समीक्षा - देह धरे को दण्ड- संपादक-सपना सिंह राजीव तनेजा द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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समीक्षा - देह धरे को दण्ड- संपादक-सपना सिंह

अनछुए या फिर तथाकथित सामाजिक ताने बाने में वर्जित माने जाने वाले संबंधों से संबंधित विषयों पर जब भी कुछ लिखा गया होगा तो लेखक ने खुद को पहले अपनी आलोचना सहने के लिए मानसिक तौर पर तैयार कर लिया होगा। उसके बाद ही बेधड़क हो कर उसने उन पर अपनी कलम या फिर कीबोर्ड पर अपनी उंगलियाँ चलाई होंगी।

इस तरह के विषय पर कहानी को लिखते समय लेखक या लेखिका किस तरह के मनोभावों से गुज़र रही होगी? या किस कदर मानसिक पीड़ा से व्यथित एवं लबरेज़ हो कर इस तरह के अनछुए विषयों को अपनी सोच के अनुसार छुआ होगा? यही सब सोचते हुए जब मैंने सपना सिंह द्वारा संपादित विभिन्न लेखकों/ लेखिकाओं द्वारा लिखित इस कहानी संग्रह "देह धरे को दण्ड" को पढ़ना शुरू किया तो खुद को एक अलग ही दुनिया में विचरता पाया।

इस कहानी संग्रह को एक अलग स्तर का संग्रह बनाने लिए जहाँ एक तरफ सपना सिंह जी को देश विदेश के श्रेष्ठ एवं सक्रिय रचनाकारों का सहयोग मिला है, वहीं दूसरी तरफ इसी संग्रह की पहली कहानी के रचियता स्व.सआदत हसन मंटो हैं। इस संग्रह द्वारा साबित होता है कि बिना अश्लील हुए भी दैहिक संबंधों को लेकर उच्चकोटि का साहित्य रचा जा सकता है।

इस संकलन के रचनाकारों का लेखन मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ और कुछ का मैंने इस संकलन के माध्यम से पहली बार पढ़ा। एक पाठक की हैसियत से इस संग्रह को पढ़ते वक्त जहाँ एक तरफ कुछ रचनाओं ने इस कदर दिल को छुआ कि उनका असर बहुत देर तक बना रहा वहीं दूसरी तरफ एक दो रचनाएँ सतही तौर पर कि बस इस विषय पर लिखना है तो लिख दी..वाली भी लगी। मेरे ख्याल से उन कहानियों पर अभी और मेहनत की जा सकती है या की जानी चाहिए। एक कहानी में तो ऐसा लगा कि जैसे उसे अधूरा ही छोड़ दिया गया या वो किसी उपन्यास का एक हिस्सा मात्र हो। एक दो कहानियों में इस संकलन के मुख्य विषय(वर्जित संबंधों की कहानियाँ) को बस नाम मात्र के लिए बस छुआ गया है और उन्हें एक या दो वाक्यों में बस निबटा भर दिया गया है जो कि थोड़ा निराश करता है।
एक आध कहानी में स्थानीय भाषा के शब्दों की भरमार दिखी। ऐसे शब्दों का प्रयोग जहाँ एक तरफ कहानी को प्रभावी बनाता है, वहीं दूसरी तरफ उसे समझना थोड़ा कठिन भी बनाता है। इस तरह के शब्दों के अर्थ अगर हिंदी में भी दिए जाएँ तो ज़्यादा बढ़िया रहेगा। कुछ कहानियों ने मुझे बेहद प्रभावित किया उनके नाम इस प्रकार हैं:

क्रांतिकारी(रूपसिंह चंदेल), डेड लाइन (प्रेम प्रकाश- अनुवाद-सुभाष नीरव), गंदगी का बक्सा( तेजेंद्र शर्मा), मन मोहने का मूल्य- सुषमा मुनींद्र), ईनारदाना(प्रत्यक्षा),उस पार की रोशनी( कविता),
कि हरदौल आते हैं(मनीष वैद्य),ऑफ व्हाइट(प्रज्ञा पांडे), फांस( मनीषा कुलश्रेष्ठ), वर्जित फल(अंजू शर्मा), लम्हों की ख़ता/,सदियों की सज़ा(नीलिमा शर्मा) इत्यादि।
उम्दा क्वालिटी के इस 232 पृष्ठीय कहानी संग्रह को प्रकाशित किया है भावना प्रकाशन ने और इसके पेपरबैक संस्करण का मूल्य ₹295/- है। सपना सिंह जी को तथा प्रकाशक को एक बढ़िया संकलन निकालने के लिए बहुत बहुत बधाई।