Money कथा अनंता- कुशल सिंह राजीव तनेजा द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

Money कथा अनंता- कुशल सिंह

पिछले कुछ सालों में हमारे देश में नोटबंदी.. जी.एस.टी..किसान आंदोलन से ले कर कोरोना महामारी तक की वजह से ऐसे-ऐसे बदलाव हुए कि मज़दूर या मध्यमवर्गीय तबके के आम आदमी से ले कर बड़े बड़े धन्ना सेठों तक..हर एक का जीना मुहाल हो गया। इनमें से भी खास कर के नोटबंदी ने तो छोटे से ले कर बड़े तक के हर तबके को इस हद तक अपने लपेटे में ले लिया कि हर कोई बैंकों की लाइनों में लगा अपने पुराने नोट बदलवाने की जुगत में परेशान होता दिखा। इन्हीं दुश्वारियों में जब हास्य..सस्पैंस और थ्रिल का तड़का लग जाए तो यकीनन कुछ मनोरंजक सामने आएगा।

अगर किसी उपन्यास में तेज़ रफ़्तार से चलती दिलचस्प कहानी के साथ साथ मनोरंजन का ओवरडोज़ हो और उसमें कैची संवाद भी पढ़ने को मिल जाएँ तो समझिए कि..आपका दिन बन गया। दोस्तों..आज मैं इन्हीं खूबियों से लैस एक ऐसे मनोरंजक उपन्यास की बात करने जा रहा हूँ जिसे 'Money कथा अनंता' के नाम से लिखा है कुशल सिंह ने । ये उनका दूसरा उपन्यास है।

पल पल मुस्कुराने और हँसी के ठहाके लगाने पर मजबूर कर देने वाले इस उपन्यास को ख़ास तौर पर आजकल के युवाओं को ध्यान में रख कर लिखा गया है। मूलतः ताज की नगरी, आगरा की पृष्ठभूमि में लिखे गए इस उपन्यास में कहानी है फटीचर टाइप के तीन सड़कछाप दोस्तों, नेहने, शशि और बिंटू की। बढ़िया..खुशहाल..ऐशोआराम भरी ज़िंदगी को ले कर तीनों ने अपने मन में बड़े बड़े सपने पाल रखे हैं मगर ईज़ी मनी की चाह रखने वाले इन दोस्तों के पास अपने मंसूबों को पा सकने का कोई जुगाड़ नहीं।

नोटबंदी की घोषणा वाले दिन उस घोषणा से अनजान इन तीनों की मुलाक़ात, नशे की हालत में मोटरसाइकिल पर जाते वक्त, अचानक सीने में उठे दर्द की वजह से एक्सीडेंट कर चुके दाऊ दयाल मौर्या से होती है जो कि एग्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर के पद से रिटायर हो चुका है और फिलहाल बेहद नशे की हालत में अपने रिश्वत के बेशुमार पैसे को एक बैग में भर कर ठिकाने लगाने जा रहा था। ना चाहते हुए भी मदद के नाम पर वे उसे उसके घर पर छोड़ते हैं जहाँ इनके सामने ही, परिवार के बाहर होने की वजह से फ़िलहाल अकेले रह रहे, दाऊ दयाल मौर्या की मौत हो जाती है और इनके हाथ नोटबंदी की घोषणा के हो चुकने के बाद पुराने नोटों से भरा बैग लग जाता है। इसके बाद की तमाम आपाधापी..हड़कंप और भागमभाग ही इस कहानी को बेहद रोचक और मजेदार बनाता है।

शह और मात के बीच चलती इस आँख मिचौली भरे खेल में कभी सौ सुनारी चोटों पर एक लोहारी चोट पड़ती दिखाई देती है तो कभी सेर से सवा सेर टकराते दिखाई देता है। धोखे..छल और कपट की इस उठापटक के बीच कभी कोई किसी के विश्वास को छलता दिखाई देता है तो कभी कोई अमानत में ख़यानत करता नज़र आता है।

इसी उपन्यास में कहीं लोग अफवाहों के चलते कभी नमक तो कभी चीनी की बोरियों की जमाखोरी करते दिखाई दिए। तो कहीं पुराने नोट बदलवाने के चक्कर में लंबी लंबी लाइनों में घंटों लोग परेशान होते..त्राहिमाम करते दिखे। कहीं लोग नोट बंदी के सरकारी फ़ैसले पर सरकार को गरियाते तो कहीं सरकार का समर्थन करते दिखाई दिए। तो कहीं फेक आई डी के ज़रिए OLX जैसी साइट्स पर ठगी करते नज़र आए।
इसी किताब में कहीं पाँच सौ रुपए की कमीशन के लालच में अनेकों बेरोजगार बैंकों की लाइन में लग औरों के नोट बदलवाते दिखाई दिए तो कहीं हवाई या फिर रेल यात्रा की फर्ज़ी टिकटें बुक करवा लोग अपने पुराने नोट खपाते नज़र आए।
इसी उपन्यास में कहीं नार्थ ईस्ट के दीमा पुर जैसे दूरदराज के शहरों में पुरानी करेंसी को नयी में बदलवाने का जुगाड़ भिड़ाया जाता दिखाई दिया तो कहीं चोरों के पीछे मोर पड़ते दिखाई दिए।

कहीं मुनाफ़े के चक्कर में मंदिरों और आश्रमों जैसे स्थल भी पुराने नोटों के बदले नए नोट देते दिखाई दिए। तो कहीं विदेशों से यहाँ घूमने आए सैलानी भी नोटबंदी की वजह से परेशान हालत में यहीं अटके दिखे कि उनके पास अब अपने घर..अपने देश वापिस जाने का कोई ज़रिया नहीं बचा था।

इसी उपन्यास में कहीं लुप्त हो रही लोक गीतों की परंपरा का जिक्र होता नजर आता है। तो कहीं सोने के प्रति भारतीयों के मोह से जुड़ी बातें पढ़ने को मिलती हैं कि किस तरह लोग पाई पाई जोड़ कर सोना खरीदते हैं कि यह उनके आड़े वक्त में काम आएगा और उतावलेपन में ये तक पता नहीं करते कि खरीदा जा रहा सोना उतना शुद्ध है कि नहीं जितना शुद्ध वे उसे सोच कर खरीद रहे हैं।

मज़ेदार पंच लाइनों से सुसज्जित इस उपन्यास में कुछ एक ग़लतियाँ भी नज़र आयीं जैसे कि.. बहुत पसन्द आयीं जैसे कि..

पेज नंबर 94 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'ट्रेन ने अपने चलने की चेतावनी देते हुए हॉर्न बजाया'

यहाँ ये बात ध्यान देने लायक है कि हॉर्न, कार.. ट्रक.. बाइक अथवा स्कूटर जैसी छोटी गाड़ियों के लिए होता है ना कि ट्रेन के लिए। ट्रेन में हॉर्न नहीं बल्कि सायरन बजाय जाता है।

इसी तरह पेज नंबर 181 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'अब इतने सारे पत्रकारिता में दीक्षित लोग कहाँ थे?'

यहाँ 'पत्रकारिता में दीक्षित लोग कहाँ थे' की जगह 'पत्रकारिता में दक्ष लोग कहाँ थे' आएगा।

आमतौर पर आजकल के कुछ लेखक स्त्रीलिंग और पुल्लिंग के भेद को सही से समझ नहीं पाते। इस तरह की कुछ ग़लतियाँ इस उपन्यास में भी दिखाई दीं जिनका दूर किया जाना ज़रूरी है।

यूँ तो हर पल रोचकता जगाता यह दमदार उपन्यास मुझे लेखक की तरफ़ से उपहारस्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि 208 पृष्ठीय इस उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है हिन्दयुग्म और Eka ने मिल कर और इसका दाम रखा गया है 250/- रुपए। अमेज़न पर फिलहाल यह उपन्यास डिस्काउंट के बाद 190/- रुपए में मिल रहा है जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए ज़्यादा नहीं है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशकों को बहुत बहुत शुभकामनाएं।