मेंरी प्रेम कहानी-मेड फॉर ईच अदर राजीव तनेजा द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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मेंरी प्रेम कहानी-मेड फॉर ईच अदर

"मेरी प्रेम कहानी-मेड फॉर ईच अदर"

"हैलो"...

"मे आई स्पीक टू मिस्टर राजीव तनेजा?"

"यैस!...स्पीकिंग"

"सर!..मैं'रिया' बोल रही हूँ 'फ्लाना एण्ड ढीमका' बैंक से"

"हाँ जी!...बोलिए"

"सर!...वी आर प्रोवाईडिंग होम लोन ऐट वैरी रीज़नेबल रेटस"

"सॉरी मैडम!..आई एम नॉट इंटरैस्टिड"

"सर!...बहुत अच्छी स्कीम दे रही हूँ आपको"...

"हाँ जी!...बताएँ"...

"सर!..हम आपको बहुत ही कम ब्याज पे लोन प्रोवाईड कराएँगे"...

"अभी कहा ना आपको...कि नहीं चाहिए"...

"सर!...पहले मेरी पूरी बात सुन लें..प्लीज़"...

"अच्छा फटाफट बताएँ...मैंड्राइव कर रहा हूँ"...

“जी..

“एक मिनट रुको..मैं पहले ब्लूटुथ ऑन कर लूँ..सामने ठुल्ले खड़े हैं”..

“जी!..

“अब बोलिए..अब कोई दिक्कत नहीं है”...

"सर!...आप अगर हमारे से लोन लेते हैं तो उसका सबसे बड़ा फायदा तो ये है कि समय पे किश्त ना चुका पाने की कंडीशन में हम आपके घर अपने गुण्डे और लठैत नहीं भेजते हैं"...

"ओह!...अच्छा..फिर तो ठीक है...एक्चुअली!...मुझे गुण्डों से और उनकी मार-कुटाई से बड़ा डर लगता है"..
"यू नो!... एक बारी मेरे दोस्त कम...पड़ोसी कम...रिश्तेदार के घर पे काफी तोड़फोड़ और हंगामा कर गए थे"...

"सर!...वो उस कमीना एण्ड कुत्ता कम्पनी के रिकवरी एजेंट होंगे"...

"ये तो पता नहीं"...

"दरअसल!..वो हैं ही बड़े कुत्ते लोग..बिलावजह कस्टमरज़ को तंग करते हैं...ये भी नहीं जानते कि ग्राहक तो भगवान का रूप होता है और कोई अपनी मर्ज़ी से थोड़े ही फँसता है हम जैसों के जाल में"...

"जी!..

“और फिर ऊपर से बाज़ार में मन्दा-ठण्डा तो चलता ही रहता है"...

"जी!....थोड़ा सब्र तो उन्हें रखना ही चाहिए कि कोई उनके पैसे खा थोड़े ही खा के भाग जाएगा?"....

"ऐक्चुअली!...सच कहूँ तो कुछ लोगों को बेवजह फ़ालतू के काम करने की आदत होती है"....

“जी!..

"इतनी सब मेहनत करने की ज़रूरत ही क्या है?..हमारे बैंक से लोन लेने के बाद तो बंदा वैसे भी किश्तें चुकाते-चुकाते..खुद अपने ही कष्टों से मर जाता है...ही...ही....ही"...

"क्या?"...

"प्लीज़!...आप माईन्ड ना करें"...

"आप इतना सब उल्टा-सीधा बके चली जा रही हैं और मुझे कह रही हैं कि माईंड ना करें?”

"एक्चुअली!...इट वाज़ से पी.जे"..

"पी.जे माने?"...

"प्योर जोक...प्रैक्टिकल जोक"...

"ओह!...फिर तो आप बड़े ही खतरनाक जोक मारती हैं....मिस...पिंकी"....

"ये तो सर!...कुछ भी नहीं..मेरे नॉनवैज जोक्स के आगे तो बड़े बड़ों के...ऊप्स...सॉरी..बड़े-बड़े हिल जाया करते हैं"...

"ओह!...रियली?"...

"जी..और सर!...मेरा नाम 'पिंकी' नहीं बल्कि 'रिया' है"...

"ओह!...फिर तो आपने ठीक किया"....

"क्या ठीक किया...सर?"...

"यही...अपना नाम बता के...वर्ना खामख्वाह कंफ्यूज़न क्रिएट होता रहता"...

"किस तरह का कंफ्यूज़न...सर?"..

"एक्चुअली!..फ्रैंकली स्पीकिंग...इस तरह के दो-चार फोन तो रोज़ ही आ जाते हैं"...

"तो?"...

"तो सबके नाम याद करने में अच्छी-खासी मुश्किल पेश आ जाया करती है"...

"सर!...एक बार जब आप हमसे ले लेंगे ना...तो फिर कभी भी मेरा नाम नहीं भूल पाएंगे...और वैसे भी मैं भूलने वाली चीज़ नहीं हूँ ...सर"...

"जी!...वो तो आपकी बातों से ही मालुम चल गया है"...

"क्या मालुम चल गया है...सर?"...

"यही कि आप बातें बड़ी दिलचस्प करती हैं"...

"थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट...सर"...

"एक्चुअली!...फ्रैंकली स्पीकिंग..यू हैव ए वैरी..वैरी स्वीट एण्ड सैक्सी वॉयस"...

"झूठे!...फ्लर्ट करना तो कोई आप मर्दों से सीखे"..

"प्लीज़!...इसे झूठ ना समझें...सच में!...आपकी आवाज़ बड़ी ही मीठी और सुरीली है...तुम्हारी कसम"..

"अच्छा जी!...अभी मुझसे बात करते हुए कुछ ही मिनट हुए हैं और आप मेरी कसमें भी खाने लगे"...

"एक्चुअली!...रिया...वो क्या है कि किसी को समझने में पूरी उम्र बीत जाया करती है और किसी को जानने के लिए सिर्फ चन्द सकैंड ही काफी होते हैं|यू नो!...जोड़ियाँ ..ऊपर स्वर्ग से ही बन कर आती हैं"...

"जी!..बात तो आप सही कह रहे हैं"...

“जी!..

"सर!...वैसे आप रहते कहाँ हैं?"...

"जी!...शालीमार बाग"...

"वहाँ तो प्रापर्टी के बहुत ज़्यादा रेट होंगे ना सर?"...

"जी!...यही कोई दो सवा दो लाख रुपए गज के हिसाब से सौदे हो रहे हैं आजकल और अभी परसों ही डेढ सौ गज में बना एक सैकैंड फ्लोर बिका है पूरे दो करोड़ का"

"गुड!...मैं भी सोच रही थी कोई सौ-पचास गज का प्लाट ले के डाल दूँ...आने वाले टाईम में कुछ ना कुछ मुनाफा दे के ही जाएगा"...

"बिलकुल सही सोचा है आपने...किसी भी और चीज़ में इनवैस्ट करने से अच्छा है कि कोई प्लाट या मकान खरीद के रख लिया जाए"..

"जी!...लेकिन मुझे ये फ्लोर-फ्लार का चक्कर बेकार लगता है...ये भी क्या बात हुई कि नीचे कोई और रहे और ऊपर कोई और?"...

“जी!...

"सर्दियों में कभी छत पे धूप सेकनी हो या फिर पापड़-वड़ियाँ सुखाने हों तो बस दूसरों के मोहताज हो गए हम तो"...

"जी!..ये बात तो है.. और वैसे भी इसमें कहाँ की अक्लमन्दी है कि ज़रा-ज़रा से काम के लिए दूसरों को डिस्टर्ब कर..उनका घंटा..ऊप्स!...सॉरी...घंटी बजाते रहो"...

"जी!...बिलकुल सही कहा सर आपने"...

"सर!...आप बुरा ना मानें तो एक बात पूछूँ?"...

"अरे यार!...इसमें बुरा मानने की क्या बात है?...हक बनता है आपका..आप एक-दो क्या पूरे सौ सवाल पूछें तो भी कोई गम नहीं"..

“ओह!...थैंक यू”...

"ये नाचीज़!..आपकी सेवा में हमेशा हाज़िर रहेगा"...

“थैंक्स”...

“एक मिनट...मेरा बैंक आ गया....मैं दस पन्द्रह मिनट में फ्री हो के आपको कॉल करता हूँ...आप अपना मोबाईल नंबर दें”...

"नहीं!...आप रहने दें"...मैं ही कर लूँगी..हमें वैसे भी अपना दिन का टॉरगैट पूरा करना होता है"..

"ओ.के"...

(बीस मिनट बाद)

"हैलो!..राजीव?"...

"हाँ जी!...और सुनाएँ!..क्या हाल-चाल हैं?"...

"बस!...क्या सुनाएँ?..कट रही है जैसे तैसे"..

"ऐसे क्यों बोल रही हो यार?"...

"बस ऐसे ही!...कई बार लगता है कि जैसे जीवन में कुछ बचा ही नहीं है"...

"चिंता ना करो!...मैं हूँ ना?...सब ठीक हो जाएगा"..

"कुछ ठीक नहीं होने वाला है"...

"थोड़ी-बहुत ऊँच-नीच तो यार..सबके साथ लगी रहती है...मुश्किलों से घबराने के बजाए इनका डट कर मुकाबला करना चाहिए"...

"जी"...

"खैर!...आप बताएँ!...क्या पूछना चाहती थी आप?"...

"नहीं!...रहने दें...फिर कभी...किसी अच्छे मौके पे"...

"आज से...अभी से अच्छा मौका और क्या होगा?आज ही आपसे पहली बार बात हुई और आज ही आपसे दोस्ती हुई...और वैसे भी दोस्ती में कोई शक...कोई शुबह नहीं रहना चाहिए"...

"जी!...ये तो सही कहा आपने"...

“जी!...

"सर!...मैं ये कहना चाहती थी कि...

"पहले तो आप ये सर...सर लगाना छोड़ें...एक्चुअली!...टू बी फ्रैंक...बड़ा ही ऑकवर्ड और अनडीसैंट सा फील होता है जब कोई अपना इस तरह फॉरमैलिटी भरे लहज़े में बात करे...आप मुझे सीधे-सीधे राजीव कह के पुकारें"...

"जी!...सर...ऊप्स सॉरी राजीव"...

"हा हा हा हा"...

"एक्चुअली क्या है राजीवकि मैंने कभी किसी से ऐसे ओपनली..फ्री हो के बात नहीं करी है"...

"जी!...

“और हमें हमारे प्रोफैशन में सिखाया भी यही गया है कि सामने वाला बन्दा कैसा भी घटिया हो और कैसे भी...कितना भी रूडली बात करे लेकिन हमें अपनी पेशेंस...अपने धैर्य को नहीं खोना है और अपने चेहरे पे हमेशा मुस्कान बना के रखनी है"...

“जी!..

"हमारी आवाज़ से हमारे कमीनेपन का किसी को पता नहीं चलना चाहिए..यू नो प्रोफैशनलिज़म"...
"सही ही है..अगर आप लोग अपने कस्टमरज़ के साथ बतमीज़ी के साथ पेश आएँगे तो अगला पूरी बात सुनने के बजाए झट से फोन ही काट देगा"...

"जी!...

“और कुछ तो उसके बस का होता नहीं है....ही...ही...ही...”

“व्हाट?...

“प्लीज़!...डोंट माइंड..इट वाज़ आल सो ए पी.जे”...

“ओह!..आपके ये पी.जे तो एक दिन मेरी जान ले के रहेंगे”...

“ओह!..आपको बुरा लगा?”..

“नहीं..कुछ ख़ास नहीं”..

“वोही तो...

"हाँ तो आप बताएँ कि आप क्या पूछना चाहती थी?"...

"राजीव!...किसी और दिन पे क्यों ना रखें ये टॉपिक?...

"देखो!...जब मैंने तुम्हें दिल से अपना मान लिया है तो हमारे बीच कोई पर्दा ...कोई दिवार नहीं रहनी चाहिए"..

"जी"...

"तो फिर पूछो ना यार...क्या पूछना है आपको?"...

"मैं तो सिम्पली बस यही जानना चाहती थी कि यहाँ शालीमार बाग में आपका अपना मकान है या फिर किराए का?"...

"किराए का?..यार!...ये किराया-विराया देना तो मुझे शुरू से ही पसन्द नहीं...इसलिए तो पाँच साल पहले पिताजी का जमा-जमाया टिम्बर का बिज़नस छोड़ मैं अमृतसर से भाग कर दिल्ली चला आया कि कौन हर महीने किराया भरता फिरे?...और आज देखो!...अपनी मेहनत...अपनी हिम्मत से मैंने सब कुछ पा लिया है...ये मकान...ये गाड़ी"...

"ओह!..तो इसका मतलब खूब तरक्की की है जनाब ने दिल्ली आने के बाद"...

"बिलकुल!...लाख मुश्किलें आई मेरे सामने लेकिन ज़मीर गवाह है मेरा कि मैंने कभी हार नहीं मानी और कभी ऊपरवाले पर अपने विश्वास को नहीं खोया"...
"उसी ने दया-दृष्टि दिखाई अपनी..वर्ना!...मैं तो कब का थक-हार के टूट चुका होता और आज यहाँ दिल्ली में नहीं बल्कि वापिस बैक टू दा पवैलियन याने के अमृतसर लौट गया होता"...
"यहाँ...इस निष्ठुर और अनजान शहर में मेरा है ही कौन?"...

"शश्श!...ऐसे नहीं बोलते..चिंता ना करो...अब मैं हूँ ना तुम्हारे साथ...तुम्हारे हर दुख..हर दर्द की साथिन"...

"थैंक्स यार”...

“वैसे कितने कमरे हैं आपके मकान में?"..

"क्यों?...क्या हुआ?"...

"कुछ नहीं!...वैसे ही नॉलेज के लिए पूछ लिया"..

"पूरे छह कमरों का सैट हैं"......

"छह कमरे?"......

“जी!..

"वाऊ!....दैट्स नाईस...लेकिन आप इतने कमरों का क्या करते हैं?...क्या बीवी...बच्चे?"...
"कहाँ यार?...अभी तो मैं कुँवारा हूँ"...

"Wow!..व्हाट ए लवली कोइंसीडैंस...मैं भी अभी तक कुँवारी हूँ"...

"फिर तो खूब मज़ा आएगा जब मिल बैठेंगे कुँवारे दो"...

"जी बिलकुल"..

"लेकिन आप अकेले इतने कमरों का करते क्या हैं?"...

"दो तो मैंने अपने पास रखे हैं और एक आए गए मेहमानों के लिए"...

"और बाकी के तीन कमरे?"...

"बाकी के तीन कमरे?..हाँ!...याद आया...वो क्या है कि कई बार मैं अकेला बोर हो जाता हूँ इसलिए फिलहाल किराए पे चढा रखे हैं"...

"ठीक किया...अपना थोड़ी-बहुत आमदनी भी हो जाती होगी और अकेले बोर होने से भी बच जाते होगे"..

"जी"...

"लेकिन अब चिंता ना करें...मैं आपको बिलकुल भी बोर ना होने दूँगी...जब भी..कभी भी ज़रा सा भी लगे कि आप बोर हो रहे है तो आप बेहिचक कभी भी..किसी भी वक्त मुझे फोन कर दिया करें"...

"किसी भी वक्त?”..

“जी!..बिलकुल..मेरा वायदा है आपसे कि आप मेरी कम्पनी को पूरा एंजाय करेंगे"...

"जी!...ज़रूर...शुक्रिया"....

"दोस्ती में...प्यार में...नो थैंक्स...नो शुक्रिया"...

“जी!..

"ध्यान रहेगा ना?"...

"जी!...ज़रूर"....

"ओ.के"...

"यार!...बातों ही बातों में मैं ये पूछना तो भूल ही गया कि आप कहाँ रहती हैं?...और घर में कौन-कौन है वगैरा...वगैरा"...

“अब क्या बताऊँ?...घर में माँ-बाप और बस हम तीन बहनें...सबसे छोटी...सबसे लाडली और सबसे नटखट मैं ही हूँ"...

"और घर?"...

"रहने को फिलहाल मैं जहाँगीर पुरी में रह रही हूँ"...

"वो जो साईड पे लाल रंग के फ्लैट बने हुए हैं?"...

"नहीं यार!...जे.जे.कालौनी में रह रही हूँ"...

“ओह!...

"गुस्सा तो मुझे बहुत आता है अपने मम्मी-पापा पर कि उन्हें यही सड़ी सी कालौनी मिली थी रहने के लिए लेकिन क्या करूँ माँ-बाप हैं मेरे...बचपन से पाला-पोसा..पढाया-लिखाया उन्होंने"...

"हम्म!..उनके सामने फालतू बोलना ठीक नहीं"...

"जी!...

“जी!...खैर ..आप बताएँ...क्या-क्या हाबिज़ हैं आपकी?"...

"हाबिज़ माने?"...

"क्या-क्या शौक हैं आपके?"..

"ओह!..अच्छा...मुझे बढिया खाना...बढिया पहनना....बड़े-बड़े होटलों में घूमना-फिरना...स्वीमिंग करना...फिल्में देखना और फाईनली देर रात तक डिस्को में अँग्रेज़ी धुनों पे नाचना-गाना पसन्द है"...

"गुड...म्यूज़िक तो मुझे भी बहुत पसन्द हैलेकिन मुझे ये रीमिक्स वाले गाने तो बिलकुल ही पसन्द नहीं"...

“ओह!...

"ये क्या बात हुई कि मेहनत करनी नहीं...रियाज़ करना नहीं और बैठ गए पहले से रेकार्ड की हुई रैडीमेड धुनों को ले के कि चलो..इनको मिक्स करके एक नया रीमिक्स बनाएँ"...

"ओह!..

“अरे!...गीत-संगीत का इतना ही शौक है तो उठाओ हॉरमोनियम और बजाओ दिल से सारंगी...नई धुन.....नया गीत तैयार ना हो तो कहना"...

"लगता है कि आपको संगीत की...सुरों की काफी समझ है"...

"अरे!..म्यूज़िक तो मेरी जान है...मेरा पैशन है और कई इंस्ट्रूमैंट्स तो मैं खुद बजाना जानता हूँ"...

"Wow!...That's nice"...

"सुबह उठ के जब तक मैं घंटे दो घंटे रियाज़ ना कर लूँ...चैन ही नहीं पड़ता"...

गुड"...

"संगीत के अलावा और क्या-क्या शौक हैं आपके"...

"म्यूज़िक के अलावा मुझे हार्स राईडिंग पसन्द है...लॉग ड्राईव....गैम्ब्लिंग पसन्द है...हॉलीवुड मूवीज़ पसन्द हैं"...
"इसके अलावा और भी बहुत कुछ पसन्द है...जब मिलोगी...तब बताऊँगा"...

"ओ.के"...

"तो फिर कब मिल रही हैं आप?"...

"देखते हैं"...

"बताओ ना!...प्लीज़"...

"क्या बात है?...बड़े बेताब हुए जा रहे हो मुझसे मिलने को...ऐसा क्या है मुझमें?"...

"और नहीं तो क्या?....जिसकी आवाज़ ही इतनी खूबसूरत हो..उसे पर्सनली मिलना भी तो चाहिए...पता तो चले कि ऊपर वाले ने मेरी किस्मत में कौन सा नायब तोहफा लिखा है?"...

"इतना ऊपर ना चढाओ मुझे कि कभी नीचे उतर ही ना पाऊँ"...

"बताओ ना यार!...कब मिल रही हो?"...

"ओ.के....कल तो मुझे शापिंग करने करौल बाग जाना है"...

"ओह!..

“क्यों ना आप भी मेरे साथ चलें"...

"जी...बिलकुल...आप बताएँ..कितने बजे मिलेंगी?...मैं आपको..आपके घर से ही पिक कर लूँगा"...

नहीं..घर से तो बिलकुल नहीं...आस-पड़ोस वाले बेफालतूमें फालतू बातें बनाएंगे...क्या फायदा?"...

"फिर?"...

"सुबह मुझे अपनी सहेली के साथ शालीमार बाग में ही काम है...वहीं से निबट के मैं आपके घर आ जाऊँगी"...

"मेरे घर?”...

“हाँ!...आपके घर...कोई प्राब्लम तो नहीं है ना आपको?"..

"न्न..नहीं!...मुझे भला क्या प्राब्लम होनी है?...मैं तो वैसे भी अकेला रहता हूँ"...

"गुड!...यही ठीक रहेगा"....

“जी!...

"कल मैंअपने सारे काम निबटा के आपके पास यही कोई बारह-साढे बारह तक पहुँच जाऊँगी"...

"ओ.के"...

"उसके बाद घंटे दो घंटे सुस्ता के तीन-चार बजे तक आराम से चलेंगे शापिंग के लिए"...

"जी!...तब तक तो मौसम भी सुहाना हो जाएगा"...

"जी!..यू नो!..मुझे तो धूप में घूमना-फिरना बिलकुल भी पसन्द नहीं"...

"जी!...बेकार में मज़े-मज़े में कांप्लैक्शन खराब हो जाए...क्या फायदा?"..

"जी!...तो फिर कल मिलते हैं"...

"ओ.के...मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा"...

"मुझे भी"...

"अपना ध्यान रखना"...

"आप भी"...

"ओ.के...बाय"...

"बाय...ब्बाय..लव यू"...

“लव यू टू”..

"ट्रिंग..ट्रिंग"...

"हैलो"...

"अरे!...आपने अपना पता तो बताया ही नहीं...कैसे पहुँचूगी आपके घर?"...

"ओह!...बातों-बातों में ध्यान ही नहीं रहा...आप नोट करें"...

"हाँ!..एक मिनट...हाँ जी!...बताएँ"...

"आपने ये केला गोदाम देखा है शालीमार का?"...

"जी!...अच्छी तरह"..

"बस!...उसी के साथ ही है"...

"क्या BK-1 Block में?"...

"नहीं...नहीं...उस तरफ नहीं"...

"दूसरी तरफ तो A-Pocket है"...

"हाँ!...उसी तरफ"...

"इसका मतलब AA Block है आपका"...

"नहीं यार"...

"फिर कहाँ?"...

"AA Block के साथ वो फॉर्टिस वालों का अस्पताल है ना?"...

"जी"...

"बस!...उसी के साथ जो झुग्गी बस्ती है"...

"हाँ!..है"..

"बस!...उसी में...उसी में घर है मेरा"...

"व्हाट?.....

"जी"...

"लेकिन तुम तो कह रहे थे कि अपना मकान है छह कमरों का"...

"हाँ!..तो?...दिल्ली में अपनी झुग्गी होना मतलब अपना मकान होना ही है"...
"पूरी 10X10 की छह झुग्गियों पे कब्ज़ा है मेरा"...

"और उन्हीं में से तीन किराए पे उठाई हुई होंगी?"..

"जी"...

"गुड...तुम तो ये भी कह रहे थे कि अमृतसर में तुम्हारे पिताजी का टिम्बर का बिज़नस है?"...

"हाँ!...है ना...वहीं सदर थाने के पास वाले चौक पे 'दातुन' बेचने का बरसों पुराना ठिय्या है हमारा"...

"क्या?"...

जी!..

"और ये जो तुम म्यूज़िक और घुड़ सवारी के शौक के बारे में बता रहे थे....वो सब भी क्या धोखा था?"...

"जानू!...ना मैंने तुम्हें पहले कभी झूठ कहा और ना ही अब कहूँगा| ये सच है कि म्यूज़िक का मुझे बचपन से बड़ा शौक है और इसी वजह से मैंने दिल्ली आने के बाद शादी-ब्याहों में ढोल बजाने का काम शुरू किया"...

"ओह!...इसका मतलब ...तभी बैंड-बाजे वालों की सोहबत में रहते हुए कई तरह के म्यूज़िक इंस्ट्रूमैंटस को बजाना सीख लिया होगा? जैसे पीपनी...सारंगी...बाँसुरी वगैरा...वगैरा"...

"जी!...आपको कैसे पता?"...

"और ये घुड़सवारी?"...वो भी आपने वहीं से सीखी?"...

"जी!...वो दरअसल क्या है कि बैंड-बाजे वालों के यहाँ घोड़ी वाले भी आते रहते थे"...

"तो उनसे ही ये हुनर सीख लिया"...

"जी!..बिलकुल"...


"ओ.के"...

"तो फिर कल कितने बजे आ रही हो?"...

"आ रही हूँ?...सपने में भी ऐसे ख्वाब ना देखिओ"...

"क्यों?...क्या हुआ?"...

"स्साले!...कंगले की औलाद...औकात देखी है अपनी?...मेरे...मेरे साथ डेट पे जाना चाहता है?"...

"तो?”..

“स्साले!..ऐसी-ऐसी जगह चक्कू-छुरियाँ पड़वाऊँगी कि ना किसी को दिखाते बनेगा और ना किसी को बताते बनेगा"...

"एक मिनट!...चुप्प...बिलकुल चुप्प...मुझे इतना बोल रही है तो तू कौन सा आसमान से टपकी है?जानता हूँ!...अच्छी तरह जानता हूँ...जहाँ तू रहती है ना?...वहाँ की एक-एक गली से...एक-एक चप्पे से वाकिफ हूँ मैं...तुम्हारे यहाँ किसी की भी दो चार सौ रूपए से ज़्यादा की औकात नहीं है"...

“जा..जा...फ़ालतू की बकवास ना कर”...

"अरे!...फ़ालतू की बकवास मैं नहीं बल्कि तू कर रही है...और सुन मैंआऊँगा...आज ही तेरीगली आऊँगा और तुझसे नहीं बल्कि तेरी पड़ौसन के साथ रात भर रंगरलियाँ मनाऊँगा...उखाड़ ले इय्य्यो मेरा!...जो उखाड़ना हो"...

"शटअप!...यू ब्लडी @#$%ं&*

"यू ऑल सो शटअप... ब्लडी @#$%ं&%#
"गो टू हैल"...***राजीव तनेजा***