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सच क्या था!

आधी रात को सिसकियों की आवाज से तृषा की नींद टूट गयी थी |उसने ध्यान से सुना तो लगा कोई धीमे स्वर में रो-रोकर कुछ कह रहा है |उसने अपनी बगल में देखा सलीम वहाँ नहीं थे |इतनी रात को वे कहाँ गए ?और ये रोने की आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है |वह दबे पाँव उठी और आवाज की दिशा में बढ़ी |आवाज स्टोर-रूम से आ रही थी |भीतर से हल्की –सी रोशनी दरवाजे की झिरियों से झांक रही थी ,पर दरवाजा बंद था |तो अंदर सलीम ही हैं पर वे रो क्यों रहे हैं ?उसे दरवाजा खटखटाना उचित नहीं लगा |दूसरी तरफ रोशनदान थी |उसने स्टूल पर चढ़कर रोशनदान से कमरे के भीतर झाँका तो शाक्ड हो गयी |अनवर एक चादर पर नमाज की मुद्रा में बैठे दोनों हाथ दुआ की मुद्रा में ऊपर उठाए रो-रोकर कुछ फरियाद कर रहे थे |उसने ध्यान लगाकर सुना |वे कह रहे थे –या खुदा,मुझे माफ़ कर। मैंने बहुत बड़ा गुनाह किया है ...मैंने अपने मित्र के साथ दगा किया |अपने माँ-बाप और बड़ी बहनों के प्रति अपना फर्ज अदा न कर सका ...मुझे मुआफ़ कर दे ...मेरे गुनाह बख्श दे ...|

तृषा को लगा कि वह अभी स्टूल से नीचे गिर जाएगी |सलीम के इस रूप की तो उसने कल्पना भी न की थी |वे तो नमाज भी नहीं पढ़ते थे ।अपना कोई त्योहार भी उस तरह नहीं मनाते थे ,जैसा कोई मुसलमान मनाता है ,फिर एकाएक....|वह बेआवाज स्टूल से उतरी और अपने कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गयी |थोड़ी देर बाद सलीम के आने की आहट हुई |वे उसकी तरफ पीठ करके लेट गए और जल्दी ही उनकी नाक बजने लगी |शायद प्रार्थना ने उनके दिल-दिमाग को सुकून दिया था ।पर वह दुबारा न सो सकी |
सलीम उसकी जिंदगी में दो वर्ष पहले ही आए थे |वे प्रवेश के मित्र थे |वह प्रवेश के साथ लिव इन में रहती थी |प्रवेश की अपनी पत्नी से तलाक की प्रक्रिया चल रही थी ,इसलिए उनका विवाह नहीं हुआ था |किराए के एक घर में दोनों छुप-छुपाकर रहते थे |प्रवेश के माता-पिता उनके रिश्ते के लिए राजी नहीं थे और तृषा का कोई था नहीं ,जो एतराज करता |उन दोनों के राजदार थे ,तो सलीम |प्रवेश सलीम पर खुद से ज्यादा विश्वास करता था |उसे पता ही नहीं चला कि कब सलीम ने तृषा के मन में उसके खिलाफ विष-बीज बोना शुरू कर दिया |सलीम ने तृषा को बताया कि प्रवेश उससे कभी विवाह नहीं करेगा ,वह बस उसे इस्तेमाल कर रहा है |उसका अपनी पत्नी से समझौता हो चुका है और वह शहर के बाहर वाले अपने प्लाट पर उसके लिए घर बनवा रहा है|हालांकि यह सब वह अपने माता-पिता और रिशतेदारों के दाब में कर रहा है ।पर क्या तृषा के प्रति उसका कोई दायित्व नहीं |क्या किराए के सारी सुख सुविधा से रहित इस दड़वे से कमरे में वह अपना पूरा जीवन गुजारेगी ,वह भी उसकी रखैल बनकर ।तृषा प्रवेश की सच्चाई जानकर बौखला उठी |सलीम की बातों में सच्चाई थी |सच ही प्रवेश उस प्लाट पर बिना उसे बताए मकान बनवा रहा है ?साथ रहने से पहले उसने उसे वह प्लाट दिखाया था और वहाँ उसके सपनों का घर बनवाने का वादा किया था ...पर अब ....|माना उसके माता-पिता उसे बहू के रूप में स्वीकारने को तैयार नहीं ।वे उसकी पहली पत्नी को ही वापस लाने पर ज़ोर दे रहे हैं ,पर वह तो एक क्षण के लिए भी पहली पत्नी के साथ रहने को तैयार न था |
इतना बड़ा छल !इस तरह का धोखा !प्रवेश से उसने इस विषय में जानकारी चाही तो वह तानशाह की भूमिका में आ गया |दोनों में झगड़े होने लगे |सम्झौता कराने सलीम ही आते |प्रवेश को पता नहीं था कि यह सब जानकारी सलीम ने ही तृषा को दी है ।वह सोचता था कि तृषा ने ही जासूसी की है।उसने उसे बाहर आने-जाने से मना कर दिया |प्रवेश का नौकरी से बचा समय मकान पर बीतने लगा |उसने सलीम पर तृषा की देख-रेख का जिम्मा डाल दिया था |क्या उसे सलीम पर इतना अधिक विश्वास था कि वे संत या देवता टाइप के आदमी हैं ,जिनमें मनुष्य की कोई कमजोरियाँ नहीं |या फिर वह जान-बूझकर दोनों के बीच 'कुछ’ होने के इंतजार में था ताकि उसको चरित्रहीन साबित कर उससे छुटकारा पा सके |प्रवेश का मन साफ तो कतई नहीं था |तृषा या तो प्रवेश के मंसूबे से अंजान थी या फिर इतनी मजबूर कि उसे कोई रास्ता नहीं नजर आ रहा था |
सलीम बहुत केयरिंग थे |वे गरीब परिवार के थे |उनसे चार बड़ी बहनों का विवाह नहीं हो पाने के कारण अभी तक उनका भी विवाह नहीं हुआ था ,जबकि वे चालीस के हो चुके थे |वे सुंदर न थे |गोरे रंग के लंबे,बेहद दुबले –पतले शख्स थे,पर उनके अति साधारण चेहरे पर पढे-लिखे होने और अच्छे चरित्र का होने का नूर था |उनके मुक़ाबले प्रवेश भी कोई खास बेहतर न था |काला,छोटे कद का पर गुरूर भरा चेहरा |कम पढे-लिखे होने के कारण उसके चेहरे पर एक अजीब –सा गँवारूपन झलकता था ,जबकि वह सलीम से अच्छी सरकारी नौकरी में था |तृषा बहुत ही सुंदर ,शालीन और भद्र स्त्री थी ,पर किस्मत की मारी थी |पढ़ाई पूरी करके नौकरी की तलाश में शहर आई थी और प्रवेश के हत्थे चढ़ गयी थी |उसके पास रहने की कोई जगह नहीं थी और नौकरी के लिए इंटरव्यू आदि दे रही थी |दूर का रिश्तेदार होने के कारण प्रवेश ने उसे साथ रहने का आफ़र दिया तो उसे भला मानुष समझकर वह उसके साथ रहने लगी |साथ रहने से एक दिन दोनों के बीच की सारी सीमाएं भी टूट गईं |प्रवेश ने उसे आश्वस्त किया कि तीन साल पहले अपनी छोड़ी गयी पत्नी को तलाक देकर वह उससे विवाह कर लेगा |तृषा को उसपर विश्वास करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था |प्रवेश उसे सबसे दूर रखता था,पर एक दिन वह सलीम को साथ लेकर आया |सलीम उसे देखते रह गए थे |पर उनकी आँखों में उसके लिए प्रशंसा-भाव के साथ दया –भाव भी था ,जिसे वह तब समझ नहीं पाई थी |वे प्रवेश को उससे अच्छी तरह जानते-समझते थे |प्रवेश उससे हमेशा सलीम की प्रशंसा किया करता था ।उसे भी वे बहुत ही सुलझे,समझदार और उदार व्यक्ति लगे।इसके अलाव उसके मन में उनके प्रति कोई भाव नहीं था |पर वक्त अपना खेल खेल रहा था |
पता नहीं कब दोनों के मन में प्यार अंकुरित हो गया |सलीम इसे उम्र का दोष बताते हैं और तृषा अभाव का | तृषा के मन से प्रवेश उतर रहा था और सलीम के जीवन में कोई चढ़ा ही नहीं था |दोनों को एक-दूसरे की जरूरत थी |दोनों के बीच प्यार है,इसका पता तब चला ,जब एक दिन सलीम रूठकर कहने लगे -अब इस घर में कभी नहीं आऊँगा |तृषा को एहसास हुआ कि वे किस तरह उसकी जरूरत बन गए हैं |उनके बिना वह एक भी निर्णय नहीं ले पाती है |हालांकि उन दोनों के बीच देह-संबंध विकसित नहीं हुआ था ,पर भावनात्मक रूप से वे पूरी तरह जुड़ गए थे |प्रवेश को सिर्फ उसके जिस्म से सरोकार था ,जबकि सलीम उसकी जरूरतों ,भावनाओं और मन को समझते थे |उस दिन सलीम थोड़ी देर बाद ही लौट आए और उसे बाहों में बांधकर रोने लगे –जादूगरनी तुमने सदा के लिए मुझे बांध लिया है|मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता |अब या तो तुम्हें पाना है या मर जाना है |तृषा उनकी बात की गंभीरता को समझकर खुद भी गंभीर हो गयी |उसने सलीम को अपने घर ही रहने की सलाह दी |जब तक उनके बीच यह सब नहीं था,उसे कोई डर नहीं था ,पर अब उसे डर लगने लगा था |
इधर प्रवेश को तृषा पर थोड़ा संदेह होने लगा था क्योंकि अब वह रात को उससे दूरी बनाने की कोशिश करती |एक दिन प्रवेश ने कह भी दिया –पहले तो तुम मेरे छूते ही जलभरी मछली बन जाती थी पर अब सिर्फ रेतीली मछली हो ...कहीं किसी से 'कुछ'....|प्रवेश या तो अभी तक यह कल्पना न कर पाया था कि वह 'कोई' सलीम हो सकते हैं या फिर वह उसकी थाह ले रहा था,पता नहीं |
तृषा के मन में ज्यों –ज्यों सलीम चढ़ते गए ,प्र्स्वेश उतरता गया |उसका स्पर्श तृषा को सर्प-दंश –सा लगता |प्रवेश सोच नहीं पा रहा था कि तृषा में यह परिवर्तन कहाँ से आया ?उसका मेल ईगो खुद को इसका जिम्मेदार मनाने को तैयार नहीं था |वह जितना अहंकारी था उतना ही सेक्स का भूखा भी |अब जब तृषा ने अपने शरीर को छूने की पाबंदी लगा दी तो वह पागल हो उठा |एक दिन उसने तृषा को इसी बात के लिए पीट दिया |तृषा ने भी अपनी सुरक्षा में हाथ-पैर चलाए तो वह और बिफर उठा |दाँत पीसते हुए बोला- स्त्री विमर्श पढ़ती हो न ...अभी निकालता हूँ तुम्हारा स्त्री –विमर्श |उसने तृषा को खूब मारा ,फिर डर भी गया कि कहीं तृषा पुलिस में न चली जाए |वह सरकारी नौकरी करता था और बिना तलाक के एक स्त्री के साथ रह रहा था |उस समय यह कानून भी नहीं बना था कि वयस्क अपनी मर्जी से एक-दूसरे के साथ रह सकते हैं |उनका साथ कानूनी ,सामाजिक और नैतिक हर दृष्टि से अनुचित था |
वह सलीम के घर गया और उन्हें लेकर आया कि वे तृषा को समझा दें |उसकी बात न मानकर वह अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रही है |उसके सिवा कोई उसका साथ नहीं देगा |अपने रिश्तेदारों के घर वह वापस जा नहीं सकती और नौकरी मिलनी इतनी आसान नहीं |कोई दूसरा पुरूष पूछेगा नहीं |
सलीम ने तृषा को इस हालत में देखा तो उसे बहुत दुख हुआ |तृषा की आँखों ने जैसे उसकी सारी व्यथा कह दी
।सलीम के सामने ही प्रवेश शुरू हो गया |उसने उसकी खूब शिकायत की |यहाँ तक की निर्लज्जता से सेक्स में रूचि न लेने की बात भी कह दी –'पहले तो मेरे छूते ही पानी-पानी हो जाती थी पर सूखी-साखी पड़ी रहती है |कोई तो बात है ...पर बताती नहीं ....मैं इसे छोड़ देना चाहता हूँ फिर देखूँ कौन इसे अपनाता है ?सारी हेकड़ी निकाल जाएगी |बरती और छोड़ी हुई औरत को कौन अपनाता है ?'
तृषा चुप थी पर सलीम से आखिर न रहा गया |वे यह तो जानते ही थे कि उनके प्रेम में होने के कारण ही तृषा प्रवेश को स्वीकार नहीं कर पा रही |वह उससे मन से इतनी दूर हो गयी है कि तन छूने की इजाजत नहीं दे सकती |जब वह उनके लिए इतना कुछ सह रही है तो उन्हें भी उसका साथ देना चाहिए |वे प्रवेश से बोले –ऐसा क्यों कह रहे हो?इनमें मुझे कोई कमी नहीं दिख रही |जरूर कोई भला आदमी इन्हें अपना लेगा |
प्रवेश बौखला उठा-यह जानने के बाद भी कि यह इतने दिन मेरे साथ पत्नीवत रही |
सलीम--गलती किसी से भी हो सकती है |समय बदल चुका है |स्त्री की यौन-शुचिता अब उतनी मायने नहीं रखती |
प्रवेश--पर मर्दों के दिमाग आज भी वही है |कोई भी इस्तेमाल की हुई स्त्री को स्वीकार नहीं करता |हाँ,कुछ देर मन जरूर बहला सकता है |
सलीम-ऐसी बात नहीं ,स्त्री भी एक मानुषी है ,उसको पूर्णत में देखना ही उचित है |एक अंग मात्र से उसका मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए |
प्रवेश--सब सिर्फ बातें हैं |क्या आप कर सकते हैं इससे शादी ?
सलीम-क्यों नहीं ?यह तो मेरा सौभाग्य होगा |पर आपको इन्हें पूरी तरह मुक्त करना होगा ....तब ही |
प्रवेश सलीम का मुंह ताकता रह गया |वह तो तृषा का स्वाभिमान कुचलना चाहता था |उसको मजबूर करके आजीवन भोगना चाहता था |पर सलीम ने तो तृषा को वेशकीमती कहकर उसे ही लज्जित कर दिया |
उनके बीच की वार्तालाप को तृषा चुपचाप सुन रही थी। सलीम ने उसके स्वाभिमान की रक्षा की थी |उसे एक तरह से पुनर्जीवन दिया था |उसकी औकात दिखाने वाले को उसकी ही औकात दिखा दी थी |उसने गलत व्यक्ति को नहीं चुना है |
सलीम ने तृषा का पक्ष लेकर अपनी दोस्ती को खतरे में डाल दिया था पर उसकी तरफदारी ने तृषा को उसका गुलाम बना दिया |प्रवेश का काला रंग और काला पड़ गया पर तृषा के चेहरे पर एक गर्व खिल उठा |
सलीम की यह स्पष्टवादिता उनके लिए खतरनाक साबित हुई |प्रवेश उनका शत्रु बन गया |
उसके दिल को सलीम के व्यवहार से बहुत धक्का लगा था |वह समझ गया था कि तृषा का ‘कोई’ सलीम ही है |सलीम के जाने बाद उसने तृषा को बहुत गालियां दीं –रंडी सीधे-सादे आदमी को फंसा लिया |सब-कुछ खोलकर दिखा दिया होगा |आज तक उस आदमी पर कोई रेफ नहीं था ,पर बदचलन औरत क्या नहीं कर सकती!
तृषा कुछ नहीं बोली |वह क्या बताए कि रिश्ते एक दिन में नहीं बनते और शरीर से तो कदापि नहीं ।वे तो भावना से बनते हैं |सलीम को कभी-कभार वह चूम लेती थी ,वह भी तब, जब वे कोई खुशी देने वाली बात करते |एकाध बार वे गले भी मिले थे बस |पर सलीम इस बात को नहीं समझ सकता था |अब उसने उस पर निगरानी बढ़ा दी थी |हमेशा चौकन्ना और सतर्क रहता |कुछ दिनों बाद उसका व्यवहार भी बदल गया |वह तृषा से आर्य-समाज में जाकर विवाह कर लेने की बात भी करने लगा ,पर तृषा का मन उससे पूरी तरह विरक्त हो चुका था | वह अब सलीम के साथ जीना चाहती थी |वह सलीम से मिलने का कोई न कोई तरीका निकाल लेती |जब प्रवेश आफिस में होता ,वह घर से निकल लेती |सलीम उसके साथ घूमता पर बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती |अक्सर वे पूरे दिन के लिए टैक्सी बुक करके पूरे दिन उसमें घूमते रहते |एक-दूसरे का हाथ पकड़े एक –दूसरे की आँखों में झाँकते रहते |पता ही नहीं चलता था कि चार कब बज गए |किसी विशेष स्थल पर पकड़े जाने का खतरा था |कभी –कभी तो इसका भी अवसर नहीं मिलता ,तब दोनों एक-दूसरे की झलक देखने के लिए तड़पने लगते |उन्होंने कभी कोई सीमा-रेखा तब भी नहीं लांघी थी |सलीम उससे रूहानी प्रेम का दावा करते थे |हाँ ,कभी-कभार उसके शारीरिक सौंदर्य की प्रशंसा करते हुए यह जरूर कहते –उस कमीने को तो आपने सारे सुख दिए पर मुझे.....|उस समय तृषा को लगता कि कहीं सलीम का प्रेम सिर्फ दैहिक आकर्षण तो नहीं |कहीं उसकी देह पाने के लिए ही तो उन्होंने कोई खेल नहीं रचाया है |प्रवेश के प्रति खटास का बीजारोपण उन्होंने ही तो किया था |प्रवेश कह भी रहा था कि सलीम की शादी नहीं हो पा रही थी ,इसलिए उसने हम दोनों के बीच फूट डाली है ताकि दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर लाभ उठा सके |पर तृषा सोचती -सलीम प्रवेश तो अच्छे ही है |प्रवेश ने ही उसके साथ कौन –सा अच्छा व्यवहार किया है ?उसे रखैल तो बनाकर रख छोड़ा है |उसी के कारण वह अपने रिश्ते-नाते में नहीं जा पाती|प्रवेश ने पत्र लिखकर उन्हें सब कुछ बता दिया था और सभी इस बात के लिए उस पर नाराज थे |वह इतनी बदनाम हो चुकी है कि कहीं भी नहीं जा सकती है |ऐसे में सलीम उसे अपनाने को तैयार है,यही उसके लिए बहुत है |
सलीम को प्रवेश ने घर-बाहर,आफिस ,दोस्त-मित्रों सबमें बदनाम करना शुरू कर दिया |मुसलमान गद्दार होते ही हैं –यह कहकर उसने किसी भी जगह उनका टिकना मुहाल कर दिया |सलीम इस बदनामी को नहीं झेल पाए |उन्होंने अपनी नौकरी और किराए का घर छोड़ दिया और दिल्ली चले गए ताकि वहाँ की भीड़ में प्रवेश उन्हें ढूंढ न सके |वहां नौकरी मिलते ही किसी तरह उन्होंने तृषा से संपर्क किया और उसे दिल्ली चलने के लिए स्टेशन पहुंचने को कहा |
कई महीने बीत जाने से उनका मामला थोड़ा ठंडा पड़ रहा था |तृषा ने प्रवेश से अपने मुँहबोले भाई के घर जाने की इजाजत मांगी |प्रवेश उसके साथ चलने को तैयार हुआ ,पर उसने मना करते हुए कहा कि –भाई को आपका आना अच्छा नहीं लगेगा |
प्रवेश सलीम के शहर छोडकर चले जाने से लगभग निश्चिंत था |जब वह भाई के घर पहुंची तो उसने फोन करके कन्फ़र्म किया फिर और निश्चिंत हो गया |उसे यह उम्मीद नहीं थी कि तृषा भाई के घर से बहाना कर सलीम के पास चली जाएगी |
तृषा जब स्टेशन पर पहुंची थी ,वहाँ सलीम मौजूद थे |

तृषा बहुत खुश थी ।स्टेशन पर सलीम उसका इंतजार कर रहा था |दोनों अपने आरक्षित सीट पर आ बैठे |मन में डर भी था कि कोई जान-पहचान वाला न मिल जाए |पर आगे एक साथ जीवन जीने की खुशी भी थी |रात-भर ट्रेन चलती रही |दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़े आँखों ही आँखों में पूरी रात निकाल दी |सुबह होते ही वे दिल्ली पहुँच गए |तृषा पहली बार दिल्ली आई थी ,इसलिए आँखें फाड़े चारों तरफ की रौनक देख रही थी |वह पंख फैलाकर उड़ जाना चाहती थी ।इतने दिन पिंजरे में कैद रहने के कारण वह भूल गयी थी कि उसके पास भी पंख हैं ।
पर उसे नहीं पता था कि एक बड़े पिंजरे में बंद होने जा रही है |सलीम दिल्ली आते ही जैसे बदल गया था |तृषा को पहला झटका तभी लगा ,जब उसने देखा कि सलीम ने एक पिछड़े हुए गंदे से इलाके में किराए का घर लिया है ,वह भी तीन ताले वाले घर में बीच का फ्लोर ,जिसके दूसरी तरफ दूसरी फैमिली रहती थी |यह जगह दिल्ली कम कोई पिछड़ा कस्बा ज्यादा लगता था |मकान में रहने वाले लोग भी साधारण हैसियत के थे |उसने सोचा शायद बजट की वजह से सलीम ने यह सस्ता –सा घर लिया हो |कोई बात नहीं |दो कमरे ,एक किचन वाला यह आवास भी खराब नहीं |वैसे भी सलीम के साथ हर जगह जन्नत ही होगी |सलीम ने कहा-चलो बाजार चलकर गृहस्थी के लिए जरूरी सामान ले आते हैं और बाहर लंच भी कर लेंगे |इसके पहले नहा लेते हैं |नहा-धोकर हम बाजार गए |पहले लंच किया ,फिर कुछ ख़रीदारी |रसोई के लिए कुछ जरूरी बर्तन और राशन आदि चीजें |सामान घर में रखकर हम फिर घूमने चले |लोटस टैम्पल दिखाते हुए सलीम ने थोड़ा होंठ टेढ़ा करके कहा-कभी सोचा था ,दिल्ली आने और दिल्ली देखने के बारे में |तृषा को लगा वह कह रहा है कि तुम्हारी औकात थी |उसने सलीम को गौर से देखा वहाँ दर्प का भाव था |तृषा को अटपटा तो लगा पर उसे अपना भ्रम समझकर हंसने-खिलखिलाने लगी तो सलीम ने फिर टोक दिया –इस तरह मत हंसो ।लोग जान जाएंगे कि किसी पिछड़े इलाके से आई हो |तृषा चुप हो गयी |उसे खामोश देखका सलीम बोला-अरे यार समझा रहा था |हमें नार्मल व्यवहार रखना है नहीं तो किसी को शक हो जाएगा |तृषा सोचने लगी –इतने बड़े शहर में कौन इस बात पर गौर करता है |वे खाना खाकर लौटे थे |सलीम ने कहा –बिस्तर एक साथ रहेगा कि अलग |उसने कहा –अभी तो अलग ही ,जब तक हमारी शादी नहीं हो जाती |
शादी कैसे होगी ?कोर्ट मैरिज करेंगे तो पहले इंक्वायरी होती है ,घर वालों को पता चल जाएगा कि हम कहाँ है और आपके कथित पतिदेव को भी ।फिर यहाँ से भी भागना पड़ेगा |
--निकाह करोगी?-अचानक सलीम ने पूछा |
निकाह?
क्यों मुसलमान के साथ रहोगी तो क्या निकाह से कोई परहेज है ?
कैसी बात कर रहे हो ,मुझे कोई एतराज नहीं |वह कहना चाहती थी कि शादी मंदिर में भी तो कर सकते हैं पर वह चुप रही |यह सलीम को हो क्या गया ?पहले तो वह धर्म की बात भी नहीं करता था |जबसे दिल्ली आए हैं हर बात में धर्म -धर्म करने लगा है |उसने जब टोटी वाला लोटा खरीदा तभी उसे अटपटा लगा |उसके कपड़े भी उसने मुस्लिम स्टाइल वाले ही खरीदे |कान में बड़े बूंदें और सिर पर ओढने के लिए कढ़ाईदार काली चादर |वह जानता था कि बुर्का मैं पहनूगी नहीं |उसने बाद में सफाई दी-देखो मैं शक्ल से ही मुसलमान लगता हूँ और तुम हिन्दू ,इसलिए किसी के घर आना-जाना नहीं |अगर मेरे साथ भी चलना होगा सिर पर काली चादर डाली रहना और बोलना तो बहुत ही कम क्योंकि तुम्हारी भाषा से भी भेद खुल सकता है |तृषा को लगा वह किसी मकडजाल में जकड़ती जा रही है कहाँ तो वह आजादी से उड़ने के सपने देख रही थी ,कहाँ यह क़ैदख़ाना |एक हफ्ते में ही वह घबरा उठी ।सलीम काम पर चला जाता और वह कमरा बंद कर पड़ी रहती |सामने वाले परिवार की स्त्रियाँ उसे बुलातीं पर वह सलीम के डर के मारे काम का बहाना बना देती |ये कैसी जिंदगी है |सलीम शाम को उसे घुमाने ले भी जाता तो हर बात में अहसान जताता |अब दोनों में न पहले की तरह प्यार की बातें होतीं ...न वह पहले जैसा रोमांच महसूस करती |उसने सोचा कि सलीम के साथ निकाह ही कर लती हूँ ताकि जिंदगी में कुछ तो तरंग आए |पर सलीम अब निकाह से भी डरने लगा कि कहीं कोई मौलवी पहचान का न मिल जाए |सलीम खुद भी डरा रहता और उसे भी डराए रहता |एक दिन वह आफिस से आते ही उससे संबंध बनाने को कहने लगा उसके मना करने पर जबर्दस्ती पर उतर आया कि उसके साथ तो इतने दिन सब कुछ करती रही फिर मेरे साथ क्यों परहेज ?तृषा की आँखों से आँसू बहने लगे ,फिर भी उसने उसकी परवाह नहीं की |फिर तो जैसे सिलसिला ही चल निकला |उसकी जब-जब मर्जी होती ,उसे हासिल कर लेता |साथ में यह भी कहता जाता –जब इतना खतरा उठाया है,इतनी बदनामी झेली है तो मुझे इतना तो हक है ही |
तृषा चुप थी |पर भीतर ही भीतर वह घुट रही थी |उसके पास लौटने का कोई रास्ता नहीं था ।सारे रास्ते वह बंद करके आई थी |सलीम इधर उसके रूप-रंग पर भी टिप्पड़ी करने लगा था।कहता –जब पहली बार देखा था कितनी स्लिम थी ।अब तो तुम्हारा वजन बढ़ता ही जा रहा है |
सलीम के बदलने के पीछे कोई डर था या फिर किसी मुस्लिम लड़की का आफिस में मिल जाना था,पता नहीं|शायद वह उस लड़की से निकाह कर अपने मजहब में लौट जाना चाहता हो |तृषा बीमार पड़ गयी |सलीम के बदले रूप ने उसे इतना आहत किया था कि उसे निमोनिया हो गया |उसे बीमार देखकर सलीम के होश ठिकाने आ गए |वह उसे डाक्टर के पास ले गया और कहा-ये बेवजह-बहुत चिंता करती हैं,इसलिए बीमार हो गयी हैं |इन्हें समझाइए।
अब वह उससे फिर पहले की तरह प्यार करने लगा |उसे बच्ची कहता ,उसे अपने हाथ से खाना खिलाता |उसके हाथों को छोटा गुटुक कहता पैरों को बड़ा गुटुक |पेट को बड़ा गुलगुल कहता गालों को छोटा गुलगुल |उसकी आँखें अब कुलकुल थीं और होंठ मिष्ठुन |पता नहीं यह परिवर्तन क्यों आया था ?क्या उसे यह डर था कि अगर इसे कुछ हो गया तो वह फंस जाएगा या फिर उसका पहले वाला रूप हीओढा हुआ था ।कुछ तो था पर वह कुछ सोच भी नहीं सकती थी ,इतनी बीमार थी |
सलीम ने उसे समझाया कि वह अब भी हमारी खोज में है,इसलिए हो सकता है यहाँ की नौकरी भी छोड़नी पड़े ।वह कहाँ –कहाँ उसे लिए फिरेगा ,इसलिए चाहता है कि उसे उसके ही शहर में किसी वर्किंग हॉस्टल में शिफ्ट कर दे |वह खर्चा भेजता रहेगा |वैसे भी कौन जानता है कि वह इतने दिन उसके ही साथ थी |कोई भी बहाना बना सकती है |
पर वह उसे छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी |धीरे-धीरे वह स्वस्थ हो रही थी और स्वस्थ होते ही उससे निकाह करके निश्चिंत हो जाना चाहती थी ,पर सलीम डर दिखा रहा था |संयोग से उन्हीं दिनों बाबरी मस्जिद गिरा दी गयी थी और दिल्ली भी सुरक्षित जगह नहीं रही थी |सलीम के अनुसार दोनों के अलग धर्म का पता होते ही जाने क्या हो जाए ,इसलिए दोनों का कुछ समय के लिए अलग होना ही बेहतर होगा |अगर वह नहीं मानेगी तो वह आत्मघात कर लेगा फिर क्या होगा उसका !
आखिर तृषा मान गयी |जब वह उसे स्टेशन पर छोड़ने आया तो जार-जार रो रहा था |उसके लिए बहुत सारे सामान खरीद रहा था |ट्रेन छूटने तक वह उसके साथ रहा ।उसके हाथ को पकड़े रहा |उसने कहा –वह जल्द मिलेगा |तृषा ने आँखें मूँद
लीं |वह नए संघर्ष के लिए खुद को तैयार कर रही थी।
वह वर्किंग हॉस्टल में आ गयी ।सारी व्यवस्था सलीम ने पहले ही कर दी थी ।साल भर का हॉस्टल किराया भी दे दिया था |कई महीने तक वह उसे लगातार पैसे भेजता रहा |फोन करके उसकी कुशलता पूछता रहा फिर एकाएक वह गायब हो गया |उसने बताया था कि कहीं अन्यत्र नौकरी के लिए जा रहा हूँ |एक दिन तृषा के नाम से बड़ा सा पार्सल आया |तृषा ने देखा उसमें वे सारे वर्तन और जरूरी चीजें थीं,जो उन्होंने दिल्ली की गृहस्थी के लिए खरीदी थी |पता नहीं सलीम कहाँ गया? वह जिंदा है भी या नहीं |कहीं उसने आत्महत्या तो नहीं कर ली |वह था भी तो कमजोर मनोबल वाला |पता नहीं सच क्या था ?


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