es pyar ko kya kahun books and stories free download online pdf in Hindi

इस प्यार को क्या कहूँ!

प्रेम की मृत्यु की खबर पाकर मीरा सन्न रह गयी |उसके मुँह से अकस्मात निकल पड़ा-ओह! कब की बात है ?क्या दो साल पहले.... !जाड़े में....!क्या हुआ था उन्हें ?तब तक तो वे रिटायर भी नहीं हुए होंगे |

-हाँ पर बहुत बीमार थे ...कई बीमारियों ने उन्हें घेर लिया था ......बड़ी बुरी मृत्यु नसीब हुई उन्हें ...काफी समय वेंटिलेटर पर रहे |दो दिन पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी थी पर अस्पताल वालों ने पैसा बनाने के चक्कर में इस बात को छुपाए रखा |तीसरे दिन पाँच लाख जमा कराकर लाश दिया ,वह भी इस निर्देश के साथ की सीधे चिता पर रख दे ।लाखोंखर्च हो गए थे पर उन्हें बचाया नहीं जा सका |वैसे उन्होंने अपने जीवन में अच्छा कमाया था |चार मंजिला आलीशान घर ,खेती-बारी,बैंक-बैलेंस सब कुछ था |परिवार भी छोटा था –दो बेटे और एक बेटी |एक बेटे और बेटी की शादी कर चुके थे |छोटे बेटे की शादी का बड़ा अरमान था पर उसे नहीं देख पाए |दोनों बेटे इंजीनियर हैं |रिश्तेदार-नातेदार सब के सब सम्पन्न |खुद भी बड़े ही आकर्षक व व्यवहार-कुशल थे |जाने-माने वकील तो थे ही |कहीं कोई कमी नहीं थी |कुल मिलाकर वे एक सुखी और सफल जीव थे ,इसलिए उनको बचाने की पूरी कोशिशें की जाती रहीं पर मौत ये सब कहाँ देखती है उसने उन्हें नहीं बख्शा था |

प्रेम की मृत्यु की खबर से मीरा को धक्का लगा था |पच्चीस साल पहले दोनों के बीच एक रिश्ता था ,जिसे छोड़कर वह जीवन में आगे बढ़ गयी थी क्योंकि प्रेम के साथ उसका कोई भविष्य नहीं था |वह शादी-शुदा था और अपनी पत्नी-बच्चों के साथ सुखी –संतुष्ट था |वही अपने दुखों से चकराई उसकी बाँहों में जा गिरी थी और उसने भी उसे संभाल लिया था |यह भी सच था कि प्रेम ने ही उसकी तरफ पहला कदम बढ़ाया था उसके मन में प्यार का एहसास जगाया था |वह तो गहरे अवसाद में थी उसे तो पता ही नहीं चला कि कब,कैसे और क्यों उसने प्रेम को अपना सर्वस्व मान लिया और उसके प्रेम में सचमुच मीरा बन गयी |वह गहरे मोह में थी पर प्रेम नहीं |वह दुनियादार था |वह अपनी पुरानी दुनिया में ही एक गुप्त कोना उसे देना चाहता था ताकि उसकी जिंदगी खुशगवार बनी रहे! उसका जब जी चाहे उस कोने को रोशन करे और फिर वहाँ अंधेरा करके आगे बढ़ जाए |पर मीरा एक स्त्री थी ,कोई कोना नहीं इसलिए वह प्रेम को प्यार करती थी पर उससे शरीर से नहीं जुड़ना चाहती थी |पर प्रेम उसे पाने को व्याकुल था |वह मौका पाते ही उसे स्पर्श कर लेता ,कभी उसे हाथ सहला देता कभी पैर |उसकी छुअन मीरा के तन-मन को झंकृत कर देता ....वह तड़प उठती आखिर वह भी हाड़-मांस की एक स्त्री थी युवा थी और प्रेम में भी थी |फिर भी कठिन मानसिक संघर्ष कर वह खुद को बचा ले जाती | कई बार वह सोचती प्रेम से मिले ही नहीं उसके घर ही न जाएँ पर वह खुद को रोक नहीं पाती थी |प्रेम उसकी कमजोरी बन चुका था और वह इस कमजोरी का लाभ ले रहा था |हालांकि अपनी पत्नी-बच्चों की उपस्थिति के कारण वह उससे कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता था |और एक बात और थी कि उसकी प्रेममयीबातें,उसका स्पर्श मीरा को भी अच्छा लगता था|एक दिन प्रेम ने अचानक उसको पीछे से आकर पकड़ लिया और उसके होंठों को अपने होंठों में देर तक दबाए रखा |यह उसके जीवन का प्रथम चुंबन था और इतना अद्भुत था कि वह अपना होश ही खो बैठी |ऐसा अनोखा आनंद ...इतना ज्यादा सुख उसने कभी नहीं पाया था |इस जादुई अहसास से वह अब तक अपरिचित थी फिर तो वह खुद ही चाहने लगी कि प्रेम उसे हमेशा प्यार करे पर सीमाएं थीं |बाहर वे मिल नहीं सकते थे और घर में उसका परिवार था |इसलिए उनका प्यार ‘भरे भौन में करत है नैनन ही सो बात’तक सीमित था |

मीरा उतने से ही संतुष्ट थी |प्रेम ने उसके उदास और सूने जीवन में रंग ही रंग बिखेर दिए थे |काम से छुट्टी मिलते ही वह भागी-भागी उसके घर आ जाती |प्रेम अपने घरवालों की उपस्थिति में ही उसके लिए कुछ शब्द उछाल देता,जिसे वही समझती और रोमांच से भर जाती |उसका वश चलता तो वह रात-दिन प्रेम के घर ही पड़ी रहती | प्रेम के पूरे घर में एक अजीब –सी खुशबू भरी रहती ,जो उसे मदमस्त बनाए रखती |प्रेम की पत्नी और बच्चों से भी उसके मधुर संबंध थे |वह परिवार के एक सदस्य की तरह थी |साथ खाना-पीना होता और गर्मी की दुपहरिया में उनके बच्चों के साथ सो भी जाती |वह सोचती थी कि उनकी पत्नी को शायद यह पता भी नहीं है कि वह उनसे नहीं प्रेम से मिलने उनके घर आती है | पर एक दिन प्रेम ने उसे बताया कि उसकी पत्नी उनके बीच के रिश्ते को जानती है और उसे अपना प्रेम शेयर करने में कोई परहेज नहीं |मीरा यह सुनकर हैरान थी |कोई स्त्री अपना पति कैसे बाँट सकती है ?पर यह सच था |अक्सर प्रेम की पत्नी दोनों को अकेला छोड़कर इधर-उधर चली जाती ,उन्हें एकांत का पूरा अवसर देती पर वह खुद इस अवसर का लाभ नहीं उठाती थी और न प्रेम को उठाने देती थी |

उसके भीतर एक गहरा नैतिक बोध था वह प्रेम में होते हुए भी किसी स्त्री का हक नहीं छीनना चाहती थी |दूसरी औरत भी नहीं बनना चाहती थी |वह उलझ गयी थी |उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था |उसके दिल और दिमाग में प्रेम को लेकर गहरा संघर्ष चल रहा था |कभी-कभी उसे लगता कि वह तो अकेली और टूटी हुई थी प्रेम के घर प्यार व अपनत्व पाकर जुड़ गयी थी |प्रेम को क्या जरूरत थी उसके दिल में प्यार जगाने की वे एक मित्र भी तो बने रह सकते थे |क्या स्त्री –पुरूष सिर्फ मित्र नहीं हो सकते ?क्या जरूरी है दो मित्रों के बीच स्त्री-पुरूष संबंध ही हों |

एक दिन उसने सोचा कि प्रेम की पत्नी से सारी बात बता दे प्रेम के अनुसार वे सब जानती ही हैं |उसका मन भी अपराध –बोध से मुक्त हो जाएगा कि वह उनके पति के प्रेम में है |उसने उन्हें अपने और प्रेम के बारे में सब कुछ बता दिया |वे बस हाँ- हूँ करती रहीं |दूसरे दिन वह उनके घर गयी तो उनकी पत्नी अपने पड़ोस में चली गईं और प्रेम उसे जबरन अपने कमरे में ले गया और उसके साथ जबर्दस्ती करने लगा |उसने लाख छुड़ाने की कोशिश की ,पर वह नहीं माना |उसने सारी सीमाएं तोड़ दी |वह सदमें में थी |अपनी हसरत पूरी करने के बाद उसने कहा—अब इस बात को पत्नी से न बता देना |वैसे हमें मौका देने के लिए ही वे पड़ोस में गयी हैं फिर भी उनके आने से पहले ही चली जाओ |

वह हारी हुई -सी उस घर से वापस हो गयी थी और रात भर नहीं सो पाई |सुबह तह उसे डिप्रेशन हो गया |शाम को वह प्रेम के घर गयी तो सबका व्यवहार बदला हुआ था प्रेम भी अजनबी की तरह ही मिला |वह ज्यादा देर वहाँ रूक नहीं पाई |उसकी तबीयत और बिगड़ गयी|इस बात को वह किसी को बता भी नहीं सकती थी |सब यही कहते कि तुम ही तो रात-दिन वहाँ जाकर पड़ी रहती थी |प्रेम ने उससे रिश्ता लगभग तोड़ लिया था |उसे भी अब उसके घर जाना अपमानजनक लगने लगा |वह डाक्टर से अवसाद की दवाइयाँ लेकर खाने लगी फिर भी उसका खाना-पीना ,सोना छूट गया था |घरवाले उसकी बीमारी नहीं समझ पा रहे थे |वह भीतर की मार भीतर ही सह रही थी |इस बीच प्रेम ने एक बार भी उसकी खोज-खबर नहीं ली |पता नहीं वह उसकी हालत देखकर डर गया था या फिर उसका उद्देश्य पूरा हो गया था |वह मर रही थी |वह रात-रात भर जागती |कभी अपराध-बोध,कभी छले जाने का एहसास |कभी सोचती प्यार में देह शामिल होना पाप नहीं है फिर क्यों पाप -बोध हो रहा है ?क्या प्रेम का बदला स्वभाव उसे दुख दे रहा है ?कहीं यह उसे अपना न बना सकने का शोक तो नहीं है !कुछ तो गलत है,जो उसे तड़पा रहा है |अगर प्रेम उसे अपनी बाहों में लेकर प्यार से उसे समझाता कि कुछ गलत नहीं हुआ है |दोनों के बीच प्यार है और दोनों एक-दूसरे के लिए हमेशा रहेंगे ,तो शायद वह अपना सारा दुख भूल जाती |वह उसकी प्रेमिका बनकर ही जीवन काट लेती |

वह अब अपने शहर को छोड़ने के बारे में सोचने लगी क्योंकि वह यहाँ रहकर उससे दूर नहीं रह सकती थी |जल्द ही उसे यह मौका मिल गया |उसे दूसरे शहर में एक छोटी-सी नौकरी मिल गयी |दूसरे शहर आकार उसने काफी लंबे सामी तक मानसिक चिकित्सा कराई तब जाकर अपने अवसाद से मुक्त होकर आगे बढ़ पाई ,फिर उसने कभी प्रेम की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा |शहर आने के कुछ दिन बाद उसे प्रेम का एक पत्र मिला था ,जिसे पढ़कर वह विचलित हुई थी |पर फिर उसने खुद को संभाल लिया था कि अब फिर उस दलदल में नहीं गिरना |प्रेम के साथ उसका कोई भविष्य भी तो नहीं |उसकी पत्नी है परिवार है समाज और संसार है जिसमें उसकी कोई सम्मान-जनक जगह नहीं हो सकती |उससे प्रेम एक सच था पर वह उसको कोई गलीज नाम नहीं दे सकती |कभी-कभी उससे जुड़ी बातें उसे तड़पाती पर उसने फिर कभी उससे न मिलने का फैसला कर लिया था |उसने कभी उसके बारे में जानने की कोशिश नहीं की |इतने वर्षों में वे एक-दूसरे से कभी मिले ही नहीं |प्रेम के कारण उसकी जिंदगी क्या से क्या हो गयी थी |जीवन मेंफिर कभी वह किसी पुरूष और किसी के प्रेम पर विश्वास नहीं कर पाई |

जिंदगी की चुनौतियों में उलझकर वह उसे भूलने का भरम पाल बैठी थी पर कभी-कभी वह जरूर याद आता और वह सोचती कि एक बार उससे मिलकर बताए कि उसने क्या गलत किया था ?अगर उसने उससे जबरन संबंध न बनाया होता तो जिंदगी कुछ अलग ही होती ...कैसी होती पता नहीं पर आज -सी नहीं होती ,पर वह उसे नहीं मिल पाई |हाँ दो साल पहले अचानक बस में उससे मिल गयी थी |उसकी अगली वाली सीट पर वह पत्नी के साथ बैठा था |पत्नी ने उससे हाल चाल पूछा तो उसने प्रेम के बारे में पूछ लिया |पत्नी ने बताया वे यही तो हैं बगल में बैठे हैं |प्रेम मुड़ा तो वह उसे पहचान ही नहीं पाई |बेहद बीमार और बूढ़ा लग रहा था |क्या हुआ है इन्हें ?ऐसे कैसे हो गए ?प्रेम मुस्कुराया तो चेहरे की झुर्रियां भी मुसकाईं|उसे वह गोरा ,खूबसूरत चेहरा याद आया ,जिसकी वह दीवानी थी |उसकी मुखर आँखें बुझी-बुझी थीं |आपस में औपचारिक बात-चित और फोन नंबर का आदान-प्रदान हुआ |बस से उतरते समय प्रेम ने पहले की तरह फुसफुसाते हुए उससे कहा-किसी दिन तुम्हारे घर आऊँगा ,फिर देखूंगा तुम्हारा प्यार ...| वह मुस्कुराई और और आगे बढ़ आई |सोचने लगी –किस प्यार की बात कर रहा है प्रेम ?क्या दोनों के बीच का रिश्ता प्यार कहा जा सकता है |कुछ था तो जरूर पर प्यार नहीं हो सकता |प्यार रेप नहीं करता |कोई अपने प्यार को इतना आघात कैसे दे सकता है कि एक वर्षों अवसाद में रहे और दूसरा उसका हाल भी न पूछे |प्रेम इतने पर भी उसी से उम्मीद कर रहा है |वह उससे अब कभी नहीं मिलेगी |उनके बीच का रिश्ता कब का मर चुका |और मरे हुए रिश्ते को फिर से जीवित करने में कोई बुद्धिमानी नहीं |उसने अपने मन को टटोला –क्या उसके मन में उसके लिए कोई प्रेम है ?उत्तर नहीं ही मिला |उसके लिए पहले जो नफरत और शिकायत जैसा भाव था ,वह भी उसे देखने के बाद दया में तब्दील हो गया था |

एक बार जरूर उसके मन में आया कि उसकी इस हालत के पीछे कहीं कोई अपराध-बोध तो नहीं था |कहीं वह उसे भूल न पाया हो क्योंकि उसकी पत्नी उसके अक्सर बीमार पड़ने का जो समय बता रही थी ,वह उसके शहर छोड़ने का समय था |फिर उसने इस विचार को झटक दिया |दूसरे दिन उसका फोन भी आया |वह शिकायत कर रहा था कि वह उसे छोड़कर चली गयी और फिर उसकी कोई खबर नहीं ली |वह तो अपनी सीमाओं में जकड़ा हुआ था,पर वह तो आजाद थी |मीरा को गुस्सा आ रहा था कि उसकी जिंदगी बर्बाद करने वाला उसी पर दोषारोपण कर रहा है ,पर उसने उसे कुछ कहा नहीं |प्रेम ने उससे कहा कि वह अपने घर आए तो मिलने आए फिर वह उससे मिलने आएगा पर उसने साफ कह दिया –अब यह मुश्किल है |फिर उसका फोन नहीं आया |उसने भी उसे माफ कर दिया था |

पिछले वर्ष जाड़े में वह बहुत बीमार हो गयी थी |अचानक अस्थमा का अटैक पड़ गया था जबकि उसे कभी यह बीमारी नहीं थी | साँस लेने में तकलीफ होती थी |रात-रात भर जागती और खाँसती रहती महीनों इलाज चला बड़ी मुश्किल से वह बची थी ,फिर जादू की तरह अचानक वह बीमारी चली गयी थी |

आज पता चला उन्हीं दिनों वह बेहद बीमार था और अपनी जिंदगी की बची हुई सांसें ले रहा था |फोन पर बातें करने के बाद वह जो बिस्तर पर गिरा तो फिर नहीं उठा |तो क्या अपने आखिरी समय में वह उसे याद कर रहा था ?क्या उसकी स्मृतियों में कहीं न कहीं वह थी |

क्या सच ही दोनों के बीच कुछ था !


से प्रेम

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