ऐसे ही चलता रहा। वह उसका ध्यान रखता, उसकी परेशानियों को उसके पति से ज़्यादा समझता। फोन के माध्यम से जैसे हर पल उसके पास ही होता था ।वह उसके पति को मजाक में कौआ कहता और उसे ’हंस’। पार्टियों में उसके पति को हटाकर खुद उसके पास बैठ जाता और कहता-’अब हुई न जोड़ी , आप भी गोरी मैं भी गोरा । काले भईया को छोड़िए, मेरे पास रहिए। उनसे कम नहीं कमाता हूँ।’ बात मजाक में उड़ जाती। उसने देवर का पूरा स्नेह उसकी झोली में डाला था। उसके अपने देवर उससे बात करना तो दूर उसे भाभी तक न कहते इसलिए वह उसे और भी प्यारा लगता।उसके पति आनंद को सिर्फ उसकी देह से मतलब था। वे कभी उसकी भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं करते थे। वह एक कल्पनाशील, भावुक स्त्री थी ,जिसे जीवन में किसी ने प्यार नहीं किया था। न माँ-बाप ने, न किसी भाई-बन्धु ने। न कोई हितैषी रिश्तेदार था, न हमदर्द दोस्त। कड़ा संघर्ष करके उसने अपना एक मुकाम हासिल किया था और आत्मनिर्भर हुई थी पर बहुत अकेली थी वह। इसी अकेलेपन से उबकर उसने निहायत शरीफ लगने वाले दिखने में बिल्कुल ही साधारण व बेरोजगार दलित युवक आनंद से विवाह कर लिया था। इस विवाह ने उसे रहे-सहे रिश्तों से भी काट दिया पर उसने यह सोचकर सब्र कर लिया कि विवाह के बाद तो वैसे ही लड़की को माँ से जुड़े रिश्तों को छोड़ना पड़ता है।उसने सोचा था कि पति का परिवार उसे अपना लेगा। प्यार व सम्मान देगा,पर उसका यह सपना भी टूट गया। वह पारम्परिक बहू की भूमिका में रही तो उन्होंने उसे गरीब और गंवार समझा। उसे हर कदम पर उपेक्षित किया । ससुराल में उसे तमाम तरह की मानसिक यंत्रणाओं के दौर से गुजरना पड़ा।
ससुराल पक्ष सिर्फ जाति से दलित था| परिवार में आनंद को छोड़ सभी अच्छी नौकरियों में थे|नव धनाढ्य थे सारी सुख-सुविधाओं से लैस पर सब कुछ उनके अपने लिए था|वह तो खैर पराई थी पर घर के सबसे बड़े लड़के आनंद की भी वहाँ कोई इज्जत नहीं थी।आनंद ने जब इस वस्तुस्थिति को भाँप लिया कि उनके घर वाले उनके रिश्ते को मन से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं तो उसे लेकर सड़क पर आ गये। उसने इसका विरोध किया था। उसने कभी-भी वह घर छोड़ना नहीं चाहा था पर निर्णय लेने के मामले में वह हमेशा ही कमजोर रही थी। वह आर्थिक रूप से सक्षम थी, नौकरी करती थी इसलिए कुछ वर्ष किराये के मकान में गुजारने के बाद एक छोटा -सा घर बना लिया। अपना घर । अपनी सारी पूंजी उसने इसमें लगा दी पर आनंद को यह अच्छा न लगा। जमीन उसने विवाह पूर्व लिया था इसलिए उसके ही नाम था, जिसे उसने बदला नहीं। आनंद को इस बात का हमेशा मलाल रहता। इधर वे एक आफिस में पन्द्रह-सौ की नौकरी करने लगे थे। नौकरी और घर दोनों जगह खटते हुए उसने आनंद से मानसिक सहयोग चाहा। आर्थिक रूप से वे कमजोर थे इसलिए खर्च से उन्हें मुक्त ही रखा पर वह साथ देने को तैयार न थे। परिवार और समाज के लोग उसके इस विवाह को स्वीकृति नहीं दे रहे थे। क्योंकि उनका विवाह वह पारम्परिक विवाह न था जिसमें जाति, खानदान और अर्थ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोगों की इस मानसिकता के कारण कभी- कभी वह तमाम तरह की उलझनों में गिरफ़्त हो जाती और चाहती कि आनंद उसकी तकलीफ़ बाँटें। आनन्द ने उसका दुःख समझते हुए भी ऐसा कभी नहीं किया। उसकी तकलीफ़ उन्हें हल्की और फालतू लगती। वह अपने मकान को घर जैसा बनाने में उनका साथ चाहती । उनका कुछ समय और ध्यान चाहती पर वे निरर्थक कार्यो में अपना सारा समय, सारी ऊर्जा खर्च कर कराहते हुए घर में प्रवेश करते। वह झुंझला जाती । उनसे लड़ती-झगड़ती भी पर उन पर कोई असर नहीं होता था। वह उन्हें प्यार करना चाहती थी पर उसे उनमें प्यार करने लायक कुछ भी नहीं मिलता था। वह हताश-निराश होकर दूसरे कामों में लग जाती। वे उसे प्राप्त की जा चुकी निरर्थक वस्तु समझते। उसके विचार उन्हें दोयम दर्जे के लगते। वे अपने मित्रों में उसे मूर्ख, पागल, स्वार्थी, अवसरवादी, महत्वाकांक्षी और जाने क्या-क्या कहते थे । वह खूब रोती-तड़पती। अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाती। फिर खुद को समझाकर उन्हें माफ कर देती। आखिर करती भी क्या ! विवाह का निर्णय भी तो उसका अपना था। उनके मित्र भी उनके पक्ष में रहते। उसका कोई न था ।कभी-कभी तो उनके मित्र भी उसका अपमान कर देते और वे मुस्कुरा कर आनन्द लेते। अपने घर-वालों से भी उन्होंने चोरी-छिपे रिश्ता जोड़ लिया था। उसके न रहने पर उन्हें घर बुलाते और उनको ज्यादा समय देते। उसे इस बात से शिकायत न थी। शिकायत थी तो बस इस बात की कि यह सब उससे छिपकर करते थे। उसने कभी उनको अपने घर जाने से रोका नहीं था और ना ही वे मना करने पर मान जाने वाले जीव थे । उनके घर वाले सबसे तरफ उसकी शिकायत करते। इस बात की जानकारी होने पर भी वे चुप ही रहते जैसे वह सचमुच गुनहगार हो। उसे उनके इस रवैये से बड़ा कष्ट होता था। बड़ा ही शुष्क, नीरस स्वभाव था उनका। दिन-रात शारीरिक, मानसिक श्रम करने के बाद वह थोड़ी खुशी चाहती थी। कम से कम पति का मुस्कुराता चेहरा ही दीखे पर वे चेहरा गिराये ,मुँह सिले उसका तनाव बढ़ाते रहते थे। कुछ कहने पर जहर ही उगलते। घर छोड़कर चले जाने की धमकी देते। वह हार रही थी, टूट रही थी। जीवन के सारे रंग उदास हो गये थे। बस अपने काम में इतना व्यस्त रहती कि बाकी चीजें भूल जाये पर उसका मन घुट रहा था। वह धीरे-धीरे खत्म हो रही थी। अकेलापन बढ़ता जा रहा था। मानसिक अकेलापन। वह सोचती, काश ! कोई ऐसा होता जिससे वह मन की बात कर सकती। यूॅ तो कहने को सब कुछ था उसके पास पर प्यार न था। कभी-कभी वह उन्हें पास बिठाकर समझाती कि उनकी किस-किस बात से उसे तकलीफ़ होती है और उनसे क्या चाहती है ? उनसे अपने बीते हुए कल , वर्तमान व भविष्य की बातें करती ।साथ ही ढ़ेर-सारी प्यार की बातें भी करती। वे इधर उसकी बात सुनते जाते उधर उनका हाथ उसके शरीर पर फिसलने लगता। उसकी भावना को इससे चोट लगती। उसका तन-मन घृणा से भर उठता। सोचती कि कितना स्वार्थी है यह आदमी !
वह उन्हें मना भी नहीं करती थी पर ज्यों ही उनकी इच्छा पूरी होती वे वैसे ही रूखे और मनहूस -सी शक्ल वाले शख्स में तब्दील हो जाते। वे रात-दिन सेक्स में डूबे रहना चाहते जैसे जल्द से जल्द सब कुछ खत्म करके निकल लेना है। धीरे-धीरे उनका यह लक्ष्य भी सामने आने लगा। बिना प्रेम का सेक्स उसकी समझ से बाहर था। वह सोचती कि इस आदमी को उससे जरा- सा भी लगाव नहीं है। उसकी बीमारी के क्षणों में भी वे उसकी देह नोंचने में लग जाते। उसे बड़ी वितृष्णा होती। वह सेक्स को भावना पूर्ण अहसास के साथ जीना चाहती थी पर वे मशीनी अंदाज में सब चाहते थे। वह कब तक रिमोट बनी रहती? काम-काज में भी मशीन और काम भावना में भी। आश्चर्य तो यह था कि बाहर ये सबके थे, मित्रों, रिश्तेदारों सबके.........बस उसके न थे। वह अकेले ही घर-बाहर सब जगह जूझती। वे वही सब कुछ करते जो उसे पसंद न था। नशा करते, सूरती-मसाला खाते। गन्दगी से रहते। वह अक्सर उन्हें समझाती-’मेरा मन खाली मत छोड़ो।’ पर उनके लिए तो वह धीरे-धीरे प्रौढ़ होती स्त्री थी, जिसका कोई महत्व न था। वैसे वे अन्य बातों में प्रगतिशील थे...........उस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाते। पर वह स्वयं ही अपने घर-गृहस्थी की मर्यादा से बँधी हुई थी। वह सौन्दर्य-प्रेमी थी। हर काम को सुरूचि पूर्ण ढ़ग से करने में विश्वास करती थी पर उन्होंने कभी उसकी प्रशंसा न की थी। उसके हर काम को वे जनाना व फालतू समझते।
जीवन ऐसे ही गुजर रहा था उदास.........बेरंग कि जाने कैसे उस दिन अनवर खुशबू के झोंके की तरह मन में समा गया। और फिर उसके जीवन में यौवन के नवोल्लास की आभा........मधुरिमा भर गई। खुशियां ही खुशियाँ, रंग ही रंग। उसके मन का आकाश जो गर्मी के कारण बदरंग और मटमैला हो गया था। वर्षा से घुलकर स्वच्छ नीला हो गया और उस पर वह बादल बनकर मॅडराने लगा। अब वह कभी हंस की तरह तालाब में तैरती, कभी पतंग की तरह ऊंचाई पर उड़ती। संगीत उसे फिर से भाने लगा।
जबकि यह उसकी ज़िंदगी का तीसरा दशक था|उसके दुखी जीवन में खुशियों का संकेत लेकर ,पतझर को बसंत में बदलने के हठ के साथ अनवर आया था|उसने उसे एहसास कराया कि जीवन अभी समाप्त नहीं हुआ है|एक नया जीवन शुरू करने का वक्त अभी चुका नहीं है कि फिर से नयी शुरूवात की जा सकती है कि वनवृक्ष वर्षा आतप शिशिर सह कर और निखर आया है और वह साथ है|इस एहसास से सूख रहे वृक्ष पर न जाने कहाँ से कोंपले निकल आयीं|सुप्त कामनाओं ने अंगड़ाई ली|प्रीत ने पायल बजाई और उसकी आँखों में इंद्र्धनुष उभर आया|अतृप्त इच्छाएँ खिलखिला उठीं और नव वृक्ष के सदृश्य वह भ्रमर-गुंजार से मदमस्त हो गयी |
फिर वही हुआ जो सदियों से होता आ रहा है| इस असमय की बहार प्रकृति की उपेक्षा और ठूंठ की खिलखिलाहट से जगत जल-भुन गया और उसने वृक्ष पर ओलों की बौछार कर दी |पर वृक्ष के अंतर में जो नवीन गंध बस चुकी थी वह सदा उसके साथ रह कर उसका हौसला बढ़ती रही और उस पर ओलों का कुछ भी असर नहीं हुआ |वृक्ष को जो सुख पाना था उसने पा लिया था |फिर उसका जो भी हो उसे इसकी परवाह नहीं थी |
पर अनामा पेड़ नहीं एक स्त्री थी|उसके जीवन में अनवर की वजह से जो तूफान आया उसने सब कुछ बदल डाला |पति आनंद जीवन से चले गए|उनके जाने का कारण सिर्फ वही जानती थी| उसने उनसे यह सच बता दिया था कि उसके मन ने किसी और को स्वीकार कर लिया है|उनका पुरूष अहं यह स्वीकार न कर सका|उन्हें एक बार भी नहीं लगा कि इसके जिम्मेदार वे भी थे|उन्होंने उसके प्रेम को लस्ट बताया|शरीर की भूख बताया|वे भूल गए कि जब वे खुद जीते -जागते शरीर के रूप में उसके पास मौजूद थे फिर वह कौन- सी रिक्ति थी ,कौन -सी भूख-प्यास थी जिसने उसे अनवर से बांध दिया था ?वह खुद हैरान थी... परेशान थी कि कैसे ,कब, क्योंकर यह सब हो गया ?और उसे पता ही नहीं चला |पर हो गया तो वह उन्हें कैसे धोखा देती ?वह उन स्त्रियों में नहीं थी ,जो एक साथ दो नावों में सवार होकर जीवन गुजार लेती हैं|उसका प्रेम अगर गुनाह कहा जा रहा था,तो वह उसकी सजा भी भुगतने को तैयार थी|सजा मिली भी|जब आनंद के जाने से पहले ही अनवर एक झटके से उससे दूर हो गया |फिर उसके जीवन के दोनों पुरूषों ने अपनी अलग दुनिया बसा ली और वह अहल्या बनकर रह गयी|
करीब आठ वर्ष बाद अनवर का फोन आया था| नंबर बदला हुआ था इसलिए अनामा ने फोन उठा लिया|अनवर की आवाज सुनकर वह चौक पड़ी| जी चाहा फोन काट दे,पर काट न सकी|उसने कहा –‘मेरी याद नहीं आती ..भूल गयी क्या ?मैं तो एक पल के लिए भी नहीं भूल पाया तुम्हें|अनामा को आश्चर्य हुआ कि इतने वर्षों बाद भी अनवर ऐसे बात कर रहा है ,जैसे कुछ हुआ ही न हो|उसके कारण कितना कुछ बदल गया |वह कितनी अकेली हो गयी ..क्या-क्या नहीं झेलती रही? उसने एक बार भी उसकी कोई खोज-खबर नहीं ली| आज एकाएक उसका प्रेम कैसे जाग गया? अनवर के बारे में उसे बराबर खबर मिलती रही थी |उसकी शादी..फिर बच्चे..और उसके बाद भी एक लड़की से उसके खास ताल्लुकात.. !पर इन खबरों को पाकर भी वह विचलित नहीं हुई थी,जबकि उसे होना चाहिए था|तब उसे लगा था कि वह उसके जीवन से ही नहीं निकला था,बल्कि दिल से भी निकल चुका था|फिर क्या फर्क पड़ता था कि वह क्या कर रहा है?हाँ कभी-कभी कसक जरूर होती थी कि ऐसे आदमी के लिए उसने सब कुछ दांव पर लगा दिया था|वह भी एक दिन था जब वह उसके इतने करीब था कि उसके बिना उसे अपना जीवन असंभव लगता था|उसने भी तो उससे जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था|कहा था कि कहीं और विवाह नहीं करेगा| उसी के कारण तो वह अपने आनंद से अलग हुई थी|अनवर उससे इसलिए नाराज हो गया था कि उसने आनंद से उससे लगाव की बात बता दी थी|वह उससे गुनाह के रिश्ते रखना चाहता था|
आनंद भी उनके रिश्ते को गुनाह समझते थे,पर उसने तो गुनाह नहीं प्रेम किया था| आज तक वह नहीं समझ पाई है कि वह उससे क्यों प्रेम करने लगी थी ?वह प्रेम था कि देह की भूख! बरसों से खाली पड़े मन को भरने की चाह थी कि एकरस जीवन की ऊब|दुखों से निजात का उपाय था कि पति के प्रति क्रोध|भाग्य से लड़ने की कोशिश थी या फिर इन सबका मिला-जुला कोलाज !पता नहीं पर यह तो सच ही था कि वह प्रेम में पड़ गयी थी|कितनी मुहताज हो गयी थी उन दिनों वह अनवर की|एक दिन भी उसका फोन नहीं आता तो वह जल बिन मछली की तरह तड़पने लगती थी |पूरी रात जागती रह जाती|आनंद का स्पर्श उसे सर्प-दंश के समान लगता|एक ही बिस्तर पर दोनों अलग रहते|वह अनवर के ख्यालों में खोई रहती और आनंद भी न जाने क्या सोचते जागते रहते|उन्हें शक तो बहुत पहले ही हो गया था ,पर जाने क्यों चुप थे ? पर एक दिन उसे करवटें बदलते देख पूछ पड़े –क्या तुम किसी से प्रेम करने लगी हो ?वह उठकर बैठ गयी तो उन्होंने उसे कंधों से पकड़कर झकझोर डाला –बताओ ,वह अनवर है न ! जरूर वही होगा|ये साले मुसलमान गद्दार होते ही हैं |अपने मित्र की पत्नी पर ही हाथ साफ कर गया साला !मैं उसे छोडूँगा नहीं|सारे मीडिया के सामने उसे नंगा कर दूँगा|तुम्हें गवाही देनी होगी|बताना होगा कि उसने किस तरह तुम्हें मेरे खिलाफ भड़काया,तुम्हारा इस्तेमाल किया।वह कुछ नहीं बोली तो कहने लगे –उसने तुम्हें स्पर्श तो जरूर किया होगा|बोलो,कहाँ-कहाँ और कैसे स्पर्श किया था ?वह रोने लगी तो वे थोड़े नम्र हुए ,फिर कहने लगे –देखो मैं समझ रहा हूँ कि तुम्हारे मन में उसके लिए कोमल भावनाएँ हैं पर वह अच्छा आदमी नहीं है|उसका उद्देश्य बस एक बार तुम्हें प्राप्त करना मात्र है ताकि वह खुद अपनी पीठ ठोक सके |मैं उसके साथ काम करता हूँ उसके नस-नस से वाकिफ हूँ |वह आफिस में मेरी बराबरी नहीं कर पाया तो तुम्हें गुमराह कर दिया ताकि मुझे नीचा दिखा सके|तुम्हें उसने मुहरा बनाया है सिर्फ मुहरा |वह मेरी प्रतिभा से जलता है|
आनंद की बात में हो सकता है कोई सच्चाई रही हो,पर उसे उस वक्त अनवर से कोई शिकायत नहीं थी| वह खुद उसके साथ रहना चाहती थी|अपना धर्म तक बदलने को तैयार थी |जाने कैसा दीवानापन था वह ? आनंद से उसे सहानुभूति थी,पर वह यह भी जानती थी कि दोनों के बीच अनवर के आने का कारण वही खाली जगह थी,जिसे आनंद ने खुद बनाई थी|उसे मादा से अधिक उन्होंने समझा ही कहाँ था?अनवर ने तो बस उस खाली जगह को भरा था|उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था|उन्हें क्या कहे ?बस रोती रही| वे फिर समझाने लगे –तुम समझती क्यों नहीं ?तुम लोगों के बीच नज़दीकियाँ बढ़ भी गयी हों तो मुझे बताओ !मैं कुछ नहीं कहूँगा,पर जान लो वह मेरी तरह उदार नहीं है|अगर तुम लोगों का संबंध खुला तो वह तुरत पल्ला झाड़ लेगा|तुम ज़ोर दोगी तो तुम्हें ही बदचलन कह देगा| वह गंदा आदमी है|कुछ दिन पहले वह एक बदनाम नेताईन के घर रात-भर रहा और सुबह आफिस में नेताइन के ढीले पड़ गए अंगों का उपहास उड़ाता रहा| अपने एक मुस्लिम मित्र की पत्नी के भी वह करीब है |वह जहाँ भी फांक देखता है,वहीं घुस जाता है|वह अविवाहित है सुंदर है ...युवा है |ऊपर से उसे लच्छेदार बातें करनी आती है |बेवकूफ औरतें उसके चक्कर में फंस जाती हैं ,पर वह किसी का नहीं| बस मुफ्त में मजे लेता है,टाईम पास करता है| तुम क्यों ऐसे आदमी को लेकर गंभीर हो? क्यों उसको अपने हृदय का रक्त पिला रही हो ?भूल जाओ उसे, झटक दो झटके से|फोन आए तो मत उठाओ या डांट दो कसकर |अनवर के बारे में ये बातें अनामा को अच्छी नहीं लग रही थीं|वह सोच रही थी -अनवर कैसा भी हो वह उससे प्यार करती है|वह इतना बुरा नहीं हो सकता,जितना ये बता रहे हैं|अनवर से उसका रिश्ता यूं ही एक दिन में नहीं शुरू हो गया था |वर्षों लगे थे इसे जड़ जमाने में |इस रिश्ते की जड़ों में अपनापन था,सहानुभूति थी,पर वासना का नामोनिशान न था|फिर अनवर के बारे में ये अब क्यों बता रहे हैं ?पहले तो वह इनके लिए बहुत अच्छा था|उसकी प्रशंसा सुनकर ही वह उसे देखने को लालायित हो गयी थी|वे उसे लेकर घर आए थे फिर धीरे-धीरे वह उनके हर दुख-सुख में शामिल हो गया था,विशेषकर उसके|अनवर को बुरा लगता था कि वे आफिस में उसके बारें में सम्मानजनक ढंग से बात नहीं करते हैं|कहीं भी उसका अपमान कर देते हैं|वह उसकी सुंदरता से ज्यादा उसके मासूम भोलेपन से प्रभावित था| उससे बच्ची समझकर लाड़ करता|उसका ध्यान रखता|
उसे परेशान देखकर तड़प उठता|उन दिनों आनंद की हरकतों से वह दुखी थी|अपने को असहाय और अकेला महसूस करती थी|वह तन से ज्यादा मन का अकेलापन था,जो धीरे -धीरे उसे खाने लगा था|फिर अनवर ने उसके अकेलेपन को भर दिया|आनंद के बारे में भी अनवर ने बहुत बातें बताईं थीं,पर तब उसने उसे डांट दिया था|विश्वास ही नहीं था कि प्रगतिशील विचारधारा वाले आनंद ऐसा भी कर सकते हैं पर बाद में उसे खुद सबूत मिलता गया |तब उसे लगा कि अनवर उसे आनंद के खिलाफ भड़का नहीं रहा,बल्कि उसके लिए चिंतित है|
उसके घर के ठीक पीछे एक मकान है ,जिसमें उन दिनों बतौर किराएदार एक गरीब मुस्लिम परिवार रहता था|उस परिवार में नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक किशोरी भी थी| अलग बाथरूम न होने के कारण पीछे बने छोटे से आँगन में ,जहां हैंडपाइप था –वह परिवार नहाया करता था |आँगन ऊपर से खुला था|अगल-बगल की छतों से वह आँगन साफ दिखता था|सुबह स्कूल जाने से पहले वह किशोरी आँगन में निश्चिंत होकर नहाती थी |उस समय आस-पास की छतों पर कोई नहीं होता था |वह इस बात से बेखबर थी कि दो जोड़ी अधेड़ आँखें उसे रोज निहारती हैं|अनामा को भी यह बात पता नहीं थी ,पर वह देखती थी कि सुबह होते ही आनंद हाथ में ब्रश लेकर छत पर चले जाते हैं |वह घर के काम में लगी रहती थी |मन में कोई शक भी नहीं था| एक दिन अनवर ने फोन पर उससे पूछा –आपके घर के पीछे कोई 'माल' रहता है,उसे देखने आना है |वह चौक पड़ी–माल ..!नहीं तो ...|
-रहता है जानदार माल !..हर सुबह दो सूरज उगते है वहाँ ...|उसका जलवा आह !
-क्या बक रहे हो ?मेरे घर के पीछे तो एक बच्ची अपने परिवार के साथ रहती है |फिर तुम तो कभी मेरी छत पर गए नहीं,फिर कैसे जानते हो?
-वही तो..... बूझिए ...आपके पति रस ले-लेकर छत से देखे गए रसलीला की बातें आफिस में सबसे बताते फिर रहे हैं|एक दिन खुद देख लीजिए|इतनी भोली बनकर धोखा खाएँगी |अपने आदर्श पति के तथाकथित माल के दर्शन तो कर लीजिए|
-देखो,पहली बात मुझे 'माल' शब्द से चिढ़ है |लड़की को माल कहने वालों को मैं माफ नहीं कर सकती| दूसरी बात पीछे बेहद गरीब नौवीं में पढ़ने वाली मुस्लिम बच्ची रहती है, कोई बड़ी लड़की नहीं ..|
मुसलमान शब्द सुनकर अनवर का स्वर गंभीर हो गया|उसे शायद बुरा लगा था|अभी तक हिन्दू परिवार की लड़की समझकर वह भी मजे ले रहा था ।अब वही बात उसे अनैतिक लगने लगी थी| कितने गहरे होते हैं ये धर्म के संस्कार!पर कोई भी धर्म मानवता से बड़ा तो नहीं हो सकता| गलत चीज तो हर हाल में गलत होती है ,धर्म के कारण बदल कैसे सकती है ?पर धर्म के उन्माद में लोग मानवता भूल जाते हैं तभी तो हर दंगे-फसाद ,युद्ध या आपदा में एक कौम दूसरी कौम की स्त्रियों के साथ बुरा सलूक करती है|जबकि स्त्री तो हमेशा शांति चाहती है| मर्द ही अपनी महत्वाकांक्षा के कारण युद्ध ठानते हैं पर यातना सहती हैं स्त्रियाँ |
उसने आनंद को अनवर से हुई बातचीत के संबंध में कुछ नहीं बताया| दूसरे दिन सुबह जब वे छत पर गए तो दबे पाँव चुपके से वह भी वहाँ जा पहुंची|छत का दृश्य देखकर तो उसे मानो काठ मार गया|छत की कच्ची बाउंड्री की एक ईंट निकालकर मोका बनाया गया था, जिससे पीछे के आँगन में देखा जा सके |बाद में उसमें ईंट लगा दी जाती थी ताकि उसे पता न चले| छत पर खड़े होकर देखने से आँगन में नहा रहा व्यक्ति जान लेता की कौन झांक रहा है, फिर विवाद हो सकता था ,इसलिए उसका प्रगतिशील, नारी अधिकारों का पक्षधर पति छत पर उकड़ूँ बैठा मोके से झांक रहा था |उसने आँगन में देखा तो बच्ची मात्र चड्ढी में नहा रही थी| गोरे कमसीन शरीर पर बिजली के ताजे खिले फूल पानी की बूंदों से धुलकर और भी धवल आभा से चमचमा रहे थे|
उसकी आहट पाकर आनंद के होश उड़ गए|उसने पूछा-ऐसे उकड़ू क्यों बैठे हुए हैं ?कहाँ झांक रहे हैं ?
वे घबराकर उठ खड़े हुए –कुछ नहीं बस ऐसे ही व्यायाम कर रहा था|
-हाथों में ब्रश लेकर मोके से झांकना भी व्यायाम है क्या |व्यायाम आँखों का है या फिर ... |आप रोज इसी व्यायाम के लिए छत पर आते हैं |
‘तुम मेरी जासूसी कर रही हो ..?
-मुझे पहले से पता था पर खुद देखना चाहती थी|
‘अच्छा! पर तुम कैसे जानती थी ?
-सारी दुनिया को आप अपनी बहादुरी के कारनामे बताते हैं तो कैसे नहीं जानती ?
‘समझ गया जरूर उस अनवर ने चुगली की होगी |एक कमीना है|
-और आप कैसे हैं ?बेटी की उम्र की बच्ची को नहाते हुए देखते हैं और रस ले-लेकर उसके अंग-प्रत्यंगों का बखान करते हैं |कितनी भूख है आपको देह की ?वैसे तो बड़ी-बड़ी प्रगतिशील बातें करते हैं|
-क्या हो गया ?लोग ब्लू फिल्म भी तो देखते हैं |देखने वाली चीज को तो देखेंगे ही|
-शर्म नहीं आती अगर वह आपकी बेटी होती तो..|
-चलकर मुल्ले साले की खबर लेता हूँ घर में आग लगाता है |यह कहते हुए आनंद बिना किसी ग्लानि के नीचे उतर आए |वह उनकी इस बेहयाई पर अवाक रह गयी|
...तो... अनवर ठीक कहता है इनके बारे में|
ये तब की बात थी ,जब अनवर से उसके रिश्ते प्रगाढ़ नहीं हुए थे ।उससे बस सामान्य -सा परिचय था| शादी के बाद आनंद के आफिस वालों ने पार्टी देने पर ज़ोर दिया तो एक छोटी -सी पार्टी हुई थी| पहली बार अनवर ने उसे वहीं देखा था|उसने तो उस पर ध्यान नहीं दिया ,पर वह उसे पसंद करने लगा था| फिर आफिस से आनंद के सामने ही फोन करने लगा |आनंद ने भी उसे कभी मना नहीं किया |तब वह उनसे काफी क्लोज था| आफिस में सबसे कम उम्र का होते हुए भी वह काम-काज में कुशल था ,इसी कारण सभी का चहेता बन गया था| सभी को उससे काम पड़ता था |मैनेजमेंट तक उसकी पहुँच थी|
उससे परिचय होने के बाद वह आनंद की हर बात उससे बताने लगा| विशेषकर वे बातें जो आफिस या और कहीं भी वे उसके बारे में कहते थे |उसे बुरा लगता कि कोई अपनी पत्नी का जिक्र सिर्फ देह रूप में कैसे कर सकता है ?कितनी तरह की काम-कलाएं और कितनी बार आनंद के प्रिय विषय बन गए थे |अनवर उससे कहता –‘मुझे अच्छा नहीं लगता उनका आफिस में बिस्तर की बातें शेयर करना |कोई और शख्स तो नहीं करता इस तरह की बातें ,वो भी पत्नी के संबंध में|मुझे तो लगता है वे आपको पत्नी ही नहीं मानते|
अनामा को बुरा लगता पर उसे पता था कि आनंद इस तरह की बातें कर सकते हैं |घर पर उसके सामने ही फोन पर अपने मित्रों से वे इस प्रकार की नग्न भाषा का प्रयोग करते कि वह कट कर रह जाती पर क्या करती ?यह उनके स्वभाव का जैसे एक अंग ही था| प्रारम्भ से ही वे ऐसे लोगों के बीच उठते-बैठते रहे थे ,जो खुलेपन व नंगेपन को ही प्रगतिशीलता समझते हैं| सामाजिक अनुशासन जिनके लिए पिछड़ापन है और सभ्य भाषा, सभ्य आचरण सामंतवाद |वे तो अपनी समलैंगिकता के किस्से भी यूं बता जाते ,गोया इसमें अस्वाभाविक कुछ नहीं| अपने मामा से भी उनके ऐसे रिश्ते रहे और कईयों से भी| यह खुद उन्होंने ही उसे बताया था| उनके पास कोई भी लड़का चैन से नहीं सो सकता था |एक बार उनका रिश्ते का भतीजा घर आया था| कमरा एक ही था इसलिए उसने दोनों को एक साथ सोने को कहा और खुद छत पर जाकर सो गयी |सुबह भतीजे की लाल आँखें देखकर उसने कारण पूछा ,तो वह शर्माते हुए बोला-आंटी अंकल नींद में रात- भर परेशान करते हैं| उसने सोचा- शायद 40 की उम्र तक स्त्री -सुख से वंचित रहने के कारण ये यौन-कुंठित हो गए हैं| बेचारे बदसूरत और खाली जेब होने के कारण किसी लड़की को तो नहीं पटा पाए होंगे या फिर शायद यह भी उनके प्रगतिशील होने का प्रमाण हो |
एक बार वह और शर्मिंदा हुई ,जब उसके एक मित्र कामता प्रसाद ने उससे उनकी शिकायत की |मित्र की पत्नी इन्हें राखी बांधती थी| इस नाते उसकी किशोर बेटियाँ इन्हें मामा कहकर पैर छूती थीं| मित्र का आरोप था कि झुककर पैर छूने वाली बेटियों को वे बाहों के बगल से पकड़कर उठाते हैं| समय-कुसमय कभी -भी घर आ टपकते हैं और सीधे बड़ी बेटी के कमरे मे चले जाते हैं |उसके बिस्तर पर लेट जाते हैं ।उसकी रज़ाई में घुस जाते हैं |उसे छू-छूकर बात करते हैं |उनके या दूसरे कमरों में नहीं बैठते |संकोच की वजह से उनकी पत्नी उन्हें कुछ कह नहीं पातीं|आप उन्हें मना कर दीजिए |बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है |छोटे बच्चे उन्हें देखते ही मुस्कुराने लगते हैं कि अब ये सीधे दीदी के कमरे में घुसेंगे|यह सब सुनना- कहना बहुत बुरा लगता है |आपके नाते ही उनसे रिश्ता जुड़ा था|आप ही उन्हें इस तरह समझा दीजिए कि उन्हें बुरा भी न लगे| उसने उन्हें आश्वस्त किया पर खुद संकोच में पड़ गयी कि उनसे इस तरह की बातें कैसे करे ?जब वे घर आए तो सहज भाव से उसने बस इतना ही कहा-आप मेरे साथ ही कामता प्रसाद जी के घर जाया करें|
उसके इतना कहते ही आनंद बमक उठे –क्यों कुछ कह रहा था क्या ?ठीक कर दूँगा उसे| उसे आश्चर्य हुआ कि उसने अभी उन्हें कुछ बताया ही नहीं ,फिर भी !इसका अर्थ सूचना सही है|इसे ही कहते हैं 'चोर की दाढ़ी में तिनका'|वह तो अभी तक कामतप्रसाद की बातों को पूर्वाग्रह ही मान रही थी |
आनंद पर इतना विश्वास तो था कि वे रिश्तों की कदर करेंगे| वे खुले विचारों के हैं नीयत में खोट नहीं |शायद इसीलिए बच्ची के कमरे में चले जाते होंगे| छू-छूकर बात करते होंगे ,पर उनका नाराज होना कुछ और ही कह रहा था |
उसके कुछ ही दिन बाद मुस्लिम किशोरी वाली घटना हुई ,फिर तो जैसे इनकी कलई ही उतरने लगी |वह गौर करने लगी कि उसके साथ होते हुए भी वे उससे आँखें बचाकर किशोरियों के उभरते यौवन को निहारा करते हैं |एक दिन तो हद हो गयी |वे कुछ नीली फिल्में ले आए और उसे भी साथ देखने का आग्रह करने लगे| वह थकी हुई थी दिन -भर नौकरी की थकान उसे रात में जागने की इजाजत नहीं दे रही थी| उसके मना करने पर वे नाराजगी दिखाने लगे| उनका मन रखने के लिए उसने उड़ती नजरों से फिल्म पर नजर डाली तो घोर वितृष्णा से उसका मन भर गया| फिल्म की नायिकाएँ किशोरियाँ ही थीं ,बच्चियाँ कहना ज्यादा सही होगा| एक सहवास के दृश्य में चेहरा बच्ची का था| उसकी भाव-मुद्राएँ देखकर वह सहम गयी थी| पर जब कैमरा उसकी कमर के नीचे के जिस्म पर फोकस हुआ और सहवास दिखाया जाने लगा तो वह मुंह फेर कर लेट गयी| तभी उसने जो सुना ,उसे सुनकर लगा जैसे किसी ने पिघला शीशा उसकी कान में डाल दिया हो|आनंद कह रहे थे –बेवकूफ बना रहे हैं नीली फिल्म बनाने वाले |चेहरा तो कमसीन लड़की का है पर कमर के नीचे का सब कुछ किसी अधेड़ औरत का है|
स्त्री होकर भी स्त्री के गुप्त अंगों की पहचान वह इस तरह नहीं कर सकती थी|उस दिन उसे महसूस हो गया कि उसने गलत आदमी से विवाह कर लिया है|ये काफी खेले-खाए आदमी है|जरूर वेश्यागमन भी करते रहे होगें| पैसे कम होने की वजह से सस्ती वेश्याएँ ही इन्हें उपलब्ध हुई होंगी ,इसीलिए इनके पास इस तरह के अनुभव और भाषा है|वह देखती है कि गरीब तबके की नौकरानियों व मज़दूरिनों को देखते समय इनकी आँखों में एक भूख चमकने लगती हैं|प्रेम- संबंध के लिए न वे कोई स्तर देखते है न किसी नैतिकता को मानते हैं |उनकी आँखों पर बस एक ही चश्मा है, जिससे हर स्त्री बस मादा नजर आती है |प्रगतिशीलता ,स्त्री स्वाधीनता ,स्त्री कल्याण की बड़ी-2 बातें तो वह चारा है ,जिससे प्रबुद्ध वर्ग की स्त्रियों का विश्वास हासिलकर उनका भी शिकार किया जा सके| उससे विवाह का कारण भी उन्होंने एक दिन बताया –अगर विवाह नहीं करता तो पतित हो जाता| यानी यौन संतुष्टि मात्र के लिए उन्होंने उसे चुना था| इस चुनाव से हमेशा और हर समय के लिए उन्हें मुफ्त में एक सुंदर युवा देह उपलब्ध हो गयी थी|पर वह सिर्फ देह नहीं थी,इसलिए धीरे-धीरे बागी होती गयी थी |
ऐसे चरित्र वाले पति से वह अपेक्षा कर रही थी कि वे उसके प्रेम को समझेंगे और उसे अनवर से मिलवा देंगे| लेकिन जिसने जीवन में कभी प्रेम ही नहीं किया हो,वह प्रेम को कैसे समझता? थोड़ी देर वे अपनत्व दिखाते रहे ....उसे समझाते रहे फिर बिफर पड़े –सुंदर और जवान लौंडे को देखकर तुम्हारी नीयत खराब हो गयी| अपनी उम्र का भी ख्याल नहीं रहा| यह प्रेम नहीं लस्ट है| उस कमीने को भी फ्री में मजे मिल रहे हैं तो क्यों पीछे हटे ?आनंद का यह रौद्र रूप देखकर वह सन्न रह गयी|अभी जरा देर पहले कितने प्रेम से समझा रहे थे और अभी ...|यही उनका असली रूप था |वह कैसे भूल गयी थी कि लस्ट ही जिसका जीवन रहा है ,वह उसके जज़्बात नहीं समझ सकता|अभी तक उससे राज उगलवाने के लिए उन्होंने अच्छे पति का मुखौटा पहन रखा था| वह भी अपने दुख में डूबी सच बोल बैठी|अब अनवर की बात उसे याद आ रही थी –हमेशा ध्यान रखना कि हमारे बीच के सम्बन्धों की भनक किसी को न लगे,वरना तुम्हारी छिछालेदर हो जाएगी| पुरूष प्रधान समाज स्त्री को स्वतंत्र प्रेम की इजाजत नहीं देता| पति व पर्दे की आड़ में चाहे वह कुछ भी करे |मर्द का कुछ नहीं बिगड़ता सारा खामियाजा स्त्री भोगती है|
पर वह भी क्या करती ?किसी को धोखा देना उसका स्वभाव नहीं था |वह अनवर से प्रेम करती है ,इस सत्य को वह आनंद से छिपाना नहीं चाहती थी| यद्यपि वर्तमान में अनवर उससे दूर जा चुका था |फिर भी आनंद से वह सामान्य रिश्ते नहीं बना पा रही थी|उसे लग रहा था कि वह उसे सच न बता कर उसे धोखा दे रही है इसीलिए वह तड़प रही थी|अंत में उसने निर्णय किया था कि वह सच बता देगी फिर आनंद का जो निर्णय होगा ,उसे स्वीकार करेगी |अगर उसने गुनाह किया है ,तो उसकी सजा भुगतेगी |आनंद उसे छोड़ भी देंगे तो एकाकी जीवन व्यतीत करेगी|कम से कम उसकी आत्मा पर कोई बोझ तो नहीं रहेगा| वह चाहती तो दोनों से अपने रिश्ते को निभा सकती थी,पर एक साथ दो नावों की सवारी उसकी आत्मा स्वीकार नहीं कर सकी थी|
इस बीच अनवर का असली रूप भी सामने आ गया था| वह जान गयी थी कि उसमें उसके जैसा साहस नहीं है कि सच स्वीकार कर संसार के सामने उसे अपना ले| वह उससे आड़ में चोरी-छिपे रिश्ता रखना चाहता था|जबकि वह साफ-सुथरा रिश्ता चाहती थी| आनंद ने जो कुछ अनवर के बारे में कहा था ,सच साबित हो रहा था| मर्द एक-दूसरे को कितनी अच्छी तरह जानते- समझते हैं –खग जाने खग ही की भाषा|वह तो औरतों की ही भाषा नहीं समझ पाती थी ,मर्द की भला क्या समझती ?सच जानने के बाद आनंद उसे छोड़ना चाहते थे और अनवर अपनाना नहीं चाहता था |वह पलायन कर गया था |उससे सारे रिश्ते तोड़कर जाने कहाँ जा छिपा था ?वह दोनों के बीच फंसी हुई थी|
दोनों उसके जीवन के सत्य थे, पर शायद वह दोनों के लिए ही महज एक औरत थी| अनवर के बारे में आनंद पहले ही भविष्यवाणी कर चुके थे कि वह समाज के सामने उसे कभी नहीं अपनाएगा ,क्योंकि दोनों के बीच किसी भी स्तर पर समानता नहीं है| न जाति-धर्म की,न उम्र-अनुभव की ,न शिक्षा की ,ना विचारों की |उनके अनुसार अनवर को अपने धर्म की सुंदर,कमसीन लड़की आसानी से मिल सकती है,फिर वह क्यों सेकेंड हैंड पर जाएगा ?उधर अनवर ने रिश्ते की शुरूवात के पहले ही उससे बताया था कि आनंद उसे छोड़ना चाहते हैं |आनंद ने उससे कहा था-ऊब चुका हूँ इस रिश्ते से ,वापसी चाहता हूँ पर कोई बहाना नहीं मिल रहा |समाज की जबाबदेही है |उधर घर वाले वापसी पर ज़ोर दे रहे हैं |अनवर को उससे सहानुभूति थी इसलिए आनंद का यह पलायन उसे नहीं भाया था| यह सहानुभूति ही उनके बीच रिश्ते की कड़ी बनी थी |
आनंद को अब बहाना मिल चुका था |उसने सच स्वीकार कर उन्हें मार्ग दे दिया था,पर वे घर छोड़ने में भी उसकी भूमिका चाहते थे |वह उन्हें अपने घर से स्वयं निकाल दे ताकि लोगों को उसकी चरित्र-हीनता का पक्का विश्वास हो जाए,पर वह ऐसा नहीं कर रही थी| अब वे रात-दिन उसे ताने मारते ,गालियां बकते| आधी रात को उसे नींद से जगा कर पूछते कि अनवर से उसके रिश्ते की हद कहाँ तक थी ?वह लाख कहती थी कि अनवर से उसके रिश्ते जिस्मानी स्तर तक नहीं पहुंचे थे,फिर अब वह जा चुका है ,पर वे नहीं मानते और उसे टार्चर करते रहते|रात -भर जागने के कारण वह अपने आफिस में ठीक से काम नहीं कर पा रही थी|तनाव व नींद की गोलियां लेने लगी थी,पर आनंद को इस बात से कुछ लेना-देना नहीं था| न तो उनमें घर छोड़कर चले जाने का साहस था ,ना फिर से नई शुरूवात करने का,जबकि वह दोनों तरह से राजी थी|
एक दिन हद ही हो गयी जब उन्होंने कहा –मैं जानता हूँ तुमने अपनी तरफ से पहल नहीं की होगी |उसी ने तुम्हें गुमराह किया होगा| मैं तुम्हें एक मौका और दे सकता हूँ ,पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा| तुम उसे फोन करके बुलाओ |मैं उसे रंगों हाथों पकड़ लूँ |और सारी मीडिया के सामने नंगा कर दूँ |
अभी तो सब-कुछ करने के बाद भी वह बेदाग घूम रहा है| मुझे मुस्कुराकर देखता है जैसे कह रहा हो –देखो, मैंने तुम्हारी बीबी को ...|
वह सोचने लगी कि उसके जीवन के दोनों पुरूष कितने शातिर हैं |एक अपने प्रेम को गुनाह की तरह छिपाना चाहता है ,ताकि किसी भी ज़िम्मेदारी और जबावदेही से बच जाए| साथ ही उसका वर्तमान और भविष्य दोनों बेदाग और सुरक्षित रहे और दूसरा उसे चौराहे पर खड़ा करके उसका तमाशा बनाना चाहता है |क्या अनवर को अपने घर में अपने साथ रंगे हाथों पकड़वाने से वह बदनामी से बच जाएगी?
दोनों ने एक-दूसरे को नीचा दिखने के लिए उसका इस्तेमाल किया था और आगे भी करना चाह रहे थे,पर वह इतनी भी नादान नहीं थी| एक दिन उसने आनंद को कह दिया –अगर आप मेरे साथ ठीक से नहीं रहना चाहते तो जा सकते हैं| आनंद फौरन निकल गए जैसे इसी बात की उन्हें प्रतीक्षा थी |सारे समाज ने उन्होंने फैला दिया कि उसने उन्हें अपने घर से निकाल दिया| अब वे कभी नहीं लौटेंगे आखिर उनका भी स्वाभिमान है |बाद में उसने कई बार उन्हें वापस लाने का जतन किया पर वे नहीं लौटे |अनवर भी नहीं लौटा|
पूरे आठ वर्षों बाद पूरी तरह व्यवस्थित होने के बाद आज अनवर ने उसे फोन किया है और पूछ रहा है-मेरी याद नहीं आती ...वह समझता है कि वह आज भी उसी तरह उसके प्रेम मे बावली है |वह नहीं जानता कि उसने उसकी यादों को अपने मन की स्लेट से खुरच-खुरचकर निकाल दिया है और उसके मन में उसके लिए कुछ भी नहीं है| वह जैसे पिछले जन्म का हिस्सा है |